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सुद्धोवाला जेल में निखारा जा रहा कैदियों का हुनर, देखें सलाखों के पीछे की जिंदगी

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Published : Aug 11, 2021, 10:35 PM IST

Updated : Aug 11, 2021, 10:56 PM IST

जेलों में सजायाफ्ता कैदियों के जीवन में सुधार लाने के लिए कई सकारात्मक कार्य किए जा रहे हैं. स्किल डेवलपमेंट इसी का एक हिस्सा है. देहरादून की सुद्धोवाला में सजा काट रहे कैदी आज लकड़ियों से कुर्सी, कालीन और फर्नीचर तैयार कर रहे हैं. जिनका बाजार में काफी डिमांड हैं.

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सुद्धोवाला जेल में निखारा जा रहा कैदियों का हुनर

देहरादून: भारतीय जनमानस में एक सोच प्रभावी है कि जो एक बार जेल चला गया वह खूंखार ही होता है और सुधर नहीं सकता. लेकिन, क्या आपको मालूम है जेल के अंदर सजा काटने वाले कैदियों के जीवन में सकारात्मक सुधार लाने के लिए कई तरह के कार्य कराए जाते हैं. ईटीवी भारत आपको राजधानी देहरादून के सुद्धोवाला जेल ले जाता है, जहां पहली बार आप करीब से इन कैदियों की दुनिया को समझ सकेंगे.

जेल में सजा काट रहे कैदियों को सुधारने के लिए कई तरह के कार्ययक्रम चलाये जाते हैं. मसलन स्किल डेवलपमेंट की तर्ज पर उन्हें अलग-अलग तरह के रोजगार से जुड़े काम सिखाये जाते हैं. जिससे वे आगे भविष्य में अपराध का रास्ता छोड़कर एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें. यहां से काम सीखकर वो अपना नया जीवन शुरू कर सकें.

सुद्धोवाला जेल में निखारा जा रहा कैदियों का हुनर

कैदियों के बने फर्नीचर सचिवालय में होते हैं इस्तेमाल: उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदियों की काबिलियत तराशने के लिए जेल प्रशासन काफी लंबे समय कारागार के अंदर स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चला रहा है. जेल के इन अथक प्रयासों का कुछ हद तक सार्थक परिणाम भी आ चुके हैं. जिसकी बानगी पिछले दिनों उत्तराखंड सचिवालय से मिले 20 लाख रुपए के फर्नीचर ऑर्डर दिखाती है.

इन फर्नीचरों को बनाने का कार्य सुद्धोवाला जेल में बंद कैदियों ने किया. ये कैदी हत्या, लूट, डकैती जैसे संगीन अपराधों में सजा काट रहे हैं. ऐसे में अब जेल में बनी कुर्सी-टेबल जैसे फर्नीचर पर अब सचिवालय के वो अधिकारी बैठ रहे हैं, जो राज्य की नीति निर्धारित करते हैं.

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वहीं, दूसरी तरफ बाजार में चाइनीज झालरों का चलन कम होते ही दीपावली जैसे शुभ मौकों पर कैदियों द्वारा बनाई गई देसी झालरों जैसे इलेक्ट्रिक आइटम की बाजार में डिमांड बढ़ रही है. सुद्धोवाला जेल को स्वदेशी झालर जैसे आइटम बनाने के लिए जेल प्रशासन को एक बड़ी कंपनी ने ऑर्डर दिया है.

बता दें देहरादून कि सुद्धोवाला जेल में क्षमता से अधिक लगभग 1400 कैदी अलग-अलग तरह के अपराधों में सजा काट रहे हैं. जिसमें से 25 से 30 फीसदी कैदियों के स्किल को डेवलप किया गया है. ऐसा कर इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का कवायद जारी है.

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जेल के अंदर हर्बल खेती उत्पादन के अलावा लोहे एवं लकड़ी फर्नीचर, बिजली के उपकरण, भवनों की शोभा बढ़ाने वाले सुंदर गमलों सहित बेहद शानदार किस्म के कपास और रेशम की कालीन दरिया तैयार करने का हुनर सिखाया जाता है. जेल अधिकारियों की मानें तो कारागार के अंदर तरह-तरह के स्किल डेवलपमेंट कार्य किये जाते हैं. जिनका मकसद सजा काटने वाले कैदियों को मानसिक रूप से व्यस्त रखने के साथ ही उन्हें स्वरोजगार से जोड़ना है.

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एलईडी बनाने वाली फैक्ट्री का समान तैयार करेंगे कैदी: जेलर पवन कोठारी के मुताबिक जेल की कार्यशाला में तैयार होने वाले फर्नीचर की बाजार में खूब डिमांड है. जेलर कोठारी के मुताबिक उत्तराखंड की बड़ी एलईडी फैक्ट्री के संचालक राजवीर सिंह ने जेल में इलेक्ट्रिशियन का कार्य सीखने वाले कैदियों को एलईडी बनाने का निशुल्क प्रशिक्षण दिया है. साथ ही उनके द्वारा जॉब वर्क भी तैयार किया जा रहा है.

दीपावली के अवसर पर रोशनी करने वाली लड़ियों और झालर जैसे तमाम इलेक्ट्रिक आइटम इसी कंपनी द्वारा जेल कैदियों से तैयार कराये जाएंगे. जिसके बाद उन्हें बाजार में उतारा जाएगा. इससे न सिर्फ कारागार विभाग का राजस्व बढ़ेगा. बल्कि जेल में इस तरह का कारीगरी सीखने वाले कैदियों को भी सीखने को कुछ नया मिलेगा. यहां से काम सीखकर जब वे बाहर जाएंगे तो वे अपना काम शुरू कर परिवार पालन पोषण कर सकते हैं.

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कैदियों के परिवारों को आर्थिक मदद: वहीं, देहरादून सुद्धोवाला जेल सुपरिटेंडेंट दधिराम का मानना है कि कोई भी कैदी जब जेल में सजा काटने आता है तो उसे एक न एक दिन समाज की मुख्यधारा में जुड़ना ही होता है. ऐसे में अगर कैदी सजा के दौरान सकारात्मक सुधार लाते हुए स्किल डेवलप किया जाता है तो ये फायदेमंद होता है. ऐसा करने से उनका पुनर्वास हो सकता है.

जेल सुपरिटेंडेंट दधिराम के अनुसार कारागार कार्यशाला में अलग-अलग व्यवसायिक कार्यों से न सिर्फ जेल प्रशासन का राजस्व बढ़ता है, बल्कि उस राजस्व का एक हिस्सा कैदियों के परिवार को भी आर्थिक रूप से मदद पहुंचाने में सहायक होता है .

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कैदी टेलरिंग कारीगरी सीखने के इच्छुक: जेल की टेलरिंग कार्यशाला में पिछले 8 सालों से कैदियों को सरकारी पुलिस की वर्दी से लेकर अलग-अलग तरह के कपड़े सिलने का कारीगरी सिखाई जाती है. टेलरिंग सिखाने वाले मास्टर राजेंद्र सिंह 2013 से एक हत्या के मामले में सजा काट रहे हैं.

राजेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके द्वारा अब तक दर्जनों कैदियों को कपड़े सिलने का काम सिखाया जा चुका है. मास्टर राजेंद्र के मुताबिक जेल में आने वाले 20 से 30% कैदी टेलरिंग सीखने की इच्छा जताते हैं.

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वहीं, लेडीज टेलरिंग के मास्टर वीर सिंह भी 2013 से हत्या के आरोप में सजा काट रहे हैं. वीर सिंह नेगी की मानें तो उन्होंने भी कई कैदियों को लेडीज कपड़े सिलाई का काम सिखाया है. सजा काटने के बाद कई ऐसे कैदियों के बारे में भी जानकारी मिली है जिन्होंने बाहर जाकर टेलरिंग का काम शुरू कर अपने जीवन को नई दिशा दी है.

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IMA की शोभा बढ़ाते हैं सुद्धोवाला जेल में तैयार उच्च क्वालिटी के गमले: देहरादून सुद्धोवाला जेल का एक सेक्शन उच्च क्वालिटी के गमले निर्माण करता है. जिनकी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं सहित बाजार में काफी डिमांड है. कैदियों द्वारा तैयार होने वाले गमलों की अच्छी क्वालिटी होने के कारण जेल प्रशासन को भारतीय सैन्य अकादमी IMA से एक बड़ा टेंडर गमला सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट के रूप में मिला. अब सैकड़ों गमले आईएमए की शोभा बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं जेल प्रशासन को अन्य सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों से भी बड़ी संख्या में आर्डर मिल रहे हैं.

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जेल में तैयार कालीन-कॉरपेट की अच्छी डिमांड: सुद्धोवाला जेल में काफी समय एक विशेष कार्यशाला में रेशम व कपास से हर तरह की कालीन-कॉरपेट (दरियां) बनाने काम भी शानदार तरीके से चल रहा है. जेल की इस कार्यशाला में तैयार हर साइज की कालीन- दरियों की बाजार में काफी डिमांड है.

एक समय में इस कार्यशाला में 15 कारीगर कालीन-कारपेट बनाने का कार्य करते हैं. कारपेट कार्यशाला के मास्टर राजकुमार 2010 हत्या के आरोप में सजा काट रहे हैं. राजकुमार के मुताबिक उनके द्वारा अनगिनत कैदियों को अब तक कारपेट कालीन बनाने का कार्य सिखाया जा चुका है. उन्होंने बताया यहां से निकल कर कई कैदियों ने इस कार्य को स्वरोजगार के रूप में अपनाया है.

देहरादून: भारतीय जनमानस में एक सोच प्रभावी है कि जो एक बार जेल चला गया वह खूंखार ही होता है और सुधर नहीं सकता. लेकिन, क्या आपको मालूम है जेल के अंदर सजा काटने वाले कैदियों के जीवन में सकारात्मक सुधार लाने के लिए कई तरह के कार्य कराए जाते हैं. ईटीवी भारत आपको राजधानी देहरादून के सुद्धोवाला जेल ले जाता है, जहां पहली बार आप करीब से इन कैदियों की दुनिया को समझ सकेंगे.

जेल में सजा काट रहे कैदियों को सुधारने के लिए कई तरह के कार्ययक्रम चलाये जाते हैं. मसलन स्किल डेवलपमेंट की तर्ज पर उन्हें अलग-अलग तरह के रोजगार से जुड़े काम सिखाये जाते हैं. जिससे वे आगे भविष्य में अपराध का रास्ता छोड़कर एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें. यहां से काम सीखकर वो अपना नया जीवन शुरू कर सकें.

सुद्धोवाला जेल में निखारा जा रहा कैदियों का हुनर

कैदियों के बने फर्नीचर सचिवालय में होते हैं इस्तेमाल: उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदियों की काबिलियत तराशने के लिए जेल प्रशासन काफी लंबे समय कारागार के अंदर स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चला रहा है. जेल के इन अथक प्रयासों का कुछ हद तक सार्थक परिणाम भी आ चुके हैं. जिसकी बानगी पिछले दिनों उत्तराखंड सचिवालय से मिले 20 लाख रुपए के फर्नीचर ऑर्डर दिखाती है.

इन फर्नीचरों को बनाने का कार्य सुद्धोवाला जेल में बंद कैदियों ने किया. ये कैदी हत्या, लूट, डकैती जैसे संगीन अपराधों में सजा काट रहे हैं. ऐसे में अब जेल में बनी कुर्सी-टेबल जैसे फर्नीचर पर अब सचिवालय के वो अधिकारी बैठ रहे हैं, जो राज्य की नीति निर्धारित करते हैं.

पढ़ें- देवस्थानम बोर्ड को लेकर पुरोहितों ने BJP की प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

वहीं, दूसरी तरफ बाजार में चाइनीज झालरों का चलन कम होते ही दीपावली जैसे शुभ मौकों पर कैदियों द्वारा बनाई गई देसी झालरों जैसे इलेक्ट्रिक आइटम की बाजार में डिमांड बढ़ रही है. सुद्धोवाला जेल को स्वदेशी झालर जैसे आइटम बनाने के लिए जेल प्रशासन को एक बड़ी कंपनी ने ऑर्डर दिया है.

बता दें देहरादून कि सुद्धोवाला जेल में क्षमता से अधिक लगभग 1400 कैदी अलग-अलग तरह के अपराधों में सजा काट रहे हैं. जिसमें से 25 से 30 फीसदी कैदियों के स्किल को डेवलप किया गया है. ऐसा कर इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का कवायद जारी है.

पढ़ें- अगर आपका नाम नीरज या वंदना है तो यह खबर आपके लिए है, जरूर पढ़ें

जेल के अंदर हर्बल खेती उत्पादन के अलावा लोहे एवं लकड़ी फर्नीचर, बिजली के उपकरण, भवनों की शोभा बढ़ाने वाले सुंदर गमलों सहित बेहद शानदार किस्म के कपास और रेशम की कालीन दरिया तैयार करने का हुनर सिखाया जाता है. जेल अधिकारियों की मानें तो कारागार के अंदर तरह-तरह के स्किल डेवलपमेंट कार्य किये जाते हैं. जिनका मकसद सजा काटने वाले कैदियों को मानसिक रूप से व्यस्त रखने के साथ ही उन्हें स्वरोजगार से जोड़ना है.

पढ़ें- गांव पहुंची ओलंपिक की 'हैट्रिक गर्ल' वंदना कटारिया, बोली मेडल नहीं, दिल जीता, मां-बेटी के छलके आंसू

एलईडी बनाने वाली फैक्ट्री का समान तैयार करेंगे कैदी: जेलर पवन कोठारी के मुताबिक जेल की कार्यशाला में तैयार होने वाले फर्नीचर की बाजार में खूब डिमांड है. जेलर कोठारी के मुताबिक उत्तराखंड की बड़ी एलईडी फैक्ट्री के संचालक राजवीर सिंह ने जेल में इलेक्ट्रिशियन का कार्य सीखने वाले कैदियों को एलईडी बनाने का निशुल्क प्रशिक्षण दिया है. साथ ही उनके द्वारा जॉब वर्क भी तैयार किया जा रहा है.

दीपावली के अवसर पर रोशनी करने वाली लड़ियों और झालर जैसे तमाम इलेक्ट्रिक आइटम इसी कंपनी द्वारा जेल कैदियों से तैयार कराये जाएंगे. जिसके बाद उन्हें बाजार में उतारा जाएगा. इससे न सिर्फ कारागार विभाग का राजस्व बढ़ेगा. बल्कि जेल में इस तरह का कारीगरी सीखने वाले कैदियों को भी सीखने को कुछ नया मिलेगा. यहां से काम सीखकर जब वे बाहर जाएंगे तो वे अपना काम शुरू कर परिवार पालन पोषण कर सकते हैं.

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कैदियों के परिवारों को आर्थिक मदद: वहीं, देहरादून सुद्धोवाला जेल सुपरिटेंडेंट दधिराम का मानना है कि कोई भी कैदी जब जेल में सजा काटने आता है तो उसे एक न एक दिन समाज की मुख्यधारा में जुड़ना ही होता है. ऐसे में अगर कैदी सजा के दौरान सकारात्मक सुधार लाते हुए स्किल डेवलप किया जाता है तो ये फायदेमंद होता है. ऐसा करने से उनका पुनर्वास हो सकता है.

जेल सुपरिटेंडेंट दधिराम के अनुसार कारागार कार्यशाला में अलग-अलग व्यवसायिक कार्यों से न सिर्फ जेल प्रशासन का राजस्व बढ़ता है, बल्कि उस राजस्व का एक हिस्सा कैदियों के परिवार को भी आर्थिक रूप से मदद पहुंचाने में सहायक होता है .

पढ़ें- पिता की याद में भावुक हुई ओलंपियन वंदना कटारिया, कहा- हिम्मत-हौसला देने वाला चला गया

कैदी टेलरिंग कारीगरी सीखने के इच्छुक: जेल की टेलरिंग कार्यशाला में पिछले 8 सालों से कैदियों को सरकारी पुलिस की वर्दी से लेकर अलग-अलग तरह के कपड़े सिलने का कारीगरी सिखाई जाती है. टेलरिंग सिखाने वाले मास्टर राजेंद्र सिंह 2013 से एक हत्या के मामले में सजा काट रहे हैं.

राजेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके द्वारा अब तक दर्जनों कैदियों को कपड़े सिलने का काम सिखाया जा चुका है. मास्टर राजेंद्र के मुताबिक जेल में आने वाले 20 से 30% कैदी टेलरिंग सीखने की इच्छा जताते हैं.

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वहीं, लेडीज टेलरिंग के मास्टर वीर सिंह भी 2013 से हत्या के आरोप में सजा काट रहे हैं. वीर सिंह नेगी की मानें तो उन्होंने भी कई कैदियों को लेडीज कपड़े सिलाई का काम सिखाया है. सजा काटने के बाद कई ऐसे कैदियों के बारे में भी जानकारी मिली है जिन्होंने बाहर जाकर टेलरिंग का काम शुरू कर अपने जीवन को नई दिशा दी है.

पढ़ें- देवस्थानम बोर्ड: 17 अगस्त से बड़ा आंदोलन, एक साल पुराने आदेश का जिन्न आया बोतल से बाहर

IMA की शोभा बढ़ाते हैं सुद्धोवाला जेल में तैयार उच्च क्वालिटी के गमले: देहरादून सुद्धोवाला जेल का एक सेक्शन उच्च क्वालिटी के गमले निर्माण करता है. जिनकी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं सहित बाजार में काफी डिमांड है. कैदियों द्वारा तैयार होने वाले गमलों की अच्छी क्वालिटी होने के कारण जेल प्रशासन को भारतीय सैन्य अकादमी IMA से एक बड़ा टेंडर गमला सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट के रूप में मिला. अब सैकड़ों गमले आईएमए की शोभा बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं जेल प्रशासन को अन्य सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों से भी बड़ी संख्या में आर्डर मिल रहे हैं.

पढ़ें- किन्नौर से हरिद्वार आ रही बस पर गिरा पहाड़, दो की मौत, 10 सुरक्षित बचाए गए

जेल में तैयार कालीन-कॉरपेट की अच्छी डिमांड: सुद्धोवाला जेल में काफी समय एक विशेष कार्यशाला में रेशम व कपास से हर तरह की कालीन-कॉरपेट (दरियां) बनाने काम भी शानदार तरीके से चल रहा है. जेल की इस कार्यशाला में तैयार हर साइज की कालीन- दरियों की बाजार में काफी डिमांड है.

एक समय में इस कार्यशाला में 15 कारीगर कालीन-कारपेट बनाने का कार्य करते हैं. कारपेट कार्यशाला के मास्टर राजकुमार 2010 हत्या के आरोप में सजा काट रहे हैं. राजकुमार के मुताबिक उनके द्वारा अनगिनत कैदियों को अब तक कारपेट कालीन बनाने का कार्य सिखाया जा चुका है. उन्होंने बताया यहां से निकल कर कई कैदियों ने इस कार्य को स्वरोजगार के रूप में अपनाया है.

Last Updated : Aug 11, 2021, 10:56 PM IST
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