देहरादून: उत्तराखंड सरकार इन दिनों भू कानून (land law in uttarakhand) में जबरदस्त संशोधन को लेकर भारी जन दबाव में है. वैसे यह मुद्दा विधानसभा चुनाव 2022 से पहले बेहद तेजी के साथ लोगों की जुबान पर आया. इसकी मुख्य वजह पहले सड़क और फिर सोशल मीडिया पर युवाओं का वह अभियान रहा, जिसने इस मुद्दे को राजनीतिक दलों के लिए गले की फांस बना दिया. यही कारण था कि राष्ट्रीय दलों के घोषणा पत्र में भी इसको शामिल कर लिया गया.
यही नहीं, पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने चुनाव से ठीक पहले इसके लिए पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक 5 सदस्यीय कमेटी का गठन भी कर दिया. अक्टूबर, 2021 में बनाई गई कमेटी ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों से जरूरी रिपोर्ट मंगा ली हैं और अब उम्मीद है कि अगले महीने के पहले सप्ताह में यह समिति मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंप सकती है.
समिति के सदस्य अजेंद्र अजय ने कहा है कि समिति के द्वारा 4 बैठकें की जा चुकी हैं. सभी 13 जिलों से जिलाधिकारियों की तरफ से रिपोर्ट भी मंगाई जा चुकी है. लिहाजा अंतिम आकलन के बाद रिपोर्ट को सरकार के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया जाएगा.
समिति इन पहलुओं पर कर रही अध्ययन: पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में यह समिति कई पहलुओं पर अध्ययन कर रही है. मसलन भू कानून में संशोधन की जरूरत, बदलाव के पैमाने. इसमें करीब 13 विभिन्न बिंदुओं पर सभी 13 जिलाधिकारियों से जानकारियां मांगी गई हैं. समिति की तरफ से औद्योगिक रूप से भूमि खरीद को लेकर अब तक की व्यवस्थाओं में राज्य को कितना फायदा हुआ और इसका क्या इस्तेमाल हुआ, कृषि भूमि को लेकर किस तरह की व्यवस्था जरूरी, आवासीय रूप से भूमि खरीद पर किन नियमों का राज्य को फायदा होगा इस पर आकलन किया गया है.
इसके अलावा डेमोग्राफिक चेंज होने की दिशा में भी समिति विचार कर रही है. बेहिसाब जमीनों की खरीद-फरोख्त को सीमित करने से लेकर प्रदेश के विकास और इन्वेस्टमेंट पर इसका कोई असर नहीं पड़ने तक पर विचार किया जा रहा है. साल 1960 के बाद भूमि बंदोबस्त नहीं हुआ. लिहाजा इसको लेकर भी समिति विचार कर रही है. इसके लिए जिलाधिकारियों से साल 2004 से अबतक का लैंड रिकॉर्ड मांगा गया था.
चौंकाने वाली है लैंड रिकॉर्ड में मिली जानकारी: सूत्र बताते हैं कि जिले के जिलाधिकारियों की तरफ से दिए गए लैंड रिकॉर्ड में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. पता चला है कि सरकार की तरफ से इंडस्ट्री को लेकर जमीनों की खरीद पर जो छूट दी गई है, उसका गलत इस्तेमाल किया गया. जानकारी तो यह भी मिली है कि किसी औद्योगिक कार्य के लिए जमीन खरीदी गई लेकिन इस जमीन को प्लॉटिंग कर बेच दिया गया.
यही नहीं, सरकार से जिस कार्य के लिए जमीन ली गई, उसके बदले उस पर कोई दूसरा कार्य शुरू कर दिया गया. ऐसी कई बातें इस लैंड रिकॉर्ड में सामने आई हैं. हालांकि, समिति इस बात का भी अध्ययन कर रही है कि ऐसा किन परिस्थितियों में किया गया और इसके बाद इसको लेकर क्या कार्रवाई हुई ? समिति अपनी रिपोर्ट के माध्यम से ऐसी स्थिति में जरूरी कार्रवाई को लेकर भी अपनी सिफारिश देगी.
क्या है भू कानून समिति: भू कानून समिति में अध्यक्ष समेत कुल पांच सदस्य हैं. इसमें समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं. सदस्य के तौर पर दो रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डीएस गर्ब्याल और अरुण कुमार ढौंडियाल शामिल हैं. डेमोग्राफिक चेंज होने की शिकायत करने वाले अजेंद्र अजय भी इसके सदस्य हैं. उधर, सदस्य सचिव के रूप में राजस्व सचिव आनंद वर्धन फिलहाल इस समिति में हैं.
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हिमाचल के भू कानून की दिखेगी छवि: उम्मीद की जा रही है कि समिति की तरफ से जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी, उसमें हिमाचल के कानून की भी कुछ झलक दिख सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तराखंड में नए कानून को हिमाचल की तर्ज पर बनाए जाने की मांग उठती रही है. समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हिमाचल से ही ताल्लुक रखते हैं. यही नहीं, इस समिति की तरफ से हिमाचल के भू कानून का अध्ययन किया गया है. समिति की तरफ से इस कानून के लिए मांगे गए सुझावों में करीब 200 सुझाव मिले थे. इनमें अधिकतर में उत्तराखंड की तरह ही भौगोलिक परिस्थितियां होने के कारण हिमाचल के भू कानून को प्रदेश में लागू करने के सुझाव मिले थे.
हिमाचल का भू कानून: हिमाचल में भू कानून काफी सख्त है. यहां जमीनों की खरीद-फरोख्त के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं. खासतौर पर कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त के नियम काफी मुश्किल हैं. इसमें कृषि भूमि को किसान के द्वारा ही खरीदा जा सकता है. इसमें भी वह किसान जो हिमाचल में लंबे समय से रह रहा हो.
उत्तराखंड में 90 फीसदी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है. खास बात यह है कि राज्य स्थापना के समय करीब 7.8 चार लाख हेक्टेयर कृषि भूमि थी. अब महज 6.48 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि ही बची है. इस तरह देखा जाए तो अबतक करीब 1.22 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि कम हो चुकी है, जो काफी चिंता की बात है. इसीलिए कृषि भूमि में खरीद-फरोख्त को लेकर विशेष नियम की जरूरत है.
राज्य गठन से है सख्त भू कानून की मांग: वैसे भू कानून उत्तराखंड के लिए कोई नया मुद्दा नहीं है. राज्य स्थापना के बाद से ही भू कानून की मांग उठने लगी थी. उस दौरान उत्तर प्रदेश का ही भू अधिनियम प्रदेश में लागू रहा. राज्य बनने के बाद काफी तेजी से जमीनों की खरीद-फरोख्त शुरू हो गई. इसी को देखते हुए एनडी तिवारी सरकार में भू कानून को लेकर कुछ संशोधन किए गए. उत्तराखंड दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा हुआ है. यहां 71 फीसदी वनों के साथ 13.92 फीसदी मैदानी भूभाग है, तो 86% पर्वतीय क्षेत्र है.
एनडी तिवारी तिवारी सरकार ने साल 2003 में उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम 1950 की धारा 154 में संशोधन किया. इसमें बाहरी प्रदेश के लोगों को आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की अनुमति का नियम तय किया था. यही नहीं, कृषि भूमि पर खरीद को सशर्त रोक लगाई गई थी.
उधर, 12.5 एकड़ तक की कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था. उद्योगों की दृष्टि से सरकार से अनुमति लेने के बाद भूमि खरीदने की व्यवस्था की गई थी. यही नहीं, जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है उस परियोजना को 2 साल में पूरा करने की भी शर्त रखी गई थी. हालांकि इसमें बाद में कुछ शिथिलता की गई.
इसके बाद भी भू कानून का मुद्दा शांत नहीं हुआ और प्रदेश में बाहरी प्रदेश के लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में जमीन खरीदने का मामला सियासत में भी देखने को मिला. लिहाजा, खंडूरी सरकार ने नियम में कुछ और सख्ती करते हुए 500 वर्ग मीटर की अनुमति को और कम करते हुए 250 वर्ग मीटर कर दिया. हालांकि त्रिवेंद्र सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए साल 2018 में खंडूरी सरकार के इस नियम को खत्म कर दिया. जिसके बाद प्रदेश में बाहर से आने वाले लोगों को जमीन खरीदने को लेकर पूरी आजादी मिल गई.
धामी सरकार से उम्मीदें: अब एक बार फिर प्रदेश की धामी सरकार पर भू कानून को लेकर जबरदस्त दबाव है. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कुछ सख्त नियम बना सकती है. वैसे प्रदेश में आवासीय रूप से बाहर से आने वाले लोगों के लिए पूरी तरह से पाबंदी लगेगी. इस बात की आशंका कम ही है. लिहाजा, जो लोग प्रदेश से बाहर रहते हैं, उन्हें उत्तराखंड की शांत वादियों में जमीनें खरीदने का मौका तो मिलेगा लेकिन अगर समिति सख्त नियम बनाने की सिफारिश करती है और सरकार उस पर अमल करे तो कुछ दिक्कतें जरूर हो सकती हैं.