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MBBS कोर्स में फीस बढ़ाए जाने पर अभिभावकों ने जताया विरोध, बाले- सरकार करे पुनर्विचार

सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में अप्रत्याशित फीस वृद्धि को लेकर अभिभावक मुखर हो गए हैं. उन्होंने सरकार से अविलंब शुल्क वृद्धि को वापस लेने की मांग की है. साथ ही कहा कि सरकार व्यवहारिक फीस वृद्धि कर अभिभावकों और विद्यार्थियों को हतोत्साहित कर रही है.

MBBS कोर्स में फीस बढ़ाए जाने पर अभिभावकों ने जताया विरोध
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Published : Jun 30, 2019, 7:22 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स की फीस बढ़ाए जाने को लेकर अभिभावक विरोध में उतर गए हैं. इसी कड़ी में निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के पदाधिकारियों ने एमबीबीएस कोर्स में की गई अप्रत्याशित फीस वृद्धि को वापस लेने की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया कि निजी मेडिकल कॉलेजों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, ऐसे में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज स्वायत्तता के नाम पर खुलेआम लूट खसोट कर रहे हैं.

फीस वृद्धि पर बोलते बीजेपी नेता और निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान.

रविवार को बीजेपी नेता और निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि सरकार को शुल्क वृद्धि पर पुनर्विचार करना चाहिए. जल्द अप्रत्याशित रूप से फीस वृद्धि को अविलंब वापस लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में एमबीबीएस कोर्स करने के लिये न्यूनतम फीस निर्धारित की गई है, लेकिन उत्तराखंड में इस कोर्स की फीस साढ़े चार लाख रुपये तक बढ़ा दिया गया है. जबकि बीते साल तक ये शुल्क पचास हजार रुपये लिया जा रहा था.

ये भी पढ़ेंः रुड़की से लापता नाबालिग छात्रा देहरादून से बरामद, 3 आरोपी गिरफ्तार

ऐसे में इसका फायदा निजी मेडिकल विश्वविद्यालय और कॉलेज उठा रहे हैं. स्वायत्तता के नाम पर निजी मेडिकल कॉलेज मनमानी पर उतारू हैं. ऐसे कॉलेजों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड पहले से ही पलायन का दंश झेल रहा है. मेडिकल शिक्षा की व्यवस्था भी काफी लचर है. सरकार व्यवहारिक फीस वृद्धि कर अभिभावकों और विद्यार्थियों को हतोत्साहित कर रही है.

वहीं, अभिभावकों ने चेतावनी देते हुए कहा कि जल्द शुल्क वृद्धि को वापस नहीं लिया गया तो वो उग्र आंदोलन करेंगे. साथ ही अभिभावक और छात्र मिलकर सरकार की इस नीति का विरोध करने के लिए हर प्रकार के लोकतांत्रिक आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे. जिसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी.

देहरादूनः उत्तराखंड में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स की फीस बढ़ाए जाने को लेकर अभिभावक विरोध में उतर गए हैं. इसी कड़ी में निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के पदाधिकारियों ने एमबीबीएस कोर्स में की गई अप्रत्याशित फीस वृद्धि को वापस लेने की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया कि निजी मेडिकल कॉलेजों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, ऐसे में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज स्वायत्तता के नाम पर खुलेआम लूट खसोट कर रहे हैं.

फीस वृद्धि पर बोलते बीजेपी नेता और निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान.

रविवार को बीजेपी नेता और निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि सरकार को शुल्क वृद्धि पर पुनर्विचार करना चाहिए. जल्द अप्रत्याशित रूप से फीस वृद्धि को अविलंब वापस लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में एमबीबीएस कोर्स करने के लिये न्यूनतम फीस निर्धारित की गई है, लेकिन उत्तराखंड में इस कोर्स की फीस साढ़े चार लाख रुपये तक बढ़ा दिया गया है. जबकि बीते साल तक ये शुल्क पचास हजार रुपये लिया जा रहा था.

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ऐसे में इसका फायदा निजी मेडिकल विश्वविद्यालय और कॉलेज उठा रहे हैं. स्वायत्तता के नाम पर निजी मेडिकल कॉलेज मनमानी पर उतारू हैं. ऐसे कॉलेजों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड पहले से ही पलायन का दंश झेल रहा है. मेडिकल शिक्षा की व्यवस्था भी काफी लचर है. सरकार व्यवहारिक फीस वृद्धि कर अभिभावकों और विद्यार्थियों को हतोत्साहित कर रही है.

वहीं, अभिभावकों ने चेतावनी देते हुए कहा कि जल्द शुल्क वृद्धि को वापस नहीं लिया गया तो वो उग्र आंदोलन करेंगे. साथ ही अभिभावक और छात्र मिलकर सरकार की इस नीति का विरोध करने के लिए हर प्रकार के लोकतांत्रिक आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे. जिसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी.

Intro: निजी मेडिकल कॉलेजों में बेतहाशा फीस बढ़ाए जाने के बाद अभिभावकों में विरोध के स्वर मुखर हो गए हैं,निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के पदाधिकारियों ने सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स मे वर्ष 2019 और 2020 के लिए की गई अप्रत्याशित फीस वृद्धि को वापस लेने की मांग की है, उन्होंने आरोप लगाया कि निजी मेडिकल कॉलेजों में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, ऐसे मे प्राइवेट मेडिकल कॉलेजेस स्वायत्तता के नाम पर खुलेआम लूट खसोट कर रहे हैं
summary- सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में अप्रत्याशित फीस वृद्धि किये जाने के बाद अभिभावकों का कहना है कि यदि सरकार अविलंब शुल्क वृद्धि को वापस नहीं लेती है तो तो उन्हें मजबूरन सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने पर बाध्य होना पड़ेगा। क्योंकि बेतहाशा शुल्क वृद्धि किए जाने के बाद उत्तराखंड अब देश में सबसे अधिक फीस लेने वाला राज्य बन गया है।


Body:भाजपा नेता और निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान ने त्यागी रोड़ स्थित एक होटल में पत्रकार वार्ता करते हुए कहा कि सरकार को शुल्क वृद्धि पर पुनर्विचार करना चाहिए और अप्रत्याशित रूप से फीस वृद्धि को अविलंब वापस लेना चाहिए। एक और सीमांत राज्य उत्तर प्रदेश में एमबीबीएस कोर्स करने के लिये न्यूनतम फीस निर्धारित की गई है,तो वहीं उत्तराखंड में एमबीबीएस कोर्स करने के लिए साढ़े चार लाख रुपये तक बढ़ा दिए गए हैं जबकि बीते वर्ष यही शुल्क पचास हजार रुपये लिया जा रहा था। उन्होंने कहा कि निजी मेडिकल विश्वविद्यालय व कॉलेजेस स्वायत्तता के नाम पर मनमानी पर उतारू हैं ऐसे में या तो सरकार का उन पर कोई नियंत्रण नहीं है या फिर यह निरंकुशता सरकार के संरक्षण में हो रही है। उन्होंने कहा कि वैसे तो सीमांत प्रदेश होने के नाते उत्तराखंड वैसे ही पलायन का भयानक दंश झेल रहा है ऐसे में यहां स्वास्थ्य शिक्षा की व्यवस्था लचर है और ऊपर से व्यवहारिक फीस वृद्धि अभिभावकों व विद्यार्थियों को हतोत्साहित कर रही है। सरकार होनहार और मेरिटोरियस छात्रों के मनोबल को बढ़ाने की बजाए मेडिकल कॉलेजों में फीस वृद्धि करके उनके मनोबल को गिराने का काम कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कम मेरिट पाने वाले धन्ना सेठों के बच्चों को प्रोत्साहित करने से स्वास्थ्य शिक्षा के गुणवत्ता भी प्रभावित होगी और इसके साथ ही आम जनता को योग्य चिकित्सक नहीं मिल पाएंगे।

बाईट- रविन्द्र जुगरान, भाजपा नेता व मुख्य संरक्षक, निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ, उत्तराखंड


Conclusion:अभिभावकों ने चेतावनी दी है कि यदि बढ़ाई गई शुल्क वृद्धि को वापस नहीं लिया जाता है तो अभिभावक और छात्र मिलकर सरकार की इस अ व्यवहारिक व पूंजीपति समर्थक नीति का विरोध करने के लिए हर प्रकार का लोकतांत्रिक आंदोलन करने के लिए बाध्य हो जाएंगे, जिसकी सभी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।
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