विकासनगर: भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं, तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने दुखों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते हैं. ऐसा ही एक शिव धाम देवभूमि के जौनसार बावर क्षेत्र में स्थित है, जहां स्वयं प्रकृति गंगाधर का श्रृंगार करती है.
राष्ट्रपति भवन से कनेक्शन
हम बात कर रहे हैं देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर स्थित महासू देवता मंदिर की. प्रसिद्ध महासू देवता का यह मंदिर चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है. लोगों की आस्था उन्हें इस पवित्र धाम में खींच लाती है. मंदिर की दिव्यता के बारे में सुनकर ही देश के अन्य प्रांतों से भारी संख्या में श्रद्धालु यहां शीष नवाने आते हैं. मंदिर की बेजोड़ वास्तु और स्थापत्यकला लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है. इस मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रकृति के साथ ही मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को देखने का मौका मिलता है. इस मंदिर को पुरातत्व सर्वेक्षण में भी शामिल किया गया है. महासू देवता जौनसार बावर के साथ ही हिमाचल प्रदेश के ईष्ट देव भी हैं. इसके साथ ही महासू देवता मंदिर का राष्ट्रपति भवन से भी सीधा कनेक्शन है. मंदिर में हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट किया जाता है.
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महासू असल में एक देवता नहीं बल्कि 4 देवताओं का सामूहिक नाम है. स्थानीय भाषा में महासू शब्द का अर्थ भगवान शिव से है. चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है, जो सभी बाबा भोलेनाथ के ही रूप हैं. इनमें बासिक महासू बड़े हैं, जबकि बौठा महासू, पबासिक महासू, चालदा महासू दूसरे तीसरे और चौथे नंबर पर हैं. मान्यता है कि महासू ने किसी शर्त पर हनोल का यह मंदिर जीता था. वहीं, इनकी पालकी को लोग पूजा-अर्चना के लिए नियमित अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह प्रवास पर ले जाते हैं. बौठा महासू के हनोल मंदिर में छात्रा गांव के लोग पुजारी हैं. चारों देवताओं के जौनसार बावर में चार छोटे-छोटे पुरानी मंदिर भी स्थित है.
महासू मंदिर के 4 दरवाजे
महासू मंदिर में प्रवेश के 4 दरवाजे हैं. प्रवेशद्वार की छत पर नव ग्रह सूर्य, चंद्रमा, गुरू, बुध, शुक्र, शनि, मंगल, केतु व राहु की कलाकृति बनी है. पहले और दूसरे द्वार पर विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं. वहीं, दूसरे द्वार पर ढोल नगाड़े के साथ पूजा-अर्चना होती है. तीसरे द्वार पर स्थानीय लोग, श्रद्धालु और सैलानी माथा टेकते हैं. अंतिम द्वार से गर्भ गृह में सिर्फ पुजारी को ही जाने की अनुमति है और वह भी पूजा के समय ही जा सकते हैं. किवदंतियां हैं कि पांडवों ने घाटा पहाड़ के पत्थरों को ढोकर विश्वकर्मा जी से हनोल मंदिर का निर्माण कराया था.
मंदिर में जलती है अखंड ज्योति
बताया जाता है कि गर्भगृह में एक दिव्य ज्योत सदैव जलती रहती है और मंदिर के अंदर ही जल की धारा निकलती है, जिसका जल बाहर नहीं दिखता. जल को ही यहां प्रसाद के रूप में दिया जाता है. किवदंती है कि त्यूणी-मोरी रोड पर बना महासू देवता का मंदिर जिस गांव में बना है उस गांव का नाम हुना भट्ट ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है. पहले इस स्थान को चकरपुर के रूप में जानी जाता था. बताया जाता है कि पांडव लाक्षागृह से निकलकर यहां आए थे. इसलिए हनोल का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है. महासू देवता मंदिर को पांचवें धाम के रूप में दर्जा देने की मांग चल रही है.
जानकारों की राय
इतिहास के जानकार श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि जौनसार बावर प्राचीन देश रहा है. जौनसार बावर में पांडवों का सम्मान भी रहा है और यह मान्यता प्रबल हो जाती है कि काष्ट कला के मंदिर के अनेक आयाम जुड़े हैं, जिनके भक्त स्थानीय ही नहीं देश के अन्य प्रांतों के लोग भी हैं. साथ ही लोगों द्वारा मंदिर में पूजा सामग्री भेजी जाती रही है.वहीं सामाजिक कार्यकर्ता भारत चौहान महासू देवता को न्याय प्रिय देवता मानते हैं. उन्होंने बताया कि संपूर्ण विश्व में जो भी शक्तिशाली होता है उससे न्याय की उम्मीद होती है. इसी प्रकार से जौनसार बावर के आराध्य महासू देवता पर हिमाचल, जौनपुर, टिहरी गढ़वाल के लोग अटूट श्रद्धा रखते हैं और न्याय की गुहार लगाते हैं.हनोल महासू मंदिर के पुजारी राय दत्त जोशी का कहना है कि दिल्ली से गूगल धूप डाक द्वारा प्रतिवर्ष भेजा जाता है, लेकिन यह पता नहीं है कि कौन इसे भेजता है. हर वर्ष यह गूगल धूप हनोल मंदिर को प्राप्त होता है. उन्होंने बताया कि जो भी लोग कोर्ट कचहरी से थक हार जाते हैं वह हनोल मंदिर में अपनी सच्ची आस्था से न्याय दिलाने के साथ ही कष्टों के निवारण के लिए फरियाद कर सकते हैं. लोगों का मानना है कि सच्चे मन से उपासना करने से हर मुराद यहां पूरी होती है.