देहरादून: शिक्षा व्यवस्था को लेकर विद्यार्थियों के मन में कई सवाल रहते हैं जैसे कि शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के दौरान उचित मंच कैसे मिले? सुविधाओं से दूर उत्तराखंड के सुदूर गांव के बच्चों को मुख्य धारा से कैसे जोड़ा जाए? इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड में यूकोस्ट और प्रीतम इंटरनेशनल कंपनी ने एमओयू साइन किया है. इस एमओयू के तहत उत्तराखंड के हुनरमंद और पढ़े-लिखे युवाओं को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दी जाएगी.
एमओयू से फायदे: उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों में रहने वाले हुनरमंद छात्र जो नौकरी की तलाश कर रहे हैं, यूकोस्ट उन छात्रों को खोजने का काम करेगा. इसके लिए गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के लिए दो टीमें बनाई जाएंगी. यूकोस्ट यह देखेगा कि किस छात्र को किस तरह की ट्रेनिंग उपलब्ध कराई जाए. इन सभी को ट्रेनिंग और रिसर्च एवं डेवलपमेंट के गुर सिखाने और पूरी व्यवस्था बनाने के लिए ही इन दो कंपनियों ने हाथ बढ़ाया है.
दूसरी तरफ इस एमओयू के तहत ना तो यूकोस्ट किसी तरह का कोई पैसा बेरोजगार युवाओं से लेगा और ना ही प्रीतम इंटरनेशनल कंपनी किसी तरह का चार्ज लेगी. प्रीतम इंटरनेशनल के चेयरमैन रजत भलोटिया का कहना है कि हमारी कंपनी आज कई हजार प्रोडक्ट बनाती है. कॉस्मेटिक के क्षेत्र में हमारे प्रोडक्ट हर 10 में से 3 लोगों के पास मिलते हैं. हमारी शुरू से यह इच्छा थी कि उत्तराखंड के लिए कुछ किया जाए, क्योंकि हमने भी उत्तराखंड से बहुत कुछ लिया है. ऐसे में हमने पाया कि उत्तराखंड के युवाओं के अंदर अच्छी प्रतिभा और लगन है. इन सभी बातों को ध्यान में रखकर हमने यूकोस्ट के साथ एक एमओयू साइन किया है. इसके तहत यूकोस्ट को हम गांव के लोगों के समक्ष लेकर जाएंगे और हम उन गांवों को युवाओं को हर तरह की ट्रेनिंग देंगे जो उनके भविष्य में काम आ सके. हमारी शुरुआत भारत के प्रथम गांव माणा से होगी.
युवाओं और महिलाओं को मिलेगी नई पहचान: कंपनी के चेयरमैन बताते हैं कि इसके लिए हमने रिसर्च और डेवलपमेंट की जाने-माने गुरू सुमित्र पांडे को जिम्मेदारी दी है. इसके बाद ना केवल युवाओं को बल्कि स्वयं सहायता समूह व महिलाओं के उत्पादनों के लिए ऑनलाइन मार्केट की राह आसान होगी. जैसे कि रुद्रप्रयाग की महिलाएं अपने क्षेत्र में समूह बनाकर कुछ कार्य कर रही हैं तो हम उन महिलाओं के लिए एक प्लेटफार्म तैयार करेंगे, ताकि उनका प्रोडक्ट बाजार में बिक सके और अच्छा दाम उन महिलाओं को मिल सके. इस तरह के कार्य करने में हमारी तरफ से जो भी खर्चा आएगा वो हम खुद वहन करेंगे.
वहीं यूकोस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत का कहना है कि हमें बेहद खुशी है कि विज्ञान और रिसर्च के क्षेत्र में काम करते हुए यूकोस्ट को आज एक नई जिम्मेदारी भी मिली है. इस जिम्मेदारी के बाद उम्मीद है कि हम उत्तराखंड के दूर दराज में बैठे युवाओं तक पहुंच सकते हैं. उत्तराखंड में बढ़ती बेरोजगारी को भी कम करने का काम किया जाएगा.
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दूसरे एमओयू की तरह ना हो हाल: उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में अगर इस तरह के कार्य दो संस्था या कंपनी मिलकर करती हैं तो कहीं ना कहीं युवाओं को इसका फायदा जरूर होगा. हां इतना जरूर है कि सरकारी एमओयू की तरह यह एमओयू भी ठंडे बस्ते में ना जाए. क्योंकि राज्य ने ऐसे कई एमओयू भी देखें जो साइन तो हुए लेकिन आगे नहीं बढ़े.