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राष्ट्रीय मतदाता दिवस: जानिए चुनावों में उत्तराखंड में कितने फीसदी मतदाताओं की भागीदारी - विधानसभा चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी

आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जा रहा है. साल 2011 में मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने को लेकर 25 जनवरी का दिन चुना गया और इस दिन को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.

national voters day
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Published : Jan 25, 2021, 6:59 AM IST

देहरादून: भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना के अवसर में हर साल 25 जनवरी को देशभर में राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है. जिसकी वजह है कि नये मतदाताओं को प्रोत्साहन और सुविधा देने के साथ-साथ अधिक से अधिक संख्‍या में मतदाता सूची में उनको नामांकन के लिए प्रेरित करना है. इसके साथ ही देशभर के मतदाताओं के बीच जागरूकता फैलाने के साथ ही चुनाव प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाता है. उत्तराखंड राज्य में क्या है मतदाताओं की स्थिति?

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उम्र के अनुसार मतदाताओं की स्थिति.

देश की आजादी के बाद 25 जनवरी 1950 को भारत निर्वाचन आयोग अस्तित्व में आया था, जिसके बाद देश के भीतर तमाम चुनाव संपन्न हुए, लेकिन मतदाताओं को जागरूक करने के लिए कोई ऐसा दिवस नहीं था, जिसके तहत साल में एक बार देश के मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक और प्रोत्साहित किया जा सके, जिसके चलते साल 2011 में मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने को लेकर 25 जनवरी का दिन चुना गया और इस दिन को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. क्योंकि, 25 जनवरी को भारत निर्वाचन आयोग का स्थापना दिवस है. बता दें, पहले मतदाता की पात्रता आयु 21 वर्ष थी, लेकिन साल 1988 में इसे घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था.

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प्रदेश में मतदाताओं की भागीदारी.

पढें- एक दिन की 'नायक' सृष्टि गोस्वामी, जानिए कैसा रहा मैडम चीफ मिनिस्टर का कार्यकाल

किसी भी चुनाव में आम लोगों यानी मतदाताओं की एक अहम भूमिका होती है, क्योंकि ये वो मतदाता होते हैं जो चुनावी मैदान में खड़े उम्मीदवारों की नैया को पार लगाते हैं. यानी कुल मिलाकर देखें तो ये वो लोग हैं जो चुनावी मैदान में खड़े उम्मीदवारों की किस्मत को तय करते हैं. मौजूदा समय की बात करें तो कुछ दशकों पहले से मतदाता काफी जागरूक हुए हैं, जिसकी मुख्य वजह यह है कि कुछ दशकों से मतदाता अपने हक को लेकर भी लड़ते आए हैं. अमूमन चुनाव के दौरान यह देखने को मिलता है कि कई क्षेत्रों के मतदाता, मतदान करने से इंकार कर देते हैं. उस दौरान मतदाताओं का तर्क होता है कि उनके क्षेत्र में किसी भी नेताओं द्वारा कोई कार्य नहीं किया जा रहा है, जिसके चलते वो किसी को भी अपना नेता नहीं चुनना चाहते हैं.

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चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी.

देहरादून: भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना के अवसर में हर साल 25 जनवरी को देशभर में राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है. जिसकी वजह है कि नये मतदाताओं को प्रोत्साहन और सुविधा देने के साथ-साथ अधिक से अधिक संख्‍या में मतदाता सूची में उनको नामांकन के लिए प्रेरित करना है. इसके साथ ही देशभर के मतदाताओं के बीच जागरूकता फैलाने के साथ ही चुनाव प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाता है. उत्तराखंड राज्य में क्या है मतदाताओं की स्थिति?

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उम्र के अनुसार मतदाताओं की स्थिति.

देश की आजादी के बाद 25 जनवरी 1950 को भारत निर्वाचन आयोग अस्तित्व में आया था, जिसके बाद देश के भीतर तमाम चुनाव संपन्न हुए, लेकिन मतदाताओं को जागरूक करने के लिए कोई ऐसा दिवस नहीं था, जिसके तहत साल में एक बार देश के मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक और प्रोत्साहित किया जा सके, जिसके चलते साल 2011 में मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने को लेकर 25 जनवरी का दिन चुना गया और इस दिन को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. क्योंकि, 25 जनवरी को भारत निर्वाचन आयोग का स्थापना दिवस है. बता दें, पहले मतदाता की पात्रता आयु 21 वर्ष थी, लेकिन साल 1988 में इसे घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था.

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प्रदेश में मतदाताओं की भागीदारी.

पढें- एक दिन की 'नायक' सृष्टि गोस्वामी, जानिए कैसा रहा मैडम चीफ मिनिस्टर का कार्यकाल

किसी भी चुनाव में आम लोगों यानी मतदाताओं की एक अहम भूमिका होती है, क्योंकि ये वो मतदाता होते हैं जो चुनावी मैदान में खड़े उम्मीदवारों की नैया को पार लगाते हैं. यानी कुल मिलाकर देखें तो ये वो लोग हैं जो चुनावी मैदान में खड़े उम्मीदवारों की किस्मत को तय करते हैं. मौजूदा समय की बात करें तो कुछ दशकों पहले से मतदाता काफी जागरूक हुए हैं, जिसकी मुख्य वजह यह है कि कुछ दशकों से मतदाता अपने हक को लेकर भी लड़ते आए हैं. अमूमन चुनाव के दौरान यह देखने को मिलता है कि कई क्षेत्रों के मतदाता, मतदान करने से इंकार कर देते हैं. उस दौरान मतदाताओं का तर्क होता है कि उनके क्षेत्र में किसी भी नेताओं द्वारा कोई कार्य नहीं किया जा रहा है, जिसके चलते वो किसी को भी अपना नेता नहीं चुनना चाहते हैं.

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चुनावों में मतदाताओं की भागीदारी.
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