हरिद्वार: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (uttarakhand assembly elections) में महज कुछ ही महीने बचे हुए हैं. ऐसे में सभी दलों ने देवभूमि में चुनावी शंखनाद कर दिया है. प्रदेश में चुनावी रैली, यात्रा और जनसभाओं का दौर जारी है. हर दल के नेता पार्टी में टिकट की दावेदारी को लेकर अपनी ताल ठोक रहे हैं. वहीं, उत्तराखंड की हॉट सीटों में शुमार हरिद्वार विधानसभा सीट (Haridwar assembly seat) को लेकर सभी दलों में नेताओं की दावेदारी जारी है.
उत्तराखंड की हॉट सीट: इस समय हरिद्वार उत्तराखंड की सबसे हॉट सीट (Haridwar Hot seat of Uttarakhand) बनी हुई है. क्योंकि इस पर सालों से लगातार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का कब्जा रहा है. वहीं, कांग्रेस में इस सीट को लेकर गुटबाजी देखने को मिल रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि हरिद्वार की एक सीट पर चार कांग्रेसी नेता दावेदारी कर रहे हैं. इसी के साथ-साथ हरिद्वार सीट पर स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा बना हुआ है.
आलोक शर्मा की दावेदारी से कांग्रेस में गुटबाजी: हरिद्वार नगर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता आलोक शर्मा (Congress national spokesperson Alok Sharma) ने दावेदारी की है. वहीं, उनके हरिद्वार में डेरा डालने से कांग्रेस के स्थानीय नेताओं और टिकट दावेदारों में असहजता है. माना जा रहा है कि हरिद्वार में कांग्रेस का एक गुट आलोक शर्मा को हरिद्वार से चुनाव मैदान में उतारना चाहता है. वहीं, कांग्रेस का दूसरा गुट आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर स्थानीय नेता को टिकट दावेदार पेश करना चाहता है. जबकि आलोक शर्मा हरिद्वार शहर सीट से चुनावी मैदान में कूद गए हैं. पूरा शहर उनके पोस्टर और होर्डिंग्स से पटा पड़ा है.
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कांग्रेस कार्यकर्ताओं को स्थानीय नेता पर भरोसा: आलोक शर्मा द्वारा हरिद्वार शहर सीट से दावेदारी करने से स्थानीय कांग्रेस नेता और टिकट दावेदार असहज नजर आ रहे हैं. हालांकि कोई भी खुलकर आलोक शर्मा की खिलाफत नहीं कर रहा है, लेकिन दबी जुबान में सभी इस कदम को गलत ठहरा रहे हैं. स्थानीय दावेदारों का कहना है कि उन्हें पार्टी की नीति पर पूरा भरोसा है. पार्टी स्थानीय नेता पर ही भरोसा जताएगी.
आजादी के बाद कांग्रेस ने लहराया परचम: आजादी के बाद 1952 में पहली बार देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए. 1952, 1957 और 1962 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों ने यहां पर अपना परचम लहराया. 1967 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस में बगावत (Rebellion in Uttar Pradesh Congress) हुई और चौधरी चरण सिंह कांग्रेस से अलग हुए. उन्होंने नई पार्टी का गठन किया. 1967 में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी शांति प्रपन शर्मा के खिलाफ कांग्रेस के बागी उम्मीदवार (Congress rebel candidates) घनश्याम गिरि निर्दलीय खड़े हुए. उन्होंने कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार शर्मा को पराजित किया. इस तरह 15 साल बाद हरिद्वार में कांग्रेस का वर्चस्व टूटा.
यूपी में मध्यावधि चुनाव: 1969 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुए और फिर कांग्रेस ने शांति प्रपन शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया. उन्होंने हरिद्वार से जीत हासिल की. तब हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र को परवादून क्षेत्र कहा जाता था. इसके बाद हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र का स्वरूप 1974 में बदला और इसमें हरिद्वार के ग्रामीण क्षेत्र और बीएचईएल क्षेत्र को शामिल किया गया.
आपातकाल के बाद कांग्रेस की हार: इसके बाद साल 1977 में आपातकाल के बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव (Lok Sabha and assembly elections) हुए. 1977 में कांग्रेस ने यहां पर अपनी पार्टी का उम्मीदवार खड़ा करने की जगह हरिद्वार विधानसभा सीट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राजेंद्र गर्ग को दी. गर्ग के खिलाफ कांग्रेस के जगदीश चौधरी ने बगावत की और विधानसभा चुनाव निर्दलीय रूप से लड़े, तब कांग्रेस समर्थित कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजेंद्र कुमार गर्ग और कांग्रेस बागी उम्मीदवार जगदीश चौधरी दोनों ही चुनाव हार गए और जनता पार्टी की जीत हुई. जनता पार्टी के राजकुमार शर्मा तरुण विधायक बने. ज्वालापुर के रहने वाले तरुण तीर्थ पुरोहित परिवार से और पत्रकार थे.
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1980 में जनता पार्टी की सरकार गिरी: 1980 में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद मध्यावधि चुनाव हुए. तब फिर कांग्रेस की ओर से रामयश सिंह विधायक बने. 1984 में जब पूरे देश में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की लहर चल रही थी, तब 1985 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की उपेक्षा करके बाहरी उम्मीदवार के रूप में सहारनपुर के रहने वाले महावीर राणा को चुनाव मैदान में उतारा, जिसके खिलाफ कांग्रेस के स्थानीय नेता अमरीश कुमार ने बगावत कर दी.
1989 में कांग्रेस उम्मीदवार की हार: वे पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी. जिसकी वजह से बड़ी मुश्किल से कांग्रेस का उम्मीदवार केवल 71 वोटों से चुनाव जीत सका. 1989 में हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र जनता दल और विश्वनाथ प्रताप सिंह की लहर से प्रभावित रहा. यहां जनता दल के उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के उम्मीदवार पारस कुमार जैन को चुनाव हराया. 1991 में जब पूरे देश में राम मंदिर को लेकर भाजपा की लहर चल रही थी, तब हरिद्वार में भी राम लहर का पूरा प्रभाव देखने को मिला. भाजपा के उम्मीदवार स्वामी जगदीश मुनि महाराज चुनाव जीते.
राम मंदिर का मुद्दा: 1993 में भी राम मंदिर की लहर का हरिद्वार में फिर से असर दिखाई दिया. भाजपा उम्मीदवार जगदीश मुनि लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीते, लेकिन तीसरी बार 1996 में उनके खिलाफ स्थानीय भाजपाइयों ने बगावत कर दी और उन पर बाहरी उम्मीदवार होने का आरोप लगाया. जगदीश मुनि का स्थानीय भाजपाइयों द्वारा विरोध करने पर भाजपा हाईकमान ने उनका टिकट काट कर स्थानीय भाजपा नेता अशोक त्रिपाठी को टिकट दिया, लेकिन विश्व हिंदू परिषद के दबाव में पार्टी के राष्ट्रीय और प्रांतीय नेतृत्व ने त्रिपाठी का टिकट काटकर फिर से जगदीश मुनी को टिकट दे दिया. ऐसे में स्थानीय कार्यकर्ताओं के जबरदस्त विरोध के चलते जगदीश मुनि समाजवादी पार्टी के अमरीश कुमार से चुनाव हार गए.
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उत्तराखंड का गठन: 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर नए राज्य उत्तराखंड का गठन (Formation of Uttarakhand) हुआ. जिसमें हरिद्वार भी शामिल किया गया. 2002 में उत्तराखंड के लिए पहली बार विधानसभा चुनाव हुए. 2002 में भाजपा उम्मीदवार मदन कौशिक चुनाव जीते. उसके बाद लगातार कौशिक ने 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. ऐसे में 20 सालों के वनवास को कांग्रेस किस तरह खत्म कर पाएगी? ये देखना दिलचस्प होगा.
मदन कौशिक लगातार 4 बार जीते: इस तरह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में हरिद्वार की विधानसभा सीट से पहली बार कोई विधायक लगातार चार बार विधानसभा चुनाव जीता, जिसका श्रेय मदन कौशिक को जाता है. इस तरह हरिद्वार विधानसभा क्षेत्र के मतदाता जहां राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों से प्रभावित रहे. वहीं, समय-समय पर स्थानीय मुद्दों से भी प्रभावी रहे. जिसका असर यहां की स्थानीय राजनीति में देखने को मिला.