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नौकरशाहों के लिए नजीर बनेगा CS उत्पल कुमार सिंह का रिटायरमेंट?

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Published : Jul 24, 2020, 5:10 PM IST

Updated : Jul 25, 2020, 4:49 PM IST

उत्तराखंड में अधिकारी रिटायर नहीं होते हैं. ऐसे इसीलिए क्योंकि मुख्य सचिव बनने वाले आईएएस अधिकारी रिटायरमेंट से पहले ही अपने लिए दूसरी कुर्सी का चयन कर लेते हैं. इस रिपोर्ट में पढ़िए वो कौन अधिकारी हैं, जो वीआरएस लेकर दूसरे पदों पर आसीन हुए हैं.

Chief Secretary Utpal Kumar Singh
मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह

देहरादून: मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ऐसे में जल्द ही प्रदेश को नया मुख्य सचिव मिलने वाला है. वहीं, इससे पहले जितने भी आईएएस अधिकारियों को उत्तराखंड के मुख्य सचिव का पदभार सौंपा गया है, उनमें लगभग सभी अपनी सेवानिवृत्ति से पहले वीआरएस लेकर दूसरों पदों पर आसीन हुए हैं. जिससे राज्य गठन के बाद से ही नौकरशाही में गलत परंपरा की नींव पड़ गई. हालांकि, अब उत्पल कुमार सिंह अपने रिटायरमेंट के साथ ही इस मिथक और परंपरा को तोड़ते हुए और उत्तराखंड की नौकरशाही में नई परंपरा की शुरुआत करने जा रहे हैं.

प्रदेश में जो आईएएस अधिकारी मुख्य सचिव बनते हैं, उनको रिटायरमेंट से पहले आखिर दूसरे पदों पर क्यों बैठा दिया जाता है. क्या उत्तराखंड के विकास के लिहाज से यह परंपरा सही है? या फिर राज्य गठन के बाद से चली आ नौकरशाही से जुड़ी इस परंपरा में अब बदलाव किए जाने का समय आ गया है. उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से अभी राज्य को 15 मुख्य सचिव मिल चुके हैं. वर्तमान समय में मुख्य सचिव के पद पर तैनात उत्पल कुमार सिंह राज्य के 15वें मुख्य सचिव हैं.

नजीर बनेगा CS उत्पल कुमार सिंह का रिटायरमेंट.

यह वजह रही है कि राज्य के अस्तित्व में आने से लेकर अभी तक पूर्व मुख्य सचिव एन.रविशंकर को छोड़कर कोई भी किसी भी पूर्व मुख्य सचिवों ने रिटारमेंट नहीं लिया और वीआरएस लेकर इससे पहले किसी अन्य पद पर आसीन हो गए. राज्य गठन से अभी तक मुख्य सचिवों का कितना रहा कार्यकाल उस पर एक नजर डालते हैं.

विभिन्न पदों पर आसीन हुए मुख्य सचिव

  • 09 नवंबर 2000 से 03 जून 2001 तक अजय विक्रम सिंह.
  • 04 जून 2001 से लेकर 01 सितंबर 2003 तक सितंबर से मधुकर गुप्ता.
  • 01 सितंबर 2003 से लेकर 04 अक्टूबर 2005 तक आरएस टोलिया.
  • 04 अक्टूबर 2005 से लेकर 30 अक्टूबर 2006 तक एम. रामचंद्रन.
  • 30 अक्टूबर 2006 से लेकर 11 अगस्त 2008 एसके दास.
  • 11 अगस्त 2008 से लेकर 2 दिसंबर 2009 तक इंदु कुमार पांडे.
  • 02 दिसंबर 2009 से लेकर 12 सितंबर 2010 तक नृप सिंह नपलच्याल.
  • 13 सितंबर 2010 से लेकर 01 मई 2012 तक सुभाष कुमार.
  • 01 मई 2012 से 03 मई 2013 तक आलोक कुमार जैन.
  • 03 मई 2013 से लेकर 21 अक्टूबर 2014 तक सुभाष कुमार.
  • 21 अक्टूबर 2014 से लेकर 31 जुलाई 2015 तक एन रविशंकर.
  • 31 जुलाई 2015 से लेकर 16 नवंबर 2015 तक राकेश शर्मा.
  • 16 नवंबर 2015 से लेकर 18 नवंबर 2016 तक शत्रुघ्न सिंह.
  • 18 नवंबर 2016 से लेकर 25 अक्टूबर 2017 तक एस रामास्वामी.
  • 25 अक्टूबर 2017 से लेकर वर्तमान तक बतौर मुख्य सचिव कार्यरत हैं.

ये भी पढ़ें: 34 साल की सर्विस के बाद रिटायर हो रहे मुख्य सचिव, साफ-सुधरी छवि रही है पहचान

राज्य गठन के बाद से ही नौकरशाही के भीतर एक ऐसी परंपरा चली आ रही है, जिसके तहत मुख्य सचिव पर तैनात आईएएस अधिकारी रिटायरमेंट से कुछ समय पहले ही वीआरएस ले लेते हैं. इसके बाद उन्हें किसी आयोग या परिषद में बतौर आयुक्त या अध्यक्ष तैनात कर दिया जाता है. इसकी मुख्य वजह ये है कि अगर कोई अधिकारी 60 साल उम्र होने के बाद बोर्ड में जाता है, तो उसे 3 साल की जिम्मेदारी दी जाती है. वहीं, अगर 60 साल की उम्र पूरी होने से पहले अगर आईएएस अधिकारी वीआरएस लेकर बोर्ड में जाते हैं, तो उन्हें 5 साल की जिम्मेदारी दी जाती है.

पूर्व मुख्य सचिवों को सौंपी गई जिम्मेदारी

मई 2013 में आलोक कुमार जैन के मुख्य सचिव पद से हटते ही मुख्य स्थानिक आयुक्त, मुख्य विनिवेश आयुक्त बनाया गया. इसके बाद प्रदेश में सेवा अधिकार आयोग के अस्तित्व में आने के बाद अगस्त 2014 में आलोक कुमार जैन इस आयोग के पहले अध्यक्ष बनाये गए.

सुभाष कुमार को भी मुख्य सचिव पद से हटते ही उन्हें अक्टूबर 2014 में विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. जबकि, राकेश शर्मा के मुख्य सचिव पद से हटते ही नवंबर 2015 में उन्हें उत्तराखंड राजस्व परिषद का अध्यक्ष बनाया गया.

साथ ही शत्रुघ्न सिंह के मुख्य सचिव पद से हटते ही उन्हें नवंबर 2016 को मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया गया. जबकि, मुख्य सचिव का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही एस.रामास्वामी को उत्तराखंड राजस्व परिषद का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद जून 2020 में एस.रामास्वामी को उत्तराखण्ड सेवा अधिकार आयोग का मुख्य आयुक्त बनाया गया.

ये भी पढ़ें: छात्रवृत्ति घोटालाः GRD कॉलेज संचालक समेत दो पर मुकदमा दर्ज, गिरफ्तारी की लटकी तलवार

नौकरशाहों को चुंगल में फंसी लोकशाही

उत्तराखंड राज्य गठन से नौकरशाहों को मलाईदार पदों पर आसीन करने की परंपरा पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि उत्तराखंड की लोकशाही नौकरशाहों से शिकंजे में है. ऐसे में अधिकारी रिटायर होने से पहले ही अपने लिए दूसरी कुर्सी सुरक्षित कर जाते हैं. जिससे साफ पता चलता है कि लोकशाही पर नौकरशाही का कितना नियंत्रण है.

रावत बताते हैं कि जो अधिकारी अपने पूरे कार्यकाल में सूचना को छुपाते, सेवा नहीं देते हैं. उन्हें ही सूचना के अधिकार या सेवा का अधिकार की जिम्मेदारी दे दी जाती है. ऐसे में सूबे के गठन के बाद से ही जो ये प्रवृत्ति चली आ रही है. वह बहुत गलत और राज्य के विकास में बाधक है. इसका नतीजा ये है कि नौकरशाही राज्य में बेलगाम हो गई है और इसी वजह से नौकरशाह जनप्रतिनिधियों पर हावी हैं. इसे आप सीएम के हालिया बयान के परिप्रेक्ष्य में भी देख सकते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ अधिकारी अपने को जनप्रतिनिधि समझने लगे हैं.

सरकार को कोई दिक्कत नहीं!

वहीं, इस बारे में शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक कुछ अलग राय रखते हैं. उन्होंने सरकार पर नौकरशाही के हावी होने की खबरों को सिरे से नकार दिया है. मदन कौशिक की मानें तो आयोग में जो पद होते हैं, वह रिटायर्ड आईएएस के लिए ही होते हैं. ऐसे में मौजूदा समय में जितने भी समिति या आयोग हैं उन सभी में रिटायर्ड आईएएस ही कार्यरत हैं.

शासकीय प्रवक्ता कौशिक का कहना है कि इससे कोई दिक्कत नहीं है. रिक्त पदों को भरने के लिए जो विज्ञप्ति आयोग या समिति की ओर से निकाली जाती है, उस खांचे में रिटायर्ड आईएएस ही 'फिट' होते हैं. ऐसे में अगर किसी आईएएस अधिकारी की आयोग में नियुक्ति होती है, तो वह अपने पद से रिटायरमेंट होने से पहले ही वीआरएस ले लेते हैं तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है.

हालांकि, बीते दिन सचिवालय में महाकुंभ निर्माण कार्यों की समीक्षा बैठक के दौरान संबंधित विभाग के सचिवों के बैठक में उपस्थित न होने के चलते कौशिक तमतमा गए थे और बीच में बैठक छोड़कर चलते बने. ऐसे में नौकरशाही के बेलगाम होने पर अगर सरकार को दिक्कत नहीं है, तो दिक्कत किसे है?

राज्य गठन से चली आ रही परंपरा गलत

उधर, वरिष्ठ नेता और बीजेपी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान का मानना है कि नौकरशाहों को जो प्रतिनियुक्ति देने की परंपरा राज्य गठन के बाद से ही चली आ रही है, वो राज्य के हित में नहीं है. 30 साल की नौकरी करने के बाद फिर अधिकारी पोस्ट रिटायरमेंट असाइनमेंट के लिए घूमता रहता है. प्रतिनियुक्ति मिलने पर पेंशन का अमाउंट माइनस करने के बाद उन्हें पूरी तनख्वाह दी जाती है. ऐसे में इन समिति और आयोग में कितने काम होते हैं, यह सभी बखूबी जानते हैं. हालांकि, चौहान ने स्पष्ट किया है कि ये उनका व्यक्तिगत मत है और इसे बतौर पार्टी प्रवक्ता की हैसियत से न लिया जाए.

सूचना आयोग में नौकरशाहों की नियुक्ति पर प्रश्न!

बीजेपी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने इन आयोगों और समितियों में हमेशा नौकरशाहों की नियुक्ति पर भी सवाल खड़े किए हैं. मसलन, सूचना आयोग में जरूरी नहीं है कि इन्हीं नियुक्त दी जाए. इसके लिए कोई वरिष्ठ पत्रकार, कलाकार या अधिवक्ता को भी नियुक्ति किया जा सकता है. बस उन्हें इस क्षेत्र का ज्ञान, प्रतिष्ठा और समाज में उनका योगदान होना चाहिए. इसी तरह प्रदेश के तमाम आयोगों और संगठनों में प्रदेश के लिए अच्छा योगदान और प्रतिष्ठावान व्यक्ति की ही नियुक्ति होनी चाहिए.

बहरहाल, पृथक राज्य उत्तराखंड की नींव के साथ ही प्रदेश में बेलगाम नौकरशाही की भी नींव पड़ गई थी. ऐसे में समय-समय पर नौकरशाहों की मनमानी की खबरें भी आम होती रही है. वहीं, प्रदेश में सरकार किसी भी दल की रही हो, नौकरशाही उसपर हमेशा भारी रही है. अब, मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह अपने रिटायरमेंट के साथ ही इस परंपरा को तोड़ते और उत्तराखंड की नौकरशाही में नई परंपरा की शुरुआत करने जा रहे हैं. जो अन्य अधिकारियों के लिए भी नजीर बननी चाहिए.

देहरादून: मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ऐसे में जल्द ही प्रदेश को नया मुख्य सचिव मिलने वाला है. वहीं, इससे पहले जितने भी आईएएस अधिकारियों को उत्तराखंड के मुख्य सचिव का पदभार सौंपा गया है, उनमें लगभग सभी अपनी सेवानिवृत्ति से पहले वीआरएस लेकर दूसरों पदों पर आसीन हुए हैं. जिससे राज्य गठन के बाद से ही नौकरशाही में गलत परंपरा की नींव पड़ गई. हालांकि, अब उत्पल कुमार सिंह अपने रिटायरमेंट के साथ ही इस मिथक और परंपरा को तोड़ते हुए और उत्तराखंड की नौकरशाही में नई परंपरा की शुरुआत करने जा रहे हैं.

प्रदेश में जो आईएएस अधिकारी मुख्य सचिव बनते हैं, उनको रिटायरमेंट से पहले आखिर दूसरे पदों पर क्यों बैठा दिया जाता है. क्या उत्तराखंड के विकास के लिहाज से यह परंपरा सही है? या फिर राज्य गठन के बाद से चली आ नौकरशाही से जुड़ी इस परंपरा में अब बदलाव किए जाने का समय आ गया है. उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से अभी राज्य को 15 मुख्य सचिव मिल चुके हैं. वर्तमान समय में मुख्य सचिव के पद पर तैनात उत्पल कुमार सिंह राज्य के 15वें मुख्य सचिव हैं.

नजीर बनेगा CS उत्पल कुमार सिंह का रिटायरमेंट.

यह वजह रही है कि राज्य के अस्तित्व में आने से लेकर अभी तक पूर्व मुख्य सचिव एन.रविशंकर को छोड़कर कोई भी किसी भी पूर्व मुख्य सचिवों ने रिटारमेंट नहीं लिया और वीआरएस लेकर इससे पहले किसी अन्य पद पर आसीन हो गए. राज्य गठन से अभी तक मुख्य सचिवों का कितना रहा कार्यकाल उस पर एक नजर डालते हैं.

विभिन्न पदों पर आसीन हुए मुख्य सचिव

  • 09 नवंबर 2000 से 03 जून 2001 तक अजय विक्रम सिंह.
  • 04 जून 2001 से लेकर 01 सितंबर 2003 तक सितंबर से मधुकर गुप्ता.
  • 01 सितंबर 2003 से लेकर 04 अक्टूबर 2005 तक आरएस टोलिया.
  • 04 अक्टूबर 2005 से लेकर 30 अक्टूबर 2006 तक एम. रामचंद्रन.
  • 30 अक्टूबर 2006 से लेकर 11 अगस्त 2008 एसके दास.
  • 11 अगस्त 2008 से लेकर 2 दिसंबर 2009 तक इंदु कुमार पांडे.
  • 02 दिसंबर 2009 से लेकर 12 सितंबर 2010 तक नृप सिंह नपलच्याल.
  • 13 सितंबर 2010 से लेकर 01 मई 2012 तक सुभाष कुमार.
  • 01 मई 2012 से 03 मई 2013 तक आलोक कुमार जैन.
  • 03 मई 2013 से लेकर 21 अक्टूबर 2014 तक सुभाष कुमार.
  • 21 अक्टूबर 2014 से लेकर 31 जुलाई 2015 तक एन रविशंकर.
  • 31 जुलाई 2015 से लेकर 16 नवंबर 2015 तक राकेश शर्मा.
  • 16 नवंबर 2015 से लेकर 18 नवंबर 2016 तक शत्रुघ्न सिंह.
  • 18 नवंबर 2016 से लेकर 25 अक्टूबर 2017 तक एस रामास्वामी.
  • 25 अक्टूबर 2017 से लेकर वर्तमान तक बतौर मुख्य सचिव कार्यरत हैं.

ये भी पढ़ें: 34 साल की सर्विस के बाद रिटायर हो रहे मुख्य सचिव, साफ-सुधरी छवि रही है पहचान

राज्य गठन के बाद से ही नौकरशाही के भीतर एक ऐसी परंपरा चली आ रही है, जिसके तहत मुख्य सचिव पर तैनात आईएएस अधिकारी रिटायरमेंट से कुछ समय पहले ही वीआरएस ले लेते हैं. इसके बाद उन्हें किसी आयोग या परिषद में बतौर आयुक्त या अध्यक्ष तैनात कर दिया जाता है. इसकी मुख्य वजह ये है कि अगर कोई अधिकारी 60 साल उम्र होने के बाद बोर्ड में जाता है, तो उसे 3 साल की जिम्मेदारी दी जाती है. वहीं, अगर 60 साल की उम्र पूरी होने से पहले अगर आईएएस अधिकारी वीआरएस लेकर बोर्ड में जाते हैं, तो उन्हें 5 साल की जिम्मेदारी दी जाती है.

पूर्व मुख्य सचिवों को सौंपी गई जिम्मेदारी

मई 2013 में आलोक कुमार जैन के मुख्य सचिव पद से हटते ही मुख्य स्थानिक आयुक्त, मुख्य विनिवेश आयुक्त बनाया गया. इसके बाद प्रदेश में सेवा अधिकार आयोग के अस्तित्व में आने के बाद अगस्त 2014 में आलोक कुमार जैन इस आयोग के पहले अध्यक्ष बनाये गए.

सुभाष कुमार को भी मुख्य सचिव पद से हटते ही उन्हें अक्टूबर 2014 में विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. जबकि, राकेश शर्मा के मुख्य सचिव पद से हटते ही नवंबर 2015 में उन्हें उत्तराखंड राजस्व परिषद का अध्यक्ष बनाया गया.

साथ ही शत्रुघ्न सिंह के मुख्य सचिव पद से हटते ही उन्हें नवंबर 2016 को मुख्य सूचना आयुक्त बना दिया गया. जबकि, मुख्य सचिव का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही एस.रामास्वामी को उत्तराखंड राजस्व परिषद का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद जून 2020 में एस.रामास्वामी को उत्तराखण्ड सेवा अधिकार आयोग का मुख्य आयुक्त बनाया गया.

ये भी पढ़ें: छात्रवृत्ति घोटालाः GRD कॉलेज संचालक समेत दो पर मुकदमा दर्ज, गिरफ्तारी की लटकी तलवार

नौकरशाहों को चुंगल में फंसी लोकशाही

उत्तराखंड राज्य गठन से नौकरशाहों को मलाईदार पदों पर आसीन करने की परंपरा पर वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि उत्तराखंड की लोकशाही नौकरशाहों से शिकंजे में है. ऐसे में अधिकारी रिटायर होने से पहले ही अपने लिए दूसरी कुर्सी सुरक्षित कर जाते हैं. जिससे साफ पता चलता है कि लोकशाही पर नौकरशाही का कितना नियंत्रण है.

रावत बताते हैं कि जो अधिकारी अपने पूरे कार्यकाल में सूचना को छुपाते, सेवा नहीं देते हैं. उन्हें ही सूचना के अधिकार या सेवा का अधिकार की जिम्मेदारी दे दी जाती है. ऐसे में सूबे के गठन के बाद से ही जो ये प्रवृत्ति चली आ रही है. वह बहुत गलत और राज्य के विकास में बाधक है. इसका नतीजा ये है कि नौकरशाही राज्य में बेलगाम हो गई है और इसी वजह से नौकरशाह जनप्रतिनिधियों पर हावी हैं. इसे आप सीएम के हालिया बयान के परिप्रेक्ष्य में भी देख सकते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि कुछ अधिकारी अपने को जनप्रतिनिधि समझने लगे हैं.

सरकार को कोई दिक्कत नहीं!

वहीं, इस बारे में शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक कुछ अलग राय रखते हैं. उन्होंने सरकार पर नौकरशाही के हावी होने की खबरों को सिरे से नकार दिया है. मदन कौशिक की मानें तो आयोग में जो पद होते हैं, वह रिटायर्ड आईएएस के लिए ही होते हैं. ऐसे में मौजूदा समय में जितने भी समिति या आयोग हैं उन सभी में रिटायर्ड आईएएस ही कार्यरत हैं.

शासकीय प्रवक्ता कौशिक का कहना है कि इससे कोई दिक्कत नहीं है. रिक्त पदों को भरने के लिए जो विज्ञप्ति आयोग या समिति की ओर से निकाली जाती है, उस खांचे में रिटायर्ड आईएएस ही 'फिट' होते हैं. ऐसे में अगर किसी आईएएस अधिकारी की आयोग में नियुक्ति होती है, तो वह अपने पद से रिटायरमेंट होने से पहले ही वीआरएस ले लेते हैं तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है.

हालांकि, बीते दिन सचिवालय में महाकुंभ निर्माण कार्यों की समीक्षा बैठक के दौरान संबंधित विभाग के सचिवों के बैठक में उपस्थित न होने के चलते कौशिक तमतमा गए थे और बीच में बैठक छोड़कर चलते बने. ऐसे में नौकरशाही के बेलगाम होने पर अगर सरकार को दिक्कत नहीं है, तो दिक्कत किसे है?

राज्य गठन से चली आ रही परंपरा गलत

उधर, वरिष्ठ नेता और बीजेपी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान का मानना है कि नौकरशाहों को जो प्रतिनियुक्ति देने की परंपरा राज्य गठन के बाद से ही चली आ रही है, वो राज्य के हित में नहीं है. 30 साल की नौकरी करने के बाद फिर अधिकारी पोस्ट रिटायरमेंट असाइनमेंट के लिए घूमता रहता है. प्रतिनियुक्ति मिलने पर पेंशन का अमाउंट माइनस करने के बाद उन्हें पूरी तनख्वाह दी जाती है. ऐसे में इन समिति और आयोग में कितने काम होते हैं, यह सभी बखूबी जानते हैं. हालांकि, चौहान ने स्पष्ट किया है कि ये उनका व्यक्तिगत मत है और इसे बतौर पार्टी प्रवक्ता की हैसियत से न लिया जाए.

सूचना आयोग में नौकरशाहों की नियुक्ति पर प्रश्न!

बीजेपी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने इन आयोगों और समितियों में हमेशा नौकरशाहों की नियुक्ति पर भी सवाल खड़े किए हैं. मसलन, सूचना आयोग में जरूरी नहीं है कि इन्हीं नियुक्त दी जाए. इसके लिए कोई वरिष्ठ पत्रकार, कलाकार या अधिवक्ता को भी नियुक्ति किया जा सकता है. बस उन्हें इस क्षेत्र का ज्ञान, प्रतिष्ठा और समाज में उनका योगदान होना चाहिए. इसी तरह प्रदेश के तमाम आयोगों और संगठनों में प्रदेश के लिए अच्छा योगदान और प्रतिष्ठावान व्यक्ति की ही नियुक्ति होनी चाहिए.

बहरहाल, पृथक राज्य उत्तराखंड की नींव के साथ ही प्रदेश में बेलगाम नौकरशाही की भी नींव पड़ गई थी. ऐसे में समय-समय पर नौकरशाहों की मनमानी की खबरें भी आम होती रही है. वहीं, प्रदेश में सरकार किसी भी दल की रही हो, नौकरशाही उसपर हमेशा भारी रही है. अब, मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह अपने रिटायरमेंट के साथ ही इस परंपरा को तोड़ते और उत्तराखंड की नौकरशाही में नई परंपरा की शुरुआत करने जा रहे हैं. जो अन्य अधिकारियों के लिए भी नजीर बननी चाहिए.

Last Updated : Jul 25, 2020, 4:49 PM IST
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