देहरादून: उत्तराखंड में आशा वर्कर्स को मोबाइल फोन देकर हाईटेक बनाने की कोशिश फिलहाल परवान चढ़ती नजर नहीं आ रही है. राज्य में आशा वर्करों के लिए सैकड़ों मोबाइल फोन तो खरीदे गए, लेकिन अब तक उनका उपयोग नहीं हो पाया है. इसका कारण स्वास्थ्य विभाग की रणनीतिक चूक को भी माना जा सकता है.
अधर में लटकी योजना: राज्य में आशा वर्कर्स को फोन देने से जुड़ी योजना को भारी भरकम बजट के साथ आगे बढ़ाया गया. योजना के तहत आशा वर्कर्स को मोबाइल फोन दिए जाने थे, जिसके जरिए न केवल आशा वर्कर्स की लोकेशन पर स्वास्थ्य विभाग निगाह रख पाता बल्कि तमाम कार्यों को भी ऑनलाइन कर सकता है. लिहाजा, विभाग ने बड़ी संख्या में मोबाइल फोन खरीद कर आशा वर्कर्स को देना शुरू किया. हालांकि, यह योजना पूरी होने से पहले ही अधर में लटक गई.
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शहरी क्षेत्रों में अब तक नहीं मिले मोबाइल: ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों की आशा वर्कर्स को तो मोबाइल फोन मिल गए, लेकिन शहरी क्षेत्रों में यह मोबाइल अब तक नहीं मिल पाए हैं. ऐसा ही दावा आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री शिवा दुबे ने किया है. शिवा के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में तो मोबाइल भेज दिए गए हैं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में आशा वर्कर्स को यह मोबाइल अब तक नहीं मिल पाए हैं.
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अंग्रेजी बनी जी का जंजाल: समस्या इतनी भर नहीं है कि शहरी क्षेत्र में आशा वर्कर्स बिना मोबाइल फोन के काम कर रही हैं, बल्कि परेशानी ये है कि जिस ग्रामीण क्षेत्रों में आशा वर्कर्स को मोबाइल फोन मिले भी हैं, वहां भी इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें अंग्रेजी भाषा में ऑप्शंस दिए गए हैं, जबकि अधिकतर आशा वर्कर्स अंग्रेजी में मोबाइल फोन चलाने में सक्षम नहीं हैं. यही नहीं विभाग की तरफ से कई ऐसे सॉफ्टवेयर भी इस मोबाइल में रखे गए हैं, जिनको आशा वर्कर्स के लिए चला पाना मुश्किल है.