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लापरवाही! गंगा में बह रहा सीवर का पानी, मेयर को लोगों ने सुनाई खरी-खोटी

हरिद्वार में गंगा नदी में सीवर का पानी गिरने और गंदगी को लेकर लोगों ने मेयर अनीता शर्मा को जमकर खरी-खोटी सुनाई. यहां मेयर अनीता शर्मा राम घाट पर टॉयलेट के जीर्णोंद्धार का उद्घाटन करने पहुंचीं थी, लेकिन उन्हें लोगों का जमकर विरोध झेलना पड़ा. जानिए गंगा नदी क्यों नहीं हो पा रही है स्वच्छ?...

sewer water fell in ganga river at haridwar
गंगा में बह रहा सीवर का गंदा पानी
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Published : Nov 27, 2021, 4:34 PM IST

Updated : Nov 27, 2021, 5:05 PM IST

हरिद्वारः गंगा की अविरलता और निर्मलता यानी स्वच्छता (cleanliness of ganga) पर अरबों रुपए बहाए जा रहे हैं, लेकिन मां गंगा की हालत नहीं सुधर पाई है. आलम तो ये है कि हरिद्वार के राम घाट पर सीवर का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है. जिससे गंगा तो प्रदूषित हो रही है. ऐसे में नमामि गंगे समेत स्वच्छ गंगा मिशन महज हवाई साबित हो रहे हैं. स्थानीय लोग कई बार सीवर लाइन को ठीक करने और गंगा को स्वच्छ रखने की मांग कर चुके हैं, उसके बावजूद भी जिम्मेदार गंभीर नहीं है. जिसका खामियाजा हरिद्वार मेयर अनीता शर्मा को विरोध स्वरूप झेलना पड़ा.

दरअसल, हरिद्वार मेयर अनीता शर्मा (Haridwar Mayor Anita Sharma) के राम घाट पर टॉयलेट के जीर्णोद्धार का उद्घाटन करने पहुंचीं थी. जहां स्थानीय लोगों ने मेयर को घेर लिया और गंगा में गिरते सीवर (sewer falling in ganga river) को दिखाया. इतना ही नहीं स्थानीय लोगों ने गंगा में प्रदूषण और गंदगी पर मेयर को खूब खरी-खोटी भी सुनाई. यहां एक बिल्डिंग से सीवर का पानी गंगा में जा रहा था. साथ ही घाट पर गंदगी का अंबार लगा हुआ था.

गंगा में बह रहा सीवर का पानी.

ये भी पढ़ेंः मायके में ही मैली हो रही 'जीवनदायिनी', जानिए गंगा स्वच्छता की हकीकत

शिकायत के बावजूद सुध लेने नहीं आते जिम्मेदारः स्थानीय लोगों का आरोप है कि कई बार उन्होंने स्थानीय पार्षद और विभागों में सीवर को लेकर शिकायत कर चुके हैं, लेकिन आज तक कोई भी सुध लेने नहीं पहुंचा. गंगा तो प्रदूषित हो रही है. साथ ही बदबू और गंदगी से लोगों का जीना मुहाल हो गया है. गंदगी की वजह से लोग राम घाट पर पूजा-अर्चना और आचमन भी नहीं कर पा रहे हैं. आज जब मेयर अनीता शर्मा यहां पहुंची है तो उन्हें गंगा की स्वच्छता और सीवर की गंदगी से अवगत कराया गया है. जिस पर मेयर ने जल्द से जल्द सीवर को ठीक करने का आश्वासन दिया है.

उद्गम स्थल से ही बदलने लगा गंगा का स्वरूपः कुछ दशकों पहले की बात करें तो गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से हरिद्वार तक संकरी रास्तों से होकर आती थीं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से गंगा का स्वरूप बदल गया और अब अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से करीब 150 किलोमीटर दूर उत्तरकाशी तक ही संकरे रास्तों से होकर पहुंचती हैं और फिर उत्तरकाशी के बाद से ही गंगा का विस्तार हो जाता है. हालांकि, गंगा के बदले स्वरूप की मुख्य वजह मानव ही है. क्योंकि लगातार गंगा में हो रहे खनन के कारण ना सिर्फ गंगा का स्वरूप बदला है, बल्कि लगातार हो रहे पर्यावरण में बदलाव से गंगा नदी के तेज बहाव के चलते भी स्वरूप में बदलाव आया है.

ये भी पढ़ेंः 'गंगे डॉल्फिन' के अस्तित्व पर मंडरा रहा गंभीर खतरा

लॉकडाउन के दौरान गंगा कम हुई प्रदूषितः गंगा नदी को खुद मानव जाति ने बहुत अधिक प्रदूषित किया है, क्योंकि इसका जीता जागता उदाहरण हाल ही का है, जब वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया था. उस दौरान गंगा के निर्मलता और अविरलता को देखकर सभी हैरान हो गए थे, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान गंगा नदी शीशे की तरह साफ और पारदर्शी हो गई थी. यानी कुल मिलाकर देखें तो जब गंगा नदी में आने वाली सभी गंदगी पूरी तरह से बंद हो गई थी, तो उस दौरान गंगा का स्वरूप कुछ और ही निकल कर सामने आया, लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि एक बार फिर गंगा नदी प्रदूषित नजर आ रही है.

हरिद्वार के बाद अधिक प्रदूषित है गंगाः वर्तमान स्थिति को देखें तो अभी फिलहाल गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से हरिद्वार तक दैवीय गुणों से भरपूर है. लेकिन हरिद्वार के बाद से ही गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता में काफी बदलाव आया है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से गंगा को प्रदूषित करने में मानव जाति ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. इसकी मुख्य वजह यह है कि गंगा नदी में ना सिर्फ सभी इंडस्ट्री के गंदे पानी को डाला जाता है, बल्कि कई जगहों पर सीवरेज भी इसी गंगा नदी में छोड़ा जाता रहा है, जिसके चलते हरिद्वार से आगे बहने वाली गंगा नदी प्रदूषित होती चली गई.

ये भी पढ़ेंः नमामि गंगे परियोजना का ऐसा है हाल, गंगा नदी में जा रहा घरों से निकलने वाला गंदा पानी

विकास कार्यों से प्रदूषित हो रही गंगाः जितनी तेजी से हम आधुनिकता के युग में प्रवेश कर रहे हैं, उतनी तेजी से हम अपने नेचुरल रिसोर्सेज को भूलते जा रहे हैं. यही वजह है कि जहां कुछ दशकों पहले गंगा साफ-सुथरी और निर्मल हुआ करती थी, तो वहीं अब गंगा धीरे-धीरे प्रदूषित होती जा रही है, जिसकी मुख्य वजह यह है कि लोग एक सुंदर दृश्य के लिए गंगा किनारे ना सिर्फ अपना घर बना रहे हैं, बल्कि तमाम विकास कार्यों को भी अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. हालांकि, एक तरह से देखा जाए तो देश के विकास के लिए विकास कार्यों का होना जरूरी है, लेकिन इस विकास कार्य के दौरान सारा मलबा गंगा नदी में फेंका जाता है, जो सीधे तौर पर गंगा को प्रदूषित करती है.

अरबों खर्च के बाद भी हालात जस के तसः गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है. केंद्र और राज्य सरकार द्वारा गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें प्रमुख नमामि गंगे परियोजना (Namami Gange Programme) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga) के तहत गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए अरबों रुपए खर्च किए गए हैं, लेकिन हरिद्वार में गंगा की स्वच्छता का उद्देश्य धरातल पर उतरता नजर नहीं आ रहा है.

वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी (National Green Tribunal) ने भी गंगा में गंदगी डालने से रोकने के लिए सख्त निर्देश दिए थे. बावजूद इसके गंगा में प्लास्टिक, पूजा के फूल, पुराने कपड़े और कूड़ा आदि डालने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं, जिसका ही नतीजा है कि गंगा प्रदूषित होती जा रही है.

गंगा के लिए किए गए प्रयास नहीं रहे सफलः बीते कुछ सालों के भीतर राज्य और केंद्र सरकार ने गंगा नदी को बचाने के लिए तमाम प्रयास किए, लेकिन वह प्रयास सफल नहीं हो पाए. जिसकी मुख्य वजह है कि आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में घरों से निकलने वाला गंदा पानी, समेत अन्य कूड़ा करकट गंगा नदी में ही फेंका जा रहा है. ऐसे में अगर इस पर लगाम नहीं लगाई जाती है तो गंगा नदी धीरे-धीरे ऐसे ही प्रदूषित होती रहेगी.

ये भी पढ़ेंः कुछ ऐसी हो गई है साध्वी पद्मावती की हालत, फिर भी नहीं बदला गंगा रक्षा का संकल्प

हालांकि, जिस तरह से गंगा के चारों ओर सीमेंट की दीवारें बनाई जा रही हैं, उससे तमाम लोगों को रोजगार तो मिल रहा है, लेकिन गंगा के प्रदूषण, अतिक्रमण, शोषण और गंगा की निर्मलता-अविरलता के लिए जो सुझाव दिए गए हैं, उन सुझावों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि गंगा आचमन के लायक भी नहीं रहेगी.

केंद्र सरकार के लाख प्रयासों के बाद भी निर्मल नही हो पाई गंगाः नवंबर 2020 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (pollution control board) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हरिद्वार की विश्व प्रसिद्ध हरकी पैड़ी पर गंगाजल पीने के लायक नहीं है. हालांकि, गंगा जल में स्‍नान किया जा सकता है. हरकी पैड़ी समेत चार अलग-अलग स्थानों से लिए गए गंगा जल के सैंपलों की जांच में पानी में टोटल क्लोरोफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा स्टैंडर्ड मानकों से अधिक पाई गई थी, जिसके चलते गंगा को इस क्षेत्र में बी श्रेणी का पाया गया था. वहीं, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार बी श्रेणी का पानी बिना फिल्टर के पीने लायक नहीं होता है. हालांकि, गंगाजल में ऑक्सीजन और बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड का स्तर सही पाया गया था.

गंगा को बचाने के लिए जन जागरण की आवश्यकताः गंगा नदी को अविरल और निर्मल बनाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, वो नाकाफी साबित हो रहे हैं, जिसके चलते गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता को बरकरार रखना बहुत मुश्किल हो गया है. हालांकि, वर्तमान समय में गंगा का नाम लोगों के जुबान पर पहले से ज्यादा आया है, लेकिन गंगा के प्रति जो संवेदनशीलता और व्यवस्था होनी चाहिए उसके लिए समाज के बीच जन जागरण होने की आवश्यकता है. लिहाजा, गंगा को स्वच्छ रखने के लिए गंगा के चारों ओर सघन वन के साथ ही इस बात पर जोर देना होगा कि गंगा में किसी भी प्रकार का प्रदूषण ना जाए.

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हरिद्वारः गंगा की अविरलता और निर्मलता यानी स्वच्छता (cleanliness of ganga) पर अरबों रुपए बहाए जा रहे हैं, लेकिन मां गंगा की हालत नहीं सुधर पाई है. आलम तो ये है कि हरिद्वार के राम घाट पर सीवर का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है. जिससे गंगा तो प्रदूषित हो रही है. ऐसे में नमामि गंगे समेत स्वच्छ गंगा मिशन महज हवाई साबित हो रहे हैं. स्थानीय लोग कई बार सीवर लाइन को ठीक करने और गंगा को स्वच्छ रखने की मांग कर चुके हैं, उसके बावजूद भी जिम्मेदार गंभीर नहीं है. जिसका खामियाजा हरिद्वार मेयर अनीता शर्मा को विरोध स्वरूप झेलना पड़ा.

दरअसल, हरिद्वार मेयर अनीता शर्मा (Haridwar Mayor Anita Sharma) के राम घाट पर टॉयलेट के जीर्णोद्धार का उद्घाटन करने पहुंचीं थी. जहां स्थानीय लोगों ने मेयर को घेर लिया और गंगा में गिरते सीवर (sewer falling in ganga river) को दिखाया. इतना ही नहीं स्थानीय लोगों ने गंगा में प्रदूषण और गंदगी पर मेयर को खूब खरी-खोटी भी सुनाई. यहां एक बिल्डिंग से सीवर का पानी गंगा में जा रहा था. साथ ही घाट पर गंदगी का अंबार लगा हुआ था.

गंगा में बह रहा सीवर का पानी.

ये भी पढ़ेंः मायके में ही मैली हो रही 'जीवनदायिनी', जानिए गंगा स्वच्छता की हकीकत

शिकायत के बावजूद सुध लेने नहीं आते जिम्मेदारः स्थानीय लोगों का आरोप है कि कई बार उन्होंने स्थानीय पार्षद और विभागों में सीवर को लेकर शिकायत कर चुके हैं, लेकिन आज तक कोई भी सुध लेने नहीं पहुंचा. गंगा तो प्रदूषित हो रही है. साथ ही बदबू और गंदगी से लोगों का जीना मुहाल हो गया है. गंदगी की वजह से लोग राम घाट पर पूजा-अर्चना और आचमन भी नहीं कर पा रहे हैं. आज जब मेयर अनीता शर्मा यहां पहुंची है तो उन्हें गंगा की स्वच्छता और सीवर की गंदगी से अवगत कराया गया है. जिस पर मेयर ने जल्द से जल्द सीवर को ठीक करने का आश्वासन दिया है.

उद्गम स्थल से ही बदलने लगा गंगा का स्वरूपः कुछ दशकों पहले की बात करें तो गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से हरिद्वार तक संकरी रास्तों से होकर आती थीं, लेकिन पिछले कुछ दशकों से गंगा का स्वरूप बदल गया और अब अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से करीब 150 किलोमीटर दूर उत्तरकाशी तक ही संकरे रास्तों से होकर पहुंचती हैं और फिर उत्तरकाशी के बाद से ही गंगा का विस्तार हो जाता है. हालांकि, गंगा के बदले स्वरूप की मुख्य वजह मानव ही है. क्योंकि लगातार गंगा में हो रहे खनन के कारण ना सिर्फ गंगा का स्वरूप बदला है, बल्कि लगातार हो रहे पर्यावरण में बदलाव से गंगा नदी के तेज बहाव के चलते भी स्वरूप में बदलाव आया है.

ये भी पढ़ेंः 'गंगे डॉल्फिन' के अस्तित्व पर मंडरा रहा गंभीर खतरा

लॉकडाउन के दौरान गंगा कम हुई प्रदूषितः गंगा नदी को खुद मानव जाति ने बहुत अधिक प्रदूषित किया है, क्योंकि इसका जीता जागता उदाहरण हाल ही का है, जब वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते देशभर में लॉकडाउन लागू हो गया था. उस दौरान गंगा के निर्मलता और अविरलता को देखकर सभी हैरान हो गए थे, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान गंगा नदी शीशे की तरह साफ और पारदर्शी हो गई थी. यानी कुल मिलाकर देखें तो जब गंगा नदी में आने वाली सभी गंदगी पूरी तरह से बंद हो गई थी, तो उस दौरान गंगा का स्वरूप कुछ और ही निकल कर सामने आया, लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि एक बार फिर गंगा नदी प्रदूषित नजर आ रही है.

हरिद्वार के बाद अधिक प्रदूषित है गंगाः वर्तमान स्थिति को देखें तो अभी फिलहाल गंगा अपने उद्गम स्थल गंगोत्री से हरिद्वार तक दैवीय गुणों से भरपूर है. लेकिन हरिद्वार के बाद से ही गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता में काफी बदलाव आया है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से गंगा को प्रदूषित करने में मानव जाति ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. इसकी मुख्य वजह यह है कि गंगा नदी में ना सिर्फ सभी इंडस्ट्री के गंदे पानी को डाला जाता है, बल्कि कई जगहों पर सीवरेज भी इसी गंगा नदी में छोड़ा जाता रहा है, जिसके चलते हरिद्वार से आगे बहने वाली गंगा नदी प्रदूषित होती चली गई.

ये भी पढ़ेंः नमामि गंगे परियोजना का ऐसा है हाल, गंगा नदी में जा रहा घरों से निकलने वाला गंदा पानी

विकास कार्यों से प्रदूषित हो रही गंगाः जितनी तेजी से हम आधुनिकता के युग में प्रवेश कर रहे हैं, उतनी तेजी से हम अपने नेचुरल रिसोर्सेज को भूलते जा रहे हैं. यही वजह है कि जहां कुछ दशकों पहले गंगा साफ-सुथरी और निर्मल हुआ करती थी, तो वहीं अब गंगा धीरे-धीरे प्रदूषित होती जा रही है, जिसकी मुख्य वजह यह है कि लोग एक सुंदर दृश्य के लिए गंगा किनारे ना सिर्फ अपना घर बना रहे हैं, बल्कि तमाम विकास कार्यों को भी अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. हालांकि, एक तरह से देखा जाए तो देश के विकास के लिए विकास कार्यों का होना जरूरी है, लेकिन इस विकास कार्य के दौरान सारा मलबा गंगा नदी में फेंका जाता है, जो सीधे तौर पर गंगा को प्रदूषित करती है.

अरबों खर्च के बाद भी हालात जस के तसः गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है. केंद्र और राज्य सरकार द्वारा गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें प्रमुख नमामि गंगे परियोजना (Namami Gange Programme) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga) के तहत गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए अरबों रुपए खर्च किए गए हैं, लेकिन हरिद्वार में गंगा की स्वच्छता का उद्देश्य धरातल पर उतरता नजर नहीं आ रहा है.

वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी (National Green Tribunal) ने भी गंगा में गंदगी डालने से रोकने के लिए सख्त निर्देश दिए थे. बावजूद इसके गंगा में प्लास्टिक, पूजा के फूल, पुराने कपड़े और कूड़ा आदि डालने से लोग बाज नहीं आ रहे हैं, जिसका ही नतीजा है कि गंगा प्रदूषित होती जा रही है.

गंगा के लिए किए गए प्रयास नहीं रहे सफलः बीते कुछ सालों के भीतर राज्य और केंद्र सरकार ने गंगा नदी को बचाने के लिए तमाम प्रयास किए, लेकिन वह प्रयास सफल नहीं हो पाए. जिसकी मुख्य वजह है कि आज भी पहाड़ी क्षेत्रों में घरों से निकलने वाला गंदा पानी, समेत अन्य कूड़ा करकट गंगा नदी में ही फेंका जा रहा है. ऐसे में अगर इस पर लगाम नहीं लगाई जाती है तो गंगा नदी धीरे-धीरे ऐसे ही प्रदूषित होती रहेगी.

ये भी पढ़ेंः कुछ ऐसी हो गई है साध्वी पद्मावती की हालत, फिर भी नहीं बदला गंगा रक्षा का संकल्प

हालांकि, जिस तरह से गंगा के चारों ओर सीमेंट की दीवारें बनाई जा रही हैं, उससे तमाम लोगों को रोजगार तो मिल रहा है, लेकिन गंगा के प्रदूषण, अतिक्रमण, शोषण और गंगा की निर्मलता-अविरलता के लिए जो सुझाव दिए गए हैं, उन सुझावों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. नहीं तो एक समय ऐसा आएगा कि गंगा आचमन के लायक भी नहीं रहेगी.

केंद्र सरकार के लाख प्रयासों के बाद भी निर्मल नही हो पाई गंगाः नवंबर 2020 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (pollution control board) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हरिद्वार की विश्व प्रसिद्ध हरकी पैड़ी पर गंगाजल पीने के लायक नहीं है. हालांकि, गंगा जल में स्‍नान किया जा सकता है. हरकी पैड़ी समेत चार अलग-अलग स्थानों से लिए गए गंगा जल के सैंपलों की जांच में पानी में टोटल क्लोरोफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा स्टैंडर्ड मानकों से अधिक पाई गई थी, जिसके चलते गंगा को इस क्षेत्र में बी श्रेणी का पाया गया था. वहीं, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार बी श्रेणी का पानी बिना फिल्टर के पीने लायक नहीं होता है. हालांकि, गंगाजल में ऑक्सीजन और बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड का स्तर सही पाया गया था.

गंगा को बचाने के लिए जन जागरण की आवश्यकताः गंगा नदी को अविरल और निर्मल बनाने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, वो नाकाफी साबित हो रहे हैं, जिसके चलते गंगा नदी की अविरलता और निर्मलता को बरकरार रखना बहुत मुश्किल हो गया है. हालांकि, वर्तमान समय में गंगा का नाम लोगों के जुबान पर पहले से ज्यादा आया है, लेकिन गंगा के प्रति जो संवेदनशीलता और व्यवस्था होनी चाहिए उसके लिए समाज के बीच जन जागरण होने की आवश्यकता है. लिहाजा, गंगा को स्वच्छ रखने के लिए गंगा के चारों ओर सघन वन के साथ ही इस बात पर जोर देना होगा कि गंगा में किसी भी प्रकार का प्रदूषण ना जाए.

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Last Updated : Nov 27, 2021, 5:05 PM IST
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