मसूरी: म्युनिसिपल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज मसूरी में प्राध्यापकों की पदोन्नति का मामला में उच्च न्यायालय में पहुंचने के बाद अब कॉलेज में एक बड़ी अनियमितता का मामला प्रकाश में आया है. अब मसूरी के म्युनिसिपल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के प्रबंधन की वैधानिकता पर ही प्रश्न उठने लगे हैं.
सूत्रों का कहना है कि 1973 के उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 2 (13) और नगरपालिका अधिनियम के अनुसार एमपीजी कॉलेज प्रबंधन के लिए नगर पालिका परिषद द्वारा (न कि नगरपालिका अध्यक्ष द्वारा) एक शिक्षा समिति का गठन किया जाना चाहिए था और उसी शिक्षा समिति का अध्यक्ष कॉलेज की प्रबंध समिति का अध्यक्ष होना चाहिये था.
बता दें कि पिछले दिनों कॉलेज के शिक्षक ने ही प्रबंधन तंत्र के गठन पर सवाल उठाया है. उन्होंने इस संदर्भ में श्रीनगर स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति और हल्द्वानी स्थित उत्तराखंड उच्च शिक्षा निदेशालय के निदेशक सहित अन्य कई प्रशासनिक अधिकारियों को पत्र लिखा गया है. जिसमें मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने और कॉलेज प्रबंधन को राज्य सरकार को अपने अधीन में लेने की मांग की है.
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साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसा न होने पर वे उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं. बीते 23 फरवरी को हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के निर्देश पर उच्च शिक्षा निदेशालय से एक वरिष्ठ अधिकारी ने कॉलेज पहुंचकर प्रकरण की जांच की और शिकायतकर्ता का बयान भी दर्ज किये.
गौर हो कि गढ़वाल विश्वविद्यालय ने भी 2 दिसंबर 2021 के बाद से विवादित प्रबंधन समिति का अनुमोदन नहीं दिया है. अब सवाल यह उठता है कि जब संबंधित विश्वविद्यालय ने ही प्रबंध समिति को मान्यता नहीं दी है तो फिर किस अधिकार से पालिकाध्यक्ष अनुज गुप्ता 2 दिसंबर 2021 के बाद भी कॉलेज के प्रशासनिक एवं वित्तीय कार्यों को संपादित कर रहे हैं. मान्यता के अभाव में ये प्रशासनिक व वित्तीय अधिकार क्यों स्वतः एसडीएम मसूरी को हस्तांतरित नहीं किये गए?.