देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आगामी बजट सत्र गैरसैंण मे कराने का फैसला लिया है. गैरसैंण के मुद्दे को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सेकने का काम करती है. दरअसल, राज्य में भाजपा सरकार को कांग्रेस गैरसैंण के सवाल पर भाजपा को घेरती रही है. लेकिन इस बार त्रिवेंद्र सरकार ने आगामी बजट सत्र को गैरसैंण में कराने के फैसले ने कांग्रेस के मुद्दे की धार कम करने का प्रयास किया है.
उत्तराखंड के स्थापना दिवस के तौर पर नौ नवंबर की तारीख इतिहास में दर्ज हैं. पृथक राज्य की मांग को लेकर कई वर्षों तक चले आंदोलन के बाद आखिरकार 9 नवंबर 2000 को गठन हुआ. जिससे प्रदेशवासियों की जन भावना जुड़ी हुई थी. प्रदेशवासियों को राज्य गठन के बाद से स्थाई राजधानी की दरकार है. अभी भी प्रदेश को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है.
राज्य गठन के बाद नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री बने थे. तत्कालीन सरकार ने राज्य का निर्माण कर दिया था परंतु राजधानी के मुद्दे पर गौण थी. सरकार बदली और एनडी तिवारी के नेतृत्व मे पहली निर्वाचित सरकार का गठन हुआ और दीक्षित के नेतृत्व मे राजधानी चयन आयोग का गठन किया और स्थायी राजधानी के चयन का मुद्दा सूबे में गरमाने लगा.
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2007 में राज्य मे नेतृत्व परिवर्तन हुआ और भाजपा के हाथ मे सत्ता आयी तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दीक्षित आयोग की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखकर मुददा को ठंडे बस्ते में डाल दिया. उसके बाद से लोग यह मानने लगे थे कि अब स्थायी राजधानी देहरादून ही रहेगी. इसी बीच 2012 मे विजय बहुगुणा के हाथ मे राज्य के सत्ता की चाबी आयी और उन्होंने अस्थायी राजधानी से बाहर गैरसैंण मे अपनी कैबिनेट बैठक की.
इसके साथ ही उन्होंने घोषणा की कि सरकार 2013 मे गैरसैंण मे विधान सभा और विधायक निवास बनाएगी. इसको बल देते हुए उन्होंने इसका भूमि पूजन भी किया और पहली सत्र टेंट मे आयोजित किया. इसके साथ लोगों की अभिलाषा दिनों-दिन बढ़ती गयी. इसी बीच राज्य में सत्ता का परिवर्तन हुआ और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत एक कदम आगे बढ़ाते हुए विधानसभा का सत्र आइटीआइ कॉलेज मे आयोजित की. तब भाजपा अपने विपक्षी नेता अजय भट्ट के नेतृत्व मे विरोध-प्रदर्शन किया और सरकार पर दबाब बनाने का भरपूर प्रयास किया की सरकार तत्काल प्रभाव से गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करें.
यहां तक कि सदन के अंदर हाथापायी सत्ता और विपक्ष के विधायकों के बीच देखने को मिली. सदस्यों ने विधानसभा में सत्ता पक्ष पर आरोप लगाया कि उतराखंड की पुलिस के जवानों ने उनके विशेषाधिकार का हनन किया. जिसके बाद अध्यक्ष ने सदन को आश्वस्त किया कि पुलिस के जवान नहीं बल्कि विधानसभा के मार्शल ने उत्तेजित विधायकों को शांत कराने का प्रयास किया था.
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जब वापस सत्ता भाजपा के हाथ में आयी तब भाजपा इस मुददे पर दोबारा गौण हो गई. इससे परेशान कांग्रेस ने सरकार पर दबाब बनाया कि सरकार गैरसैंण पर अपनी मंशा स्पष्ट करें. हालांकि सरकार केवल शीतकालीन सत्र कराकर अपने कार्य की इतिश्री किया करती थी, इस बार त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बजट सत्र का ऐलान करके राज्य आंदोलनकारियों को साधने की कोशिश कर रही है.
बजट सत्र से पहले राज्यपाल का अभिभाषण होता है जिसमे सत्ता पक्ष के एक साल पहले के कामों का विवरण रखा होता है और अगले एक साल के कार्यक्रम की रूपरेखा होती है. अब देखना यह होगा कि सरकार बजट सत्र कराकर गैरसैंण के लिए क्या सौगात देती है? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली विधान सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही सरकार पर नैतिक दबाब बढ गया है कि सरकार क्षेत्रीय दल को मुद्दा विहीन करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए. तत्पश्चात सरकार का यह निर्णय की बजट सत्र गैरसैण मे होगा, लोगों की उम्मीदों को बलवती कर रहा है