रुड़की: सूफी संतों की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक के सालाना उर्स में देश-विदेश से अकीदतमंद लोग आते है और फैजियाब होकर लौटते हैं. इन दिनों साबिर-ए-पाक का सालाना उर्स चल रहा है, जिसमें दूरदराज से सभी धर्मों को मानने वाले लोग पहुंच रहे हैं.
बता दें कि हजरत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक कई सौ साल पहले अपने पिरोमुर्शिद बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि से खिलाफत नामा लेकर कलियर तशरीफ लाए थे. यहां अपनी गहन तपस्या से फैजियाब-ए-मुनव्वर के दरियाओं से कलियर को रोशन कर दिया. साबिर-ए-पाक के रोजा-ए-मुबारक से आज भी अनगिनत लोग फैजियाब होते हैं. हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अकीदतमंद साबिर पाक के प्रति अपनी गहरी आस्था रखते हैं. अकीदतमंदों की दीवानगी का आलम देख हर कोई दंग रह जाता है. गर्मी की शिद्दत हो या सर्दी की सर्द हवाएं हर एक आस्थावान दरबार में हाजिरी लगाने के लिए बेचैन रहता है.
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साबिर पाक के लंगर का इतिहास बहुत पुराना है. बताया जाता है कि साबिर पाक के बचपन का नाम अली अहमद था. 12 साल की उम्र में उनकी वालिदा साबिर पाक को अपने भाई बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहि के यहां तालीम हासिल करने के लिए छोड़ आई थी. जहां साबिर पाक को उनके मामू बाबा फरीद ने लंगर तकसीम करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. साबिर पाक ने 12 साल तक बिना कुछ खाये लंगर तकसीम किया, जिसके बाद बाबा फरीद ने अली अहमद को साबिर के नाम से नवाजते हुए खिलाफतनाम देकर कलियर भेज दिया था. जहां साबिर पाक ने अपनी गहन तपस्या से कलियर को रोशन कर दिया. तभी से साबिर पाक के लंगर की बड़ी एहमियत है और साबिर पाक का लंगर आज भी बदस्तूर जारी है.
साबिर पाक के सालाना उर्स में तमाम रश्मों को अदा किया गया. कुल शरीफ, गुशल शरीफ, महफिल-ए-शमा, दुआएं खैर आदि के साथ उर्स समापन की ओर पहुंचा. वापस लौटने वाले जायरीन नम आखों के साथ विदा हुए. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर मजहब-ओ-मिल्लत के लोगों ने दरबारे साबरी में बड़ी आस्था और अकीदत से अपनी हाजिरी पेश की और फैजियाब हुए.