देहरादून: पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड के युवा पहाड़ की संस्कृति को बचाने के लिए कई तरह के प्रयासों में जुटे हैं. इसी के तहत टिहरी जनपद के रहने वाले तीन युवाओं ने पहाड़ की संस्कृति को संजोने के लिए खास पहल की है. इन तीनों युवाओं ने एक डांसिंग डॉल तैयार की है, जिसका नाम 'जुन्याली' रखा है.
क्या होता है जुन्याली ?
दरअसल, उत्तराखंड में चंद्रमा को जून कहते हैं. चंद्रमा की रोशनी को जुन्याली कहते हैं. चांदनी रातों को जुन्याली रात कहते हैं यानी चंद्रमा की रोशनी वाली रात. जुन्याली से मतलब बहुत सुंदर भी है. आपने कई फिल्मों में या फिर अपने आस-पड़ोस में जहां नई-नई शादी हुई होती है, वहां नई दुल्हन को 'चांद जैसी सुंदर है' कहते सुना होगा. इसलिए इन युवाओं ने उत्तराखंड की पहली डांसिंग डॉल का नाम 'जुन्याली' रखा है.
मूल रूप से टिहरी निवासी दीप नेगी, अक्बीर सिंह अधिकारी और पंकज सिंह अधिकारी ने उत्तराखंड के पहाड़ की संस्कृति को संजोने के लिए और यहां की संस्कृति को देश और दुनिया में एक अलग पहचान दिलाने के लिए एक खास पहल की है. इन तीनों युवाओं की ओर से तैयार की गई उत्तराखंड की पहली म्यूजिकल डांसिंग गुड़िया (डॉल) जुन्याली की वेशभूषा भी दूरस्थ पहाड़ी इलाके में रहने वाली महिला जैसी ही रखी गई है.
उत्तराखंड की पहली म्यूजिकल डॉल जुन्याली का सिर्फ नाम ही पहाड़ी नहीं बल्कि इसकी वेशभूषा के साथ ही इसमें फीड किया गया गीत-संगीत भी पूरी तरह उत्तराखंडी है. यह ऐसी डांसिंग डॉल है जिसमें सेंसर्स लगे हुए हैं.
4 साल पहले आया था 'जुन्याली' बनाने का विचार- दीप नेगी
जुन्याली तैयार करने वाले टिहरी निवासी दीप नेगी बताते हैं कि ये गुड़िया तैयार करने का विचार उनके मन में 4 साल पहले आया था, जब दुबई में वह अपने किसी परिचित के बच्चे की जन्मदिन की पार्टी पर गए हुए थे. इस दौरान उन्होंने देखा कि लोग तरह-तरह के ऑटोमेटिक खिलौने लेकर बर्थडे पार्टी में पहुंच रहे हैं. ऐसे में उनके मन में विचार आया कि अगर ऐसा ही एक खिलौना तैयार कर दिया जाए, जो एक खिलौना होने के साथ ही हमारी उत्तराखंड की संस्कृति को भी दर्शाए तो इससे न सिर्फ हमारी आने वाली पीढ़ी पहाड़ की संस्कृति को पहचान सकेगी, बल्कि पहाड़ की संस्कृति को देश और दुनिया में भी अलग पहचान मिल सकेगी.
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मन में आए इस विचार को उन्होंने अपने दो मित्रों अक्बीर सिंह अधिकारी और पंकज सिंह अधिकारी के साथ साझा किया. इसके बाद कई दिनों तक चले विचार-विमर्श के बाद उन्होंने एक कंपनी रजिस्टर कर एक पहाड़ी वेशभूषा वाली गुड़िया 'जुन्याली' को बनाने की सोची, जिसे वर्तमान में प्रदेशवासियों से काफी सराहना मिल रही है.
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पहाड़ी पोशाक में खूबसूरत लग रही है 'जुन्याली'
वहीं, जुन्याली के उत्पादन में अपना सहयोग देने वाले अक्बीर सिंह अधिकारी और पंकज सिंह अधिकारी बताते हैं की यह गुड़िया मात्र एक खिलौना नहीं है, बल्कि यह एक सोच है हमारी आने वाली पीढ़ी को उत्तराखंड की संस्कृति और वेशभूषा से रूबरू कराने की. जुन्याली के साथ पहाड़ी पोशाक, पहाड़ी टोपी, पहाड़ी टोकरी, पहाड़ी दुपट्टा (पिछोड़ा) इत्यादि भी दी जा रही है. जिससे शहरों में रहने वाले बच्चे भी पहाड़ की संस्कृति को पहचान सकें.
बता दें, बाजार में उपलब्ध बार्बी डॉल और अन्य इंपोर्टेड खिलौनों के बीच जुन्याली को एक बेहतर बाजार उपलब्ध कराना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. जुन्याली की मार्केटिंग का काम संभाल रही प्रीति नेगी बताती हैं- जुन्याली के लिए बेहतर बाजार तलाशना एक बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन जैसे-जैसे लोगों को उत्तराखंड की पहली डांसिंग डॉल के बारे में लोगों को पता चल रहा है, वैसे ही इसकी डिमांड बढ़ती जा रही है.