देहरादून: उत्तराखंड में गैरसैंण को लेकर जनभावनाएं केवल सोशल मीडिया, टीवी और अखबारों की सुर्खियों तक ही सीमित हैं. पिछले 22 सालों में गैरसैंण पर ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में सैकड़ों करोड़ तो खर्च हुए, लेकिन यहां की वीरान सड़कों पर सरकारी चहलकदमी कभी नहीं बढ़ सकी. स्थिति ये है कि अब करोड़ों की विधानसभा और दूसरे भवनों में सत्र से हटकर कुछ दूसरी गतिविधियों को संचालित करने पर विचार किया जा रहा है, ताकि सरकार की मौजूदगी न सही लेकिन इन विशाल भवनों का कुछ तो उपयोग हो सके.
गैरसैंण के भराड़ीसैंण में बना है विधानसभा भवन: गैरसैंण से 14 किलोमीटर दूर स्थित भराड़ीसैण में सरकार विधानसभा का एक बड़ा स्ट्रक्चर खड़ा कर चुकी है. यहां न केवल एक भव्य विधानसभा भवन निर्मित हुआ है, बल्कि सचिवालय, मंत्री, विधायक आवास समेत सीएम और विधानसभा अध्यक्ष के लिए भी आलीशान फ्लैट का निर्माण किया गया है. जाहिर है कि किसी राज्य के लिए ये किसी बहुमूल्य एसेट के रूप में है. लेकिन उत्तराखंड में ऐसा नहीं है, क्योंकि यहां करोड़ों खर्च कर इन भवनों का निर्माण तो किया गया है, लेकिन इनका उपयोग करने वाला कोई नहीं है.
उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी है गैरसैंण: दरअसल ग्रीष्मकालीन राजधानी होने के चलते गर्मियों में यहां सत्र कराए जाने की परंपरा है. लेकिन गर्मी के समय भी सरकार बड़ी मशक्कत के बाद ही यहां सत्र आहूत करा पाती है. हालत यह है कि महज कुछ दिनों के लिए ही साल भर में यहां पर सत्र आहूत होता है. उसके बाद पूरे साल यह भवन और क्षेत्र वीरान हो जाते हैं. चिंता की बात तो यह है कि इस दौरान भी ना तो अफसर और ना ही सरकार के साथ विपक्ष ही गैरसैंण जाने के लिए उत्साहित दिखता है. यही कारण है कि गैरसैंण विषय केवल जन भावनाओं में सोशल मीडिया तक ही दिखाई देता है.
क्या किसी और उपयोग में लाया जाएगा भराड़ीसैंण का विधान भवन: इन स्थितियों को देखते हुए उत्तराखंड की विधानसभा अध्यक्ष भी इस भवन के कुछ उपयोग को लेकर विचार कर रही हैं. विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी कहती हैं कि उनके द्वारा विधानसभा भवन में विधानसभा के प्रोटोकॉल से जुड़े विषयों पर आधारित कार्यक्रम या कोई दूसरी एक्टिविटी करवाए जाने पर विचार किया जा रहा है. विधानसभा अध्यक्ष मानती हैं कि गैरसैंण में विधानसभा भवन का एक बड़ा स्वरूप तो बनाया गया है, लेकिन यह अब भी अधूरा ही है. यहां पर वह सब सुविधाएं अब भी विकसित नहीं की जा सकी हैं जो सत्र के दौरान बेहद जरूरी होती हैं.
तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार ने गैरसैंण में किया था सत्र: गैरसैंण के भराड़ीसैण में कब क्या हुआ और विधानसभा निर्माण को लेकर मौजूदा हालात क्या हैं हम बताते हैं. गैरसैंण में पहली बार जनभावनाओं के अनुरूप फैसला तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार ने कैबिनेट बैठक करके लिया था. साल 2013 में पहली बार कैबिनेट बैठक तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार में गैरसैंण में की गई. विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री रहते हुए 2013 में भराड़ीसैण में विधानसभा का शिलान्यास किया. 2014 में हरीश रावत सरकार में इस पर काम शुरू किया गया. त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में गैरसैण के विकास के लिए 25 हजार करोड़ की घोषणा की.
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त्रिवेंद्र रावत ने घोषित किया था ग्रीष्मकालीन राजधानी: गैरसैंण को साल 1992 में ही उत्तराखंड क्रांति दल ने एक अधिवेशन में राजधानी घोषित किया था. राज्य निर्माण से पहले ही राजधानी चयन के लिए कौशिक आयोग भी बनाया गया. राज्य स्थापना के बाद दीक्षित आयोग ने अपनी रिपोर्ट में देहरादून को राजधानी के लिए उपयुक्त बताया. हालांकि इन सबसे हटकर विजय बहुगुणा ने गैरसैण में पहली कैबिनेट की बैठक बुला ली. बस यहीं से गैरसैंण को लेकर एक-एक कदम आगे बढ़ाया गया. लेकिन इसकी गति बेहद धीमी रही. साल 2020 में 4 मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण में आयोजित बजट सत्र के दौरान गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया.
भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन बनाने में खर्च हुए 168 करोड़ रुपए: 13वें वित्त आयोग में विधानसभा के लिए 88 करोड़ रुपये मंजूर हुए. विधानसभा भवन के निर्माण का जिम्मा भारत सरकार की निर्माण एजेंसी NBCC को दिया गया. कुल 105 करोड़ की लागत निर्माण के लिए तय हुई जो 168 करोड़ तक NBCC द्वारा बढ़ाई गयी. 100 एकड़ भूमि पर विधानसभा भवन, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष भवन, मुख्यमंत्री-मंत्री आवास, विधानसभा कार्यालय, विधायक छात्रावास, अधिकारी छात्रावास, एक हेलीपैड बनाया जाना प्रस्तावित था. कुल 20,812 वर्ग मीटर पर निर्माण कार्य होना तय हुआ था. 2014 में यहां पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया और उसी साल पहली बार विधानसभा सत्र भी आहूत हुआ.
करोड़ों रुपए फूंक गैरसैंण को भूल गए सियासतदां: गैरसैंण में राजधानी को लेकर इतने लंबे सफर के बाद भी राज्य को कुछ नहीं मिल सका. स्थिति यह है कि सैकड़ों करोड़ रुपए का खर्चा किया गया और फिलहाल गैरसैंण में करीब 2 दर्जन कर्मी और पुलिस का एक दस्ता ड्यूटी देने के लिए यहां पर रहता है. यहां खाली भवन और वीरान पड़ा परिसर सरकार के आने के इंतजार में मायूस सा दिखाई देता है. साफ है कि मौजूदा परिस्थितियां करोड़ों रुपए की धन की बर्बादी को बयां करती हैं और सरकार और विपक्ष के पहाड़ पर चढ़ने की मंशा को भी जाहिर करती हैं.