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पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट की आड़ में काट डाला कॉर्बेट का जंगल, चुप बैठी रही तत्कालीन सरकार - Forest Survey of India Department report

कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध गतिविधियों के मामले ने पूरे वन महकमे को हिलाकर रख दिया है. ताज्जुब की बात ये है कि पाखरो सफारी के नाम पर संरक्षित जंगल में ये खेल चलता रहा और विभाग से लेकर शासन और सरकार तक इसपर आंखें मूंदे रहे. उधर तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी इस खेल की जानकारी शासन को देते रहे, लेकिन बिना स्वीकृति के कामों को बेरोकटोक आगे बढ़ाया जाता रहा. सबसे बड़ी बात ये है कि ये सब प्रधानमंत्री की घोषणा और ड्रीम प्रोजेक्ट के नाम पर होता रहा. पेश है स्पेशल रिपोर्ट.

PM Modi dream project
पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट
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Published : Oct 12, 2022, 1:32 PM IST

Updated : Oct 12, 2022, 9:04 PM IST

देहरादून: मैन वर्सेस वाइल्ड के होस्ट बेयर ग्रिल की प्रधानमंत्री मोदी के साथ कॉर्बेट की तस्वीरें आज भी सभी के जेहन में हैं. ये मौका उत्तराखंड के लिए भी बेहद खास था, क्योंकि दो बड़ी हस्तियां राज्य के कॉर्बेट पार्क में पहुंची थीं. लेकिन इसी यात्रा के साथ कुछ ऐसी योजनाओं का ताना-बाना बुना गया जो न केवल जांच के दायरे में हैं, बल्कि इसकी जद में कई बड़े अधिकारी और नेता भी आ गए हैं. मामला पाखरो टाइगर सफारी प्रोजेक्ट का है, जिसपर गड़बड़ी को लेकर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है.

बिना स्वीकृति के आगे बढ़ाया काम?: दरअसल प्रधानमंत्री की 2019 में हुई इस एडवेन्चर यात्रा के बाद पाखरो टाइगर सफारी और बाड़ों के निर्माण पर काम शुरू हो गया. कहा गया कि इन दोनों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद घोषणा करते हुए इन पर तेजी से काम करने की इच्छा जाहिर की थी. जाहिर है इसके बाद राज्य सरकार भी इस काम को तेजी से आगे बढ़ाने लगी. लेकिन कुछ शिकायतों के बाद NTCA ने जब जांच की तो पूरे महकमे की कंपकंपी छूट गयी. दरअसल इसमें पाया गया कि बिना स्वीकृति के ही कॉर्बेट क्षेत्र में योजना के नाम पर काम को आगे बढ़ाया जा रहा था.

पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट की आड़ में काट डाला कॉर्बेट का जंगल.

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रहा मामला: फिर क्या था हाईकोर्ट में एक याचिका के बाद पूरे मामले की जांच होने लगी. इतना ही नहीं इसका संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने भी लिया और कोर्ट ने इस पर जांच करने तक के निर्देश दे दिए. हालांकि इतना कुछ होने के बाद भी तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत सभी रिपोर्टस को फर्जी बताते हुए इन कामों की स्वीकृति होने और प्रधानमंत्री द्वारा इनकी घोषणा किए जाने के बाद दोहरा रहे हैं.
ये भी पढ़ें: कैबिनेट की बैठक संपन्न, न्यायिक सेवा संसोधन नियमावली को मिली मंजूरी, नैनीताल में टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनेगा

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने किया बड़ा खेल: उत्तराखंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट बताये जा रहे टाइगर सफारी में बड़ा खेल किया था. दरअसल टाइगर सफारी बनाने के नाम पर 163 पेड़ काटने की इजाजत थी. लेकिन यहां 6093 हरे पेड़ काट डाले गए हैं. इस बात का खुलासा भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग यानी एफएसआई की सर्वे रिपोर्ट में हुआ है. हालांकि इस सर्वे रिपोर्ट पर उत्तराखंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट सवालिया निशान उठा रहा है.

163 की जगह का डाले 6 हजार से ज्यादा पेड़?: साल 2020 में कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के कालागढ़ वन प्रभाग की पाखरो रेंज में टाइगर सफारी बनाने का काम शुरू हुआ. टाइगर सफारी के निर्माण में 163 हरे पेड़ काटे जाने थे. लेकिन वहां पर 6 हजार से ज्यादा पेड़ काट दिए गए. एफएसआई ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में पाया है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में कालागढ़ वन प्रभाग की पाखरो रेंज में करीब 16.21 हेक्टेयर वन भूमि पर 6093 पेड़ों का सफाया कर दिया गया. एफएसआई ने जो सर्वे रिपोर्ट दी, उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी इस रिपोर्ट पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं. प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल ने कहा कि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया से हमने अनुरोध किया था कि वह सैटेलाइट इमेज और एफएसआई के पास जो टूल और टेक्नोलॉजी है, उसके माध्यम से दोबारा रिपोर्ट दें. हालांकि वन विभाग 163 पेड़ काटने की इजाजत होने और 96 पेड़ अवैध रूप से काटे जाने की बात मान रहा है.

अवैध रूप से पेड़ काटने की बात मानी: उधर पहले ही सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने भी अवैध पेड़ कटान की बात मानी है. कॉर्बेट नेशनल पार्क में हुए कार्यों को लेकर वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. एस मामले में सरकार की अनुमति के बाद विजिलेंस सेक्टर हल्द्वानी में निलंबित सेवानिवृत्त आइएफएस किशन चंद व अज्ञात अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध वन संरक्षण अधिनियम व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में प्राथमिकी हो चुकी है जिस पर कार्रवाई चल रही है. मामले में 02 आईएफएस अधिकारी सस्पेंड हो चुके है, जबकि एक आईएफएस अधिकारी को मुख्यालय में अटैच किया गया है.
ये भी पढ़ें: PM Modi का ड्रीम प्रोजेक्ट: आधे-अधूरे पाखरौ टाइगर सफारी के उद्घाटन की तैयारी

पीसीसीएफ की बात की गई नजरअंदाज: खास बात ये है कि तत्कालीन पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने एफएसआई को पत्र लिखकर सर्वेक्षण का अनुरोध किया था. कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगर सफारी परियोजना इन्हीं पेड़ों की कटाई की वजह से विवादों में आ गयी थी. इसमें पर्यावरण कार्यकर्ता गौरव बंसल ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी में 26 अगस्त 2021 को याचिका दाखिल की थी. उन्होंने अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई का आरोप लगाते हुए उत्तराखंड सरकार की भर्त्सना की थी. इसमें उन्होंने दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने की मांग की थी. इन सबमें खास बात यह है कि इस दौरान इस सब की जानकारी शासन से लेकर सरकार को दी जाती रही. लेकिन अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन से लेकर तब की सरकार ने भी इस पर कोई एक्शन नहीं लिया.

आरोपियों पर नहीं हुई सख्त कार्रवाई: सबसे खास बात यह है कि कॉर्बेट में उस दौरान निदेशक रहे राहुल कुमार को केवल अटैच करके इतिश्री कर दी गई. इस मामले में जिन दो आईएफएस अधिकारियों को निलंबित किया गया, वह दोनों ही रिटायर हो चुके हैं. जबकि विभाग के कई आईएफएस अधिकारी सीधे तौर पर इसमें जिम्मेदार दिखाई देते हैं. यही नहीं शासन के आईएएस अधिकारी की भूमिका को भी नजरअंदाज कर दिया गया और कार्रवाई नहीं की गयी. हालांकि इस मामले में फिलहाल प्रकरण कोर्ट में है और इन बड़े चेहरों पर भी कार्रवाई संभव है. हैरानी की बात यह है कि उस दौरान जब कॉर्बेट में अवैध निर्माण की बात सामने आई तो तत्कालीन निदेशक ने इन निर्माण को तोड़ने तक की बात कही थी. अवैध निर्माण होने की बात स्वीकारी गई और अवैध कटान की बात को भी विभाग स्वीकार रहा है.
ये भी पढ़ें: जिम कॉर्बेट पार्क में मोदी ट्रेल को PMO ने दी मंजूरी, पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

कहां तक पहुंची जांच, अभी क्या स्थिति? पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण में तत्कालीन पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने ही फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर पाखरो रेंज में पेड़ों के कटान को लेकर रिपोर्ट मांगी थी. हालांकि, इसके ठीक बाद उनका तबादला कर दिया गया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई सीईसी (सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी) इस पूरे प्रकरण को देख रही है जबकि विभिन्न एजेंसी अलग-अलग पहलुओं पर जांच कर रही हैं. इसमें सेंट्रल जू अथॉरिटी यहां पर स्वीकृति से जुड़ी तमाम रिपोर्ट को खंगाल चुकी है. इसके अलावा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, उत्तराखंड विजिलेंस, एनटीसीए और उत्तराखंड वन विभाग भी अपनी जांच कर रहा है.

सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी की तरफ से जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में रखी जा रही है और इसमें अब तक हुई जांच की विभिन्न रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में भी सबमिट की जा चुकी है. फिलहाल विजिलेंस से लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और उत्तराखंड वन विभाग अपनी जांच में जुटा हुआ है.

देहरादून: मैन वर्सेस वाइल्ड के होस्ट बेयर ग्रिल की प्रधानमंत्री मोदी के साथ कॉर्बेट की तस्वीरें आज भी सभी के जेहन में हैं. ये मौका उत्तराखंड के लिए भी बेहद खास था, क्योंकि दो बड़ी हस्तियां राज्य के कॉर्बेट पार्क में पहुंची थीं. लेकिन इसी यात्रा के साथ कुछ ऐसी योजनाओं का ताना-बाना बुना गया जो न केवल जांच के दायरे में हैं, बल्कि इसकी जद में कई बड़े अधिकारी और नेता भी आ गए हैं. मामला पाखरो टाइगर सफारी प्रोजेक्ट का है, जिसपर गड़बड़ी को लेकर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है.

बिना स्वीकृति के आगे बढ़ाया काम?: दरअसल प्रधानमंत्री की 2019 में हुई इस एडवेन्चर यात्रा के बाद पाखरो टाइगर सफारी और बाड़ों के निर्माण पर काम शुरू हो गया. कहा गया कि इन दोनों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद घोषणा करते हुए इन पर तेजी से काम करने की इच्छा जाहिर की थी. जाहिर है इसके बाद राज्य सरकार भी इस काम को तेजी से आगे बढ़ाने लगी. लेकिन कुछ शिकायतों के बाद NTCA ने जब जांच की तो पूरे महकमे की कंपकंपी छूट गयी. दरअसल इसमें पाया गया कि बिना स्वीकृति के ही कॉर्बेट क्षेत्र में योजना के नाम पर काम को आगे बढ़ाया जा रहा था.

पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट की आड़ में काट डाला कॉर्बेट का जंगल.

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रहा मामला: फिर क्या था हाईकोर्ट में एक याचिका के बाद पूरे मामले की जांच होने लगी. इतना ही नहीं इसका संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने भी लिया और कोर्ट ने इस पर जांच करने तक के निर्देश दे दिए. हालांकि इतना कुछ होने के बाद भी तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत सभी रिपोर्टस को फर्जी बताते हुए इन कामों की स्वीकृति होने और प्रधानमंत्री द्वारा इनकी घोषणा किए जाने के बाद दोहरा रहे हैं.
ये भी पढ़ें: कैबिनेट की बैठक संपन्न, न्यायिक सेवा संसोधन नियमावली को मिली मंजूरी, नैनीताल में टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनेगा

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने किया बड़ा खेल: उत्तराखंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट बताये जा रहे टाइगर सफारी में बड़ा खेल किया था. दरअसल टाइगर सफारी बनाने के नाम पर 163 पेड़ काटने की इजाजत थी. लेकिन यहां 6093 हरे पेड़ काट डाले गए हैं. इस बात का खुलासा भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग यानी एफएसआई की सर्वे रिपोर्ट में हुआ है. हालांकि इस सर्वे रिपोर्ट पर उत्तराखंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट सवालिया निशान उठा रहा है.

163 की जगह का डाले 6 हजार से ज्यादा पेड़?: साल 2020 में कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के कालागढ़ वन प्रभाग की पाखरो रेंज में टाइगर सफारी बनाने का काम शुरू हुआ. टाइगर सफारी के निर्माण में 163 हरे पेड़ काटे जाने थे. लेकिन वहां पर 6 हजार से ज्यादा पेड़ काट दिए गए. एफएसआई ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में पाया है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में कालागढ़ वन प्रभाग की पाखरो रेंज में करीब 16.21 हेक्टेयर वन भूमि पर 6093 पेड़ों का सफाया कर दिया गया. एफएसआई ने जो सर्वे रिपोर्ट दी, उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी इस रिपोर्ट पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं. प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल ने कहा कि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया से हमने अनुरोध किया था कि वह सैटेलाइट इमेज और एफएसआई के पास जो टूल और टेक्नोलॉजी है, उसके माध्यम से दोबारा रिपोर्ट दें. हालांकि वन विभाग 163 पेड़ काटने की इजाजत होने और 96 पेड़ अवैध रूप से काटे जाने की बात मान रहा है.

अवैध रूप से पेड़ काटने की बात मानी: उधर पहले ही सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने भी अवैध पेड़ कटान की बात मानी है. कॉर्बेट नेशनल पार्क में हुए कार्यों को लेकर वन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. एस मामले में सरकार की अनुमति के बाद विजिलेंस सेक्टर हल्द्वानी में निलंबित सेवानिवृत्त आइएफएस किशन चंद व अज्ञात अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध वन संरक्षण अधिनियम व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में प्राथमिकी हो चुकी है जिस पर कार्रवाई चल रही है. मामले में 02 आईएफएस अधिकारी सस्पेंड हो चुके है, जबकि एक आईएफएस अधिकारी को मुख्यालय में अटैच किया गया है.
ये भी पढ़ें: PM Modi का ड्रीम प्रोजेक्ट: आधे-अधूरे पाखरौ टाइगर सफारी के उद्घाटन की तैयारी

पीसीसीएफ की बात की गई नजरअंदाज: खास बात ये है कि तत्कालीन पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने एफएसआई को पत्र लिखकर सर्वेक्षण का अनुरोध किया था. कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगर सफारी परियोजना इन्हीं पेड़ों की कटाई की वजह से विवादों में आ गयी थी. इसमें पर्यावरण कार्यकर्ता गौरव बंसल ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी में 26 अगस्त 2021 को याचिका दाखिल की थी. उन्होंने अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई का आरोप लगाते हुए उत्तराखंड सरकार की भर्त्सना की थी. इसमें उन्होंने दोषी अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने की मांग की थी. इन सबमें खास बात यह है कि इस दौरान इस सब की जानकारी शासन से लेकर सरकार को दी जाती रही. लेकिन अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन से लेकर तब की सरकार ने भी इस पर कोई एक्शन नहीं लिया.

आरोपियों पर नहीं हुई सख्त कार्रवाई: सबसे खास बात यह है कि कॉर्बेट में उस दौरान निदेशक रहे राहुल कुमार को केवल अटैच करके इतिश्री कर दी गई. इस मामले में जिन दो आईएफएस अधिकारियों को निलंबित किया गया, वह दोनों ही रिटायर हो चुके हैं. जबकि विभाग के कई आईएफएस अधिकारी सीधे तौर पर इसमें जिम्मेदार दिखाई देते हैं. यही नहीं शासन के आईएएस अधिकारी की भूमिका को भी नजरअंदाज कर दिया गया और कार्रवाई नहीं की गयी. हालांकि इस मामले में फिलहाल प्रकरण कोर्ट में है और इन बड़े चेहरों पर भी कार्रवाई संभव है. हैरानी की बात यह है कि उस दौरान जब कॉर्बेट में अवैध निर्माण की बात सामने आई तो तत्कालीन निदेशक ने इन निर्माण को तोड़ने तक की बात कही थी. अवैध निर्माण होने की बात स्वीकारी गई और अवैध कटान की बात को भी विभाग स्वीकार रहा है.
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कहां तक पहुंची जांच, अभी क्या स्थिति? पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण में तत्कालीन पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने ही फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर पाखरो रेंज में पेड़ों के कटान को लेकर रिपोर्ट मांगी थी. हालांकि, इसके ठीक बाद उनका तबादला कर दिया गया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई सीईसी (सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी) इस पूरे प्रकरण को देख रही है जबकि विभिन्न एजेंसी अलग-अलग पहलुओं पर जांच कर रही हैं. इसमें सेंट्रल जू अथॉरिटी यहां पर स्वीकृति से जुड़ी तमाम रिपोर्ट को खंगाल चुकी है. इसके अलावा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, उत्तराखंड विजिलेंस, एनटीसीए और उत्तराखंड वन विभाग भी अपनी जांच कर रहा है.

सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी की तरफ से जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में रखी जा रही है और इसमें अब तक हुई जांच की विभिन्न रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में भी सबमिट की जा चुकी है. फिलहाल विजिलेंस से लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और उत्तराखंड वन विभाग अपनी जांच में जुटा हुआ है.

Last Updated : Oct 12, 2022, 9:04 PM IST
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