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UKPSC: उत्तराखंड मूल की महिलाओं के 30% क्षैतिज आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार - मसूरी गोलीकांड की 28वीं बरसी

उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर हाईकोर्ट से लगी रोक हटाने को लेकर धामी सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी. यह बात सीएम पुष्कर सिंह धामी ने मसूरी में कही. उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात भी कही.

CM Pushkar Dhami
सीएम धामी
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Published : Sep 2, 2022, 6:37 PM IST

Updated : Sep 2, 2022, 7:21 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड मूल की महिलाओं को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मामले में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. मसूरी गोलीकांड की 28वीं बरसी के मौके पर सीएम धामी ने कहा कि महिलाओं के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के मामले पर राज्य सरकार गंभीर है. राज्य सरकार इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. उन्होंने कहा कि इस मामले में पैरवी कर महिलाओं के हकों को मजबूत किया जाएगा.

बता दें कि, बीती 24 अगस्त को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा (UKPSC Exams) में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण (30 percent reservation for women) दिए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर नैनीताल हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) में सुनवाई हुई थी. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले साल 2006 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी. सरकार जनरल कोटे (अनारक्षित श्रेणी) से 30 प्रतिशत आरक्षण उत्तराखंड की महिलाओं को दे रही थी, जिसपर रोक लगाई गई.

क्षैतिज आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार.

मामले के अनुसार हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में आयोग की अक्टूबर में तय मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में सरकार के 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के आरक्षण दिए जाने वाले शासनादेश को चुनौती दी.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड मूल की महिलाओं को UKPSC में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण नहीं, शासनादेश पर HC की रोक

याचिका में कहा गया है कि सरकार का ये फैसला आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 के विपरीत है. संविधान के अनुसार कोई भी राज्य सरकार जन्म एवं स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण (Horizontal Reservation for Uttarakhand Women) नहीं दे सकती, ये अधिकार केवल संसद को है. राज्य केवल आर्थिक रूप से कमजोर व पिछले तबके को आरक्षण दे सकता है. इसी आधार पर याचिका में इस आरक्षण को निरस्त करने की मांग की गई थी.
ये भी पढ़ेंः CM आवास कूच करने पर दर्ज FIR से आक्रोशित हुईं कांग्रेसी महिलाएं, सरकार पर लगाया उत्पीड़न का आरोप

वहीं, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण के इसी मामले पर भी सीएम धामी ने बयान दिया है. उन्होंने कहा कि, उत्तराखंड आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण की पत्रावली को राज्यपाल ने सरकार को वापस भेज दी है. इस पर दोबारा से संशोधन करके अनुमति के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाएगा.

देहरादूनः उत्तराखंड मूल की महिलाओं को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मामले में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. मसूरी गोलीकांड की 28वीं बरसी के मौके पर सीएम धामी ने कहा कि महिलाओं के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के मामले पर राज्य सरकार गंभीर है. राज्य सरकार इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. उन्होंने कहा कि इस मामले में पैरवी कर महिलाओं के हकों को मजबूत किया जाएगा.

बता दें कि, बीती 24 अगस्त को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा (UKPSC Exams) में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण (30 percent reservation for women) दिए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर नैनीताल हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) में सुनवाई हुई थी. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने सरकार के 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने वाले साल 2006 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी. सरकार जनरल कोटे (अनारक्षित श्रेणी) से 30 प्रतिशत आरक्षण उत्तराखंड की महिलाओं को दे रही थी, जिसपर रोक लगाई गई.

क्षैतिज आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार.

मामले के अनुसार हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में आयोग की अक्टूबर में तय मुख्य परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में सरकार के 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के आरक्षण दिए जाने वाले शासनादेश को चुनौती दी.
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याचिका में कहा गया है कि सरकार का ये फैसला आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 के विपरीत है. संविधान के अनुसार कोई भी राज्य सरकार जन्म एवं स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण (Horizontal Reservation for Uttarakhand Women) नहीं दे सकती, ये अधिकार केवल संसद को है. राज्य केवल आर्थिक रूप से कमजोर व पिछले तबके को आरक्षण दे सकता है. इसी आधार पर याचिका में इस आरक्षण को निरस्त करने की मांग की गई थी.
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वहीं, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण के इसी मामले पर भी सीएम धामी ने बयान दिया है. उन्होंने कहा कि, उत्तराखंड आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण की पत्रावली को राज्यपाल ने सरकार को वापस भेज दी है. इस पर दोबारा से संशोधन करके अनुमति के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाएगा.

Last Updated : Sep 2, 2022, 7:21 PM IST
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