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माइनॉरिटी कैटेगरी के नाम पर 'खेल' कर रहे नामी प्राइवेट स्कूल!, लटकी जांच की 'तलवार'

उत्तराखंड के कई नामी प्राइवेट स्कूल अल्पसंख्यक कैटेगरी में शामिल हैं. मगर इन स्कूलों में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों की संख्या ना के बराबर हैं. जिसके बाद कैटेगरी की मान्यता को लेकर सवाल उठने लगे हैं. इन स्कूलों में राज्य के विधायक, मंत्री और अधिकारियों के बच्चे तक पढ़ते हैं. इसके बाद भी ये नामी प्राइवेट स्कूल अल्पसंख्यक कैटेगरी के नाम पर छूट लेते हैं.

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अल्पसंख्यक कैटेगरी में उत्तराखंड के प्राइवेट स्कूल
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Published : Apr 16, 2023, 5:30 PM IST

देहरादून: प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को रोकने में सरकारी सिस्टम बौना साबित हो रहा है. अभिभावकों की शिकायतों के बावजूद इन पर नकेल ना कस पाना इसी की ओर इशारा कर रहा है. ताजा मामला अल्पसंख्यक कैटेगरी में मान्यता लेने वाले उन नामी प्राइवेट स्कूलों का है, जिन्होंने सरकारी नियमों से छूट लेकर अल्पसंख्यक कैटेगरी में स्कूल तो संचालित कर लिए लेकिन अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़े बच्चों का दाखिला ही यहां नाम मात्र हो पाया है. अब सवाल यह है कि जब अल्पसंख्यक वर्ग के गरीब बच्चों का यहां दाखिला ही नहीं हो रहा तो इस कैटेगरी में इन स्कूलों को क्यों मान्यता दी गई है.

कभी फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी तो कभी किताबों और यूनिफार्म बदल कर अभिभावकों की जेब खाली करने वाले प्राइवेट स्कूल हर साल की तरह इस बार भी नया सेशन शुरू होने से पहले खूब चर्चाओं में रहे हैं. कमाल की बात यह है कि बड़े-बड़े दावे करने वाला सरकार और शिक्षा विभाग भी इस स्थिति पर असहाय सा दिख रहा है. इन हालातों के बीच अब प्राइवेट स्कूलों का एक ऐसा मामला सामने आया है जो अपने आप में हैरान करने वाला है. आपको जानकर हैरानी होगी कि देहरादून समेत प्रदेश भर में ऐसे सैकड़ों नामी स्कूल है जिन्हें अल्पसंख्यक कैटेगरी में मान्यता लेकर संचालित किया जा रहा है.

पढे़ं- पढ़ने को किताब नहीं जीतेंगे सारा जहां! उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में छात्रों को बुक का इंतजार

इन प्राइवेट स्कूलों में अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों की संख्या नाम मात्र हैं. यह अधिकतर ऐसे बच्चे पढ़ रहे हैं जो इन स्कूलों की मोटी फीस दे पाने में सक्षम हैं. लिहाजा सवाल उठता है कि जब सामान्य वर्ग के ही अधिकतर बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाया जाना है तो इन्हें अल्पसंख्यक कैटेगरी में क्यों मान्यता दी गई है. सबसे पहले उत्तराखंड में अल्पसंख्यक कैटेगरी के स्कूलों की स्थिति देखिये

अल्पसंख्यक कैटेगरी के स्कूलों की स्थिति

  • उत्तराखंड में कुल 5225 प्राइवेट स्कूल संचालित किए जा रहे हैं.
  • इनमें 286 प्राइवेट स्कूल माइनॉरिटी कैटेगरी में रजिस्टर्ड हैं.
  • माइनॉरिटी कैटेगरी के सबसे ज्यादा स्कूल देहरादून में हैं.
  • देहरादून में कुल 1023 प्राइवेट स्कूल हैं.
  • जिनमें माइनॉरिटी कैटेगरी के 80 स्कूल हैं.
  • इसके बाद हरिद्वार में 987 प्राइवेट स्कूल है.
  • जिसमें 75 स्कूल माइनॉरिटी कैटेगरी के हैं.
  • उधम सिंह नगर में 914 प्राइवेट स्कूल हैं.
  • इसमें 59 स्कूलों ने माइनॉरिटी कैटेगरी में मान्यता ली है.
  • चौथा नंबर नैनीताल जिले का है, यहां कुल 507 प्राइवेट स्कूल हैं.
  • जिसमें 36 स्कूल माइनॉरिटी कैटेगरी में संचालित हो रहे हैं.

माइनॉरिटी कैटेगरी ने मान्यता वाले स्कूलों की संख्या के बाद अब आप उन नामी स्कूलों के नाम भी जान लीजिये जो इस वर्ग में संचालित किए जा रहे हैं. दरअसल, इसमें सेंट जोसेफ स्कूल, दून इंटरनेशनल स्कूल, सेंट थॉमस कॉलेज, कान्वेंट ऑफ़ जीसस मैरी स्कूल, ग्रेस अकैडमी, द एशियन स्कूल, सेंट जॉर्ज स्कूल, वुडस्टॉक स्कूल, सेंट जूडस स्कूल, हिल्टन स्कूल, हिल व्यू स्कूल, सेंट पैट्रिक अकैडमी और सेंट मैरी स्कूल जैसे नामी प्राइवेट स्कूलों के नाम शामिल हैं. बड़ी बात यह है कि इनमें कई स्कूलों में तो राज्य के विधायक, मंत्री और अधिकारियों के बच्चे तक पढ़ते हैं. लिहाजा, इन पर कार्रवाई कैसे होगी यह एक बड़ा सवाल है?

पढे़ं- उत्तराखंड के इन छात्रों की राइटिंग देखेंगे तो कहेंगे वाह!, अब इनकी कलम से ही निकलेंगे सरकारी संदेश

हालांकि, इस बार मामले में मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार ने सख्त रुख अपनाया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि किसी भी प्राइवेट स्कूल को जो नियमों के खिलाफ कार्य कर रहे हैं उसे बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा ऐसे स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. बता दें अल्पसंख्यक कैटेगरी में स्कूलों को संचालित करके स्कूल प्रबंधकों को सरकार के विभिन्न नियमों से छूट मिल जाती है, अब जानिए वह कौन से नियम हैं, जिससे राहत मिलती है.

  • अल्पसंख्यक कैटेगरी के विद्यालयों को शिक्षा के अधिकार के तहत 25% गरीब बच्चों के एडमिशन से मिलती है छूट.
  • स्कूलों में शिक्षक की नियुक्ति को लेकर सरकार के नियम भी इन पर लागू नहीं होते.
  • स्टाफ के चयन के दौरान 50% से ज्यादा अल्पसंख्यक वर्ग को रोजगार देने की बाध्यता है.
  • अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के हितों को देखते हुए ऐसे विद्यालयों को विशेष कैटेगरी देने का प्रावधान है.
  • अल्पसंख्यक समाज के गरीब बच्चों को शिक्षा में फायदा देने का होता है मकसद

बड़ी बात यह है कि गरीब बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को लेकर 25% सीट आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण नियम भी इन स्कूलों पर लागू नहीं होते. इस सबके बावजूद ना तो यह अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को ये स्कूल लाभ देते नजर आते हैं, न ही सरकारी नियमों की बाध्यता में खड़े दिखाई देते हैं. हैरत की बात यह है कि कुछ विद्यालयों में छात्रों की संख्या 1000 से ज्यादा है. जिसमें अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों की संख्या दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पा रहा है.

पढे़ं- 'वाटर टावर' के करीब रहकर भी प्यासा उत्तराखंड! देशभर में गहरा रहा पेयजल संकट

हालांकि अब इस को लेकर शिक्षा विभाग की तरफ से जांच शुरू कर दी गई है. इन सभी स्कूलों से कुल छात्रों की संख्या के साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों की संख्या की डिटेल मिल जा रही है. साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग के तहत दूसरे जिन नियमों का पालन करना होता है उसको लेकर भी जानकारियां मांगी गई है. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि शिक्षा विभाग इन प्राइवेट स्कूलों को नियमों के दायरे में लाने कि अपनी इस कोशिश को अंजाम तक पहुंचा पाएगा. ऐसा हुआ तो भविष्य में कई विद्यालयों को अपने अल्पसंख्यक कैटेगरी के वर्ग से हाथ धोना पड़ सकता है.

देहरादून: प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को रोकने में सरकारी सिस्टम बौना साबित हो रहा है. अभिभावकों की शिकायतों के बावजूद इन पर नकेल ना कस पाना इसी की ओर इशारा कर रहा है. ताजा मामला अल्पसंख्यक कैटेगरी में मान्यता लेने वाले उन नामी प्राइवेट स्कूलों का है, जिन्होंने सरकारी नियमों से छूट लेकर अल्पसंख्यक कैटेगरी में स्कूल तो संचालित कर लिए लेकिन अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़े बच्चों का दाखिला ही यहां नाम मात्र हो पाया है. अब सवाल यह है कि जब अल्पसंख्यक वर्ग के गरीब बच्चों का यहां दाखिला ही नहीं हो रहा तो इस कैटेगरी में इन स्कूलों को क्यों मान्यता दी गई है.

कभी फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी तो कभी किताबों और यूनिफार्म बदल कर अभिभावकों की जेब खाली करने वाले प्राइवेट स्कूल हर साल की तरह इस बार भी नया सेशन शुरू होने से पहले खूब चर्चाओं में रहे हैं. कमाल की बात यह है कि बड़े-बड़े दावे करने वाला सरकार और शिक्षा विभाग भी इस स्थिति पर असहाय सा दिख रहा है. इन हालातों के बीच अब प्राइवेट स्कूलों का एक ऐसा मामला सामने आया है जो अपने आप में हैरान करने वाला है. आपको जानकर हैरानी होगी कि देहरादून समेत प्रदेश भर में ऐसे सैकड़ों नामी स्कूल है जिन्हें अल्पसंख्यक कैटेगरी में मान्यता लेकर संचालित किया जा रहा है.

पढे़ं- पढ़ने को किताब नहीं जीतेंगे सारा जहां! उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में छात्रों को बुक का इंतजार

इन प्राइवेट स्कूलों में अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों की संख्या नाम मात्र हैं. यह अधिकतर ऐसे बच्चे पढ़ रहे हैं जो इन स्कूलों की मोटी फीस दे पाने में सक्षम हैं. लिहाजा सवाल उठता है कि जब सामान्य वर्ग के ही अधिकतर बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाया जाना है तो इन्हें अल्पसंख्यक कैटेगरी में क्यों मान्यता दी गई है. सबसे पहले उत्तराखंड में अल्पसंख्यक कैटेगरी के स्कूलों की स्थिति देखिये

अल्पसंख्यक कैटेगरी के स्कूलों की स्थिति

  • उत्तराखंड में कुल 5225 प्राइवेट स्कूल संचालित किए जा रहे हैं.
  • इनमें 286 प्राइवेट स्कूल माइनॉरिटी कैटेगरी में रजिस्टर्ड हैं.
  • माइनॉरिटी कैटेगरी के सबसे ज्यादा स्कूल देहरादून में हैं.
  • देहरादून में कुल 1023 प्राइवेट स्कूल हैं.
  • जिनमें माइनॉरिटी कैटेगरी के 80 स्कूल हैं.
  • इसके बाद हरिद्वार में 987 प्राइवेट स्कूल है.
  • जिसमें 75 स्कूल माइनॉरिटी कैटेगरी के हैं.
  • उधम सिंह नगर में 914 प्राइवेट स्कूल हैं.
  • इसमें 59 स्कूलों ने माइनॉरिटी कैटेगरी में मान्यता ली है.
  • चौथा नंबर नैनीताल जिले का है, यहां कुल 507 प्राइवेट स्कूल हैं.
  • जिसमें 36 स्कूल माइनॉरिटी कैटेगरी में संचालित हो रहे हैं.

माइनॉरिटी कैटेगरी ने मान्यता वाले स्कूलों की संख्या के बाद अब आप उन नामी स्कूलों के नाम भी जान लीजिये जो इस वर्ग में संचालित किए जा रहे हैं. दरअसल, इसमें सेंट जोसेफ स्कूल, दून इंटरनेशनल स्कूल, सेंट थॉमस कॉलेज, कान्वेंट ऑफ़ जीसस मैरी स्कूल, ग्रेस अकैडमी, द एशियन स्कूल, सेंट जॉर्ज स्कूल, वुडस्टॉक स्कूल, सेंट जूडस स्कूल, हिल्टन स्कूल, हिल व्यू स्कूल, सेंट पैट्रिक अकैडमी और सेंट मैरी स्कूल जैसे नामी प्राइवेट स्कूलों के नाम शामिल हैं. बड़ी बात यह है कि इनमें कई स्कूलों में तो राज्य के विधायक, मंत्री और अधिकारियों के बच्चे तक पढ़ते हैं. लिहाजा, इन पर कार्रवाई कैसे होगी यह एक बड़ा सवाल है?

पढे़ं- उत्तराखंड के इन छात्रों की राइटिंग देखेंगे तो कहेंगे वाह!, अब इनकी कलम से ही निकलेंगे सरकारी संदेश

हालांकि, इस बार मामले में मुख्य शिक्षा अधिकारी प्रदीप कुमार ने सख्त रुख अपनाया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि किसी भी प्राइवेट स्कूल को जो नियमों के खिलाफ कार्य कर रहे हैं उसे बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने कहा ऐसे स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. बता दें अल्पसंख्यक कैटेगरी में स्कूलों को संचालित करके स्कूल प्रबंधकों को सरकार के विभिन्न नियमों से छूट मिल जाती है, अब जानिए वह कौन से नियम हैं, जिससे राहत मिलती है.

  • अल्पसंख्यक कैटेगरी के विद्यालयों को शिक्षा के अधिकार के तहत 25% गरीब बच्चों के एडमिशन से मिलती है छूट.
  • स्कूलों में शिक्षक की नियुक्ति को लेकर सरकार के नियम भी इन पर लागू नहीं होते.
  • स्टाफ के चयन के दौरान 50% से ज्यादा अल्पसंख्यक वर्ग को रोजगार देने की बाध्यता है.
  • अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के हितों को देखते हुए ऐसे विद्यालयों को विशेष कैटेगरी देने का प्रावधान है.
  • अल्पसंख्यक समाज के गरीब बच्चों को शिक्षा में फायदा देने का होता है मकसद

बड़ी बात यह है कि गरीब बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को लेकर 25% सीट आरक्षण जैसे महत्वपूर्ण नियम भी इन स्कूलों पर लागू नहीं होते. इस सबके बावजूद ना तो यह अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को ये स्कूल लाभ देते नजर आते हैं, न ही सरकारी नियमों की बाध्यता में खड़े दिखाई देते हैं. हैरत की बात यह है कि कुछ विद्यालयों में छात्रों की संख्या 1000 से ज्यादा है. जिसमें अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों की संख्या दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पा रहा है.

पढे़ं- 'वाटर टावर' के करीब रहकर भी प्यासा उत्तराखंड! देशभर में गहरा रहा पेयजल संकट

हालांकि अब इस को लेकर शिक्षा विभाग की तरफ से जांच शुरू कर दी गई है. इन सभी स्कूलों से कुल छात्रों की संख्या के साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों की संख्या की डिटेल मिल जा रही है. साथ ही अल्पसंख्यक वर्ग के तहत दूसरे जिन नियमों का पालन करना होता है उसको लेकर भी जानकारियां मांगी गई है. अब उम्मीद की जानी चाहिए कि शिक्षा विभाग इन प्राइवेट स्कूलों को नियमों के दायरे में लाने कि अपनी इस कोशिश को अंजाम तक पहुंचा पाएगा. ऐसा हुआ तो भविष्य में कई विद्यालयों को अपने अल्पसंख्यक कैटेगरी के वर्ग से हाथ धोना पड़ सकता है.

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