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उत्तराखंड स्थापना दिवसः 22 साल से राजधानी और भू कानून का मुद्दा बरकरार - Uttarakhand land law

आज उत्तराखंड को बने 22 साल पूरे हो चुके हैं. उत्तराखंड अपने 23वें साल में प्रवेश कर गया है. लेकिन विडंबना देखिए कि 22 के उत्तराखंड के सपने आज भी अधूरे हैं. गैरसैंण स्थाई राजधानी, भू कानून और पहाड़ में विकास की गंगा आज भी सपना बना हुआ है.

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Published : Nov 9, 2022, 10:38 AM IST

देहरादूनः उत्तराखंड राज्य गठन को 22 साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन जिस परिकल्पना के साथ एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग की गई थी, उस परिकल्पना के अनुरूप अभी तक उत्तराखंड राज्य नहीं बन पाया है. दरअसल, 9 नवंबर 2000 को यूपी से अलग होकर एक पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की स्थापना हुई. तमाम शहादतों के बाद आंदोलनकारियों की मेहनत रंग लाई. लेकिन मुख्य रूप से एक अलग पहाड़ी राज्य बनाए जाने का जो मकसद था कि राजधानी गैरसैंण होनी चाहिए, एक मजबूत भू कानून होना चाहिए, पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की गंगा बहनी चाहिए, वह मकसद आज भी अधूरा है.

मुद्दों की राजनीतिः आज उत्तराखंड राज्य को बने 22 साल पूरे हो गए हैं. लेकिन अभी तक ना तो गैरसैंण स्थाई राजधानी बन पाई है और ना ही भू कानून लाया जा सका है. यही वजह है कि समय-समय पर राज्य आंदोलनकारी अपनी मांगों को बुलंद कर राजधानी और भू कानून का मुद्दा सरकार को याद दिलाते रहते हैं. इन सबके अलावा आज भी प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. राज्य गठन के बाद बारी बारी से भाजपा और कांग्रेस सत्ता पर काबिज रहीं. 2022 में जनता ने भाजपा को दोबारा सत्ता के सिंहासन पर बैठाया है. लेकिन मुद्दे अभी भी बरकरार हैं.

स्थाई राजधानी की सियासतः कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां 2002 से 2022 तक सत्ता में काबिज रही. दोनों ही पार्टियां चुनाव के दौरान गैरसैंण पर अपना स्टैंड क्लियर रखने की बात कहती आई हैं. लेकिन 22 साल बीत जाने के बाद अभी तक उत्तराखंड की स्थाई राजधानी तय नहीं हो पाई है और ना ही पर्वतीय क्षेत्रों में जो मूलभूत सुविधाएं ग्रामीणों को मुहैया कराई जानी चाहिए थी, वह मिल पाई हैं.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड को 22 साल में मिले 10 मुख्यमंत्री, आंदोलनकारियों के सपने फिर भी अधूरे

राजधानी और गैरसैंण का मुद्दा बरकरारः आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन हुए 22 साल का वक्त बीत गया है. लेकिन आंदोलनकारियों ने जिस मकसद से एक अलग राज्य बनाने की मांग की थी, आज भी उससे हम कोसों दूर हैं. क्योंकि मुख्य रूप से प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते राज्य गठन की मांग उठी थी. ताकि प्रदेश के निवासियों को बेहतर सुख सुविधाएं मिल सकें. मुख्य रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी की समस्या से उभर सकें. लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. इसके साथ ही आंदोलनकारियों ने इस बात पर जोर दिया था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ पर होनी चाहिए. यानी गैरसैंण को राजधानी घोषित किया जाए. लेकिन इस 22 साल के दौरान गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं किया गया और ना ही भू कानून पर राज्य सरकार ने अभी तक कोई निर्णय लिया.

मूलभूत सुविधाओं का अभावः उत्तराखंड की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न हैं. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और मूलभूत सुविधाएं न होने की वजह से ही पहाड़ के ग्रामीण बेहतर जिंदगी और तरक्की के लिए पलायन कर रहे हैं. यानी जो मूलभूत सुविधाएं हैं वो पहाड़ों पर नही हैं. यही वजह है कि पिछले 10-12 सालों में करीब डेढ़ लाख लोग परमानेंट पहाड़ छोड़ चुके हैं. करीब 3 से 4 लाख लोग अस्थायी रूप से पहाड़ से मुंह मोड़ चुके हैं.

देहरादूनः उत्तराखंड राज्य गठन को 22 साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन जिस परिकल्पना के साथ एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग की गई थी, उस परिकल्पना के अनुरूप अभी तक उत्तराखंड राज्य नहीं बन पाया है. दरअसल, 9 नवंबर 2000 को यूपी से अलग होकर एक पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की स्थापना हुई. तमाम शहादतों के बाद आंदोलनकारियों की मेहनत रंग लाई. लेकिन मुख्य रूप से एक अलग पहाड़ी राज्य बनाए जाने का जो मकसद था कि राजधानी गैरसैंण होनी चाहिए, एक मजबूत भू कानून होना चाहिए, पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की गंगा बहनी चाहिए, वह मकसद आज भी अधूरा है.

मुद्दों की राजनीतिः आज उत्तराखंड राज्य को बने 22 साल पूरे हो गए हैं. लेकिन अभी तक ना तो गैरसैंण स्थाई राजधानी बन पाई है और ना ही भू कानून लाया जा सका है. यही वजह है कि समय-समय पर राज्य आंदोलनकारी अपनी मांगों को बुलंद कर राजधानी और भू कानून का मुद्दा सरकार को याद दिलाते रहते हैं. इन सबके अलावा आज भी प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. राज्य गठन के बाद बारी बारी से भाजपा और कांग्रेस सत्ता पर काबिज रहीं. 2022 में जनता ने भाजपा को दोबारा सत्ता के सिंहासन पर बैठाया है. लेकिन मुद्दे अभी भी बरकरार हैं.

स्थाई राजधानी की सियासतः कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां 2002 से 2022 तक सत्ता में काबिज रही. दोनों ही पार्टियां चुनाव के दौरान गैरसैंण पर अपना स्टैंड क्लियर रखने की बात कहती आई हैं. लेकिन 22 साल बीत जाने के बाद अभी तक उत्तराखंड की स्थाई राजधानी तय नहीं हो पाई है और ना ही पर्वतीय क्षेत्रों में जो मूलभूत सुविधाएं ग्रामीणों को मुहैया कराई जानी चाहिए थी, वह मिल पाई हैं.
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राजधानी और गैरसैंण का मुद्दा बरकरारः आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन हुए 22 साल का वक्त बीत गया है. लेकिन आंदोलनकारियों ने जिस मकसद से एक अलग राज्य बनाने की मांग की थी, आज भी उससे हम कोसों दूर हैं. क्योंकि मुख्य रूप से प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते राज्य गठन की मांग उठी थी. ताकि प्रदेश के निवासियों को बेहतर सुख सुविधाएं मिल सकें. मुख्य रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी की समस्या से उभर सकें. लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. इसके साथ ही आंदोलनकारियों ने इस बात पर जोर दिया था कि पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ पर होनी चाहिए. यानी गैरसैंण को राजधानी घोषित किया जाए. लेकिन इस 22 साल के दौरान गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं किया गया और ना ही भू कानून पर राज्य सरकार ने अभी तक कोई निर्णय लिया.

मूलभूत सुविधाओं का अभावः उत्तराखंड की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न हैं. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और मूलभूत सुविधाएं न होने की वजह से ही पहाड़ के ग्रामीण बेहतर जिंदगी और तरक्की के लिए पलायन कर रहे हैं. यानी जो मूलभूत सुविधाएं हैं वो पहाड़ों पर नही हैं. यही वजह है कि पिछले 10-12 सालों में करीब डेढ़ लाख लोग परमानेंट पहाड़ छोड़ चुके हैं. करीब 3 से 4 लाख लोग अस्थायी रूप से पहाड़ से मुंह मोड़ चुके हैं.

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