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दुनिया में सिर्फ भारत में ही पाया जाता है 'डांसिंग डियर', अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा - Dancing Fear Story

मणिपुर के राज्य पशु शंगाई को स्थानीय लोग नाचने वाला हिरण (डांसिंग डियर) कहते हैं. हिरण की ये प्रजाति दुनियाभर में महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही पाई जाती है. नेशनल पार्क में पानी पर तैरता घास का मैदान डांसिंग डियर का आशियाना है.

डांसिंग डियर के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा.
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Published : Aug 29, 2019, 10:54 AM IST

देहरादून: शंगाई जिसे स्थानीय लोग डांसिंग डियर भी कहते हैं. महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही मिलता है. इनकी संख्या से साफ है कि दुनिया में इस प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. जिनकी संख्या करीब सौ से डेढ़ सौ के आसपास रह गई है. हालांकि भारत सरकार की तरफ से हुई पहल के बाद इनके संरक्षण की उम्मीदें बढ़ गयी हैं.

दरअसल, मणिपुर के राज्य पशु शंगाई को स्थानीय लोग नाचने वाला हिरण (डांसिंग डियर) कहते हैं. हिरण की ये प्रजाति दुनियाभर में महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही पाई जाती है. नेशनल पार्क में पानी पर तैरता घास का मैदान डांसिंग डियर का आशियाना है. ये दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ उद्यान (floating national park) है. वैज्ञानिकों के अनुसार तैरती हुई घास के मैदान पर चलते समय बैलेंस बनाने की कोशिश में ऐसा महसूस होता है कि हिरण नाच रहा है और इसीलिए इसे डांसिंग डियर भी कहा जाता है.

डांसिंग डियर के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा.

पढ़ें-लोक परंपराओं के संरक्षण का द्योतक है सातूं-आठूं महोत्सव, दूर-दराज से पहुंचते हैं लोग

डांसिंग डियर को लेकर चिंता की बात यह है कि एक तो यह प्रजाति दुनियाभर में सिर्फ मणिपुर में ही पाई जाती है और यहां भी धीरे-धीरे इनकी संख्या कम हो रही है. फिलहाल वैज्ञानिक बताते हैं कि इनकी संख्या करीब सौ से डेढ़ सौ के आसपास रह गई है. शंगाई या डांसिंग डियर की कम होती संख्या के लिए सबसे बड़ी वजह वह फुण्डिया है, जिनपर ये विचरण करते हैं. बता दें कि लोकटक झील पर घास और मृदा के संयुक्त बायोमास जिसे स्थानीय लोग फुंडी कहते हैं. यहीं पर डांसिंग डियर रहते हैं.

अब इन फुण्डियों के पतले होने चलते इन्हें दिक्कतें आ रही हैं. इसके अलावा डांसिंग डियर के लिए कम स्थान और अवैध शिकार भी दिक्कतें बढ़ा रहा है. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को अब शंगाई के संरक्षण का काम सौंपा गया है. इसके लिए डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिक शंगाई के लिए मणिपुर में ही दूसरा आशियाना बनाने की तैयारी कर रहे हैं. साथ ही स्थानीय लोगों को जागरूक करने समेत शंगाई को बीमारियों से बचाने जैसी कोशिशें भी की जा रही हैं.

देहरादून: शंगाई जिसे स्थानीय लोग डांसिंग डियर भी कहते हैं. महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही मिलता है. इनकी संख्या से साफ है कि दुनिया में इस प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. जिनकी संख्या करीब सौ से डेढ़ सौ के आसपास रह गई है. हालांकि भारत सरकार की तरफ से हुई पहल के बाद इनके संरक्षण की उम्मीदें बढ़ गयी हैं.

दरअसल, मणिपुर के राज्य पशु शंगाई को स्थानीय लोग नाचने वाला हिरण (डांसिंग डियर) कहते हैं. हिरण की ये प्रजाति दुनियाभर में महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही पाई जाती है. नेशनल पार्क में पानी पर तैरता घास का मैदान डांसिंग डियर का आशियाना है. ये दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ उद्यान (floating national park) है. वैज्ञानिकों के अनुसार तैरती हुई घास के मैदान पर चलते समय बैलेंस बनाने की कोशिश में ऐसा महसूस होता है कि हिरण नाच रहा है और इसीलिए इसे डांसिंग डियर भी कहा जाता है.

डांसिंग डियर के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा.

पढ़ें-लोक परंपराओं के संरक्षण का द्योतक है सातूं-आठूं महोत्सव, दूर-दराज से पहुंचते हैं लोग

डांसिंग डियर को लेकर चिंता की बात यह है कि एक तो यह प्रजाति दुनियाभर में सिर्फ मणिपुर में ही पाई जाती है और यहां भी धीरे-धीरे इनकी संख्या कम हो रही है. फिलहाल वैज्ञानिक बताते हैं कि इनकी संख्या करीब सौ से डेढ़ सौ के आसपास रह गई है. शंगाई या डांसिंग डियर की कम होती संख्या के लिए सबसे बड़ी वजह वह फुण्डिया है, जिनपर ये विचरण करते हैं. बता दें कि लोकटक झील पर घास और मृदा के संयुक्त बायोमास जिसे स्थानीय लोग फुंडी कहते हैं. यहीं पर डांसिंग डियर रहते हैं.

अब इन फुण्डियों के पतले होने चलते इन्हें दिक्कतें आ रही हैं. इसके अलावा डांसिंग डियर के लिए कम स्थान और अवैध शिकार भी दिक्कतें बढ़ा रहा है. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को अब शंगाई के संरक्षण का काम सौंपा गया है. इसके लिए डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिक शंगाई के लिए मणिपुर में ही दूसरा आशियाना बनाने की तैयारी कर रहे हैं. साथ ही स्थानीय लोगों को जागरूक करने समेत शंगाई को बीमारियों से बचाने जैसी कोशिशें भी की जा रही हैं.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट......

नेशनल खबर है....दुनिया मे एक प्रजाति के खत्म होने का संकट है।
इसे नेशनल में भी लगाया जा सकता है।


Summary- पूरी दुनिया में नाचने वाला हिरण सिर्फ और सिर्फ मणिपुर में ही मिलता है..महज 100 से 150 की संख्या में मौजूद डांसिंग डियर दुनिया की दुर्लभ प्रजाति में से एक है...शंगाई या डांसिंग डियर पर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट......


शंगाई ..जिसे स्थानीय लोग डांसिंग डियर भी कहते हैं..महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही मिलता है...इनकी संख्या से साफ है कि दुनिया मे ये प्रजाति खात्मे की तरफ बढ़ रही है...हालाकिं भारत सरकार की तरफ ने हुई पहल के बाद इनके संरक्षण की उम्मीदें बढ़ गयी हैं। 




Body:डांसिंग डियर...ये नाम किसी को भी इसके बारे में जानने को उत्सुक कर देगा.. दरअसल मणिपुर के राज्य पशु शंगाई को ही स्थानीय लोग नाचने वाला हिरण या डांसिंग डियर कहते है...हिरण की ये प्रजाति दुनिया भर में महज मणिपुर के केबुल लामजाओ नेशनल पार्क में ही पाई जाती है... नेशनल पार्क में  पानी पर तैरता घास का मैदान डांसिंग डियर का आशियाना है..ये दुनिया का एकमात्र तैरता हुआ उद्यान(floating national park) है। वैज्ञानिकों के अनुसार तैरती हुई घास के मैदान पर चलते समय बैलेंस बनाने की कोशिश ऐसा महसूस कराती है कि हिरन नाच रहा है और इसीलिए इसे डांसिंग डियर भी कहा जाता है। 


डॉ रुचि बडोला, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया


डांसिंग बियर को लेकर चिंता की बात यह है की एक तो यह प्रजाति दुनिया भर में महेश मणिपुर में ही पाई जाती है और यहां भी धीरे-धीरे इनकी संख्या कम हो रही है। फिलहाल वैज्ञानिक बताते हैं कि इनकी संख्या करीब 100 से डेढ़ सौ के आसपास है। शंगाई या डांसिंग डियर की कम होती संख्या के लिए सबसे बड़ी वजह वह फुण्डिया हैं जिनपर ये विचरण करते हैं। आपको बता दें कि लोकटक झील पर घास और मृदा के संयुक्त बायोमास जिसे स्थानीय लोग फुंडी कहते हैं पर ही डांसिंग डिअर रहते हैं और अब इन फुण्डियों के पतला होने चलते इन्हें दिक्कतें आ रही है.. इसके अलावा डांसिंग बियर के लिए कम स्थान और अवैध शिकार भी दिक्कतें बढ़ा रहा है। 


डॉ रुचि बडोला, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया


वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को अब शंगाई के संरक्षण का काम सौंपा गया है। इसके लिए डब्ल्यूआईआई के वैज्ञानिक शंगाई के लिए मणिपुर में ही दूसरा आशियाना बनाने की तैयारी कर रहे हैं। साथ ही स्थानीय लोगों को जागरूक करने समेत शंगाई को बीमारियों से बचाने जैसी कोशिशें भी की जा रही है। 


डॉ रुचि बडोला, वरिष्ठ वैज्ञानिक वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया





Conclusion:डांसिंग डियर का जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण योगदान है और दुनिया में इसे दुर्लभ प्रजातियों में भी शामिल किया गया है ऐसे में महज सौ से डेढ़ सौ की संख्या में बचे शंगाई पर वर्ल्ड इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया न केवल संरक्षण को लेकर काम कर रहा है बल्कि इससे जुड़े अध्ययन भी किए जा रहे हैं ताकि इस दुर्लभ प्रजाति को बढ़ाया जा सके।
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