ETV Bharat / state

उत्तराखंड वन विभाग के अफसरों को फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान से परहेज! खतरे में पड़ सकती है जंगलों की सेहत - UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN

वन महकमा जंगलों की सेहत के लिए ऐसा फ्यूचर प्लान तैयार करता है जिसमें 10 साल की कार्ययोजना होती है, इसमें लापरवाही हो रही है

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान (PHOTO- ETV BHARAT)
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 4, 2025, 11:37 AM IST

Updated : Feb 4, 2025, 1:31 PM IST

देहरादून: पिछले साल 21 दिसंबर को देहरादून में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 जारी की थी. इस रिपोर्ट में उत्तराखंड को लेकर चिंता जताई गई थी. चिंता की बात ये थी कि इससे पहले जहां उत्तराखंड वनाग्नि के मामले में 13वें नबर पर था, तो इस रिपोर्ट में जंगल की आग को लेकर नंबर 1 हो गया था. उत्तराखंड में वनों को लेकर हालात अभी भी चिंतनीय ही हैं.

वनों के लिए बनने वाली कार्ययोजनाओं की अनदेखी! दरअसल उत्तराखंड वन विभाग में जंगलों के लिए बनने वाली कार्ययोजनाओं को नजरंदाज किया जा रहा है. वन विभाग का सबसे अहम काम वनों का संरक्षण और संवर्धन है. लेकिन हैरत की बात यह है कि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इसी काम से जुड़ी प्लानिंग का हिस्सा नहीं बनना चाहते. ये स्थिति तब है, जब इस लिखित दस्तावेज के बिना वन क्षेत्रों में कोई छोटे से छोटा काम भी नहीं किया जा सकता. क्या है पूरा मामला पेश है ये विशेष रिपोर्ट.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
वनाग्नि में नंबर वन है उत्तराखंड (ETV Bharat Graphics)

फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान को लेकर विभाग लापरवाह! वन महकमा जंगलों के लिए एक ऐसा फ्यूचर प्लान तैयार करता रहा है, जो वनों की सेहत के लिए अहम माना जाता है. इस फ्यूचर प्लान में वनों के अगले 10 साल के भविष्य को निर्धारित किया जाता है. इस दौरान वनों के मौजूदा स्वरूप से लेकर यहां की मिट्टी, कार्बन, नमी और दूसरे सभी पहलुओं पर भी अध्ययन होता है. देखा जाए तो ये जंगलों में वानिकी से लेकर हर तरह के काम को करने का एक लिखित दस्तावेज होता है. हैरत की बात यह है कि विभाग में इतने महत्वपूर्ण काम को करने के लिए अधिकारी और कर्मचारी ही नहीं मिल रहे हैं. उधर वर्किंग प्लान के लिए लगातार हो रही हीला हवाली से विभिन्न क्षेत्रों में तय समय पर वर्किंग प्लान तैयार होना भी मुश्किल हो गया है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान के लिए बचे सिर्फ 9 महीने (ETV Bharat Graphics)

तराई मध्य और तराई पश्चिम क्षेत्र में वर्किंग प्लान अधर में लटका: उत्तराखंड के तराई मध्य और तराई पश्चिम क्षेत्र के लिए बनने वाला वर्किंग प्लान उम्मीद से भी सुस्त रफ्तार पर है. स्थिति यह है कि करीब ढाई साल में तैयार होने वाले वर्किंग प्लान को पूरा करने के लिए अब विभाग के पास केवल 8 से 9 महीने का ही वक्त बचा है. दरअसल इन क्षेत्रों के लिए प्राथमिक वर्किंग प्लान दिसंबर 2023 में शुरू हो गया था. जिसके लिए वर्किंग प्लान ऑफिसर की भी तैनाती कर दी गई थी. लेकिन इसके लिए बेहद महत्वपूर्ण फील्ड अधिकारी और कर्मचारियों की ही तैनाती नहीं हो पाई है. जिसके कारण अब इन दोनों क्षेत्रों का समय पर वर्किंग प्लान तैयार हो पाना फिलहाल नामुमकिन सा दिख रहा है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
10 साल के लिए बनता है फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान (ETV Bharat Graphics)

वर्किंग प्लान की ये होती है प्रक्रिया: वर्किंग प्लान को लेकर एक निश्चित प्रक्रिया होती है, जिसका पालन करना होता है. इसके लिए सबसे पहले प्राथमिक वर्किंग प्लान पर काम होता है. इसमें पिछले 10 साल के दौरान वर्किंग प्लान के तहत कितने कामों को किया जा सका और तय किए गए वर्किंग प्लान से वन क्षेत्र को कितना नुकसान या फायदा हुआ इस पर विचार किया जाता है.

इस दौरान वर्किंग प्लान ऑफिसर की तैनाती की जाती है. तराई मध्य और तराई पश्चिम के लिए हिमांशु बागड़ी और प्रकाश चंद आर्य को नामित किया गया था. प्राथमिक वर्किंग प्लान की शुरुआत दिसंबर 2023 में की गई थी. चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक इन वर्किंग प्लान को तैयार करने के लिए ना तो फील्ड सर्वे हो पाया है और ना ही पर्याप्त संख्या में अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती हो पाई है.

किसी एक क्षेत्र के वर्किंग प्लान को तैयार करने के लिए वर्किंग प्लान ऑफिसर के अलावा 2 SDO, चार रेंजर और 12 फॉरेस्टर्स की तैनाती की जाती है. हैरत की बात यह है कि 2023 दिसंबर से शुरू हुए वर्किंग प्लान में 2025 तक भी इन अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती नहीं की गई है. शायद इसीलिए ढाई साल में वर्किंग प्लान की समय सीमा तक प्लान तैयार करना नामुमकिन दिख रहा है. अब केवल 8 से 9 महीने के वक्त में न केवल सर्वे का काम किया जाना है, बल्कि वर्किंग प्लान को लिखकर तैयार भी करना है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान में हर तरह का अध्ययन किया जाता है (ETV Bharat Graphics)

अमूमन फील्ड सर्वे का काम पहाड़ी क्षेत्र होने पर 8 से 12 महीने में पूरा किया जाता है. मैदानी डिवीजन में 4 से 6 महीने लगते हैं. इसी तरह फील्ड सर्वे के बाद वर्किंग प्लान को लिखने में एक से डेढ़ साल का वक्त लगता है. लेकिन इन दो क्षेत्र में पिछले करीब 1 साल में सर्वे का काम भी पूरा नहीं हो पाया है और कर्मचारियों की तैनाती भी नहीं की जा सकी है.

वर्किंग प्लान से अधिकारियों का परहेज: वर्किंग प्लान को बनाना बेहद मेहनत का काम है. क्योंकि इसमें फील्ड वर्क से लेकर लिखित दस्तावेज तैयार करने की भी जिम्मेदारी होती है. हैरत की बात यह है कि वन विभाग के लिए बेहद जरूरी इस काम से वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी जुड़ना ही नहीं चाहते. हालांकि इस मामले पर प्रमुख वन संरक्षक हॉफ से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा कि-

प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी की अपनी एक पसंद होती है. जिस भी अधिकारी की तैनाती वर्किंग प्लान के लिए की जाएगी, उसे अनिवार्य रूप से वह काम करना होगा.
-धनंजय मोहन, प्रमुख वन संरक्षक हॉफ, उत्तराखंड वन विभाग-

वर्किंग प्लान बनाते समय-

संबंधित क्षेत्र में करीब 300 से 400 प्वाइंट्स पर जाकर अधिकारियों और कर्मचारियों को सर्वे करना पड़ता है. इस दौरान वहां वनों की स्थिति, वहां की मिट्टी की स्थिति और कार्बन से लेकर वातावरण के हालात का भी अध्ययन किया जाता है. इसे अपनी रिपोर्ट में जोड़ना होता है. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी दिशा निर्देश जारी करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी वन क्षेत्र में बिना अनुमोदित कार्य योजना के वानिकी का काम नहीं हो सकता है.

इस मामले पर प्रमुख वन संरक्षक हॉफ कहते हैं कि-

उत्तराखंड में कोरोना काल के दौरान सर्वे का काम पूरा करना काफी मुश्किल हो गया था. तभी से वन विभाग में वर्किंग प्लान तय समय से पिछड़ गया. हालांकि अब इस पर तेजी से काम किया जा रहा है. हर महीने वर्किंग प्लान की बैठक के दौरान विभिन्न वर्किंग प्लान को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
-धनंजय मोहन, प्रमुख वन संरक्षक हॉफ, उत्तराखंड वन विभाग-

वनों की सेहत वर्किंग प्लान पर निर्भर करती है. लिहाजा जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों में वर्किंग प्लान समय से नहीं तैयार हो रहे हैं, उसका सीधा असर वनों की सेहत पर भी पड़ सकता है. ऐसे में वर्किंग प्लान के काम से परहेज करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को सख्ती के साथ इस काम से जोड़ने की जरूरत है. साथ ही मुख्यालय स्तर पर वर्किंग प्लान के कामों को प्राथमिकता देते हुए, इसके लिए सेपरेट अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती करना भी बेहद जरूरी है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
उत्तराखंड में ढीला चल रहा फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान (ETV Bharat Graphics)
ये भी पढ़ें:

देहरादून: पिछले साल 21 दिसंबर को देहरादून में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 जारी की थी. इस रिपोर्ट में उत्तराखंड को लेकर चिंता जताई गई थी. चिंता की बात ये थी कि इससे पहले जहां उत्तराखंड वनाग्नि के मामले में 13वें नबर पर था, तो इस रिपोर्ट में जंगल की आग को लेकर नंबर 1 हो गया था. उत्तराखंड में वनों को लेकर हालात अभी भी चिंतनीय ही हैं.

वनों के लिए बनने वाली कार्ययोजनाओं की अनदेखी! दरअसल उत्तराखंड वन विभाग में जंगलों के लिए बनने वाली कार्ययोजनाओं को नजरंदाज किया जा रहा है. वन विभाग का सबसे अहम काम वनों का संरक्षण और संवर्धन है. लेकिन हैरत की बात यह है कि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी इसी काम से जुड़ी प्लानिंग का हिस्सा नहीं बनना चाहते. ये स्थिति तब है, जब इस लिखित दस्तावेज के बिना वन क्षेत्रों में कोई छोटे से छोटा काम भी नहीं किया जा सकता. क्या है पूरा मामला पेश है ये विशेष रिपोर्ट.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
वनाग्नि में नंबर वन है उत्तराखंड (ETV Bharat Graphics)

फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान को लेकर विभाग लापरवाह! वन महकमा जंगलों के लिए एक ऐसा फ्यूचर प्लान तैयार करता रहा है, जो वनों की सेहत के लिए अहम माना जाता है. इस फ्यूचर प्लान में वनों के अगले 10 साल के भविष्य को निर्धारित किया जाता है. इस दौरान वनों के मौजूदा स्वरूप से लेकर यहां की मिट्टी, कार्बन, नमी और दूसरे सभी पहलुओं पर भी अध्ययन होता है. देखा जाए तो ये जंगलों में वानिकी से लेकर हर तरह के काम को करने का एक लिखित दस्तावेज होता है. हैरत की बात यह है कि विभाग में इतने महत्वपूर्ण काम को करने के लिए अधिकारी और कर्मचारी ही नहीं मिल रहे हैं. उधर वर्किंग प्लान के लिए लगातार हो रही हीला हवाली से विभिन्न क्षेत्रों में तय समय पर वर्किंग प्लान तैयार होना भी मुश्किल हो गया है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान के लिए बचे सिर्फ 9 महीने (ETV Bharat Graphics)

तराई मध्य और तराई पश्चिम क्षेत्र में वर्किंग प्लान अधर में लटका: उत्तराखंड के तराई मध्य और तराई पश्चिम क्षेत्र के लिए बनने वाला वर्किंग प्लान उम्मीद से भी सुस्त रफ्तार पर है. स्थिति यह है कि करीब ढाई साल में तैयार होने वाले वर्किंग प्लान को पूरा करने के लिए अब विभाग के पास केवल 8 से 9 महीने का ही वक्त बचा है. दरअसल इन क्षेत्रों के लिए प्राथमिक वर्किंग प्लान दिसंबर 2023 में शुरू हो गया था. जिसके लिए वर्किंग प्लान ऑफिसर की भी तैनाती कर दी गई थी. लेकिन इसके लिए बेहद महत्वपूर्ण फील्ड अधिकारी और कर्मचारियों की ही तैनाती नहीं हो पाई है. जिसके कारण अब इन दोनों क्षेत्रों का समय पर वर्किंग प्लान तैयार हो पाना फिलहाल नामुमकिन सा दिख रहा है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
10 साल के लिए बनता है फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान (ETV Bharat Graphics)

वर्किंग प्लान की ये होती है प्रक्रिया: वर्किंग प्लान को लेकर एक निश्चित प्रक्रिया होती है, जिसका पालन करना होता है. इसके लिए सबसे पहले प्राथमिक वर्किंग प्लान पर काम होता है. इसमें पिछले 10 साल के दौरान वर्किंग प्लान के तहत कितने कामों को किया जा सका और तय किए गए वर्किंग प्लान से वन क्षेत्र को कितना नुकसान या फायदा हुआ इस पर विचार किया जाता है.

इस दौरान वर्किंग प्लान ऑफिसर की तैनाती की जाती है. तराई मध्य और तराई पश्चिम के लिए हिमांशु बागड़ी और प्रकाश चंद आर्य को नामित किया गया था. प्राथमिक वर्किंग प्लान की शुरुआत दिसंबर 2023 में की गई थी. चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक इन वर्किंग प्लान को तैयार करने के लिए ना तो फील्ड सर्वे हो पाया है और ना ही पर्याप्त संख्या में अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती हो पाई है.

किसी एक क्षेत्र के वर्किंग प्लान को तैयार करने के लिए वर्किंग प्लान ऑफिसर के अलावा 2 SDO, चार रेंजर और 12 फॉरेस्टर्स की तैनाती की जाती है. हैरत की बात यह है कि 2023 दिसंबर से शुरू हुए वर्किंग प्लान में 2025 तक भी इन अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती नहीं की गई है. शायद इसीलिए ढाई साल में वर्किंग प्लान की समय सीमा तक प्लान तैयार करना नामुमकिन दिख रहा है. अब केवल 8 से 9 महीने के वक्त में न केवल सर्वे का काम किया जाना है, बल्कि वर्किंग प्लान को लिखकर तैयार भी करना है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान में हर तरह का अध्ययन किया जाता है (ETV Bharat Graphics)

अमूमन फील्ड सर्वे का काम पहाड़ी क्षेत्र होने पर 8 से 12 महीने में पूरा किया जाता है. मैदानी डिवीजन में 4 से 6 महीने लगते हैं. इसी तरह फील्ड सर्वे के बाद वर्किंग प्लान को लिखने में एक से डेढ़ साल का वक्त लगता है. लेकिन इन दो क्षेत्र में पिछले करीब 1 साल में सर्वे का काम भी पूरा नहीं हो पाया है और कर्मचारियों की तैनाती भी नहीं की जा सकी है.

वर्किंग प्लान से अधिकारियों का परहेज: वर्किंग प्लान को बनाना बेहद मेहनत का काम है. क्योंकि इसमें फील्ड वर्क से लेकर लिखित दस्तावेज तैयार करने की भी जिम्मेदारी होती है. हैरत की बात यह है कि वन विभाग के लिए बेहद जरूरी इस काम से वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी जुड़ना ही नहीं चाहते. हालांकि इस मामले पर प्रमुख वन संरक्षक हॉफ से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने कहा कि-

प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी की अपनी एक पसंद होती है. जिस भी अधिकारी की तैनाती वर्किंग प्लान के लिए की जाएगी, उसे अनिवार्य रूप से वह काम करना होगा.
-धनंजय मोहन, प्रमुख वन संरक्षक हॉफ, उत्तराखंड वन विभाग-

वर्किंग प्लान बनाते समय-

संबंधित क्षेत्र में करीब 300 से 400 प्वाइंट्स पर जाकर अधिकारियों और कर्मचारियों को सर्वे करना पड़ता है. इस दौरान वहां वनों की स्थिति, वहां की मिट्टी की स्थिति और कार्बन से लेकर वातावरण के हालात का भी अध्ययन किया जाता है. इसे अपनी रिपोर्ट में जोड़ना होता है. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी दिशा निर्देश जारी करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी वन क्षेत्र में बिना अनुमोदित कार्य योजना के वानिकी का काम नहीं हो सकता है.

इस मामले पर प्रमुख वन संरक्षक हॉफ कहते हैं कि-

उत्तराखंड में कोरोना काल के दौरान सर्वे का काम पूरा करना काफी मुश्किल हो गया था. तभी से वन विभाग में वर्किंग प्लान तय समय से पिछड़ गया. हालांकि अब इस पर तेजी से काम किया जा रहा है. हर महीने वर्किंग प्लान की बैठक के दौरान विभिन्न वर्किंग प्लान को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
-धनंजय मोहन, प्रमुख वन संरक्षक हॉफ, उत्तराखंड वन विभाग-

वनों की सेहत वर्किंग प्लान पर निर्भर करती है. लिहाजा जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों में वर्किंग प्लान समय से नहीं तैयार हो रहे हैं, उसका सीधा असर वनों की सेहत पर भी पड़ सकता है. ऐसे में वर्किंग प्लान के काम से परहेज करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को सख्ती के साथ इस काम से जोड़ने की जरूरत है. साथ ही मुख्यालय स्तर पर वर्किंग प्लान के कामों को प्राथमिकता देते हुए, इसके लिए सेपरेट अधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती करना भी बेहद जरूरी है.

UTTARAKHAND FORESTS FUTURE PLAN
उत्तराखंड में ढीला चल रहा फॉरेस्ट फ्यूचर प्लान (ETV Bharat Graphics)
ये भी पढ़ें:
Last Updated : Feb 4, 2025, 1:31 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.