रुड़की: इस्लाम धर्म में माह-ए-रमजान सबसे खास होता है. दुनियाभर में 23 मार्च की देर शाम चांद दिखने के साथ से ही रमजान के पाक महीने की शुरुआत हो गई. चांद दिखने के बाद रात में भी तराबीह नमाज पढ़ी गई. फिर अगले दिन सुबह पहली सहरी होगी और सहरी के साथ ही पहले रोजे से रमजान की शुरुआत हो जाएगी. रमजान के महीना को मुस्लिम धर्मग्रंथों में बरकतों और रहमतों वाला बताया गया है.
माना जाता है कि इस महीने में पुष्ण का फल आम दिनों से कई फीसदी ज्यादा मिलता है. इसी कारण रजमान महीने में मुसलमान ज्यादा से ज्यादा पुण्य कार्य करते हैं. ये महीना गरीबों की मदद करना, पीड़ितों पर रहम करना और गुनाहों से बचने का संदेश देता है. सुबह सहरी की नमाज, इफ्तार और आखिर में तराबीह की नमाज सबसे जरूरी मानी गई है.
मजहब-ए-इस्लाम में रमजान महीने की बड़ी फजीलते बयां की गई हैं. इस महीने का इंतजार हर मुसलमान को रहता है. इस महीने के हर एक दिन को आम दिनों के मुकाबले हजार गुना बेहतर माना गया है. मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों के लिए रोजा रखना उनका फर्ज माना जाता है, जिसे विश्वभर में मुसलमान बेहद गंभीरता से लागू करते हैं.
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माह-ए-रमजान में रखा जाने वाला रोजा हर सेहतमंद आदमी और औरत का फर्ज माना जाता है. रोजा छोटे बच्चों, बीमारों और नासमझों पर लागू नहीं होता. हालांकि, ये रूल ये भी है कि अगर इन दिनों में कोई शख्स किसी बीमारी के कारण रोजे नहीं रख सका है तो वो शख्स दुरुस्त होने के बाद छूटे हुए रोजों को रख सकता है.
क्या होती है तराबीह: रमजान को इबादत के महीने के नाम से जाना जाता है. जो इस महीने के चांद दिखने के साथ ही शुरू हो जाता है. रमजान का चांद दिखने के बाद उसी रात से ही तराबीह की नमाज का सिलसिला शुरू हो जाता है. दरअसल, तराबीह एक नमाज है. इस नमाज को इमाम कुरान से पढ़कर नमाज में शामिल लोगों को सुनाते हैं. इस नमाज का मकसद अल्लाह की तरफ से भेजे हुए संदेशों के बारे में लोगों को बताना है.
इफ्तार के बाद रात की आखिरी नमाज के बाद तराबीह की नमाज को पढ़ा जाता है. रमजान के दिनों में से कुरान को तराबीह में सुनने और पढ़ने के लिए हर मस्जिद अपनी सहूलियत के हिसाब से दिन तय करती है. इसी तरह रमजान के 30 दिनों में तराबीह पढ़े जाने के दिन तय करते हैं और उन्ही दिनों में कुरान पूरा पढ़ते और सुनते हैं.
रोजे का मतलब और मकसद: रोजा रखने का मतलब केवल सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहने नहीं बल्कि रोजेदार को पूरी तरह से पाकीजगी और अच्छाई का रास्ता दिखाया जाता है. अल्लाह चाहता है कि महीने भर रोजों के जरिए इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी भी रमजान के दिनों के मुताबिक बिताने वाला बने. रोजा का सीधा अर्थ शरीर, मन और मतिष्क को स्वच्छ करना और अल्लाह की बंदगी में रम जाना है.