देहरादून: राज्य निर्वाचन आयोग ने नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश पर निष्पक्ष चुनाव के लिए 32 दिशा-निर्देश जारी किए हैं. प्रमुख रूप से ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पदों के चुनाव में संबंधित सदस्यों की खरीद-फरोख्त की शिकायत मिलने पर सीधे एफआईआर दर्ज करने के आदेश भी दिये हैं. इसी के साथ अपने आदेश में हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए हैं.
क्या था मामला
देहरादून निवासी विपुल जैन ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पंचायत सदस्यों की बड़े स्तर पर खरीद फरोख्त की जाती है. उन्होंने इस खरीद फरोख्त से बचने के लिए चुनाव आयोग को दिशा निर्देश देने व इन पदों का चुनाव सीधे जनता से कराए जाने की मांग की थी. साथ ही इस याचिका में कहा गया था कि राज्य में 13 जिला पंचायत अध्यक्ष, 96 ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में करीब 520 जिला पंचायत सदस्य, करीब चार हजार बीडीसी सदस्य आदि की खरीद फरोख्त के जरिये करीब 500 करोड़ का सीधा भ्रष्टाचार होता है.
वहीं, बीते दिनों न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की संयुक्त खंडपीठ ने इस मामले की दायर याचिका पर सुनवाई की थी. जिसमें नैनीताल हाई कोर्ट ने जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में भ्रष्टाचार की शिकायत और इन पदों पर सीधे जनता से चुनाव को लेकर अपना फैसला सुनाया था.
अदालत ने कहा है कि अगर कोई संवैधानिक संस्था अपने कार्य का निर्वहन सही तरीके से नहीं करती है तो हाई कोर्ट के पास आयोग को दिशा निर्देश देने का अधिकार है. जनता से चुने सदस्यों को हाईजैक नहीं किया जा सकता है. चुनाव आयोग की यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि पंचायत चुनाव निष्पक्ष और साफ सुथरे तरीके से हो.
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ऐसे में हाई कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग की गाइडलाइन को 17 साल पुराना मानते हुए इसमें बदलाव की जरूरत जताई है. हाई कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को आदेश दिया है कि अगर इन चुनावों में भ्रष्टाचार की शिकायत अखबारों या अन्य किसी भी माध्यम से मिलती है तो उसके लिए एक शिकायत प्रकोष्ठ का गठन करे और एफआईआर दर्ज करे.
इस मामले में राज्य निर्वाचन आयुक्त चंद्रशेखर भट्ट का कहना है कि उच्च न्यायालय ने ब्लॉक प्रमुख चुनाव और जिला प्रमुख चुनाव के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं. हाई कोर्ट के आदेशों का पूरा पालन किया जाएगा.
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उन्होंने कहा कि इस आदेश में काफी कम समय रखा गया क्योंकि, एक्ट के तहत न्यूनतम उतना समय देना ही पड़ता है. लेकिन हमने प्रयास किया है कि कम से कम समय में अधिसूचना और नाम वापसी का प्रयास हो, जिससे किसी को भी शिकायत का मौका न मिले.