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देशभर से लोग इन गांवों के गेहूं की करते हैं डिमांड, बिन सिंचाई-बिन खाद होती है पैदावार

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Published : Nov 21, 2019, 8:02 AM IST

गेहूं का रौनक-धमक सब किस्मों पर भारी पड़ता है, वैसे ही इसका भूसा सबसे ज्यादा सफेद और मुलायम होता है. कृषि विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि गुणवत्ता के मामले में देशी गेहूं का जवाब नहीं है. बनाने में ये बढ़ता ज्यादा है, लेकिन उत्पादन कम होता है.

बिन सिंचाई-बिन खाद होती है पैदावार

नूंह (हरियाणा): सूबे में देशी गेहूं 306 किस्म का कोई जवाब नहीं है. खाने में मुलायम, चमकीला देशी गेहूं सब किस्मों पर भारी पड़ता है. जैसे गेहूं की रौनक-धमक सब किस्मों पर भारी पड़ता है, वैसे ही इसका भूसा सबसे ज्यादा सफेद और मुलायम होता है. इंसान को गेहूं की रोटी खाने में तो जानवरों को चारा खाने में अलग ही आनंद आता है. गेहूं की इस किस्म की नूंह जिले में सबसे ज्यादा पैदावार होती है. जिले के हजारों किसान करीब 5500 हैक्टेयर भूमि में बिजाई कर चुके हैं.

बिन सिंचाई-बिन खाद होती है पैदावार

दाम ज्यादा है, लेकिन डिमांड कम नहीं!
कृषि विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि गुणवत्ता के मामले में देशी गेहूं का जवाब नहीं है. बढ़ता ज्यादा है, लेकिन उत्पादन कम होता है. अन्य किस्मों से देशी गेहूं यानी 306 का भाव काफी अधिक होता है. नूंह में रहने वालों की ही नहीं, सूबे की राजधानी चंडीगढ़ से लेकर देश के कई राज्यों के लोगों की देशी गेहूं पहली पसंद है. इस गेहूं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सिंचाई की कम जरूरत होती है. नूंह जिले में नहरी पानी और ट्यूबवैल के पानी की कमी है. बरसात पर ही देशी गेहूं की खेती आधारित है.

बिन सिंचाई से हो जाती है खेती
कुछ गांव की भूमि तो ऐसी है, जहां बिना सिंचाई के ही गेहूं की खेती होती है. चंदेनी, घासेड़ा, रिठौड़ा, आकेड़ा, मालब, मेवली, बलई, बनारसी इत्यादि गांव हैं. जहां पर अधिकतर किसान देशी गेहूं की खेती करते हैं. चंदेनी गांव के अलावा घासेड़ा इत्यादि गांव की बात करें तो डाहर की भूमि में देशी गेहूं की बिजाई अधिक होती है.

प्राकृतिक रूप से की जाती है खेती
यह जमीन झील नुमा है, जिसमें बरसात के सीजन में पानी अरावली पर्वत से बहकर आने के बाद रुकता है. धीरे-धीरे पानी सूखता रहता है, जो गेहूं की बिजाई के समय तक लगभग सूख जाता है. सूखने के बाद किसान नमी वाली इस जमीन में 306 किस्म का गेहूं बिजाई करता है. तेजी से गेहूं की फसल बढ़ती है, कई बार बरसात भी हो जाती है तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है.

ये पढ़ें- किसानों ने जलाई पराली, सरपंच और ग्राम सचिव को किया गया निलंबित

1 हजार रुपये ज्यादा महंगा होता है गेहूं
यहां का किसान रासायनिक खाद की बजाय देशी खाद और गोबर डालता है. नूंह जिले के अधिकतर किसान बिना सिंचाई- खाद के देशी गेहूं की फसल उगाता है. इसलिए इस भूमि में होने वाली गेहूं की डिमांड ज्यादा होती है.

आजकल कई तरह की बीमारियों से बचाने के लिए लोग चंदेनी इत्यादि गांव में होने वाली बिना खाद की गेहूं को प्राथमिकता देते हैं. यही वजह है कि आम किस्म के गेहूं से देशी गेहूं करीब 1000 रुपये प्रति क्विंटल भाव ज्यादा बिकता है. कुछ किसानों की तो हरी खेती ही खरीदने के लिए लोग नूंह के गांवों का रुख कर लेते हैं.

नूंह (हरियाणा): सूबे में देशी गेहूं 306 किस्म का कोई जवाब नहीं है. खाने में मुलायम, चमकीला देशी गेहूं सब किस्मों पर भारी पड़ता है. जैसे गेहूं की रौनक-धमक सब किस्मों पर भारी पड़ता है, वैसे ही इसका भूसा सबसे ज्यादा सफेद और मुलायम होता है. इंसान को गेहूं की रोटी खाने में तो जानवरों को चारा खाने में अलग ही आनंद आता है. गेहूं की इस किस्म की नूंह जिले में सबसे ज्यादा पैदावार होती है. जिले के हजारों किसान करीब 5500 हैक्टेयर भूमि में बिजाई कर चुके हैं.

बिन सिंचाई-बिन खाद होती है पैदावार

दाम ज्यादा है, लेकिन डिमांड कम नहीं!
कृषि विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि गुणवत्ता के मामले में देशी गेहूं का जवाब नहीं है. बढ़ता ज्यादा है, लेकिन उत्पादन कम होता है. अन्य किस्मों से देशी गेहूं यानी 306 का भाव काफी अधिक होता है. नूंह में रहने वालों की ही नहीं, सूबे की राजधानी चंडीगढ़ से लेकर देश के कई राज्यों के लोगों की देशी गेहूं पहली पसंद है. इस गेहूं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सिंचाई की कम जरूरत होती है. नूंह जिले में नहरी पानी और ट्यूबवैल के पानी की कमी है. बरसात पर ही देशी गेहूं की खेती आधारित है.

बिन सिंचाई से हो जाती है खेती
कुछ गांव की भूमि तो ऐसी है, जहां बिना सिंचाई के ही गेहूं की खेती होती है. चंदेनी, घासेड़ा, रिठौड़ा, आकेड़ा, मालब, मेवली, बलई, बनारसी इत्यादि गांव हैं. जहां पर अधिकतर किसान देशी गेहूं की खेती करते हैं. चंदेनी गांव के अलावा घासेड़ा इत्यादि गांव की बात करें तो डाहर की भूमि में देशी गेहूं की बिजाई अधिक होती है.

प्राकृतिक रूप से की जाती है खेती
यह जमीन झील नुमा है, जिसमें बरसात के सीजन में पानी अरावली पर्वत से बहकर आने के बाद रुकता है. धीरे-धीरे पानी सूखता रहता है, जो गेहूं की बिजाई के समय तक लगभग सूख जाता है. सूखने के बाद किसान नमी वाली इस जमीन में 306 किस्म का गेहूं बिजाई करता है. तेजी से गेहूं की फसल बढ़ती है, कई बार बरसात भी हो जाती है तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है.

ये पढ़ें- किसानों ने जलाई पराली, सरपंच और ग्राम सचिव को किया गया निलंबित

1 हजार रुपये ज्यादा महंगा होता है गेहूं
यहां का किसान रासायनिक खाद की बजाय देशी खाद और गोबर डालता है. नूंह जिले के अधिकतर किसान बिना सिंचाई- खाद के देशी गेहूं की फसल उगाता है. इसलिए इस भूमि में होने वाली गेहूं की डिमांड ज्यादा होती है.

आजकल कई तरह की बीमारियों से बचाने के लिए लोग चंदेनी इत्यादि गांव में होने वाली बिना खाद की गेहूं को प्राथमिकता देते हैं. यही वजह है कि आम किस्म के गेहूं से देशी गेहूं करीब 1000 रुपये प्रति क्विंटल भाव ज्यादा बिकता है. कुछ किसानों की तो हरी खेती ही खरीदने के लिए लोग नूंह के गांवों का रुख कर लेते हैं.

Intro:संवाददाता नूह मेवात
स्टोरी ;- सूबे में सबसे ज्यादा नूह जिले में होती है , देशी गेंहू की पैदावार
सूबे में देशी गेंहू 306 किस्म का कोई जवाब नहीं है। खाने में मुलायम , चमकीला देशी गेंहू सब किस्मों पर भारी पड़ता है। जैसे गेंहू का रौनक - धमक सब किश्मों पर भारी पड़ता है , वैसे ही इसका भूसा सबसे ज्यादा सफ़ेद और मुलायम होता है। इंसान को गेंहू की रोटी खाने में तो जानवरों को चारा खाने में अलग ही आनंद आता है। ये गेंहू नूह जिले में सबसे ज्यादा पैदावार होता है। जिले के हजारों किसान करीब 5500 हैक्टेयर भूमि में बिजाई कर चुका है। अभी भी बिजाई के लिए तीन - चार दिन का समय बचा हुआ है।
कृषि विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि गुणवत्ता के मामले में देशी गेंहू का जवाब नहीं है। बढ़ता ज्यादा है , लेकिन उत्पादन कम होता है। अन्य किश्मों से देशी गेंहू यानि 306 का भाव काफी अधिक होता है। नूह में रहने वालों की ही नहीं सूबे की राजधानी चंडीगढ़ से लेकर देश की राजधानी दिल्ली एवं एनसीआर के लोगों की देशी गेंहू पहली पसंद है। इस गेंहू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सिंचाई की कम जरूरत होती है। नूह जिले में नहरी पानी तथा टयूबवैल के पानी की कमी है। बरसात पर ही देशी गेंहू की खेती आधारित है। कुछ गांव की भूमि तो ऐसी है , जहां बिना सिंचाई के ही गेंहू की खेती होती है। चंदेनी , घासेड़ा , रिठौड़ा , आकेड़ा , मालब , मेवली , बलई , बनारसी इत्यादि गांव हैं , जहां पर अधिकतर किसान देशी गेंहू की खेती करते हैं। चंदेनी गांव के अलावा घासेड़ा इत्यादि गांव की बात करें तो डहर की भूमि में देशी गेंहू की बिजाई अधिक होती है। यह जमीन झील नुमा है , जिसमें बरसात के सीजन में पानी अरावली पर्वत से बहकर आने के बाद रुकता है। धीरे - धीरे पानी सूखता रहता है , जो गेंहू की बिजाई के समय तक लगभग सूख जाता है। सूखने के बाद किसान नमी वाली इस जमीन में 306 किश्म का गेंहू बिजाई करता है। तेजी से गेंहू की फसल बढ़ती है , कई बार बरसात भी हो जाती है , तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है। रही बात खाद की तो एक तो पानी रुकने की वजह से भूमि ताकतवर हो जाती है या फिर ऑर्गेनिक खाद की बजाय किसान देशी खाद गोबर इत्यादि डालता है। नूह जिले के अधिकतर किसान बिना सिंचाई - खाद के देशी गेंहू की फसल उगाता है। इसलिए इस भूमि में होने वाली गेंहू की डिमांड ज्यादा होती है। आजकल कई प्रकार की बिमारियों से बचाने के लिए लोग चंदेनी इत्यादि गांव में होने वाली बिना खाद की गेंहू को प्राथमिकता देता है। यही वजह है कि आम किश्म के गेंहू से देशी गेंहू करीब 1000 रुपये प्रति क्विंटल भाव अधिक बिकता है। कुछ किसानों की खेती तो हरी ही खरीदने के लिए लोग नूह के गांवों का रुख कर रहे हैं।
बाइट;- अजित सिंह एसडीओ कृषि विभाग
बाइट;- हाजी हनीफ किसान
संवाददाता कासिम खान नूह मेवात

Body:संवाददाता नूह मेवात
स्टोरी ;- सूबे में सबसे ज्यादा नूह जिले में होती है , देशी गेंहू की पैदावार
सूबे में देशी गेंहू 306 किस्म का कोई जवाब नहीं है। खाने में मुलायम , चमकीला देशी गेंहू सब किस्मों पर भारी पड़ता है। जैसे गेंहू का रौनक - धमक सब किश्मों पर भारी पड़ता है , वैसे ही इसका भूसा सबसे ज्यादा सफ़ेद और मुलायम होता है। इंसान को गेंहू की रोटी खाने में तो जानवरों को चारा खाने में अलग ही आनंद आता है। ये गेंहू नूह जिले में सबसे ज्यादा पैदावार होता है। जिले के हजारों किसान करीब 5500 हैक्टेयर भूमि में बिजाई कर चुका है। अभी भी बिजाई के लिए तीन - चार दिन का समय बचा हुआ है।
कृषि विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि गुणवत्ता के मामले में देशी गेंहू का जवाब नहीं है। बढ़ता ज्यादा है , लेकिन उत्पादन कम होता है। अन्य किश्मों से देशी गेंहू यानि 306 का भाव काफी अधिक होता है। नूह में रहने वालों की ही नहीं सूबे की राजधानी चंडीगढ़ से लेकर देश की राजधानी दिल्ली एवं एनसीआर के लोगों की देशी गेंहू पहली पसंद है। इस गेंहू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सिंचाई की कम जरूरत होती है। नूह जिले में नहरी पानी तथा टयूबवैल के पानी की कमी है। बरसात पर ही देशी गेंहू की खेती आधारित है। कुछ गांव की भूमि तो ऐसी है , जहां बिना सिंचाई के ही गेंहू की खेती होती है। चंदेनी , घासेड़ा , रिठौड़ा , आकेड़ा , मालब , मेवली , बलई , बनारसी इत्यादि गांव हैं , जहां पर अधिकतर किसान देशी गेंहू की खेती करते हैं। चंदेनी गांव के अलावा घासेड़ा इत्यादि गांव की बात करें तो डहर की भूमि में देशी गेंहू की बिजाई अधिक होती है। यह जमीन झील नुमा है , जिसमें बरसात के सीजन में पानी अरावली पर्वत से बहकर आने के बाद रुकता है। धीरे - धीरे पानी सूखता रहता है , जो गेंहू की बिजाई के समय तक लगभग सूख जाता है। सूखने के बाद किसान नमी वाली इस जमीन में 306 किश्म का गेंहू बिजाई करता है। तेजी से गेंहू की फसल बढ़ती है , कई बार बरसात भी हो जाती है , तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है। रही बात खाद की तो एक तो पानी रुकने की वजह से भूमि ताकतवर हो जाती है या फिर ऑर्गेनिक खाद की बजाय किसान देशी खाद गोबर इत्यादि डालता है। नूह जिले के अधिकतर किसान बिना सिंचाई - खाद के देशी गेंहू की फसल उगाता है। इसलिए इस भूमि में होने वाली गेंहू की डिमांड ज्यादा होती है। आजकल कई प्रकार की बिमारियों से बचाने के लिए लोग चंदेनी इत्यादि गांव में होने वाली बिना खाद की गेंहू को प्राथमिकता देता है। यही वजह है कि आम किश्म के गेंहू से देशी गेंहू करीब 1000 रुपये प्रति क्विंटल भाव अधिक बिकता है। कुछ किसानों की खेती तो हरी ही खरीदने के लिए लोग नूह के गांवों का रुख कर रहे हैं।
बाइट;- अजित सिंह एसडीओ कृषि विभाग
बाइट;- हाजी हनीफ किसान
संवाददाता कासिम खान नूह मेवात

Conclusion:संवाददाता नूह मेवात
स्टोरी ;- सूबे में सबसे ज्यादा नूह जिले में होती है , देशी गेंहू की पैदावार
सूबे में देशी गेंहू 306 किस्म का कोई जवाब नहीं है। खाने में मुलायम , चमकीला देशी गेंहू सब किस्मों पर भारी पड़ता है। जैसे गेंहू का रौनक - धमक सब किश्मों पर भारी पड़ता है , वैसे ही इसका भूसा सबसे ज्यादा सफ़ेद और मुलायम होता है। इंसान को गेंहू की रोटी खाने में तो जानवरों को चारा खाने में अलग ही आनंद आता है। ये गेंहू नूह जिले में सबसे ज्यादा पैदावार होता है। जिले के हजारों किसान करीब 5500 हैक्टेयर भूमि में बिजाई कर चुका है। अभी भी बिजाई के लिए तीन - चार दिन का समय बचा हुआ है।
कृषि विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि गुणवत्ता के मामले में देशी गेंहू का जवाब नहीं है। बढ़ता ज्यादा है , लेकिन उत्पादन कम होता है। अन्य किश्मों से देशी गेंहू यानि 306 का भाव काफी अधिक होता है। नूह में रहने वालों की ही नहीं सूबे की राजधानी चंडीगढ़ से लेकर देश की राजधानी दिल्ली एवं एनसीआर के लोगों की देशी गेंहू पहली पसंद है। इस गेंहू की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सिंचाई की कम जरूरत होती है। नूह जिले में नहरी पानी तथा टयूबवैल के पानी की कमी है। बरसात पर ही देशी गेंहू की खेती आधारित है। कुछ गांव की भूमि तो ऐसी है , जहां बिना सिंचाई के ही गेंहू की खेती होती है। चंदेनी , घासेड़ा , रिठौड़ा , आकेड़ा , मालब , मेवली , बलई , बनारसी इत्यादि गांव हैं , जहां पर अधिकतर किसान देशी गेंहू की खेती करते हैं। चंदेनी गांव के अलावा घासेड़ा इत्यादि गांव की बात करें तो डहर की भूमि में देशी गेंहू की बिजाई अधिक होती है। यह जमीन झील नुमा है , जिसमें बरसात के सीजन में पानी अरावली पर्वत से बहकर आने के बाद रुकता है। धीरे - धीरे पानी सूखता रहता है , जो गेंहू की बिजाई के समय तक लगभग सूख जाता है। सूखने के बाद किसान नमी वाली इस जमीन में 306 किश्म का गेंहू बिजाई करता है। तेजी से गेंहू की फसल बढ़ती है , कई बार बरसात भी हो जाती है , तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाती है। रही बात खाद की तो एक तो पानी रुकने की वजह से भूमि ताकतवर हो जाती है या फिर ऑर्गेनिक खाद की बजाय किसान देशी खाद गोबर इत्यादि डालता है। नूह जिले के अधिकतर किसान बिना सिंचाई - खाद के देशी गेंहू की फसल उगाता है। इसलिए इस भूमि में होने वाली गेंहू की डिमांड ज्यादा होती है। आजकल कई प्रकार की बिमारियों से बचाने के लिए लोग चंदेनी इत्यादि गांव में होने वाली बिना खाद की गेंहू को प्राथमिकता देता है। यही वजह है कि आम किश्म के गेंहू से देशी गेंहू करीब 1000 रुपये प्रति क्विंटल भाव अधिक बिकता है। कुछ किसानों की खेती तो हरी ही खरीदने के लिए लोग नूह के गांवों का रुख कर रहे हैं।
बाइट;- अजित सिंह एसडीओ कृषि विभाग
बाइट;- हाजी हनीफ किसान
संवाददाता कासिम खान नूह मेवात

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