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साबिर-ए-पाक उर्स: महफिल-ए-शमा का आयोजन, सूफियाना कलाम सुनकर झूमे अकीदतमंद - दरबार-ए-साबरी में महफिल ए शमा का आयोजन

उर्स समापन से पहले दरबार-ए-साबरी में महफिल-ए-शमा का आयोजन किया गया. जिसमें पंजाब, हरियाणा, बरेली, संभल, अजमेर शरीफ, दिल्ली, मुम्बई आदि जगहों से कव्वाल पहुंचे, जिन्होंने साबिर पाक की शान में कलाम पेश किए. दरबार में मौजूद अकीदतमंद सूफियाना कलाम सुनकर झूम उठे. पुरानी परंपराओं के साथ कव्वालों ने जब साबिर पाक की शान में कलाम पढ़े तो लोग मदहोश हो गए.

साबिर-ए-पाक के सालाना उर्स.
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Published : Nov 12, 2019, 6:29 PM IST

रुड़की: सूफी संतों की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक के सालाना उर्स में देश-विदेश से अकीदतमंद लोग आते है और फैजियाब होकर लौटते हैं. इन दिनों साबिर-ए-पाक का सालाना उर्स चल रहा है, जिसमें दूरदराज से सभी धर्मों को मानने वाले लोग पहुंच रहे हैं.

बता दें कि हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक कई सौ साल पहले अपने पिरोमुर्शिद बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि से खिलाफत नामा लेकर कलियर तशरीफ लाए थे. यहां अपनी गहन तपस्या से फैजियाब-ए-मुनव्वर के दरियाओं से कलियर को रोशन कर दिया. साबिर-ए-पाक के रोजा-ए-मुबारक से आज भी अनगिनत लोग फैजियाब होते हैं. हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अकीदतमंद साबिर पाक के प्रति अपनी गहरी आस्था रखते हैं. अकीदतमंदों की दीवानगी का आलम देख हर कोई दंग रह जाता है. गर्मी की शिद्दत हो या सर्दी की सर्द हवाएं हर एक आस्थावान दरबार में हाजिरी लगाने के लिए बेचैन रहता है.

साबिर-ए-पाक के सालाना उर्स.

ये भी पढ़ें: कार्तिक पूर्णिमा आज, गंगा स्नान से भगवान विष्णु की होती है विशेष कृपा

साबिर पाक के लंगर का इतिहास बहुत पुराना है. बताया जाता है कि साबिर पाक के बचपन का नाम अली अहमद था. 12 साल की उम्र में उनकी वालिदा साबिर पाक को अपने भाई बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि के यहां तालीम हासिल करने के लिए छोड़ आई थी. जहां साबिर पाक को उनके मामू बाबा फरीद ने लंगर तकसीम करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. साबिर पाक ने 12 साल तक बिना कुछ खाये लंगर तकसीम किया, जिसके बाद बाबा फरीद ने अली अहमद को साबिर के नाम से नवाजते हुए खिलाफतनाम देकर कलियर भेज दिया था. जहां साबिर पाक ने अपनी गहन तपस्या से कलियर को रोशन कर दिया. तभी से साबिर पाक के लंगर की बड़ी एहमियत है और साबिर पाक का लंगर आज भी बदस्तूर जारी है.

साबिर पाक के सालाना उर्स में तमाम रश्मों को अदा किया गया. कुल शरीफ, गुशल शरीफ, महफिल-ए-शमा, दुआएं खैर आदि के साथ उर्स समापन की ओर पहुंचा. वापस लौटने वाले जायरीन नम आखों के साथ विदा हुए. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर मजहब-ओ-मिल्लत के लोगों ने दरबारे साबरी में बड़ी आस्था और अकीदत से अपनी हाजिरी पेश की और फैजियाब हुए.

रुड़की: सूफी संतों की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक के सालाना उर्स में देश-विदेश से अकीदतमंद लोग आते है और फैजियाब होकर लौटते हैं. इन दिनों साबिर-ए-पाक का सालाना उर्स चल रहा है, जिसमें दूरदराज से सभी धर्मों को मानने वाले लोग पहुंच रहे हैं.

बता दें कि हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक कई सौ साल पहले अपने पिरोमुर्शिद बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि से खिलाफत नामा लेकर कलियर तशरीफ लाए थे. यहां अपनी गहन तपस्या से फैजियाब-ए-मुनव्वर के दरियाओं से कलियर को रोशन कर दिया. साबिर-ए-पाक के रोजा-ए-मुबारक से आज भी अनगिनत लोग फैजियाब होते हैं. हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अकीदतमंद साबिर पाक के प्रति अपनी गहरी आस्था रखते हैं. अकीदतमंदों की दीवानगी का आलम देख हर कोई दंग रह जाता है. गर्मी की शिद्दत हो या सर्दी की सर्द हवाएं हर एक आस्थावान दरबार में हाजिरी लगाने के लिए बेचैन रहता है.

साबिर-ए-पाक के सालाना उर्स.

ये भी पढ़ें: कार्तिक पूर्णिमा आज, गंगा स्नान से भगवान विष्णु की होती है विशेष कृपा

साबिर पाक के लंगर का इतिहास बहुत पुराना है. बताया जाता है कि साबिर पाक के बचपन का नाम अली अहमद था. 12 साल की उम्र में उनकी वालिदा साबिर पाक को अपने भाई बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि के यहां तालीम हासिल करने के लिए छोड़ आई थी. जहां साबिर पाक को उनके मामू बाबा फरीद ने लंगर तकसीम करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. साबिर पाक ने 12 साल तक बिना कुछ खाये लंगर तकसीम किया, जिसके बाद बाबा फरीद ने अली अहमद को साबिर के नाम से नवाजते हुए खिलाफतनाम देकर कलियर भेज दिया था. जहां साबिर पाक ने अपनी गहन तपस्या से कलियर को रोशन कर दिया. तभी से साबिर पाक के लंगर की बड़ी एहमियत है और साबिर पाक का लंगर आज भी बदस्तूर जारी है.

साबिर पाक के सालाना उर्स में तमाम रश्मों को अदा किया गया. कुल शरीफ, गुशल शरीफ, महफिल-ए-शमा, दुआएं खैर आदि के साथ उर्स समापन की ओर पहुंचा. वापस लौटने वाले जायरीन नम आखों के साथ विदा हुए. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर मजहब-ओ-मिल्लत के लोगों ने दरबारे साबरी में बड़ी आस्था और अकीदत से अपनी हाजिरी पेश की और फैजियाब हुए.

Intro:शपेशल रिपोर्ट

रुड़की

रुड़की से 7 किलो मीटर दूर हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियरी के रोजा-ए-मुबारक पर अपनी बिगड़ी को बनाने वाले सैकड़ो, हजारो, लाखो नही बल्कि करोड़ो अकीदतमंदो की आस्था देखते ही बनती है। चारो और रूहानियत का फैज। दरबार में मुश्क की खुशबु। और अजीमुशान करामातें हर कोई इस खुशनुमा माहौल में रंग कर उस मुकाम को हासिल कर लेता है जिसकी उसको चाह होती है। जी हां हम बात कर रहे है उस मुक़द्दस जगह की जहाँ हवाएं भी बड़े अदबो एहतरांम से होकर गुजरती है। जिनका चराग आंधियो में जलता है और जिसको वो नवाज़ दे वो कलन्दर से बादशाह बनजाते है।

वीओ-1- बता दे कि सूफ़ी संतो की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक के सालाना उर्स में देश-विदेश से अकीदतमंद लोग आते है और फैजियाब होकर लौटते है। इन दिनों साबिर-ए-पाक का सालाना उर्स चल रहा है जिसमे दूर दराज से सभी धर्मो के मानने वाले लोग पहुँचे है। उर्स समापन की ओर है और समापन से पहले दरबार-ए-साबरी में महफ़िल-ए-शमा का आयोज किया गया जिसमें पंजाब, हरियाणा, बरेली, सम्भल, अजमेर शरीफ, दिल्ली, मुम्बई आदि जगहों से कव्वाल पहुँचे, जिन्होंने साबिर पाक की शान में कलाम पेश किए। दरबार में मौजूद अकीदतमंद सूफियाना कलाम सुनकर झूम उठे। पुरानी परम्पराओ के साथ कव्वालो ने जब साबिर पाक की शान कलाम पढ़े तो लोग मदहोश हो गए। अकीदतमंदों ने कलाम पर नोटो की बारिश कर दी, कहते है जब वो नवाज़ते है तो बिगड़िया बन जाती है। ऐसा ही नजारा और अकीदतमंदों की दीवानगी दरबार में देखने को मिली।


Body:वीओ-2- आपको बता दे हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक कई सौ साल पहले अपने पिरोमुर्शिद बाबा फरीद गंजे शकर रह० से खिलाफत नामा लेकर कलियर तशरीफ़ लाए थे। और यहा अपनी गहन तपस्या से फैजियाब-ए-मुनव्वर के दरियाओ से कलियर को रोशन कर दिया। साबिर-ए-पाक के रोजा-ए-मुबारक से आज भी अनगिनत लोग फैजियाब होते है। हिंदुस्तान में ही नही बल्कि विदेशो में भी अकीदतमंद साबिर पाक के प्रति अपनी गहरी आस्था रखते है अकीदतमंदों की दीवानगी का आलम देख हर कोई दंग रह जाता है। गर्मी की शिद्दत हो या सर्दी की सर्द हवाए हर एक आस्थावान दरबार में हाजरी लगाने के लिए बैचेन रहता है। कोई दरगाह की जालियों को चुपता नजर आता है तो कोई दरगाह में खिदमते खलक को अंजाम देता।



Conclusion:वीओ-3- साबिर पाक के लंगर का इतिहास बहुत पुराना है। बताया जाता है कि साबिर पाक के बचपन का नाम अली अहमद था 12 साल की उम्र में उनकी वालिदा साबिर पाक को अपने भाई बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि के यहा तालीम हासिल करने के लिए छोड़ आई थी। जहाँ साबिर पाक को उनके मामू बाबा फरीद ने लंगर तकसीम करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। जहाँ साबिर पाक ने 12 साल तक बिना कुछ खार लंगर तकसीम किया जिसके बाद बाबा फरीद ने अली अहमद को साबिर के नाम से नवाजते हुए ख़िलाफ़तनाम देकर कलियर भेज दिया था। जहाँ साबिर पाक ने अपनी गहन तपस्या से कलियर को रोशन कर दिया। तभी से साबिर पाक के लंगर के लंगर की बड़ी अहमियत है और साबिर पाक का लंगर आज भी बदस्तूर जारी है।


वीओ-4- साबिर पाक के सालाना उर्स में तमाम रशुमात को अदा किया गया, कुल शरीफ, गुशल शरीफ, महफ़िल-ए-शमा, दुआएं खैर आदि के साथ उर्स समापन की ओर पहुँचा, वापस लौटने वाले जायरीन नम आखों के साथ विदा हुए। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर मजहब-ओ-मिल्लत के लोगो ने दरबारे साबरी में बड़ी आस्था और अक़ीदत से अपनी हाजरी पेश की और फैजियाब हुए।

बाइट-- मुनव्वर अली साबरी (ख़ादिम दरगाह साबिर पाक)
बाइट-- शाह अली एजाज़ साबरी (नायब गद्दी नशीन दरगाह साबिर पाक पिरान कलियर)
बाइट-- ख़ालिद साबरी (अकीदतमंद)
बाइट-- शफ़ीक़ साबरी (अकीदतमंद)
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