देहरादून: कोरोना की मार, लॉकडाउन की बेड़ियां और हाथ से रोजगार जाने का दर्द क्या होता है. इन मजूदरों की बेबस आंखों को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. कोरोना महामारी की इस दौर में सबसे ज्यादा अगर किसी के जीवन पर असर पड़ा है तो वह है मजदूर तबका. जो दिहाड़ी पर काम कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करता था. लेकिन इस कोरोना काल ने उनसे उनका रोजगार छीन लिया. वहीं अपने घर परिवार को छोड़ दो वक्त की रोटी के इंतजाम में यह कोसों दूर दूसरे शहर में आकर फंस गए. ऐसे में अब ये मजदूर किसी भी तरह से बस अपने परिवार के पास पहुंचना चाहते हैं.
हालांकि, एक अच्छी खबर है कि राज्य सरकार इन मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की कवायद में जुटी है. इसके लिए इन सभी का स्वास्थ्य परीक्षण कर इन सबको बसों से उनके घर भेजने का काम किया जा रहा है. ऐसे में इन्हें घर जाने की खुशी तो है लेकिन मन में रोजगार छीनने की कसक भी है. वहीं इन मजदूरों के पास सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब वह खाली हाथ अपने घर लौटेंगे तो वह अपनी और अपने परिवार के जरूरतों को कैसे पूरा करेंगे ?
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कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने देश की रफ्तार पर ब्रेक लगा रखा है. मानों जैसे सब कुछ ठहर सा गया हो. पूरे देश में काम-धंधा चौपट है, मॉल और दुकानों पर ताले लगे हुए हैं, सारे निर्माण कार्य रुके हुए हैं. ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों को कहीं काम नहीं मिल रहा है. अगर आने वाले समय में जल्द से जल्द इस कोरोना महामारी पर काबू नहीं पाया गया तो इन मजदूरों की स्थिति काफी दयनीय हो जाएगी.