देहरादून: प्रदेश में रोजगार को लेकर निराशाजनक आंकड़े सामने आ रहे हैं. ऐसे हालात पैदा करने में सरकारी मशीनरी का बड़ा योगदान है. साल 2014 में 17 सितंबर को उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन किया गया था और तब से अब तक आयोग केवल 3000 ही सिलेक्शन करवा पाया है. आयोग से इन पांच सालों में मात्र 6500 पदों की भर्तियों के लिए विभागों द्वारा मांग की गई. जिसमें से भी करीब आयोग सिर्फ 5000 पदों पर ही एग्जाम करा पाया और एग्जाम के बाद इसमें भी मात्र 3000 सिलेक्शन ही हो पाए हैं.
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बता दें कि, प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ रही है. चयन आयोग 50 प्रतिशत के सिलेक्शन लक्ष्य को भी पूरा नहीं कर पा रहा है. हालत ये हैं कि प्रदेश में रिक्तियां बढ़ रही हैं और भर्तियां सालों साल तक भी पूरी नहीं हो पा रही हैं. आयोग का कहना है कि अभी पुरानी भर्तियों पर काम किए जा रहे हैं. हालांकि इस बीच आयोग को रिक्त पदों को लेकर करीब 5000 नए अधियाचन भेजे गए हैं. जिसमें से करीब 1100 पदों पर विज्ञापन जारी कर दिया गया है.
दरअसल, कई बार कोर्ट में जाने वाले मामले भी उत्तराखंड में भर्तियों में हो रही लेटलतीफी का कारण बनते हैं, लेकिन शासन और विभागों की अधियाचन भेजने में लापरवाही भी इसमें बराबर की जिम्मेदार है. आयोग की तरफ से भर्तियों में तेजी दिखाई जाए तो सरकार की तरफ से भी रिक्तियों को भरने में लापरवाही नहीं होगी और अधिक से अधिक भर्तियों का फायदा युवाओं को मिल सकेगा.