देहरादून: 2 घंटे के सुकून भरे सफर के लिए देहरादून में हजारों पेड़ों की बलि दी जा रही है. दिल्ली से देहरादून के बीच बनने वाले इस एक्सप्रेस-वे के लिए दून के आशारोड़ी में साल समेत अन्य बहुमूल्य पेड़ काटे जाने हैं. जिसे लेकर विरोध शुरू हो गया है. दून के पर्यावरण प्रेमियों के साथ ही तमाम संगठनों ने इसका विरोध किया है. आज यहां पहुंचे प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां लेकर पेड़ों के काटने का विरोध किया. पोस्ट कार्ड के जरिए सरकार के पर्यावरण की अहमियत बताई गई. साथ ही गीत संगीत और क्रांतिकारी गीतों के माध्यम से भी शासन, प्रशासन और सरकार को जगाने का प्रयास किया गया.
देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस हाईवे का काम इन दिनों तेजी से आगे बढ़ रहा है. सफर को आसान करने के लिए अलग-अलग पैच में इस हाईवे को फोरलेन किया जा रहा है. इसके लिए देहरादून आशारोड़ी के पास कई पेड़ काटे जा रहे हैं. इस क्षेत्र में करीब 11000 से ज्यादा पेड़ों की बलि चढ़ाई जानी है. जिसका तमाम पर्यावरण प्रेमी और संगठन विरोध कर रहे हैं. आज अलग-अलग संगठन के लोगों ने मौके पर पहुंचकर अलग तरीके से विरोध किया.
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इस पैच में उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर 8 हजार के करीब पेड़ काटे जाने हैं. जिसमें से अधिकतर काटे भी जा चुके हैं. उत्तराखंड में भी करीब ढाई हजार पेड़ों की बलि दी जानी है. दिल्ली से देहरादून के लिए करीब 250 किलोमीटर के इस सफर को 2 घंटे में पूरा करने के लिए यह पूरा प्रोजेक्ट तैयार किया गया है.
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इस प्रोजेक्ट पर तमाम पर्यावरण प्रेमियों ने अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए विरोध किया है. सभी ने गीतों के जरिए सरकार को पर्यावरण के महत्व को समझाया है. प्रदर्शनकारी पोस्ट कार्ड के जरिए सरकार को संदेश दे रहे हैं. साथ ही तख्तियों के जरिए उत्तराखंड में दाखिल होने वाले लोगों को भी इस प्रोजेक्ट के विरोध में समर्थन के लिए खड़ा होने की अपील की जा रही है. प्रदर्शनकारियों ने कहा परेशानी केवल साल के दशकों पुराने पेड़ों को काटे जाने की नहीं है बल्कि इनके कटान से तमाम वन्यजीवों को होने वाले नुकसान पर भी सरकार को आगाह करने की कोशिश की जा रही है.
नुकसान और भी हैं: इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने के बाद दिल्ली से देहरादून ढाई घंटे में पहुंच जाएंगे. यह एक्सप्रेस हाईवे 3 किमी देहरादून की सीमा में और 8 किमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले की सीमा घने जंगलों से होकर गुजरेगा, जो शिवालिक पहाड़ियों का हिस्सा है. शिवालिक पहाड़ियों के जंगल अपनी जैव विविधता के लिए मशहूर है. यहां सबसे ज्यादा संख्या में साल और सागौन के पेड़ हैं. ज्यादातर पेड़ों की उम्र सौ वर्ष से ज्यादा है. सड़क चौड़ी करने के लिए हजारों पेड़ काटे जाने हैं, लेकिन, इस गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ ही शामिल किये गये हैं. जबकि इसमें छोटे और मझोले पेड़ भी काटे जाएंगे. जिनकी गिनती नहीं की गई है.
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बता दें बीते दिनों पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच इसको लेकर काफी कहासुनी भी हुई थी. प्रदर्शनकारियों ने अलग तरह से प्रदर्शन करते हुए काटकर गिराए गये पेड़ों की जिस भी शाखा पर ठेकेदार के मजदूरों ने कुल्हाड़ी चलाने का प्रयास किया, प्रदर्शनकारी उन शाखाओं पर बैठ गए. यह सिलसिला कई घंटों तक चलता रहा. बाद में कई घंटे तक प्रदर्शन करने के बाद प्रदर्शनकारी लौट गए. इसके बाद फिर से पेड़ों को गिराने का काम शुरू कर दिया गया.