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संवेदनहीनता: CM पोर्टल से लेकर PMO तक से इन महिलाओं को नहीं मिला 'न्याय'

यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के तिमली अकरा ग्राम सभा की दो महिलाओं को पर्यावरण संरक्षण को लेकर 2011-12 में अहम जिम्मेदारी दी गई. विमला देवी और सुमन ने यहां पौधारोपण करने के साथ ही चौकीदारी भी की. करीब 14 महीने तक चौकीदारी करने के बाद इनको विभाग में योजना के तहत जो भुगतान किया जाना था वह 10 साल बाद भी अब तक नहीं हो पाया है.

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संवेदनाएं हो गयी खत्म या लापरवाह है सिस्टम
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Published : Sep 17, 2021, 4:01 PM IST

Updated : Sep 17, 2021, 4:34 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के सरकारी सिस्टम की पोल खोलने वाला इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा, कि 10 साल पुराने मामले में पहाड़ की 2 महिलाओं को प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल तक से न्याय नहीं मिल पा रहा है. नतीजतन दस साल पहले के 14 महीनों का भुगतान पाने के लिए आज भी ये महिलाएं इंतजार कर रही हैं. सरकारी दफ्तरों से लेकर अधिकारियों के चक्कर काटने के बाद भी इन महिलाओं ने आज भी हार नहीं मानी है. वे आज भी अपनी लड़ाई बदस्तूर लड़ रही हैं.

उत्तराखंड में जरूरतमंदों तक सरकार कैसे पहुंचेगी, जब सरकार तक पहुंचने वाले लोगों को ही सिस्टम नहीं सुनता. साफ है कि पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने, जनता दरबार का भरोसा और हेल्पलाइन जैसे सब दावे केवल बातूनी हैं. वन विभाग के इस मामले को देख कर तो कुछ यही समझ आता है.

संवेदनाएं हो गयी खत्म या लापरवाह है सिस्टम

पढ़ें- वैक्सीनेशन महाभियान: उत्तराखंड में एक लाख के पार पहुंचा टीकाकरण

बता दें कि साल 2011-12 में पौड़ी जनपद के यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र में स्थित तिमली अकरा ग्राम सभा की दो महिलाओं को पर्यावरण संरक्षण को लेकर अहम जिम्मेदारी दी गई. इस गांव की विमला देवी और सुमन ने योजना के तहत न केवल पौधारोपण किए बल्कि यहां चौकीदारी भी की. करीब 14 महीने तक चौकीदारी करने के बाद इनको विभाग में योजना के तहत जो भुगतान किया जाना था वह 10 साल बाद भी अब तक नहीं हो पाया है.

पढ़ें- उत्तराखंड में तो गधा भी 'ढैंचा-ढैंचा' बोलता है, त्रिवेंद्र सिंह रावत की नजर में आखिर कौन है गधा?

यह बात वन विभाग के सिस्टम पर ही सवाल खड़ा करती है. विभाग में मामला बस इतना ही नहीं है. दरअसल आरोप है कि इन महिलाओं के द्वारा किए गए काम के भुगतान का पैसा उसी समय निकाल लिया गया जो कि उन महिलाओं तक कभी पहुंचा ही नहीं. गंभीर बात यह है कि साल 2012 में काम पूरा होने के बाद से ही लगातार इन महिलाओं की तरफ से भुगतान की मांग की जा रही है. साल 2017 में इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में भी शिकायत की गई. जिसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से राज्य सरकार को इस संबंध में कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के इस पत्र का भी अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ.

पढ़ें- महान चरित्र वाले हरक सिंह रावत, सब जानते हैं उनका कैरेक्टर: त्रिवेंद्र सिंह रावत

हालांकि, इसके बाद भी महिलाओं ने हार नहीं मानी. उन्होंने गांव वालों के साथ मिलकर 2019 में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पोर्टल पर शिकायत भी की. अब मजाक देखिए कि इस पोर्टल पर जिसे सरकार ने सफल प्रयास बताया उसने डीएफओ स्तर से सचिव स्तर तक इनकी शिकायत को प्रेषित किया. जिसमें L 3 में वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तक मामला गया. वहां भी इसका कोई हल नहीं निकला. उसके बाद वन विभाग के सचिव रहे अरविंद सिंह ह्यांकी को L4 के तहत मामला पहुंचा, लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगी है.

पढ़ें- ढैंचा पर त्रिवेंद्र के 'गधा' बयान से भड़के हरक, बोले- अपने ही दुश्मन, अबोध बच्चे या बूढ़े नहीं हैं पूर्व सीएम

पहाड़ की इन दो महिलाओं की हक की लड़ाई यूं तो गांव के ही कई लोग लड़ रहे हैं, लेकिन यमकेश्वर क्षेत्र के समाजसेवी शांति प्रसाद भट्ट ने अब यह बात प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी तक पहुंचाई है. शांति प्रसाद भट्ट ने बताया इन दोनों ही महिलाओं के 14 महीने का भुगतान करीब 80,000 है, लेकिन इनके भुगतान को लेकर वन विभाग के अधिकारियों को कोई जानकारी ही नहीं है. यह महिलाएं पिछले 10 साल से एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपनी मेहनत की कमाई को पाने का इंतजार कर रही हैं. बड़ी बात यह है कि इस मामले में उस दौरान विभाग के अधिकारियों द्वारा पैसा निकाले जाने की बात भी कही गयी, जो कि बड़े भ्रष्टाचार का भी आरोप है.

पढ़ें- CM धामी और चुनाव प्रभारी से मिलने का इंतजार करते रहे विधायक और मेयर


इस मामले में प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी से ईटीवी भारत ने बात की. प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने कहा इस मामले में जिस तरह कागज दिए गए हैं, उससे इसकी पुष्टि होती दिखाई दे रही है. लेकिन इस मामले में जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है, जिसके लिए उन्होंने कह दिया है.

देहरादून: उत्तराखंड के सरकारी सिस्टम की पोल खोलने वाला इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा, कि 10 साल पुराने मामले में पहाड़ की 2 महिलाओं को प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल तक से न्याय नहीं मिल पा रहा है. नतीजतन दस साल पहले के 14 महीनों का भुगतान पाने के लिए आज भी ये महिलाएं इंतजार कर रही हैं. सरकारी दफ्तरों से लेकर अधिकारियों के चक्कर काटने के बाद भी इन महिलाओं ने आज भी हार नहीं मानी है. वे आज भी अपनी लड़ाई बदस्तूर लड़ रही हैं.

उत्तराखंड में जरूरतमंदों तक सरकार कैसे पहुंचेगी, जब सरकार तक पहुंचने वाले लोगों को ही सिस्टम नहीं सुनता. साफ है कि पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने, जनता दरबार का भरोसा और हेल्पलाइन जैसे सब दावे केवल बातूनी हैं. वन विभाग के इस मामले को देख कर तो कुछ यही समझ आता है.

संवेदनाएं हो गयी खत्म या लापरवाह है सिस्टम

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बता दें कि साल 2011-12 में पौड़ी जनपद के यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र में स्थित तिमली अकरा ग्राम सभा की दो महिलाओं को पर्यावरण संरक्षण को लेकर अहम जिम्मेदारी दी गई. इस गांव की विमला देवी और सुमन ने योजना के तहत न केवल पौधारोपण किए बल्कि यहां चौकीदारी भी की. करीब 14 महीने तक चौकीदारी करने के बाद इनको विभाग में योजना के तहत जो भुगतान किया जाना था वह 10 साल बाद भी अब तक नहीं हो पाया है.

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यह बात वन विभाग के सिस्टम पर ही सवाल खड़ा करती है. विभाग में मामला बस इतना ही नहीं है. दरअसल आरोप है कि इन महिलाओं के द्वारा किए गए काम के भुगतान का पैसा उसी समय निकाल लिया गया जो कि उन महिलाओं तक कभी पहुंचा ही नहीं. गंभीर बात यह है कि साल 2012 में काम पूरा होने के बाद से ही लगातार इन महिलाओं की तरफ से भुगतान की मांग की जा रही है. साल 2017 में इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में भी शिकायत की गई. जिसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से राज्य सरकार को इस संबंध में कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के इस पत्र का भी अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ.

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हालांकि, इसके बाद भी महिलाओं ने हार नहीं मानी. उन्होंने गांव वालों के साथ मिलकर 2019 में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पोर्टल पर शिकायत भी की. अब मजाक देखिए कि इस पोर्टल पर जिसे सरकार ने सफल प्रयास बताया उसने डीएफओ स्तर से सचिव स्तर तक इनकी शिकायत को प्रेषित किया. जिसमें L 3 में वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तक मामला गया. वहां भी इसका कोई हल नहीं निकला. उसके बाद वन विभाग के सचिव रहे अरविंद सिंह ह्यांकी को L4 के तहत मामला पहुंचा, लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगी है.

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पहाड़ की इन दो महिलाओं की हक की लड़ाई यूं तो गांव के ही कई लोग लड़ रहे हैं, लेकिन यमकेश्वर क्षेत्र के समाजसेवी शांति प्रसाद भट्ट ने अब यह बात प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी तक पहुंचाई है. शांति प्रसाद भट्ट ने बताया इन दोनों ही महिलाओं के 14 महीने का भुगतान करीब 80,000 है, लेकिन इनके भुगतान को लेकर वन विभाग के अधिकारियों को कोई जानकारी ही नहीं है. यह महिलाएं पिछले 10 साल से एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपनी मेहनत की कमाई को पाने का इंतजार कर रही हैं. बड़ी बात यह है कि इस मामले में उस दौरान विभाग के अधिकारियों द्वारा पैसा निकाले जाने की बात भी कही गयी, जो कि बड़े भ्रष्टाचार का भी आरोप है.

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इस मामले में प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी से ईटीवी भारत ने बात की. प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने कहा इस मामले में जिस तरह कागज दिए गए हैं, उससे इसकी पुष्टि होती दिखाई दे रही है. लेकिन इस मामले में जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है, जिसके लिए उन्होंने कह दिया है.

Last Updated : Sep 17, 2021, 4:34 PM IST
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