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लोकायुक्त पर सरकार और विपक्ष में 'रार', कांग्रेस ने पूछा- वादा क्यों भूली सरकार?

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Published : Aug 14, 2020, 2:06 PM IST

Updated : Aug 14, 2020, 2:54 PM IST

उत्तराखंड में लोकायुक्त का मामला पूरी तरह से शांत नहीं हो पा रहा है. विपक्षी पार्टी कांग्रेस, प्रदेश की मौजूदा बीजेपी सरकार पर साढ़े 3 साल पूरे होने के बाद भी लोकायुक्त का गठन नहीं कर पाने पर तंज कसती नज़र आ रही है. वहीं सरकार पारदर्शी और जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने की बात कह रही है. देखिए हमारी खास रिपोर्ट...

उत्तराखंड लोकायुक्त समाचार

देहरादून: दरअसल, साल 2017 में राज्य सरकार के गठन के दौरान जब मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ ली थी तो उस दौरान राज्य में लोकायुक्त गठन की बात कही गई थी. इससे पहले खंडूड़ी शासनकाल में भी लोकायुक्त का स्वरूप तैयार कर लिया गया था. यही नहीं, लोकायुक्त बिल सदन तक भी पहुंच गया था. इसके लिए एक कमेटी गठित की गई थी. लेकिन सदन में लोकायुक्त पर ना तो चर्चा हो सकी और ना ही लोकायुक्त बिल सदन से पारित हो सका. तब से यह बिल विधानसभा की संपत्ति के रूप में विधानसभा में ही विचाराधीन है.

लोकायुक्त पर सरकार और विपक्ष में 'रार.

विपक्ष कर रहा लोकायुक्त की मांग

एक तरफ विपक्षी नेता लोकायुक्त के गठन की मांग कर रहे हैं और लोकायुक्त गठित नहीं किए जाने को लेकर सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के शासकीय प्रवक्ता का साफ तौर पर कहना है कि कोई भी मामला सामने आता है तो सरकार तत्परता दिखाते हुए उस पर एक्शन लेती है. लिहाजा सरकार जिस तरह से काम कर रही है ऐसे में प्रदेश में लोकायुक्त की जरूरत नहीं होनी चाहिए. कौशिक का कहना है कि प्रदेश में जीरो टॉलरेंस कि सरकार चल रही है. ऐसे में जब सरकार और विपक्ष सामने आ रहे हैं तो समझा जा सकता है कि विकास और भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष के तेवर आखिर क्या हैं और सत्ता पक्ष की रणनीति आखिर क्या है.

खंडूड़ी सरकार के समय से चर्चा में है लोकायुक्त

दरअसल, लोकायुक्त का मामला पूर्व के खंडूड़ी सरकार के शासनकाल में भी काफी चर्चा में रहा था. इसके बाद उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आयी. इस दौरान बहुगुणा से लेकर हरीश रावत के शासनकाल में भी लोकायुक्त का मामला काफी चर्चाओ में रहा. फिर साल 2017 में जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कमान संभाली उस दौरान भी विपक्ष ने लोकायुक्त के गठन को लेकर तमाम सवाल खड़े किए थे. मौजूदा परिपेक्ष में एक बार फिर विपक्ष ने लोकायुक्त को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. यही नहीं, हाल ही में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने चावल घोटाले का मामला उठने के दौरान भी लोकायुक्त गठन की फिर से मांग उठाई थी.

पढ़ें-एमिटी जेईई 2020 परीक्षा रद्द, चयन प्रक्रिया वीडियो साक्षात्कार के आधार पर

सरकार की मंशा लोकायुक्त लाने की नहीं !

मदन कौशिक का साफ तौर पर कहना है कि किसी भी मामले के संज्ञान में आते ही सरकार त्वरित कार्रवाई करती है. तत्काल एक्शन लेती है. लिहाजा लोकायुक्त की आवश्यकता प्रदेश में नहीं होनी चाहिए. उधर विपक्ष बार-बार यह मुद्दा उठा रहा है कि कहां गया राज्य में लोकायुक्त और केंद्र में लोकपाल? आखिर इतना समय बीत जाने के बाद भी लोकायुक्त गठित क्यों नहीं हो पाया है. ऐसे में प्रदेश में लोकायुक्त गठित हो पाएगा या लोकायुक्त को लेकर विपक्ष यूं ही सवाल खड़े करता रहेगा और सत्ता पक्ष इसमें अपना पक्ष रख विपक्ष पर पलटवार करता रहेगा, ये एक बड़ा सवाल है.

2011 में लाया गया था लोकायुक्त बिल

  • 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में पेश किया गया तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिल को मंजूरी दी थी.
  • बाद में मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा के कार्यकाल में इसे निरस्त कर दिया गया.
  • 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने इसे दोबारा विधानसभा में पेश किया.
  • बाद में इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया.

पढ़ें-अवमानना मामले में प्रशांत भूषण दोषी करार, 20 को सजा पर सुनवाई

क्या है लोकायुक्त का अर्थ ?

विश्व के अधिकांश देशों में जिस संस्था को ऑम्बुड्समैन कहा जाता है, उसे हमारे देश में लोकपाल या लोकायुक्त के नाम से जाना जाता है. भारत में लोकपाल या लोकायुक्त नाम 1963 में मशहूर कानूनविद डॉ. एलएम सिंघवी ने दिया था. लोकपाल शब्द संस्कृत भाषा के शब्द लोक (लोगों) और पाला (संरक्षक) से बना है. इसका अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जिसे कुप्रशासन, भ्रष्टाचार, विलम्ब, अकुशलता, अपारदर्शिता एवं पद के दुरुपयोग से नागरिक अधिकारों की रक्षा हेतु नियुक्त किया जाए. ब्रिटेनिका विश्वकोष में आम्बड्समैन को नौकरशाही की शक्तियों के दुरुपयोग के सम्बन्ध में नागरिकों द्वारा की गई शिकायतों की जाँच करने हेतु व्यवस्थापिका का आयुक्त कहा गया है.

स्वीडन से हुई लोकायुक्त की शुरुआत

लोकपाल या ऑम्बुड्समैन शुरू करने का श्रेय स्वीडन को जाता है. यहां सर्वप्रथम इस संस्था की अवधारणा की कल्पना की गई. वर्ष 1713 में किंग चार्ल्स 12 ने कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को दण्डित करने के लिए अपने एक सभासद को नियुक्त किया. स्वीडन में नया संविधान बनाने हेतु गठित संविधान सभा के सदस्यों का आग्रह रहा कि पूर्व व्यवस्था से भिन्न उनका ही एक अधिकारी जांच का कार्य करे जो किसी भी स्थिति में सरकारी अधिकारी नहीं होना चाहिए. इस पर वर्ष 1809 में स्वीडन के संविधान में ‘ऑम्बुड्समैन फॉर जस्टिस’ के रूप में प्रथम बार इस संस्था की व्यवस्था हुई जो लोकसेवकों द्वारा कानूनों तथा विनियमों के उल्लंघन के प्रकरणों की जांच करेगा.

पढ़ें-देशभर में 24.61 लाख से ज्यादा संक्रमित, जानें राज्यवार आंकड़े

135 देशों में नियुक्त हैं ‘ऑम्बुड्समैन‘ या लोकायुक्त

स्वीडन के बाद धीरे-धीरे आस्ट्रिया, डेनमार्क तथा अन्य स्केण्डीनेवियन देशों और फिर अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका एवं यूरोप के कई देशों में भी ‘ऑम्बुड्समैन‘ के कार्यालय स्थापित हुए. फिनलैण्ड में वर्ष 1919 में, डेनमार्क में 1954 में, नॉर्वे में 1961 में व ब्रिटेन में 1967 में भ्रष्टाचार समाप्त करने के उद्देश्य से ऑम्बुड्समैन की स्थापना की गई. अब तक 135 से अधिक देशों में ‘ऑम्बुड्समैन‘ या लोकायुक्त की नियुक्ति की जा चुकी है.

भारत में लोकपाल

केन्द्रीय स्तर पर लोकपाल एवं राज्य स्तर पर लोकायुक्त संस्थाओं की स्थापना के लिए बहुप्रतीक्षित लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 (2014 का अधिनियम सं. 1) संसद द्वारा वर्ष 2014 में पारित हुआ. इसे दिनांक 1 जनवरी, 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई. भारत के राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना दिनांक 16 जनवरी, 2014 के द्वारा इस अधिनियम के उपबन्ध दिनांक 16 जनवरी, 2014 से प्रवृत्त किये गये हैं.

देहरादून: दरअसल, साल 2017 में राज्य सरकार के गठन के दौरान जब मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथ ली थी तो उस दौरान राज्य में लोकायुक्त गठन की बात कही गई थी. इससे पहले खंडूड़ी शासनकाल में भी लोकायुक्त का स्वरूप तैयार कर लिया गया था. यही नहीं, लोकायुक्त बिल सदन तक भी पहुंच गया था. इसके लिए एक कमेटी गठित की गई थी. लेकिन सदन में लोकायुक्त पर ना तो चर्चा हो सकी और ना ही लोकायुक्त बिल सदन से पारित हो सका. तब से यह बिल विधानसभा की संपत्ति के रूप में विधानसभा में ही विचाराधीन है.

लोकायुक्त पर सरकार और विपक्ष में 'रार.

विपक्ष कर रहा लोकायुक्त की मांग

एक तरफ विपक्षी नेता लोकायुक्त के गठन की मांग कर रहे हैं और लोकायुक्त गठित नहीं किए जाने को लेकर सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ प्रदेश सरकार के शासकीय प्रवक्ता का साफ तौर पर कहना है कि कोई भी मामला सामने आता है तो सरकार तत्परता दिखाते हुए उस पर एक्शन लेती है. लिहाजा सरकार जिस तरह से काम कर रही है ऐसे में प्रदेश में लोकायुक्त की जरूरत नहीं होनी चाहिए. कौशिक का कहना है कि प्रदेश में जीरो टॉलरेंस कि सरकार चल रही है. ऐसे में जब सरकार और विपक्ष सामने आ रहे हैं तो समझा जा सकता है कि विकास और भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष के तेवर आखिर क्या हैं और सत्ता पक्ष की रणनीति आखिर क्या है.

खंडूड़ी सरकार के समय से चर्चा में है लोकायुक्त

दरअसल, लोकायुक्त का मामला पूर्व के खंडूड़ी सरकार के शासनकाल में भी काफी चर्चा में रहा था. इसके बाद उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार अस्तित्व में आयी. इस दौरान बहुगुणा से लेकर हरीश रावत के शासनकाल में भी लोकायुक्त का मामला काफी चर्चाओ में रहा. फिर साल 2017 में जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कमान संभाली उस दौरान भी विपक्ष ने लोकायुक्त के गठन को लेकर तमाम सवाल खड़े किए थे. मौजूदा परिपेक्ष में एक बार फिर विपक्ष ने लोकायुक्त को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं. यही नहीं, हाल ही में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने चावल घोटाले का मामला उठने के दौरान भी लोकायुक्त गठन की फिर से मांग उठाई थी.

पढ़ें-एमिटी जेईई 2020 परीक्षा रद्द, चयन प्रक्रिया वीडियो साक्षात्कार के आधार पर

सरकार की मंशा लोकायुक्त लाने की नहीं !

मदन कौशिक का साफ तौर पर कहना है कि किसी भी मामले के संज्ञान में आते ही सरकार त्वरित कार्रवाई करती है. तत्काल एक्शन लेती है. लिहाजा लोकायुक्त की आवश्यकता प्रदेश में नहीं होनी चाहिए. उधर विपक्ष बार-बार यह मुद्दा उठा रहा है कि कहां गया राज्य में लोकायुक्त और केंद्र में लोकपाल? आखिर इतना समय बीत जाने के बाद भी लोकायुक्त गठित क्यों नहीं हो पाया है. ऐसे में प्रदेश में लोकायुक्त गठित हो पाएगा या लोकायुक्त को लेकर विपक्ष यूं ही सवाल खड़े करता रहेगा और सत्ता पक्ष इसमें अपना पक्ष रख विपक्ष पर पलटवार करता रहेगा, ये एक बड़ा सवाल है.

2011 में लाया गया था लोकायुक्त बिल

  • 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में पेश किया गया तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिल को मंजूरी दी थी.
  • बाद में मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा के कार्यकाल में इसे निरस्त कर दिया गया.
  • 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने इसे दोबारा विधानसभा में पेश किया.
  • बाद में इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया.

पढ़ें-अवमानना मामले में प्रशांत भूषण दोषी करार, 20 को सजा पर सुनवाई

क्या है लोकायुक्त का अर्थ ?

विश्व के अधिकांश देशों में जिस संस्था को ऑम्बुड्समैन कहा जाता है, उसे हमारे देश में लोकपाल या लोकायुक्त के नाम से जाना जाता है. भारत में लोकपाल या लोकायुक्त नाम 1963 में मशहूर कानूनविद डॉ. एलएम सिंघवी ने दिया था. लोकपाल शब्द संस्कृत भाषा के शब्द लोक (लोगों) और पाला (संरक्षक) से बना है. इसका अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जिसे कुप्रशासन, भ्रष्टाचार, विलम्ब, अकुशलता, अपारदर्शिता एवं पद के दुरुपयोग से नागरिक अधिकारों की रक्षा हेतु नियुक्त किया जाए. ब्रिटेनिका विश्वकोष में आम्बड्समैन को नौकरशाही की शक्तियों के दुरुपयोग के सम्बन्ध में नागरिकों द्वारा की गई शिकायतों की जाँच करने हेतु व्यवस्थापिका का आयुक्त कहा गया है.

स्वीडन से हुई लोकायुक्त की शुरुआत

लोकपाल या ऑम्बुड्समैन शुरू करने का श्रेय स्वीडन को जाता है. यहां सर्वप्रथम इस संस्था की अवधारणा की कल्पना की गई. वर्ष 1713 में किंग चार्ल्स 12 ने कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को दण्डित करने के लिए अपने एक सभासद को नियुक्त किया. स्वीडन में नया संविधान बनाने हेतु गठित संविधान सभा के सदस्यों का आग्रह रहा कि पूर्व व्यवस्था से भिन्न उनका ही एक अधिकारी जांच का कार्य करे जो किसी भी स्थिति में सरकारी अधिकारी नहीं होना चाहिए. इस पर वर्ष 1809 में स्वीडन के संविधान में ‘ऑम्बुड्समैन फॉर जस्टिस’ के रूप में प्रथम बार इस संस्था की व्यवस्था हुई जो लोकसेवकों द्वारा कानूनों तथा विनियमों के उल्लंघन के प्रकरणों की जांच करेगा.

पढ़ें-देशभर में 24.61 लाख से ज्यादा संक्रमित, जानें राज्यवार आंकड़े

135 देशों में नियुक्त हैं ‘ऑम्बुड्समैन‘ या लोकायुक्त

स्वीडन के बाद धीरे-धीरे आस्ट्रिया, डेनमार्क तथा अन्य स्केण्डीनेवियन देशों और फिर अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका एवं यूरोप के कई देशों में भी ‘ऑम्बुड्समैन‘ के कार्यालय स्थापित हुए. फिनलैण्ड में वर्ष 1919 में, डेनमार्क में 1954 में, नॉर्वे में 1961 में व ब्रिटेन में 1967 में भ्रष्टाचार समाप्त करने के उद्देश्य से ऑम्बुड्समैन की स्थापना की गई. अब तक 135 से अधिक देशों में ‘ऑम्बुड्समैन‘ या लोकायुक्त की नियुक्ति की जा चुकी है.

भारत में लोकपाल

केन्द्रीय स्तर पर लोकपाल एवं राज्य स्तर पर लोकायुक्त संस्थाओं की स्थापना के लिए बहुप्रतीक्षित लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 (2014 का अधिनियम सं. 1) संसद द्वारा वर्ष 2014 में पारित हुआ. इसे दिनांक 1 जनवरी, 2014 को महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई. भारत के राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना दिनांक 16 जनवरी, 2014 के द्वारा इस अधिनियम के उपबन्ध दिनांक 16 जनवरी, 2014 से प्रवृत्त किये गये हैं.

Last Updated : Aug 14, 2020, 2:54 PM IST
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