हरिद्वार: चमगादड़ का नाम सुनते ही मन में नकारात्मकता छाने लगती है. रात में विचरण करते चमगादड़ों को देखते ही लोग भयभीत हो जाते हैं. इस वक्त पूरा विश्व जिस कोरोना से जंग लड़ रहा है कुछ रिपोर्ट में चमगादड़ों को इसकी वजह बताया गया है, जिसके बाद से दुनिया भर में चमगादड़ आम आदमी के लिए खौफ का पर्याय बन गए हैं. मगर धर्मनगरी हरिद्वार में इसका उलट है. यहां एक स्थान ऐसा है जहां लोगों में चमगादड़ों का खौफ नहीं है बल्कि यहां चमगादड़ लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं.
हरिद्वार के ज्वालापुर में सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ हैं. आजतक इन चमगादड़ों ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. यहां के चमगादड़ नकारात्मक ऊर्जा नहीं बल्कि सकारात्मक ऊर्जा देने वाले हैं. हरिद्वार का व्यवसायिक क्षेत्र माने जाने वाले इस नगर को मां ज्वाला देवी का आशीर्वाद मिला हुआ है, जिसके कारण यहां के पुरोहित इसे ज्वालापुर के नाम से बुलाते थे. ज्वालापुर का इतिहास भी हजारों साल पुराना है. ज्वालापुर में पांडेवाली इलाके को गुरू गोरखनाथ की तपस्थली माना जाता है. ज्वालापुर के पांडेवाली गली में स्थित गुरू गोरक्षनाथ मंदिर में गुरू गोरखनाथ जी के शिष्यों की भी तपस्थली रही है.
धर्म के जानकार बताते हैं कि कुख्यात तंत्र सम्राट और अघोर तंत्र के महान उपासक विलन की भी यही तपस्थली है. हर 12 साल में लगने वाले कुंभ से पहले साधु संत इसी स्थान पर एक महीना निवास करते हुए जप-तप और ध्यान करते हैं. उसके बाद ही कुंभ की पहली पेशवाई निकलती है, जो कुंभ को और भव्य और सुंदर बनाती है.
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बात अगर चमगादड़ों की करें तो तंत्र सिद्धि के सबसे बड़े तपस्थल पर इनकी संख्या बहुतायत है. ज्वालापुर में गोरखनाथ मंदिर परिसर के पेड़ों पर लटके इन चमगादड़ों को पुण्यदायक माना जाता है. ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि कई एकड़ में फैला यह परिसर पूरी तरह से सकारात्मक ऊर्जा और दैवीय कृपा से भरपूर है. यहां के घने पेड़ों पर हजारों साल से चमगादड़ों का वास बताया जाता है. यहां के चमगादड़ों की खासियत है कि ये सकारात्मक प्रभाव डालते हैं. हजारों सालों से यहां डेरा जमाये इन चमगादड़ ने न ही किसी को नुकसान पहुंचाया है और न ही किसी रोग का कारण बने हैं.
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ये चमगादड़ बीमारियां, भूत-प्रेत और नकारात्मकता के खतरे को दूर करने वाले हैं. प्रतीक मिश्रपुरी के अनुसार साल 1938 में जब पूरे जिले और आसपास के इलाकों में प्लेग फैला तब हरिद्वार के लोगों ने इसी पांडेवाली में शरण ली थी. यहीं आकर लोग प्लेग के प्रकोप से बचे थे.
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ज्वालापुर निवासी भी इन चमगादड़ों को नुकसानदेह नहीं मानते हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह बहुत ही प्रसिद्ध स्थान है, यहां पर गुगाल का मेला लगता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जबसे कोरोना फैला तब से चमगादड़ों से डर तो है मगर यहां के चमगादड़ों ने आजतक किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया जिस वजह से वो परेशान नहीं होते. ज्वालापुर के पांडेवाली गली में सदियों से लाखों चमगादड़ रहते हैं. इन्हें सदियों से सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जिसके कारण यहां लोग दर्शन करने आते हैं.