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Uttarakhand Foundation Day: राज्य की लड़ाई लड़ने वाली यूकेडी हारी 'सत्ता का संग्राम', ये रहा बड़ा कारण - यूकेडी

Uttarakhand Foundation Day 2023 उत्तराखंड में यूकेडी ने कई सियासी उतार-चढ़ाव देखे हैं. जिसमें वह अपने को स्थापित करने की जंग लड़ती दिखाई दी. उत्तराखंड आंदोलन से निकली पार्टी आज अपने अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है. वहीं प्रदेश में यूकेडी की कमजोर स्थिति से कांग्रेस और बीजेपी को फायदा पहुंचा है.

UKD in Uttarakhand
राज्य की लड़ाई लड़ने वाली यूकेडी हारी 'सत्ता का संग्राम',
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 9, 2023, 10:25 AM IST

Updated : Nov 9, 2023, 3:45 PM IST

राज्य की लड़ाई लड़ने वाली यूकेडी हारी 'सत्ता का संग्राम'

देहरादून: राज्य निर्माण की लड़ाई लड़ने वाली यूकेडी को सत्ता की जंग में शिकस्त खानी पड़ी है. जहां एक तरफ देश भर के कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है तो उत्तराखंड के लोगों ने राष्ट्रीय दलों पर अपना भरोसा जताया है. ऐसे कई कारण है जो उत्तराखंड क्रांति दल को हाशिये पर रहने के जिम्मेदार हैं. उधर यूकेडी की कमजोर स्थिति दोनों ही राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुई है.

आंदोलन में अहम भूमिका: उत्तराखंड क्रांति दल का अस्तित्व राज्य स्थापना से पहले ही हो चुका था. राज्य आंदोलन में जुटे कई लोगों ने मिलकर एक ऐसे संगठन को तैयार किया. जो अलग राज्य की मांग के साथ पहाड़ वासियों को लामबंद कर रहा था. आंदोलन में पुलिस के डंडे और जेल की चारदीवारी के बीच एक जन आंदोलन को चेहरा देने के लिए भी इस संगठन का अहम रोल रहा था.आम जनमानस की यह लड़ाई आगे बढ़ी और इससे सफलता भी मिली.
पढ़ें-उत्तराखंड राज्य स्थापना के 23 साल बाद भी नहीं रुकी पलायन की रफ्तार, तमाम योजनाओं के बाद भी खाली हो रहा पहाड़!

संघर्षों से सिर्फ लोगों के दिलों में किया राज: नतीजतन अब उत्तरांचल के रूप में एक नए राज्य का गठन हो चुका था. उम्मीद थी कि उत्तराखंड क्रांति दल सत्ता के संघर्ष को ध्यान में रखकर प्रदेशवासी यूकेडी को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. राज्य स्थापना के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2022 के चुनावों तक हालात यूकेडी के लिए इस तरह बिगड़े कि अब अस्तित्व बचाना ही मुश्किल हो गया है.

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उत्तराखंड में शीर्ष राजनीति तक नहीं पहुंच पाई यूकेडी

क्षेत्रीय दल का सशक्त होना बहुत जरूरी: उत्तराखंड क्रांति दल के इन हालातों के पीछे ऐसी कई वजह थी, जिसके कारण दल कभी उबर ही नहीं सका. यूकेडी का मानना है कि प्रदेश में क्षेत्रीय दल के सत्ता तक नहीं पहुंच पाने का नुकसान प्रदेश वासियों को हुआ है. राष्ट्रीय पार्टियों ने प्रदेश में बेरोजगारी से लेकर भ्रष्टाचार तक के मामले में राज्य की स्थितियों को खराब किया और आज प्रदेश में युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं और भ्रष्टाचार भी चरम पर पहुंच गया है. उत्तराखंड क्रांति दल के नेता कहते हैं कि राज्य में क्षेत्रीय दल का सशक्त होना बहुत जरूरी था लेकिन ऐसे कई कारण है जिसके कारण यूकेडी सत्ता तक कभी पहुंच ही नहीं सकी.
पढ़ें-उत्तराखंड स्थापना दिवस: नेताओं ने सत्ता के लिए बनाए और बिगाड़े समीकरण, राजनीतिक लाभ के आगे पीछे छूटा विकास!

यूकेडी के हाशिये तक जाने के पीछे रही कई वजह: उत्तराखंड क्रांति दल का राज्य में जनता का विश्वास हासिल ना कर पाने के पीछे कई वजह रही हैं. इसमें यूकेडी का आर्थिक रूप से बेहद कमजोर रहना सबसे बड़ी वजह रहा है. इसके अलावा उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं की आपसी लड़ाई ने पार्टी को हाशिये तक पहुंचने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पार्टी के नेता राष्ट्रीय दलों के खिलाफ राज्य में कोई माहौल तैयार ही नहीं कर पाए. सत्ता का सुख पाने के लालच में उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं ने पार्टी का पूरी तरह से बेड़ागर्क कर दिया. उत्तराखंड क्रांति दल के निर्माण के पीछे की वजह और नीतियों को अपनी कार्य योजना में कभी पार्टी के नेता उतर ही नहीं पाए. पार्टी ने क्षेत्रीय मुद्दों को केवल बयानों तक सीमित रखा और इसको बड़े आंदोलन के रूप में खड़ा करने में कामयाब नहीं हो सकी.

यूकेडी लड़ रही अस्तित्व की लड़ाई: देश में ऐसे कई राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दलों का बोलबाला है, यहां तक की जिस राज्य से उत्तराखंड अलग होकर नया राज्य बना उसे उत्तर प्रदेश में भी क्षेत्रीय दलों ने लंबे समय तक सत्ता सुख भोगा है. चाहे बात समाजवादी पार्टी की हो या फिर बहुजन समाजवादी पार्टी की. इसके पीछे एक दूसरी बड़ी वजह उत्तराखंड के लोगों का राष्ट्रीय दलों के प्रति रुझान भी रहा है. यह स्थिति केवल उत्तराखंड में ही नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य और उत्तराखंड की तरह ही पहाड़ी राज्य हिमाचल में भी यही हालात हैं. जिस तरह उत्तराखंड के लोगों ने राष्ट्रीय दलों को अपनी पसंद बनाया है. इस तरह से हिमाचल प्रदेश में भी लोगों ने सत्ता बारी-बारी कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को ही दी है.

राष्ट्रीय दलों के हाथों में गई सत्ता: उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों के लिए खुद को आर्थिक रूप से सक्षम कर पाना बेहद मुश्किल काम है और यह बात पढ़े लिखे उत्तराखंड के लोग भी समझते हैं शायद ही कारण है कि उत्तराखंड के लोगों ने आर्थिक तंगी के हालातों वाले राज्य को राष्ट्रीय दलों के हाथ देना ही मुफीद समझा है. राज्य की जब स्थापना हुई उस दौरान उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के हिस्से करीब 4000 करोड़ से ज्यादा का कर्ज आया.माना जा सकता है कि इसलिए भी लोगों ने केंद्र में सत्तासीन रहने वाली भाजपा और कांग्रेस को मौका दिया ताकि आर्थिक रूप से कमजोर राज्य को केंद्र से मदद मिल सके.

आपसी तकरार ने हालात हुए जुदा: उत्तराखंड क्रांति दल के इन हालातों के पीछे राष्ट्रीय दल कांग्रेस खुद यूकेडी को ही जिम्मेदार मानती है. पार्टी नेताओं का कहना है कि उत्तराखंड क्रांति दल ने हमेशा सत्ता का सुख भोगने के लिए गठबंधन किया और अपनी विचारधारा से समझौता किया. इसके अलावा इसके नेताओं की आपसी तकरार भी पार्टी के आज के हालात की वजह बनी है.

कभी दो फाड़ होकर बंटा उत्तराखंड क्रांति दल: उत्तराखंड क्रांति दल के भीतर ऐसे कई राजनीतिक घमासान हुए, जिसने पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया. स्थिति यहां तक आ गई की पार्टी के भीतर कुर्सी के निशान को लेकर लड़ाई निर्वाचन आयोग तक भी जा पहुंची थी. साल 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन पार्टी के अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पवार उत्तराखंड क्रांति दल पी और पार्टी के वरिष्ठ नेता दिवाकर भट्ट के नेतृत्व में उत्तराखंड क्रांति दल डी के रूप में पार्टी दो भागों में बट गई. इतना ही नहीं आयोग ने पार्टी का चुनाव चिह्न कुर्सी को भी जब्त कर लिया. हालांकि बाद में दोनों गुटों का विलय हो गया और 2017 में उत्तराखंड क्रांति दल नाम और चुनाव चिह्न बहाल कर दिया गया.

बता दें कि नौ नवंबर 2023 को उत्तराखंड अपना 23वां स्थापना दिवस मना रहा है. इन 23 सालों में पहली बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उत्तराखंड स्थापना दिवस के मुख्य कार्यक्रम में शामिल होंगी.

राज्य की लड़ाई लड़ने वाली यूकेडी हारी 'सत्ता का संग्राम'

देहरादून: राज्य निर्माण की लड़ाई लड़ने वाली यूकेडी को सत्ता की जंग में शिकस्त खानी पड़ी है. जहां एक तरफ देश भर के कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है तो उत्तराखंड के लोगों ने राष्ट्रीय दलों पर अपना भरोसा जताया है. ऐसे कई कारण है जो उत्तराखंड क्रांति दल को हाशिये पर रहने के जिम्मेदार हैं. उधर यूकेडी की कमजोर स्थिति दोनों ही राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुई है.

आंदोलन में अहम भूमिका: उत्तराखंड क्रांति दल का अस्तित्व राज्य स्थापना से पहले ही हो चुका था. राज्य आंदोलन में जुटे कई लोगों ने मिलकर एक ऐसे संगठन को तैयार किया. जो अलग राज्य की मांग के साथ पहाड़ वासियों को लामबंद कर रहा था. आंदोलन में पुलिस के डंडे और जेल की चारदीवारी के बीच एक जन आंदोलन को चेहरा देने के लिए भी इस संगठन का अहम रोल रहा था.आम जनमानस की यह लड़ाई आगे बढ़ी और इससे सफलता भी मिली.
पढ़ें-उत्तराखंड राज्य स्थापना के 23 साल बाद भी नहीं रुकी पलायन की रफ्तार, तमाम योजनाओं के बाद भी खाली हो रहा पहाड़!

संघर्षों से सिर्फ लोगों के दिलों में किया राज: नतीजतन अब उत्तरांचल के रूप में एक नए राज्य का गठन हो चुका था. उम्मीद थी कि उत्तराखंड क्रांति दल सत्ता के संघर्ष को ध्यान में रखकर प्रदेशवासी यूकेडी को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. राज्य स्थापना के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2022 के चुनावों तक हालात यूकेडी के लिए इस तरह बिगड़े कि अब अस्तित्व बचाना ही मुश्किल हो गया है.

UKD in Uttarakhand
उत्तराखंड में शीर्ष राजनीति तक नहीं पहुंच पाई यूकेडी

क्षेत्रीय दल का सशक्त होना बहुत जरूरी: उत्तराखंड क्रांति दल के इन हालातों के पीछे ऐसी कई वजह थी, जिसके कारण दल कभी उबर ही नहीं सका. यूकेडी का मानना है कि प्रदेश में क्षेत्रीय दल के सत्ता तक नहीं पहुंच पाने का नुकसान प्रदेश वासियों को हुआ है. राष्ट्रीय पार्टियों ने प्रदेश में बेरोजगारी से लेकर भ्रष्टाचार तक के मामले में राज्य की स्थितियों को खराब किया और आज प्रदेश में युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं और भ्रष्टाचार भी चरम पर पहुंच गया है. उत्तराखंड क्रांति दल के नेता कहते हैं कि राज्य में क्षेत्रीय दल का सशक्त होना बहुत जरूरी था लेकिन ऐसे कई कारण है जिसके कारण यूकेडी सत्ता तक कभी पहुंच ही नहीं सकी.
पढ़ें-उत्तराखंड स्थापना दिवस: नेताओं ने सत्ता के लिए बनाए और बिगाड़े समीकरण, राजनीतिक लाभ के आगे पीछे छूटा विकास!

यूकेडी के हाशिये तक जाने के पीछे रही कई वजह: उत्तराखंड क्रांति दल का राज्य में जनता का विश्वास हासिल ना कर पाने के पीछे कई वजह रही हैं. इसमें यूकेडी का आर्थिक रूप से बेहद कमजोर रहना सबसे बड़ी वजह रहा है. इसके अलावा उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं की आपसी लड़ाई ने पार्टी को हाशिये तक पहुंचने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पार्टी के नेता राष्ट्रीय दलों के खिलाफ राज्य में कोई माहौल तैयार ही नहीं कर पाए. सत्ता का सुख पाने के लालच में उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं ने पार्टी का पूरी तरह से बेड़ागर्क कर दिया. उत्तराखंड क्रांति दल के निर्माण के पीछे की वजह और नीतियों को अपनी कार्य योजना में कभी पार्टी के नेता उतर ही नहीं पाए. पार्टी ने क्षेत्रीय मुद्दों को केवल बयानों तक सीमित रखा और इसको बड़े आंदोलन के रूप में खड़ा करने में कामयाब नहीं हो सकी.

यूकेडी लड़ रही अस्तित्व की लड़ाई: देश में ऐसे कई राज्य हैं जहां क्षेत्रीय दलों का बोलबाला है, यहां तक की जिस राज्य से उत्तराखंड अलग होकर नया राज्य बना उसे उत्तर प्रदेश में भी क्षेत्रीय दलों ने लंबे समय तक सत्ता सुख भोगा है. चाहे बात समाजवादी पार्टी की हो या फिर बहुजन समाजवादी पार्टी की. इसके पीछे एक दूसरी बड़ी वजह उत्तराखंड के लोगों का राष्ट्रीय दलों के प्रति रुझान भी रहा है. यह स्थिति केवल उत्तराखंड में ही नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य और उत्तराखंड की तरह ही पहाड़ी राज्य हिमाचल में भी यही हालात हैं. जिस तरह उत्तराखंड के लोगों ने राष्ट्रीय दलों को अपनी पसंद बनाया है. इस तरह से हिमाचल प्रदेश में भी लोगों ने सत्ता बारी-बारी कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को ही दी है.

राष्ट्रीय दलों के हाथों में गई सत्ता: उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों के लिए खुद को आर्थिक रूप से सक्षम कर पाना बेहद मुश्किल काम है और यह बात पढ़े लिखे उत्तराखंड के लोग भी समझते हैं शायद ही कारण है कि उत्तराखंड के लोगों ने आर्थिक तंगी के हालातों वाले राज्य को राष्ट्रीय दलों के हाथ देना ही मुफीद समझा है. राज्य की जब स्थापना हुई उस दौरान उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के हिस्से करीब 4000 करोड़ से ज्यादा का कर्ज आया.माना जा सकता है कि इसलिए भी लोगों ने केंद्र में सत्तासीन रहने वाली भाजपा और कांग्रेस को मौका दिया ताकि आर्थिक रूप से कमजोर राज्य को केंद्र से मदद मिल सके.

आपसी तकरार ने हालात हुए जुदा: उत्तराखंड क्रांति दल के इन हालातों के पीछे राष्ट्रीय दल कांग्रेस खुद यूकेडी को ही जिम्मेदार मानती है. पार्टी नेताओं का कहना है कि उत्तराखंड क्रांति दल ने हमेशा सत्ता का सुख भोगने के लिए गठबंधन किया और अपनी विचारधारा से समझौता किया. इसके अलावा इसके नेताओं की आपसी तकरार भी पार्टी के आज के हालात की वजह बनी है.

कभी दो फाड़ होकर बंटा उत्तराखंड क्रांति दल: उत्तराखंड क्रांति दल के भीतर ऐसे कई राजनीतिक घमासान हुए, जिसने पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया. स्थिति यहां तक आ गई की पार्टी के भीतर कुर्सी के निशान को लेकर लड़ाई निर्वाचन आयोग तक भी जा पहुंची थी. साल 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन पार्टी के अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पवार उत्तराखंड क्रांति दल पी और पार्टी के वरिष्ठ नेता दिवाकर भट्ट के नेतृत्व में उत्तराखंड क्रांति दल डी के रूप में पार्टी दो भागों में बट गई. इतना ही नहीं आयोग ने पार्टी का चुनाव चिह्न कुर्सी को भी जब्त कर लिया. हालांकि बाद में दोनों गुटों का विलय हो गया और 2017 में उत्तराखंड क्रांति दल नाम और चुनाव चिह्न बहाल कर दिया गया.

बता दें कि नौ नवंबर 2023 को उत्तराखंड अपना 23वां स्थापना दिवस मना रहा है. इन 23 सालों में पहली बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उत्तराखंड स्थापना दिवस के मुख्य कार्यक्रम में शामिल होंगी.

Last Updated : Nov 9, 2023, 3:45 PM IST
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