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चुनावी साल में त्रिवेंद्र की दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल, जाने पक्ष और विपक्ष के लिए क्या हैं मायने - Trivendra government distributed 17 responsibilities in Uttarakhand

आगामी 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा भी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है. इसी बीच हाल ही में त्रिवेंद्र सरकार ने 17 नेताओं को दायित्व सौंपे हैं. जिसके बाद दायित्व सौंपने की टाइमिंग पर सवाल खड़े उठने शुरू हो गया हैं.

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चुनावी साल में त्रिवेंद्र की दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल
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Published : Mar 2, 2021, 5:28 PM IST

Updated : Mar 2, 2021, 10:29 PM IST

देहरादून: आगामी 18 मार्च को त्रिवेंद्र सरकार अपने कार्यकाल के 4 साल पूरे करने जा रही है. जिसे लेकर सरकार 'बातें कम, काम ज्यादा' कार्यक्रम करने जा रही है. इस कार्यक्रम को लेकर तैयारियां जोरों-शोरों पर हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार लगातार प्रदेश में दायित्वों को भी बांट रही है. जिससे की सरकार की जनता के बीच पहुंच बढ़ सके. इन 4 सालों के भीतर उत्तराखंड राज्य सरकार ने करीब 105 लोगों को दायित्व सौंपे हैं. हाल ही में 17 नेताओं को भी दायित्व सौंपे गये हैं. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर राज्य सरकार इस चुनावी वर्ष में नेताओं को दायित्व क्यों सौंप रही है?

चुनावी साल में त्रिवेंद्र की दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल

सत्ता पर काबिज होने के बाद सरकारें अपने संगठन के नेताओं को दायित्व सौंपती है. यह वही नेता होते हैं जो सरकार बनाने में एक अहम भूमिका निभाते हैं. उन्हें यह उम्मीद रहती है कि जब उनकी सरकार बनेगी, तो उस सरकार में इन्हें अहम जिम्मेदारी भी दी जाएगी. इसी क्रम में बात अगर उत्तराखंड की करें तो उत्तराखंड में 4 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इन चारों विधानसभा चुनाव में एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी सत्ता पर काबिज रही है. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा भारी बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई थी. सत्ता पर काबिज होने के करीब पौने दो साल बाद नेताओं को दायित्व सौंपने की पहली लिस्ट जारी की थी.

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दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल

पढ़ें- चुनाव की घोषणा से ठीक पहले ममता ने बढ़ाया श्रमिकों का वेतन

आगामी 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा भी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है. इसी बीच हाल ही में त्रिवेंद्र सरकार ने 17 नेताओं को दायित्व सौंपे हैं. जिसके बाद दायित्व सौंपने की टाइमिंग पर सवाल खड़े उठने शुरू हो गया हैं. हाल ही में सौंपे गए दायित्व से विवाद इस वजह से उत्पन्न हो रहा है क्योंकि, राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति कुछ खास ठीक नहीं है, बावजूद इसके राज्य सरकार लोगों को दायित्व सौंपकर जनता की गाढ़ी कमाई अपने नेताओं पर लुटा रही है. यही नहीं, इस चुनावी वर्ष में नेताओ को दायित्व सौंपा जाने के कई और मायने भी निकाले जा रहे हैं.

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दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल

पढ़ें- पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान, देखें पूरा ब्योरा

अपने चहेतों को अर्जेस्ट करने की है कोशिश

राज्य में चल रहे दायित्व के दंगल के बार में वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि चुनावी साल में त्रिवेंद्र सरकार ने न सिर्फ दायित्व बांटे हैं, बल्कि सीएम भी आश्चर्यजनक तरीके से सक्रिय हो गए हैं. जिसे देखकर यही लग रहा है कि पिछले साल आए सर्वे से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कहीं न कहीं परेशान हैं. वे एक्टिव होकर अपनी इस छवि को बदलना चाहते हैं. इसके साथ ही पार्टी के भीतर भी यह स्थिति बन रही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में चुनाव नहीं जीता जा सकता. पार्टी के भीतर कई नेता नाराज नेता हैं, जिन्हें मनाने की वजह भी दायित्व देना हो सकता है. यही नहीं, अगर आगामी विधानसभा चुनावों से पहले नेतृत्व परिवर्तन हो भी जाता है तो उससे पहले ही मुख्यमंत्री अपने चहेतों को अर्जेस्ट करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.

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दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल

पढ़ें- क्या चुनाव तिथियां मोदी, शाह के सुझावों के अनुसार घोषित की गईं? : ममता

कुर्सी बचाने के लिए सौंपे जा रहे हैं दायित्व

जय सिंह रावत कहते हैं कि सरकार जितने लोगों दायित्व सौंप रही है उतना ही खराब असर संगठन पर पड़ रहा है. जिन्हें दायित्व सौंपा जा रहा है उसे कुछ खास फायदा भी नहीं होगा. जनता इस बात पर भी ध्यान देती है कि कल तक जो सड़कों पर ऐसे ही घूम रहा था आज वह लाल बत्ती में घूम रहा है. ऐसे में जलन की भावना भी लोगों में पनपती है. जिसके चलते इसका असर उल्टा पड़ता है. ऐसे में इस चुनावी वर्ष में दायित्व सौंपने का मतलब यही दिखाई दे रहा है कि चुनाव जीतने के लिए कम बल्कि अपनी कुर्सी बचाने के लिए दायित्व सौंपा जा रहा है ताकि नेताओं की नाराजगी को कम किया जा सके.

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दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल

पढ़ें- हरिद्वार: माघ पूर्णिमा पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, जानिए क्या है महत्व


नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट से मुख्यमंत्री हुए सक्रिय

कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरीमा दसौनी ने बताया कि इन दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ओवर स्मार्टनेस दिखाते हुए काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं. पिछले 4 सालों में मुख्यमंत्री हर क्षेत्र में नाकाम साबित हुए हैं. मौजूदा समय में नेताओं को दायित्व सौंपने और मुख्यमंत्री के सक्रिय होने की वजह, कहीं न कहीं नेतृत्व परिवर्तन की ही सुगबुगाहट है. इसके साथ ही भाजपा के भीतर गुटबाजी के सुर लगातार मुखर हो रहे हैं. जिसकी वजह से भी नेताओं को दायित्व बांट कर खुश किया जा रहा है.

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पढ़ें- बेटियों के नाम से जाने जाएंगे नैनीताल जिले के गांव, CM ने की योजना की शुरुआत

दायित्वधारियों के लिए तय किए गए कार्यक्रम

वहीं, इस मामले पर शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक कहते हैं कि सभी दायित्वधारियों के लिए कार्यक्रम तय किये गये हैं. जितने लोगों को भी दायित्व सौंपा गया है, उन सभी लोगों को विधानसभाओं में भेजा जाएगा. इसके साथ ही सभी दायित्वधारियों का हर विधानसभा में दो से तीन दिन का प्रवास कार्यक्रम तय किया गया है. जिससे वे सरकार और पार्टी की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का काम करेंगे. शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक कहते हैं कि चुनावी साल को देखते हुए राज्य सरकार पूरे एक्टिव मूड में है. वह दमखम से तैयारियों में जुटी हुई है ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या को बढ़ाया जा सके.

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दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल

प्रदेश में दायित्वों पर छिड़े दंगल की सबसे बड़ी वजह इसकी टाइमिंग को लेकर है, क्योंकि इस समय राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति कुछ खास ठीक नहीं है, प्रदेश कर्ज के बोझ तले दबा है, रही सही कसर कोरोना संक्रमण ने पूरी कर दी है. ऐसे हालातों के बावजूद राज्य सरकार दायित्व सौंपकर जनता की गाढ़ी कमाई अपने नेताओं पर लुटा रही है, जो कि कहीं से भी वाजिब नहीं है. यही कारण है कि विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने में लगा है.

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देहरादून: आगामी 18 मार्च को त्रिवेंद्र सरकार अपने कार्यकाल के 4 साल पूरे करने जा रही है. जिसे लेकर सरकार 'बातें कम, काम ज्यादा' कार्यक्रम करने जा रही है. इस कार्यक्रम को लेकर तैयारियां जोरों-शोरों पर हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार लगातार प्रदेश में दायित्वों को भी बांट रही है. जिससे की सरकार की जनता के बीच पहुंच बढ़ सके. इन 4 सालों के भीतर उत्तराखंड राज्य सरकार ने करीब 105 लोगों को दायित्व सौंपे हैं. हाल ही में 17 नेताओं को भी दायित्व सौंपे गये हैं. ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर राज्य सरकार इस चुनावी वर्ष में नेताओं को दायित्व क्यों सौंप रही है?

चुनावी साल में त्रिवेंद्र की दायित्व 'पॉलिटिक्स' पर दंगल

सत्ता पर काबिज होने के बाद सरकारें अपने संगठन के नेताओं को दायित्व सौंपती है. यह वही नेता होते हैं जो सरकार बनाने में एक अहम भूमिका निभाते हैं. उन्हें यह उम्मीद रहती है कि जब उनकी सरकार बनेगी, तो उस सरकार में इन्हें अहम जिम्मेदारी भी दी जाएगी. इसी क्रम में बात अगर उत्तराखंड की करें तो उत्तराखंड में 4 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. इन चारों विधानसभा चुनाव में एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी सत्ता पर काबिज रही है. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा भारी बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई थी. सत्ता पर काबिज होने के करीब पौने दो साल बाद नेताओं को दायित्व सौंपने की पहली लिस्ट जारी की थी.

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आगामी 2022 विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा भी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है. इसी बीच हाल ही में त्रिवेंद्र सरकार ने 17 नेताओं को दायित्व सौंपे हैं. जिसके बाद दायित्व सौंपने की टाइमिंग पर सवाल खड़े उठने शुरू हो गया हैं. हाल ही में सौंपे गए दायित्व से विवाद इस वजह से उत्पन्न हो रहा है क्योंकि, राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति कुछ खास ठीक नहीं है, बावजूद इसके राज्य सरकार लोगों को दायित्व सौंपकर जनता की गाढ़ी कमाई अपने नेताओं पर लुटा रही है. यही नहीं, इस चुनावी वर्ष में नेताओ को दायित्व सौंपा जाने के कई और मायने भी निकाले जा रहे हैं.

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अपने चहेतों को अर्जेस्ट करने की है कोशिश

राज्य में चल रहे दायित्व के दंगल के बार में वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि चुनावी साल में त्रिवेंद्र सरकार ने न सिर्फ दायित्व बांटे हैं, बल्कि सीएम भी आश्चर्यजनक तरीके से सक्रिय हो गए हैं. जिसे देखकर यही लग रहा है कि पिछले साल आए सर्वे से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कहीं न कहीं परेशान हैं. वे एक्टिव होकर अपनी इस छवि को बदलना चाहते हैं. इसके साथ ही पार्टी के भीतर भी यह स्थिति बन रही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में चुनाव नहीं जीता जा सकता. पार्टी के भीतर कई नेता नाराज नेता हैं, जिन्हें मनाने की वजह भी दायित्व देना हो सकता है. यही नहीं, अगर आगामी विधानसभा चुनावों से पहले नेतृत्व परिवर्तन हो भी जाता है तो उससे पहले ही मुख्यमंत्री अपने चहेतों को अर्जेस्ट करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.

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पढ़ें- क्या चुनाव तिथियां मोदी, शाह के सुझावों के अनुसार घोषित की गईं? : ममता

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जय सिंह रावत कहते हैं कि सरकार जितने लोगों दायित्व सौंप रही है उतना ही खराब असर संगठन पर पड़ रहा है. जिन्हें दायित्व सौंपा जा रहा है उसे कुछ खास फायदा भी नहीं होगा. जनता इस बात पर भी ध्यान देती है कि कल तक जो सड़कों पर ऐसे ही घूम रहा था आज वह लाल बत्ती में घूम रहा है. ऐसे में जलन की भावना भी लोगों में पनपती है. जिसके चलते इसका असर उल्टा पड़ता है. ऐसे में इस चुनावी वर्ष में दायित्व सौंपने का मतलब यही दिखाई दे रहा है कि चुनाव जीतने के लिए कम बल्कि अपनी कुर्सी बचाने के लिए दायित्व सौंपा जा रहा है ताकि नेताओं की नाराजगी को कम किया जा सके.

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पढ़ें- हरिद्वार: माघ पूर्णिमा पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, जानिए क्या है महत्व


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कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता गरीमा दसौनी ने बताया कि इन दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ओवर स्मार्टनेस दिखाते हुए काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं. पिछले 4 सालों में मुख्यमंत्री हर क्षेत्र में नाकाम साबित हुए हैं. मौजूदा समय में नेताओं को दायित्व सौंपने और मुख्यमंत्री के सक्रिय होने की वजह, कहीं न कहीं नेतृत्व परिवर्तन की ही सुगबुगाहट है. इसके साथ ही भाजपा के भीतर गुटबाजी के सुर लगातार मुखर हो रहे हैं. जिसकी वजह से भी नेताओं को दायित्व बांट कर खुश किया जा रहा है.

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पढ़ें- बेटियों के नाम से जाने जाएंगे नैनीताल जिले के गांव, CM ने की योजना की शुरुआत

दायित्वधारियों के लिए तय किए गए कार्यक्रम

वहीं, इस मामले पर शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक कहते हैं कि सभी दायित्वधारियों के लिए कार्यक्रम तय किये गये हैं. जितने लोगों को भी दायित्व सौंपा गया है, उन सभी लोगों को विधानसभाओं में भेजा जाएगा. इसके साथ ही सभी दायित्वधारियों का हर विधानसभा में दो से तीन दिन का प्रवास कार्यक्रम तय किया गया है. जिससे वे सरकार और पार्टी की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का काम करेंगे. शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक कहते हैं कि चुनावी साल को देखते हुए राज्य सरकार पूरे एक्टिव मूड में है. वह दमखम से तैयारियों में जुटी हुई है ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या को बढ़ाया जा सके.

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प्रदेश में दायित्वों पर छिड़े दंगल की सबसे बड़ी वजह इसकी टाइमिंग को लेकर है, क्योंकि इस समय राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति कुछ खास ठीक नहीं है, प्रदेश कर्ज के बोझ तले दबा है, रही सही कसर कोरोना संक्रमण ने पूरी कर दी है. ऐसे हालातों के बावजूद राज्य सरकार दायित्व सौंपकर जनता की गाढ़ी कमाई अपने नेताओं पर लुटा रही है, जो कि कहीं से भी वाजिब नहीं है. यही कारण है कि विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने में लगा है.

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Last Updated : Mar 2, 2021, 10:29 PM IST
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