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2013 की आपदा से सबक, सभी ग्लेशियर झीलों पर लगेंगे वेदर सेंसर, हर गतिविधि पर रहेगी पैनी नजर

साल 2013 में चोराबाड़ी ग्लेशियर में बनी झील के फटने से केदारनाथ की महातबाही हुई थी तो 2021 में चमोली के रैणी में ग्लेशियर टूटने से जो तबाही मची उसने पल भर में 200 जिंदगियों को मौत के आगोश में सुला दिया था. इस सबसे सबक लेते हुए राज्य सरकार अब भविष्य के लिए पुख्ता इंतजाम करने जा रही है.

weather station on glacier lake
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Published : Jun 29, 2023, 11:24 AM IST

Updated : Jun 29, 2023, 6:45 PM IST

जानकारी देते आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा.

देहरादून: उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर और उन ग्लेशियर में बनने वाली झीलें दोनों ही उत्तराखंड में भारी तबाही मचाती रही हैं. लिहाजा, ऐसे संवेदनशील उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 74 जगहों पर वेदर स्टेशन लगने जा रहे हैं. ये वेदर स्टेशन रक्षा भूसूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (DGRE) चंडीगढ़ लगाने जा रहा है और इसका खर्च केंद्र सरकार उठाएगी. इसके बाद ग्लेशियर में होने वाली किसी भी तरह की हलचल की पहले से ही जानकारी मिल जाएगी.

बता दें कि उत्तराखंड अबतक कई ग्लेशियर हादसे हो चुके हैं. चोराबाड़ी ग्लेशियर में बनी झील के फटने से 2013 की केदारनाथ आपदा घटित हुई तो 2021 में चमोली रैणी में ग्लेशियर टूटने के कारण आई तबाही में 200 से अधिक लोगों ने जान गंवाई. वहीं, बीते साल उत्तरकाशी जिले में डोकराणी बामक ग्लेशियर में एवलांच की चपेट में आने से नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के 27 पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी. ऐसी स्थिति से भविष्य में बचने के लिए प्रदेश सरकार ने राज्य आपदा प्रबधंन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) को कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए थे.

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उत्तराखंड में हुई हिस्खलन की घटनाएं.

इसी कड़ी में आपदाओं के लिहाज से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में सरकार अब आपदा प्रबंधन के फुल प्रूफ इंतजामों में जुट गई है. आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने बताया कि अभी तक जो भी मौसम संबंधी डाटा मिल रहा है उसमें हिमस्खलन जैसी घटनाओं की सटीक जानकारी नहीं मिल पाती. इसको देखते हुए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वेदर स्टेशन लगाने का फैसला किया गया है, जिससे सटीक आंकड़े मिल सके और एवलांच की स्थिति बनने पर अलर्ट जारी किया जा सके.
पढ़ें- उत्तराखंड जल प्रलयः ETV BHARAT ने दिखाई थी रिपोर्ट, तेजी से पिघल रहे हिमालयी ग्लेशियर

इसी को देखते हुए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वेदर स्टेशन लगाने के लिए राज्य सरकार हाल ही में DGRE (Defence Geoinformatics Research Establishment) चंडीगढ़ को अनुमति भी प्रदान कर चुकी है, जल्द ही इस पर काम शुरू हो सकता है. रंजीत सिन्हा ने बताया कि ग्लेशियर में बनने वाली लेक पर भी फोकस रहेगा. लेक को मॉनिटर करने के लिए वेदर स्टेशन से तो मदद ली जाएगी लेकिन इसके साथ ही हाई रेजुलेशन कैमरा और रडार भी लगाए जाएंगे, जिससे लेक बस्ट (ग्लेशियर का फटना) जैसी स्थिति को मॉनिटर किया जा सकेगा. इस संबंध में कई एजेंसियों से बातचीत चल रही है.

जानकारी देते आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा.

देहरादून: उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर और उन ग्लेशियर में बनने वाली झीलें दोनों ही उत्तराखंड में भारी तबाही मचाती रही हैं. लिहाजा, ऐसे संवेदनशील उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 74 जगहों पर वेदर स्टेशन लगने जा रहे हैं. ये वेदर स्टेशन रक्षा भूसूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (DGRE) चंडीगढ़ लगाने जा रहा है और इसका खर्च केंद्र सरकार उठाएगी. इसके बाद ग्लेशियर में होने वाली किसी भी तरह की हलचल की पहले से ही जानकारी मिल जाएगी.

बता दें कि उत्तराखंड अबतक कई ग्लेशियर हादसे हो चुके हैं. चोराबाड़ी ग्लेशियर में बनी झील के फटने से 2013 की केदारनाथ आपदा घटित हुई तो 2021 में चमोली रैणी में ग्लेशियर टूटने के कारण आई तबाही में 200 से अधिक लोगों ने जान गंवाई. वहीं, बीते साल उत्तरकाशी जिले में डोकराणी बामक ग्लेशियर में एवलांच की चपेट में आने से नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के 27 पर्वतारोहियों की मौत हो गई थी. ऐसी स्थिति से भविष्य में बचने के लिए प्रदेश सरकार ने राज्य आपदा प्रबधंन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) को कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए थे.

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उत्तराखंड में हुई हिस्खलन की घटनाएं.

इसी कड़ी में आपदाओं के लिहाज से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में सरकार अब आपदा प्रबंधन के फुल प्रूफ इंतजामों में जुट गई है. आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने बताया कि अभी तक जो भी मौसम संबंधी डाटा मिल रहा है उसमें हिमस्खलन जैसी घटनाओं की सटीक जानकारी नहीं मिल पाती. इसको देखते हुए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वेदर स्टेशन लगाने का फैसला किया गया है, जिससे सटीक आंकड़े मिल सके और एवलांच की स्थिति बनने पर अलर्ट जारी किया जा सके.
पढ़ें- उत्तराखंड जल प्रलयः ETV BHARAT ने दिखाई थी रिपोर्ट, तेजी से पिघल रहे हिमालयी ग्लेशियर

इसी को देखते हुए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में वेदर स्टेशन लगाने के लिए राज्य सरकार हाल ही में DGRE (Defence Geoinformatics Research Establishment) चंडीगढ़ को अनुमति भी प्रदान कर चुकी है, जल्द ही इस पर काम शुरू हो सकता है. रंजीत सिन्हा ने बताया कि ग्लेशियर में बनने वाली लेक पर भी फोकस रहेगा. लेक को मॉनिटर करने के लिए वेदर स्टेशन से तो मदद ली जाएगी लेकिन इसके साथ ही हाई रेजुलेशन कैमरा और रडार भी लगाए जाएंगे, जिससे लेक बस्ट (ग्लेशियर का फटना) जैसी स्थिति को मॉनिटर किया जा सकेगा. इस संबंध में कई एजेंसियों से बातचीत चल रही है.

Last Updated : Jun 29, 2023, 6:45 PM IST
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