देहरादून: उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा के लिए चुनाव संपन्न हो गए हैं. 21 साल की राजनीति में इस छोटे से राज्य उत्तराखंड में भी परिवारवाद हावी रहा है. वहीं, इस चुनाव के परिणाम की काफी अप्रत्याशित देखने को मिले हैं. जहां कांग्रेस पर हमेशा से परिवारवाद की राजनीति का आरोप लगाने वाली बीजेपी ने उत्तराखंड में जहां इस बार 'एक परिवार, एक टिकट' का फॉर्मूला अपनाया. वहीं, कांग्रेस में एक बार फिर परिवारवाद ही हावी रहा जिसका इस चुनाव में कोई खास फायदा नहीं मिला. ऐसे में इस चुनाव में जनता ने परिवारवाद की राजनीति को दरकिनाकर करते हुए वरिष्ठ नेताओं को घर बैठाया तो किसी की राजनीति करियर की शुरु होने से पहले ही उसे पर फुल स्टॉप लगा दिया.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में जहां भारतीय जनता पार्टी 'एक परिवार, एक टिकट' के फार्मूले के साथ चुनाव में उतरी थी. वहीं, कांग्रेस को एक बार फिर परिवारवाद की राजनीति करते हुए टिकट आवंटन को लेकर भारी नुकसान उठाना पड़ा. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने जिसे इस चुनाव में कांग्रेस की नैय्या पार लगाने के लिए खेवनहार बनाया था, उनकी खुद की नाव ही डूब गई.
बात हो रही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत की. जिन्हें कांग्रेस ने चुनाव कैम्पेन कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया था और वह लालकुंआ सीट से चुनाव में उतारा था. वहीं, उनकी बेटी अनुपमा रावत को हरिद्वार ग्रामीण से टिकट दिया गया. उधर, भाजपा से घर वापसी कर चुके पूर्व काबीना मंत्री यशपाल आर्य को बाजपुर और उनके बेटे संजीव आर्य को नैनीताल से मैदान में उतारा. हालांकि, हरीश रावत खुद लालकुआं विधानसभा से चुनाव हार गए और यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य को भी नैनीताल से शिकस्त मिली.
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वहीं, उत्तराखंड की राजनीति में हलचल मचाने वाले और अपनी दबंग छवि के लिए पहचाने जाने वाले हरक सिंह रावत भी इस चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे, वह खुद तो चुनाव नहीं लड़े लेकिन उन्होंने अपनी बहू अनुकृति को लैंसडाउन विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा. जहां अपने पहले चुनाव में ही अनुकृति को बीजेपी प्रत्याशी दलीप सिंह रावत से करारी हार मिली.
हालांकि, कांग्रेस की इस परिवारवाद की राजनीति में हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत ने 2017 में हरिद्वार ग्रामीण सीट से अपने पिता की हार का बदला लिया और बीजेपी प्रत्याशी यतीश्वरानंद को हराकर इस सीट पर जीत हासिल की. लेकिन इस चुनाव में हरीश रावत खुद हार गए. वहीं, वहीं दूसरी और पूर्व काबीना मंत्री यशपाल आर्य स्वयं तो जीत गए. लेकिन उनके बेटे संजीव आर्य कांग्रेस से भाजपा में आई सरिता आर्य से चुनाव हार गए.
बहरहाल, अब तक कभी चुनाव न हारने वाले हरक सिंह रावत इस बार चुनावी मैदान से दूर रहे लेकिन अपनी बहू अनुकृति गुसाईं को विधानसभा सीट से जीत नहीं दिला पाए. कुल मिलाकर प्रदेश में इस बार चुनाव का निचोड़ यह रहा कि जनता ने कांग्रेस की परिवारवाद की राजनीति को सिरे से नकार दिया और उसे विधानसभा में विपक्ष में बैठाया.