देहरादून: नगर निगम ने फर्म को टेंडर दिलाने के लिए फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने और मैसर्स सनलाइट कंपनी को अनुचित फायदा पहुंचाने के मामले में एक बार फिर दोबारा से जांच के आदेश दे दिए गए. निगम प्रशासन का मानना है की इस मामले की जांच एक बार पहले हो चुकी है, लेकिन लोगों ने जांच पर सवाल उठाए थे. जिसके बाद फिर से जांच के आदेश जारी कर दिए हैं.
गौर हो कि इस बार इस मामले की जांच नगर निगम के अधिकारी से न करा कर शहरी विकास निदेशालय को पत्र भेज दिया है. निदेशालय के अधिकारी से जांच कराई जा रही है और जांच कब तक पूरी होगी वह निदेशालय अधिकारी ही निर्णय लेगा. वहीं लोगों का आरोप है कि निगम के कुछ अधिकारी मामले में लापरवाही बरतते हुए दोषियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. जिसके चलते नगर आयुक्त ने बाहर से जांच कराने के आदेश दिए हैं.
बता दें कि पिछले महीने नगर निगम ने मैसर्स सनलाइट और मैसर्स भार्गव फैसिलिटी सर्विसेज कंपनी को 15-15 नए वार्डों में डोर टू डोर कूड़ा उठान का टेंडर दिया था. टेंडर के लिए शर्त थी की कंपनी को कूड़ा उठान के कार्य का 5 साल का अनुभव होना चाहिए. दोनों कंपनियों ने निगम के अपर आयुक्त आरके सिंह द्वारा जारी किया गया अनुभव प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया. इन पत्रों में अंकित है कि कंपनियों ने जनवरी 2015 से अब तक नगर निगम देहरादून के लिए नियमित ढाई सौ मीट्रिक टन कूड़ा उठाने का कार्य किया है. दोनों कंपनियों के प्रमाण पत्र की जांच करने के बाद कंपनियों को टेंडर दे दिया गया. लेकिन हरिद्वार नगर निगम में यह मामला पकड़ में आ गया वहां पर दोनों कंपनियों ने कूड़ा उठाने के लिए टेंडर डाला था तो अनुभव प्रमाण पत्र पर फंस गए.
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भार्गव फैसिलिटी के पास नगर निगम देहरादून के लिए कार्य करने का वर्क ऑर्डर था जबकि मैसेस सनलाइट पेश नहीं कर सकी. हरिद्वार नगर निगम की ओर से एक ही समय पर कूड़ा उठान करने की दो कंपनियों के अनुभव प्रमाण पत्र जारी करने की शिकायत शहरी विकास निदेशालय को भेजी गई. अपर निदेशक ने मामले में देहरादून नगर निगम से स्पष्टीकरण तलब कर पूरी रिपोर्ट मांगी थी. जिसके चलते मेयर की ओर से मुख्य नगर स्वास्थ्य अधिकारी कैलाश जोशी को जांच दी थी, लेकिन घोटाला स्वास्थ्य अनुभाग का होने से जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे थे.
नगर आयुक्त विनय शंकर पांडे ने बताया कि इस मामले की एक बार जांच हो चुकी थी, लेकिन लोगों को संतुष्टि नहीं है तो इसकी दोबारा जांच के लिए यह निर्णय लिया है. जिसके चलते हमने इस मामले की जांच के लिए शहरी विकास निदेशालय को पत्र भेज दिया गया था. अब जो भी जांच होनी है निदेशालय के अधिकारी द्वारा होनी है, इसलिए यह जांच कब तक पूरी होगी इसकी जानकारी हमारे पास नहीं है.