देहरादून: उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी इन दिनों कुछ अजीब कशमकश में है. प्रदेश में ये पहली बार होगा जब भाजपा नेताओं के इतने ज्यादा दबाव में दिखाई दे रही है. खास बात यह है कि इस दबाव के बीच कांग्रेस से आए हरक सिंह रावत और उमेश शर्मा काऊ का भाजपा हाईकमान द्वारा जल्द कद बढ़ाए जाने की भी खूब चर्चाएं चल रही हैं. यही चर्चा इन दिनों भाजपा नेताओं में कानाफूसी और हलचल की वजह बन गई है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या बागियों के कारण भाजपा अपने पुराने नेताओं की रुसवाई का जोखिम मोल लेने को तैयार है?
भारतीय जनता पार्टी अनुशासन को हमेशा ही पहले पायदान पर रखने की बात कहती रही है. शायद यही कारण है कि पार्टी के अंदर अनुशासनात्मक सख्ती के कारण पार्टी के नेता सार्वजनिक मंचों पर पार्टी लाइन पर ही बोलते दिखाई देते हैं. यह पहली मर्तबा है जब भाजपा के अंदर जबरदस्त हलचल के साथ दबाव भी दिख रहा है. दरअसल, चुनाव नजदीक हैं और चुनाव से पहले पार्टी के कई नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए पार्टी पर दबाव बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है. स्थिति यह है कि भारतीय जनता पार्टी अब ऐसे नेताओं के कद बढ़ाए जाने और उन्हें पार्टी और सरकार में बड़े पद देने तक से भी गुरेज नहीं कर रही है.
बागियों की प्रेशर पॉलिटिक्स में अपनों की रुसवाई मोल लेगी BJP? हाल ही में हरक सिंह रावत और उमेश शर्मा काऊ का दिल्ली जाकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलना और फिर इन दोनों ही नेताओं को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने की चर्चाएं होना कुछ इसी दिशा में सबका ध्यान आकर्षित कर रहा है. सवाल यह उठ रहा है कि दबाव की बदौलत पार्टी में बड़े पद या महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पाने से पार्टी के पुराने नेताओं की नाराजगी क्या पार्टी मोल ले सकती है. इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता शादाब शम्स कहते हैं कि पार्टी में काबिलियत की बदौलत ही पद दिए जाते हैं और किसी का कोई दबाव पार्टी में नहीं है.
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उत्तराखंड भाजपा चुनाव से पहले क्यों बागियों के दबाव में है यह जानना भी बेहद जरूरी है. क्या वाकई बिना बागियों के भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पाएगी यह सवाल इतना ही लाजिमी है, तो जानिए वह कौन से नेता हैं जिनका भाजपा पर जबरदस्त दबाव है. भाजपा के लिए यह मुश्किल घड़ी क्यों है.
बागियों से क्यों बढ़ी भाजपा की चिंता
बागियों की प्रेशर पॉलिटिक्स में अपनों की रुसवाई मोल लेगी भाजपा?
हरक सिंह रावत हैं मंझे हुए खिलाड़ी : हरक सिंह रावत 2016 में कांग्रेस छोड़ते वक्त बागियों का नेतृत्व करते हुए दिखाई दिए थे. लिहाजा इस बार भी भारतीय जनता पार्टी को आशंका है कि यदि हरक सिंह रावत पार्टी छोड़ते हैं तो उनके साथ तीन से चार विधायक कांग्रेस में वापस जा सकते हैं. हरक सिंह रावत के इतिहास की बात करें तो हरक सिंह रावत ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत भाजपा से ही की थी. पौड़ी के रहने वाले हरक सिंह रावत ने श्रीनगर में एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी से सैन्य विज्ञान में डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की डिग्री ली, हालांकि विश्वविद्यालय से ही छात्र राजनीति में वे जुट गए थे.80 के दशक में लड़ा पहला चुनाव: जिसके बाद वे विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के तौर पर सरकारी नौकरी करने लगे. लेकिन 80 के दशक में ही उन्होंने भाजपा से पहली बार चुनाव लड़ा और भी हार गए, लेकिन जब 1991 में वह दोबारा इसी सीट पर चुनाव लड़े तो उन्होंने पहली बार जीत हासिल कर विधानसभा का रास्ता अख्तियार किया.
सभी दलों में रह चुके हैं हरक: खास बात यह है कि उस समय वह उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मंत्री भी कल्याण सिंह सरकार में बने. उसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया. लेकिन वह ज्यादा समय तक बसपा में नहीं रह पाए. उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली. राज्य स्थापना के बाद 2002 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते. इस दौरान वे तिवारी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए. 2007 में वह फिर लैंसडाउन विधानसभा सीट से जीते और उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के तौर पर कांग्रेस का नेतृत्व किया.
साल 2012 में उन्होंने फिर रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2016 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. इसके बाद 2017 में उन्होंने कोटद्वार सीट पर चुनाव जीतकर भाजपा के विधायक के तौर पर विधानसभा में दस्तक दी.
विवादों से रहा नाता: हरक सिंह रावत के साथ कई विवाद रहे. साल 2003 में जैनी प्रकरण में महिला के शोषण के आरोप के बाद उनके खिलाफ सीबीआई जांच हुई. उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा. बाद में वे इन आरोपों से पूरी तरह दोषमुक्त हुए. हरक सिंह रावत 2016 में बागियों का नेतृत्व करने को लेकर भी विवादों में रहे. मंत्री रहते हुए कुछ लोगों को फायदा देने के लिए भी हरक सिंह रावत का नाम चर्चाओं में रहा. उधर कर्मकार कल्याण बोर्ड में कथित घोटालों को लेकर भी त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने उन पर दबाव बनाए रखा था.
असरदार नेता हैं हरक: हरक सिंह रावत एक ऐसे नेता हैं जिन्हें गढ़वाल में हर विधानसभा सीट पर चुनाव जीतने में सक्षम माना जाता रहा है. खास तौर पर गढ़वाल की पहाड़ी सीटों पर. माना जाता रहा है कि हरक सिंह रावत कई विधायकों को पार्टी छोड़ने के लिए मनाने में कामयाब हो सकते हैं. यानी हरक सिंह रावत गोलबंदी करने में भी माहिर माने जाते हैं. इस दौरान प्रदीप बत्रा, प्रणव सिंह चैंपियन, उमेश शर्मा काऊ, केदार सिंह रावत जैसे नेता भी उनके संपर्क में रहे हैं.
उधर हरक सिंह रावत राज्य में पहाड़ की करीब 15 सीटों पर मजबूत पकड़ रखते हैं. यही वह सब बात हैं जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी उनके भारी दबाव को देखते हुए उन्हें मनाने के लिए मजबूर दिख रही है. कहा जा रहा है कि उन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारी इसी दबाव के कारण ही दी जा सकती है.
उमेश शर्मा काऊ भी रखते हैं जीत की गारंटी: विधायक उमेश शर्मा काऊ इतने बड़े खिलाड़ी नहीं हैं. विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री रहते हुए पहली बार उन्हें विधायक के तौर पर मौका दिया था, हालांकि उन्होंने इस मौके को भुनाया और त्रिवेंद्र सिंह रावत को हराकर विधानसभा सीट पर मजबूत पकड़ हासिल की. उमेश शर्मा काऊ 2017 में रायपुर विधानसभा सीट से प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले विधायक हैं. उनकी अपनी सीट की जीत की गारंटी भी है. यानी उमेश शर्मा काऊ जिस पाले में हैं वहां एक विधानसभा सीट जीतने की गारंटी तय मानी जाती है.
जाहिर है कि राजनीतिक दल फिलहाल एक-एक सीट पर जीत के लिए प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में उनको साथ लेने की भी सभी की कोशिश है. उमेश शर्मा काऊ इससे पहले नगर निगम में डिप्टी मेयर के पद पर रहे हैं.
भाजपा के अंदर चल रहे सभी समीकरणों पर कांग्रेस भी नजर बनाए हुए है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बागियों के द्वारा उठाए जाने वाले कदम का सीधा असर कांग्रेस पर भी पड़ेगा. लिहाजा कांग्रेस इस पूरे समीकरण को बड़े नापतोल कर समझ भी रही है. इसी लिहाज से बयान भी दिए जा रहे हैं.
कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट कहते हैं कि भाजपा के अंदर जबरदस्त भगदड़ मची हुई है. यशपाल आर्य के कांग्रेस में आने के बाद यह भगदड़ और भी ज्यादा बढ़ी है. लिहाजा भारतीय जनता पार्टी में पनप रहे असंतोष के कारण पार्टी के नेता धीरे-धीरे उनसे छिटक रहे हैं.