हरिद्वार: महाकुंभ के अवसर पर तरह-तरह के साधुओं को देखा जा रहा है. साधुओं का एक ऐसा जत्था है जो सिर्फ संन्यासियों से भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करता है. इन साधुओं को अलख दरबार के संत के नाम से जाना जाता है.
अलख दरबार के साधु-संतों का जीवन त्याग और तपस्या से भरा होता है. ये भगवान शिव के साधक माने जाते हैं. भिक्षा मांगते समय यह सिर्फ ओम और अलख निरंजन का उच्चारण करते हैं. यह स्वर सुनते ही नागा साधु तक भिक्षा देने के लिए आतुर हो जाते हैं. खास बात यह है कि यह बैठकर और खड़े होकर भिक्षा नहीं मांगते. यह चलते रहते हैं. इस वजह से साधु-संतों को इन्हें भिक्षा देने के लिए दौड़ना पड़ता है. चलते-चलते यह भिक्षा लेने के लिए "लगे लट्ठ फटे खोपड़ी, छठा छठ माल निकालो फटाफट" कहते हैं.
अलख दरबार का जत्था बहुत कम देखने को मिलता है. किसी विशेष पर्व या आयोजन के समय में यह जरूर आते हैं. अन्यथा ये लोग शान्त इलाकों में रहते हैं.
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जूना अखाड़े के साधु रविंद्र आनंद पुरी ने बताया कि पहले के समय में अलख दरबार ही पूरे अखाड़े का पालन पोषण किया करता था. अलख दरबार सब जगह से भिक्षा लेकर पूरे जूना अखाड़े को खिलाता था. अब जैसे-जैसे समय बदल रहा है उसके बावजूद भी यह परंपरा निरंतर चल रही है. कुंभ के समय में अलख दरबार अपनी अहम भूमिका निभाता है. सबसे पहले अलख दरबार के संत जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर के आश्रम में जाते हैं. उसके बाद पूरी छावनी में भ्रमण करते हैं. इस दौरान अगर किसी ने भिक्षा दी तो वह उसे ग्रहण के लेते हैं. लेकिन भिक्षा लेने के दौरान अलख साधु कहीं रुकते नहीं हैं. इतना ही नहीं सभी साधुओं को भाग-भाग कर उन्हें भिक्षा देनी पड़ती है. इनको भिक्षा देना काफी शुभ माना जाता है. यह केवल और केवल कुंभ में ही दर्शन देते हैं.