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राज्यपाल ने 'एंबेसडर ऑफ पीस' पुस्तक का किया विमोचन, बोले- संत देश के असली नायक

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Published : Oct 8, 2022, 4:07 PM IST

राजभवन में आज अहिंसा विश्व भारती (Ahimsa Vishwa Bharati) के तत्वाधान में आज 'प्रकृति एवं संस्कृति के संरक्षण में संतों का योगदान' विषय पर गोष्ठी का आयोजन हुआ. जिसका उद्धाटन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने किया. इस मौके पर संतों ने अपने विचार प्रस्तुत किए.

Ambassador of Peace
राज्यपाल ने 'एंबेसडर ऑफ पीस' पुस्तक का किया विमोचन.

देहरादून: उत्तराखंड राजभवन में आज अहिंसा विश्व भारती (Ahimsa Vishwa Bharati) द्वारा 'प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण में संतों का योगदान' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (Governor Lt Gen Gurmeet Singh) ने उद्घाटन किया. अहिंसा विश्व भारती एवं विश्व शांति केन्द्र के संस्थापक आचार्य डॉ लोकेश के 40वें दीक्षा दिवस पर आयोजित इस संगोष्ठी में पंतजलि के संस्थापक एवं योग गुरु स्वामी रामदेव, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, आचार्य डॉ लोकेश, महामंडलेश्वर स्वामी अद्वैतानंद सहित अन्य गणमान्य लोगों ने इस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया.

वहीं, इस कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल ने अहिंसा विश्व भारती की 'एंबेसडर ऑफ पीस' (Ambassador of Peace) पुस्तक और विश्व शांति केन्द्र की विवरणिका का अनावरण भी किया. राज्यपाल ने अहिंसा विश्व भारती की ओर से स्वामी रामदेव को 'अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा पुरस्कार-2022' से भी सम्मानित किया. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि भारत में प्रकृति और संस्कृति का समन्वय है और यह समन्वय भारत की महान संत परम्परा के कारण ही है. भारत की संस्कृति स्वयं में ही प्रकृति की संस्कृति है, जहां ईश्वर के अवतारों में भी प्रकृति का साथ होता है.

पढ़ें- चमोली के दौरे पर राज्यपाल गुरमीत सिंह, भगवान बदरी विशाल के लिए दर्शन

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रकृति की सदैव पूजा की जाती है. महान महापुरुषों ने प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश दिया है जिसे हमें आत्मसात करना चाहिए. राज्यपाल ने कहा कि हमें अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन की जिम्मेदारी लेनी होगी. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए प्रकृति संरक्षण पर ध्यान देना जरूरी है, इसके लिए जन चेतना और लोगों का जागरूक होना आवश्यक है. प्रकृति संरक्षण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि संत देश के असली नायक हैं. संतों ने अपने ज्ञान के बल पर त्याग और तपस्या के बल पर समाज को एक नयी दिशा प्रदान की है. भारत की स्वतंत्रता आंदोलनों में भी संतों ने समाज का मार्गदर्शन किया है. राज्यपाल ने आशा व्यक्त की कि अहिंसा विश्व भारती के माध्यम से पूरी दुनिया में प्रकृति एवं संस्कृति की रक्षा के साथ-साथ अहिंसा, शांति और सद्भावना का संदेश प्रसारित होगा.

पढ़ें- राज्यपाल गुरमीत सिंह ने किए बाबा केदार के दर्शन, तीर्थयात्रियों से की मुलाकात

इस कार्यक्रम में योगगुरु स्वामी रामदेव (Yoga Guru Swami Ramdev), परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती (Swami Chidananda Saraswati) और महामंडलेश्वर स्वामी अद्वैतानंद ने अपने-अपने विचार रखते हुए कहा कि विश्व शांति एवं सद्भावना स्थापित करने के लिए आचार्य लोकेश के समर्पण और उनकी निष्ठा प्रशंसनीय है. उन्होंने कहा कि प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के लिए अहिंसा विश्व भारती द्वारा किए जा रहे कार्यों को देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहा जा रहा है. सभी ने प्रकृति संरक्षण के लिए लोगों से आगे-आने का आह्वान किया.

वहीं, आचार्य डॉ लोकेश ने कहा कि भारतीय संस्कृति प्राचीनतम एवं महान संस्कृति है, सर्वधर्म समभाव जिसका मूल मंत्र है, भारतीय होने के नाते अपने देश की महान संस्कृति एवं वसुधेव कुटुंबकम के संदेश को विश्व भर में फैलाना गौरव का विषय है.

देहरादून: उत्तराखंड राजभवन में आज अहिंसा विश्व भारती (Ahimsa Vishwa Bharati) द्वारा 'प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण में संतों का योगदान' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (Governor Lt Gen Gurmeet Singh) ने उद्घाटन किया. अहिंसा विश्व भारती एवं विश्व शांति केन्द्र के संस्थापक आचार्य डॉ लोकेश के 40वें दीक्षा दिवस पर आयोजित इस संगोष्ठी में पंतजलि के संस्थापक एवं योग गुरु स्वामी रामदेव, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती, आचार्य डॉ लोकेश, महामंडलेश्वर स्वामी अद्वैतानंद सहित अन्य गणमान्य लोगों ने इस कार्यक्रम में प्रतिभाग किया.

वहीं, इस कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल ने अहिंसा विश्व भारती की 'एंबेसडर ऑफ पीस' (Ambassador of Peace) पुस्तक और विश्व शांति केन्द्र की विवरणिका का अनावरण भी किया. राज्यपाल ने अहिंसा विश्व भारती की ओर से स्वामी रामदेव को 'अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा पुरस्कार-2022' से भी सम्मानित किया. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि भारत में प्रकृति और संस्कृति का समन्वय है और यह समन्वय भारत की महान संत परम्परा के कारण ही है. भारत की संस्कृति स्वयं में ही प्रकृति की संस्कृति है, जहां ईश्वर के अवतारों में भी प्रकृति का साथ होता है.

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उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रकृति की सदैव पूजा की जाती है. महान महापुरुषों ने प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश दिया है जिसे हमें आत्मसात करना चाहिए. राज्यपाल ने कहा कि हमें अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन की जिम्मेदारी लेनी होगी. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए प्रकृति संरक्षण पर ध्यान देना जरूरी है, इसके लिए जन चेतना और लोगों का जागरूक होना आवश्यक है. प्रकृति संरक्षण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि संत देश के असली नायक हैं. संतों ने अपने ज्ञान के बल पर त्याग और तपस्या के बल पर समाज को एक नयी दिशा प्रदान की है. भारत की स्वतंत्रता आंदोलनों में भी संतों ने समाज का मार्गदर्शन किया है. राज्यपाल ने आशा व्यक्त की कि अहिंसा विश्व भारती के माध्यम से पूरी दुनिया में प्रकृति एवं संस्कृति की रक्षा के साथ-साथ अहिंसा, शांति और सद्भावना का संदेश प्रसारित होगा.

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इस कार्यक्रम में योगगुरु स्वामी रामदेव (Yoga Guru Swami Ramdev), परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती (Swami Chidananda Saraswati) और महामंडलेश्वर स्वामी अद्वैतानंद ने अपने-अपने विचार रखते हुए कहा कि विश्व शांति एवं सद्भावना स्थापित करने के लिए आचार्य लोकेश के समर्पण और उनकी निष्ठा प्रशंसनीय है. उन्होंने कहा कि प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के लिए अहिंसा विश्व भारती द्वारा किए जा रहे कार्यों को देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहा जा रहा है. सभी ने प्रकृति संरक्षण के लिए लोगों से आगे-आने का आह्वान किया.

वहीं, आचार्य डॉ लोकेश ने कहा कि भारतीय संस्कृति प्राचीनतम एवं महान संस्कृति है, सर्वधर्म समभाव जिसका मूल मंत्र है, भारतीय होने के नाते अपने देश की महान संस्कृति एवं वसुधेव कुटुंबकम के संदेश को विश्व भर में फैलाना गौरव का विषय है.

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