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इन मुद्दों से गर्म रही उत्तराखंड की सियासत, जानिए क्यों खास रहा ये चुनाव

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Published : Mar 9, 2022, 6:28 PM IST

Uttarakhand Election 2022 बदजुबानी, ध्रुवीकरण और फ्री की सियासत को लेकर याद रखा जाएगा. इस बार चुनावों में उत्तराखंड के मूल मुद्दे गायब दिखाई दिये. इसके अलावा कई बड़े नेता भी इस चुनावी समर में नहीं दिखाई. दल बदल को लेकर भी इस चुनाव में खास बयार दिखाई दी.

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इन मुद्दों से गर्म रही उत्तराखंड की सियासत

देहरादून: उत्तराखंड में साल 2022 का विधानसभा चुनाव फ्री के वादों, नेताओं के बयानों और धुव्रीकरण के लिए याद रखा जाएगा. इस चुनाव में पहली बार राज्य में फ्री की सियासत को लेकर जमकर बयानबाजी हुई. आम आदमी पार्टी से शुरू हुई ये कवायद कांग्रेस और बीजेपी तक भी पहुंची. इसके बाद राज्य में धर्म के नाम पर भी इस बार जमकर राजनीति हुई.

अध्यात्मिक राजधानी से लेकर, धर्म संसद के मामले ने राज्य की राजनीति को खूब गरमाया. इसके बाद चुनावों के आखिर में वोटों के ध्रुवीकरण और तुष्टीकरण की कोशिशें भी की गई, जो कि उत्तराखंड के चुनावों में इस बार खुलकर सामने आया. इसके अलावा ऐसी कई और चीजें रही जिसके लिए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 याद रखा जाएगा. आइये ऐसे ही चुनावी मुद्दों और घटनाओं पर एक नजर डालते हैं.

इन मुद्दों से गर्म रही उत्तराखंड की सियासत

इस बार चुनाव में प्रचार के लिए पहुंचे नेताओं ने उत्तराखंड में खूब बदजुबानी की. साथ में ही नेताओं ने ध्रुवीकरण के तीर भी जमकर छोड़े. चुनाव से पहले धर्मनगरी हरिद्वार में धर्म संसद का मामला सामने आया. जिससे राज्य के साथ ही देश की राजनीति भी गर्माई. इस मामले ने सोशल मीडिया पर खूब तूल पकड़ा.

जैसे-जैसे चुनाव निर्णायक दौर में पहुंचा भाजपा ने तुष्टिकरण के मुद्दे पर कांग्रेस को असहज करने की कोशिश की. कांग्रेस ने भी तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने को लेकर बनाए गए तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा मुद्दे से भाजपा को घेरने का प्रयास किया. आम आदमी पार्टी ने भी आध्यात्मिक राजधानी से लेकर फ्री बिजली गारंटी की भी सियासत की. इसके अलावा ऐसे कई और मुद्दे रहे जिनकी वजह से 2022 के चुनाव याद रखा जाएगा.

पढ़ें- Exit Poll : यूपी-उत्तराखंड-मणिपुर में फिर भाजपा, पंजाब में आप, गोवा में हंग असेंबली के आसार

इस साल हुए चुनाव में भाजपा ने आखिर में ध्रुवीकरण का दांव चला. मुस्लिम विवि के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, अमित शाह से लेकर पार्टी नेताओं से जमकर कांग्रेस को घेरा. लव जिहाद से लेकर लैंड जिहाद, हिजाब और आखिर में सीएम धामी का समान नागरिक संहिता का मुद्दा ध्रुवीकरण की सियासत का आखिरी दांव माना गया.

पढ़ें- Election 2022: अस्थिर रहा है उत्तराखंड का राजनीति इतिहास, CM कुर्सी बनी विकास का रोड़ा

वहीं, कांग्रेस ध्रुवीकरण के मामले पर कन्नी काटती नजर आई. कांग्रेस ने इस बार तीन तिगाड़ा को अपना हथियार बनाया. कांग्रेस ने तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के मुद्दे को अपने चुनाव अभियान का सबसे धारदार हथियार बनाते हुए भाजपा पर जमकर चुनावी हमला किया.

इसके अलावा 2022 का विधानसभा चुनाव सियासी दलों और प्रत्याशियों के बनाए गए थीम सांग्स के लिए भी याद किया जाएगा. भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी ने ही थीम सांग्स नहीं बनाए बल्कि प्रत्याशियों के समर्थन में भी सोशल मीडिया और प्रचार में जमकर गाने बजाए. मखमली आवाज के जादूगर जुबिन नौटियाल ने भी पार्टी के थीम सांग गाया और प्रधानमंत्री की कविता को आवाज दी.

इन चुनावों में दलबदलुओं की भी बहार रही. धामी सरकार के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत कांग्रेस में चले गए. सरिता आर्य और दुर्गेश्वर लाल, किशोर उपाध्याय इधर भाजपा में आए. उसी अंदाज में ओम गोपाल रावत और टिहरी विधायक धन सिंह नेगी ने भाजपा से बगावत की और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा.

पढ़ें- उत्तराखंड में वोट शेयर में किसका चलेगा जादू, BJP और कांग्रेस के अब तक ये रहे आंकड़े

ये चुनाव हरक सिंह रावत के कारण भी याद रखा जाएगा. उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में यह पहला चुनाव है जिसमें हरक सिंह रावत नजर नहीं आए. इन चुनावों में हरक सिंह केवल लैंसडाउन विस सीट पर अपनी पुत्रवधू को चुनाव लड़ाने तक सीमित रहे. इसके अलावा चैंपियन और कर्णवाल भी इस बार चुनावी चौसर से बाहर रहे. एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी के कारण पार्टी को असहज करने वाले इन दोनों विधायकों का भाजपा ने टिकट काट दिया. हालांकि चैंपियन की जगह उनकी पत्नी कुंवररानी देवयानी को बीजेपी ने टिकट दिया.

पढ़ें- उत्तराखंड की राजनीति में सबसे ऊपर हिंदुत्ववाद, चुनावी मैदान में दिलचस्प भिड़ंत

कुल मिलाकर कहें तो साल 2022 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास रहा. इस चुनाव में नेताओं की बयानबाजी से लेकर वादों और दावों का शोर जमकर सुनाई दिया. धर्म के साथ ही दूसरे मुद्दों को भी जमकर उछाला गया. नेताओं ने इन चुनावों में वैतरणी पार लगाने के लिए ऐसे-ऐसे काम किये जिससे ये चुनाव यादगार बन गया.

देहरादून: उत्तराखंड में साल 2022 का विधानसभा चुनाव फ्री के वादों, नेताओं के बयानों और धुव्रीकरण के लिए याद रखा जाएगा. इस चुनाव में पहली बार राज्य में फ्री की सियासत को लेकर जमकर बयानबाजी हुई. आम आदमी पार्टी से शुरू हुई ये कवायद कांग्रेस और बीजेपी तक भी पहुंची. इसके बाद राज्य में धर्म के नाम पर भी इस बार जमकर राजनीति हुई.

अध्यात्मिक राजधानी से लेकर, धर्म संसद के मामले ने राज्य की राजनीति को खूब गरमाया. इसके बाद चुनावों के आखिर में वोटों के ध्रुवीकरण और तुष्टीकरण की कोशिशें भी की गई, जो कि उत्तराखंड के चुनावों में इस बार खुलकर सामने आया. इसके अलावा ऐसी कई और चीजें रही जिसके लिए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 याद रखा जाएगा. आइये ऐसे ही चुनावी मुद्दों और घटनाओं पर एक नजर डालते हैं.

इन मुद्दों से गर्म रही उत्तराखंड की सियासत

इस बार चुनाव में प्रचार के लिए पहुंचे नेताओं ने उत्तराखंड में खूब बदजुबानी की. साथ में ही नेताओं ने ध्रुवीकरण के तीर भी जमकर छोड़े. चुनाव से पहले धर्मनगरी हरिद्वार में धर्म संसद का मामला सामने आया. जिससे राज्य के साथ ही देश की राजनीति भी गर्माई. इस मामले ने सोशल मीडिया पर खूब तूल पकड़ा.

जैसे-जैसे चुनाव निर्णायक दौर में पहुंचा भाजपा ने तुष्टिकरण के मुद्दे पर कांग्रेस को असहज करने की कोशिश की. कांग्रेस ने भी तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने को लेकर बनाए गए तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा मुद्दे से भाजपा को घेरने का प्रयास किया. आम आदमी पार्टी ने भी आध्यात्मिक राजधानी से लेकर फ्री बिजली गारंटी की भी सियासत की. इसके अलावा ऐसे कई और मुद्दे रहे जिनकी वजह से 2022 के चुनाव याद रखा जाएगा.

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इस साल हुए चुनाव में भाजपा ने आखिर में ध्रुवीकरण का दांव चला. मुस्लिम विवि के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, अमित शाह से लेकर पार्टी नेताओं से जमकर कांग्रेस को घेरा. लव जिहाद से लेकर लैंड जिहाद, हिजाब और आखिर में सीएम धामी का समान नागरिक संहिता का मुद्दा ध्रुवीकरण की सियासत का आखिरी दांव माना गया.

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वहीं, कांग्रेस ध्रुवीकरण के मामले पर कन्नी काटती नजर आई. कांग्रेस ने इस बार तीन तिगाड़ा को अपना हथियार बनाया. कांग्रेस ने तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के मुद्दे को अपने चुनाव अभियान का सबसे धारदार हथियार बनाते हुए भाजपा पर जमकर चुनावी हमला किया.

इसके अलावा 2022 का विधानसभा चुनाव सियासी दलों और प्रत्याशियों के बनाए गए थीम सांग्स के लिए भी याद किया जाएगा. भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी ने ही थीम सांग्स नहीं बनाए बल्कि प्रत्याशियों के समर्थन में भी सोशल मीडिया और प्रचार में जमकर गाने बजाए. मखमली आवाज के जादूगर जुबिन नौटियाल ने भी पार्टी के थीम सांग गाया और प्रधानमंत्री की कविता को आवाज दी.

इन चुनावों में दलबदलुओं की भी बहार रही. धामी सरकार के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत कांग्रेस में चले गए. सरिता आर्य और दुर्गेश्वर लाल, किशोर उपाध्याय इधर भाजपा में आए. उसी अंदाज में ओम गोपाल रावत और टिहरी विधायक धन सिंह नेगी ने भाजपा से बगावत की और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा.

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ये चुनाव हरक सिंह रावत के कारण भी याद रखा जाएगा. उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में यह पहला चुनाव है जिसमें हरक सिंह रावत नजर नहीं आए. इन चुनावों में हरक सिंह केवल लैंसडाउन विस सीट पर अपनी पुत्रवधू को चुनाव लड़ाने तक सीमित रहे. इसके अलावा चैंपियन और कर्णवाल भी इस बार चुनावी चौसर से बाहर रहे. एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी के कारण पार्टी को असहज करने वाले इन दोनों विधायकों का भाजपा ने टिकट काट दिया. हालांकि चैंपियन की जगह उनकी पत्नी कुंवररानी देवयानी को बीजेपी ने टिकट दिया.

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कुल मिलाकर कहें तो साल 2022 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास रहा. इस चुनाव में नेताओं की बयानबाजी से लेकर वादों और दावों का शोर जमकर सुनाई दिया. धर्म के साथ ही दूसरे मुद्दों को भी जमकर उछाला गया. नेताओं ने इन चुनावों में वैतरणी पार लगाने के लिए ऐसे-ऐसे काम किये जिससे ये चुनाव यादगार बन गया.

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