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राज्य स्थापना दिवस: अटल ने बनाया, संवारेगा कौन? क्या बन पाया शहीदों के सपनों का प्रदेश?

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Published : Nov 9, 2020, 6:00 AM IST

Updated : Nov 9, 2020, 12:13 PM IST

उत्तराखंड राज्य का सपना पूरा करने वाले भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पहाड़ी क्षेत्रों से गहरा लगाव था. लेकिन, क्या अटल बिहारी वाजपेयी और शहीद आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड बन पाया है? पढ़िए उत्तराखंड स्थापना दिवस पर विशेष रिपोर्ट.

Uttarakhand State Foundation Day
राज्य स्थापना दिवस

देहरादून: पहाड़ की अपनी सरकार है, मुख्यमंत्री है, राजधानी है, लंबा चौड़ा अधिकारी और कर्मचारी तंत्र है, इतना सब कुछ होने के बाद भी कुछ न होने की टीस पहाड़ी लोगों के जेहन में आज भी बरकरार है. उत्तराखंड राज्य का सपना पूरा करने वाले भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पहाड़ी क्षेत्रों से गहरा लगाव था.

उत्तराखंड अलग राज्य निर्माण को लेकर लंबा आंदोलन चला. वर्ष 1996 में अपने देहरादून दौरे के दौरान उन्होंने राज्य आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का भरोसा दिया था और एनडीए की सरकार बनते ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भरोसे को कायम करते हुए नए राज्य की स्थापना की.

राज्य में पहली निर्वाचित सरकार नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की बनी थी. वर्ष 2003 में प्रधानमंत्री के रूप में नैनीताल पहुंचे अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी के आग्रह पर उत्तराखंड के लिए दस साल के विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा की. यह उत्तराखंड के प्रति उनकी दूरदर्शी सोच ही थी कि औद्योगिक पैकेज देकर उन्होंने नवोदित राज्य को खुद के पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया है.

पूर्व पीएम वाजपेयी का उत्तराखंड के प्रति विशाल हृदय

पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपने उदार और विशाल हृदय की जो मिसाल पेश की, उत्तराखंड उसका गवाह बन गया. उत्तराखंड को देश के 27वें राज्य के रूप में तोहफा देने वाले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही बीजेपी पहला विधानसभा चुनाव हार गई थी. वर्ष 2002 में राज्य में कांग्रेस सरकार बनने पर एनडी तिवारी ने मुख्यमंत्री के रूप में उत्तराखंड की कमान संभाली. चुनाव हारने के महज एक साल बाद ही जनवरी, 2003 में नैनीताल प्रवास पर आए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तराखंड को दस साल के लिए औद्योगिक पैकेज दे दिया.

विपक्ष की सरकार के कार्यकाल में राज्य को दिया गया ये तोहफा राजनीति में भी एक मिसाल बन गया. खासतौर पर मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जहां तमाम दल एक-दूसरे को सहन करने को तैयार नहीं हैं, ऐसे में अटल की ये मिसाल अनुकरणीय भी मानी जा सकती है. आज अटल बिहारी वाजयेपी के सपनों का उत्तराखंड 20 बरस का हो चला है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि अटल बिहारी वाजपेयी और शहीद आंदोलनकारियों के सपनों के उत्तराखंड के संवारेगा कौन?

स्थायी राजधानी का मुद्दा

राज्य स्थापना के 20वें साल के बहाने स्थायी राजधानी का मुद्दा एक बार फिर गर्म होने लगा है. झारखंड और छत्तीसगढ़ के साथ 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आए उत्तराखंड की स्थायी राजधानी की कहानी 20 साल बाद भी अधूरी है. जनभावनाओं की प्रतीक गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने में ही 20 साल लग गए, लेकिन आज भी स्थायी राजधानी का कुछ अता-पता नहीं.

ये भी पढ़ें: स्थापना दिवस: सत्ता के गलियारों में चलती नूरा-कुश्ती, राजनीतिक लाभ ने तोड़े प्रदेश के सपने!

आज उत्तराखंड देश का अकेला ऐसा प्रदेश है, जिसमें दो विधानसभा भवन हैं और तीसरा बनाने की तैयारी है लेकिन स्थायी राजधानी का कुछ पता नहीं. वर्तमान सरकार के ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने की बात कही है. लेकिन, जब-जब कांग्रेस सत्ता में रही उसने स्थायी राजधानी की बात पर अमल ही नहीं किया.

ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने में 20 साल लग गए

त्रिवेंद्र सरकार ने जनभावनाओं की प्रतीक गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया. 8 जून 2020 को आधिकारिक स्वीकृति के बाद उत्तराखंड की दो राजधानियां बन गई हैं. गैरसैंण को ग्रीष्मकाली राजधानी बनाने का श्रेय भी बीजेपी और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को ही जाता है.

उत्तराखंड में सियासी गहमा-गहमी इस कदर रही कि पहाड़ी जिलों में विकास की बात को राजनीतिक दल भूल ही गए हैं. राजनीतिक अस्थिरता से राज्य को हुए नुकसान के बीच भाजपा पहाड़ों में विकास होने की बात कह रही है और सियासी अस्थिरता के लिए महज कांग्रेस को ही दोष दे रही है. लेकिन, सियासी नूरा-कुश्ती में पहाड़ के लोग अब भी विकास की आस में बैठे हुए हैं.

उत्तराखंड के माननीयों के गांवों की स्थिति

  1. सीएम त्रिवेंद्र रावत के पैतृक गांव खैरासैंण में राजकीय ऐलोपैथिक चिकित्सालय फार्मासिस्ट के भरोसे चल रहा है. कुछ महीने पहले ही यहां के डॉक्टर को सतपुली अटैच कर दिया गया था. नतीजा यह है गांव के लोगों को उपचार कराने के लिए मीलों दूर सतपुली की दौड़ लगानी पड़ रही है.
  2. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का पैतृक गांव धड़गांव ग्राम सभा सेडियाधार है. वर्ष 2014 में सेडियाधार सहित दर्जनों गांव को पानी पहुंचाने के लिए चौबट्टाखाल पम्पिंग योजना शुरू की गई, लेकिन इस योजना से नलों में पानी तक नहीं पहुंचा. यही नहीं, इलाके में मोबाइल नेटवर्क भी ध्वस्त है.
  3. कैबिनेट मदन कौशिक का गांव इमलीखेड़ा में पेयजल समस्या का हल नहीं हो पा रहा है. 12 हजार की आबादी वाले इमलीखेड़ा में स्वजल प्रोजेक्ट से 2005 में एक ओवर हेड टैंक का निर्माण कराया गया था. बीते 13 साल से टैंक शोपीस बना हुआ है. ट्यूबवेल खराब होने के कारण इसका उपयोग नहीं हो पाया है. ग्रामीणों के मुताबिक टैंक की मोटर भी अब गायब हो चुकी है. गांव को नगर पंचायत बनाने का वादा भी लंबे समय से अधर में लटका हुआ है.
  4. कैबिनेट मंत्री डॉ धन सिंह रावत के गांव नौगांव में बिजली, पानी और सड़क तो है, लेकिन खेती-बाड़ी बर्बाद हो रही है. बंदर और सुअरों के आंतक से वहां के लोग परेशान हैं. ये जानवर लोगों की खून-पसीने की मेहनत को बर्बाद कर रहे हैं. ठोस योजना न होने के कारण लोगों ने खेती-बाड़ी छोड़नी शुरू कर दी है.
  5. शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के गृहनगर गूलरभोज में उनके घर से मात्र 200 मीटर की दूरी पर स्थित एएनके इंटर कॉलेज की हालत बेहर खराब है. 23 कमरों वाले इस स्कूल में करीब एक हजार छात्र पढ़ते हैं. यहां लंबे समय से शिक्षकों के चार पद खाली हैं, जबकि, 13 कमरे जर्जर हालत में हैं. गूलरभोज में कोई भी डिग्री कॉलेज नहीं है. पीएचसी गूलरभोज में वर्ष 2006 से यहां प्रभारी डॉक्टर का पद भी खाली है।
  6. परिवहन मंत्री यशपाल आर्य का पैतृक गांव नैनीताल के अंतर्गत बोराकोट तोक त्यूरा ब्लॉक रामगढ़ में है। त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद से उनके पैतृक गांव में कोई काम नहीं हुआ। मंत्री की घोषणा के बावजूद यहां बस स्टैंड और यात्री शेड तक नहीं बन सका। यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन न तो एक्सरे मशीन है और न ही पैथोलॉजी की सुविधा। यहां तैनात तीन डॉक्टरों में से दो हल्द्वानी से अटैच हैं।
  7. वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के गांव गहड़ के लोग खस्ताहाल सड़क और पेयजल आपूर्ति सुचारू न होने से परेशान हैं. स्वीत से गहड़ तक पांच किलोमीटर के दायरे में लोग दुखी हैं. इस मार्ग पर एक किमी तो पिछले काफी समय से टूटी पड़ी है. पंपिंग योजना से गांव तक पानी की सप्लाई बहुत खराब है. अफसरों का कहना है कि सड़क का निर्माण किया जा रहा है. पानी के टैंकों की भी सफाई कराई जा रही है.
  8. टिहरी की नरेंद्रनगर सीट से विधायक सुबोध उनियाल मूल रूप से पौड़ी के औणी गांव के हैं. सुबोध के पैतृक गांव के लोगों को उनसे काफी उम्मीद रहती है, लेकिन उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हो पा रही हैं. खंडाह-गिरगांव-पीपलकोटी-बमठि मोटर मार्ग कई वर्षों से बदहाल है. औणी से सत्याखाल लिंक रोड भी सपना बनी हुई है. इस गांव में पानी की आपूर्ति भी नियमित नहीं है.
  9. पूर्व सीएम हरीश रावत का मोहनरी पंतगांव भिकियासैंण ब्लॉक के अंतर्गत सड़क किनारे है. गांव से चार किमी दूरी पर जीआईसी चौनलिया में अर्थशास्त्र-अंग्रेजी प्रवक्ता के पद एक साल से रिक्त हैं. राजकीय पॉलीटेक्निक में सिर्फ एक ट्रेड की वजह छात्र संख्या काफी कम है. मोहनरी में प्राथमिक स्कूल, जूनियर हाईस्कूल गुरड़खेत में छात्र संख्या चार और 11 है. भतरोजखान सीएचसी में सुविधाएं अब तक मुहैया नहीं कराई गई हैं.
  10. कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के गांव बिरनाड बास्तिल को पानी के संकट से जूझना पड़ता है. 45 साल पहले तीन किमी पेयजल की योजना बस्तार खड्ढ से बिरनाड गांव तक बनी थी. पेयजल योजना के पाइप जगह-जगह टूट चुके हैं. यही नहीं, कई स्थानों पर पाइप लाइन में लीकेज है और कई स्थानों पर प्लास्टिक की पाइप लाइन बिछाकर जलापूर्ति की जा रही है.

ये भी पढ़ें: राज्य स्थापना दिवस: विकास के रास्ते पर बढ़ा पहाड़, प्रदेश में बिछा सड़कों का जाल

प्रदेश में सरकार चाहे कांग्रेस की आए या भाजपा की, उत्तराखंड तमाम नई चुनौतियों के साथ मिलेगा. न केवल आर्थिक हालात दुरुस्त करना, बल्कि हजारों की तादाद में हुई घोषणाओं को पूरा करना हर सरकार के लिए सिरदर्द होगा, क्योंकि जिस उत्तराखंड के लिए सैकड़ों आंदोलनकारियों ने शहादत दी है, उनके सपनों का उत्तराखंड अब भी अधूरा है.

देहरादून: पहाड़ की अपनी सरकार है, मुख्यमंत्री है, राजधानी है, लंबा चौड़ा अधिकारी और कर्मचारी तंत्र है, इतना सब कुछ होने के बाद भी कुछ न होने की टीस पहाड़ी लोगों के जेहन में आज भी बरकरार है. उत्तराखंड राज्य का सपना पूरा करने वाले भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पहाड़ी क्षेत्रों से गहरा लगाव था.

उत्तराखंड अलग राज्य निर्माण को लेकर लंबा आंदोलन चला. वर्ष 1996 में अपने देहरादून दौरे के दौरान उन्होंने राज्य आंदोलनकारियों की मांग पर विचार करने का भरोसा दिया था और एनडीए की सरकार बनते ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भरोसे को कायम करते हुए नए राज्य की स्थापना की.

राज्य में पहली निर्वाचित सरकार नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की बनी थी. वर्ष 2003 में प्रधानमंत्री के रूप में नैनीताल पहुंचे अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवारी के आग्रह पर उत्तराखंड के लिए दस साल के विशेष औद्योगिक पैकेज की घोषणा की. यह उत्तराखंड के प्रति उनकी दूरदर्शी सोच ही थी कि औद्योगिक पैकेज देकर उन्होंने नवोदित राज्य को खुद के पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया है.

पूर्व पीएम वाजपेयी का उत्तराखंड के प्रति विशाल हृदय

पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपने उदार और विशाल हृदय की जो मिसाल पेश की, उत्तराखंड उसका गवाह बन गया. उत्तराखंड को देश के 27वें राज्य के रूप में तोहफा देने वाले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही बीजेपी पहला विधानसभा चुनाव हार गई थी. वर्ष 2002 में राज्य में कांग्रेस सरकार बनने पर एनडी तिवारी ने मुख्यमंत्री के रूप में उत्तराखंड की कमान संभाली. चुनाव हारने के महज एक साल बाद ही जनवरी, 2003 में नैनीताल प्रवास पर आए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तराखंड को दस साल के लिए औद्योगिक पैकेज दे दिया.

विपक्ष की सरकार के कार्यकाल में राज्य को दिया गया ये तोहफा राजनीति में भी एक मिसाल बन गया. खासतौर पर मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जहां तमाम दल एक-दूसरे को सहन करने को तैयार नहीं हैं, ऐसे में अटल की ये मिसाल अनुकरणीय भी मानी जा सकती है. आज अटल बिहारी वाजयेपी के सपनों का उत्तराखंड 20 बरस का हो चला है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि अटल बिहारी वाजपेयी और शहीद आंदोलनकारियों के सपनों के उत्तराखंड के संवारेगा कौन?

स्थायी राजधानी का मुद्दा

राज्य स्थापना के 20वें साल के बहाने स्थायी राजधानी का मुद्दा एक बार फिर गर्म होने लगा है. झारखंड और छत्तीसगढ़ के साथ 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आए उत्तराखंड की स्थायी राजधानी की कहानी 20 साल बाद भी अधूरी है. जनभावनाओं की प्रतीक गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने में ही 20 साल लग गए, लेकिन आज भी स्थायी राजधानी का कुछ अता-पता नहीं.

ये भी पढ़ें: स्थापना दिवस: सत्ता के गलियारों में चलती नूरा-कुश्ती, राजनीतिक लाभ ने तोड़े प्रदेश के सपने!

आज उत्तराखंड देश का अकेला ऐसा प्रदेश है, जिसमें दो विधानसभा भवन हैं और तीसरा बनाने की तैयारी है लेकिन स्थायी राजधानी का कुछ पता नहीं. वर्तमान सरकार के ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने की बात कही है. लेकिन, जब-जब कांग्रेस सत्ता में रही उसने स्थायी राजधानी की बात पर अमल ही नहीं किया.

ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने में 20 साल लग गए

त्रिवेंद्र सरकार ने जनभावनाओं की प्रतीक गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया. 8 जून 2020 को आधिकारिक स्वीकृति के बाद उत्तराखंड की दो राजधानियां बन गई हैं. गैरसैंण को ग्रीष्मकाली राजधानी बनाने का श्रेय भी बीजेपी और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को ही जाता है.

उत्तराखंड में सियासी गहमा-गहमी इस कदर रही कि पहाड़ी जिलों में विकास की बात को राजनीतिक दल भूल ही गए हैं. राजनीतिक अस्थिरता से राज्य को हुए नुकसान के बीच भाजपा पहाड़ों में विकास होने की बात कह रही है और सियासी अस्थिरता के लिए महज कांग्रेस को ही दोष दे रही है. लेकिन, सियासी नूरा-कुश्ती में पहाड़ के लोग अब भी विकास की आस में बैठे हुए हैं.

उत्तराखंड के माननीयों के गांवों की स्थिति

  1. सीएम त्रिवेंद्र रावत के पैतृक गांव खैरासैंण में राजकीय ऐलोपैथिक चिकित्सालय फार्मासिस्ट के भरोसे चल रहा है. कुछ महीने पहले ही यहां के डॉक्टर को सतपुली अटैच कर दिया गया था. नतीजा यह है गांव के लोगों को उपचार कराने के लिए मीलों दूर सतपुली की दौड़ लगानी पड़ रही है.
  2. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का पैतृक गांव धड़गांव ग्राम सभा सेडियाधार है. वर्ष 2014 में सेडियाधार सहित दर्जनों गांव को पानी पहुंचाने के लिए चौबट्टाखाल पम्पिंग योजना शुरू की गई, लेकिन इस योजना से नलों में पानी तक नहीं पहुंचा. यही नहीं, इलाके में मोबाइल नेटवर्क भी ध्वस्त है.
  3. कैबिनेट मदन कौशिक का गांव इमलीखेड़ा में पेयजल समस्या का हल नहीं हो पा रहा है. 12 हजार की आबादी वाले इमलीखेड़ा में स्वजल प्रोजेक्ट से 2005 में एक ओवर हेड टैंक का निर्माण कराया गया था. बीते 13 साल से टैंक शोपीस बना हुआ है. ट्यूबवेल खराब होने के कारण इसका उपयोग नहीं हो पाया है. ग्रामीणों के मुताबिक टैंक की मोटर भी अब गायब हो चुकी है. गांव को नगर पंचायत बनाने का वादा भी लंबे समय से अधर में लटका हुआ है.
  4. कैबिनेट मंत्री डॉ धन सिंह रावत के गांव नौगांव में बिजली, पानी और सड़क तो है, लेकिन खेती-बाड़ी बर्बाद हो रही है. बंदर और सुअरों के आंतक से वहां के लोग परेशान हैं. ये जानवर लोगों की खून-पसीने की मेहनत को बर्बाद कर रहे हैं. ठोस योजना न होने के कारण लोगों ने खेती-बाड़ी छोड़नी शुरू कर दी है.
  5. शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के गृहनगर गूलरभोज में उनके घर से मात्र 200 मीटर की दूरी पर स्थित एएनके इंटर कॉलेज की हालत बेहर खराब है. 23 कमरों वाले इस स्कूल में करीब एक हजार छात्र पढ़ते हैं. यहां लंबे समय से शिक्षकों के चार पद खाली हैं, जबकि, 13 कमरे जर्जर हालत में हैं. गूलरभोज में कोई भी डिग्री कॉलेज नहीं है. पीएचसी गूलरभोज में वर्ष 2006 से यहां प्रभारी डॉक्टर का पद भी खाली है।
  6. परिवहन मंत्री यशपाल आर्य का पैतृक गांव नैनीताल के अंतर्गत बोराकोट तोक त्यूरा ब्लॉक रामगढ़ में है। त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद से उनके पैतृक गांव में कोई काम नहीं हुआ। मंत्री की घोषणा के बावजूद यहां बस स्टैंड और यात्री शेड तक नहीं बन सका। यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन न तो एक्सरे मशीन है और न ही पैथोलॉजी की सुविधा। यहां तैनात तीन डॉक्टरों में से दो हल्द्वानी से अटैच हैं।
  7. वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत के गांव गहड़ के लोग खस्ताहाल सड़क और पेयजल आपूर्ति सुचारू न होने से परेशान हैं. स्वीत से गहड़ तक पांच किलोमीटर के दायरे में लोग दुखी हैं. इस मार्ग पर एक किमी तो पिछले काफी समय से टूटी पड़ी है. पंपिंग योजना से गांव तक पानी की सप्लाई बहुत खराब है. अफसरों का कहना है कि सड़क का निर्माण किया जा रहा है. पानी के टैंकों की भी सफाई कराई जा रही है.
  8. टिहरी की नरेंद्रनगर सीट से विधायक सुबोध उनियाल मूल रूप से पौड़ी के औणी गांव के हैं. सुबोध के पैतृक गांव के लोगों को उनसे काफी उम्मीद रहती है, लेकिन उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हो पा रही हैं. खंडाह-गिरगांव-पीपलकोटी-बमठि मोटर मार्ग कई वर्षों से बदहाल है. औणी से सत्याखाल लिंक रोड भी सपना बनी हुई है. इस गांव में पानी की आपूर्ति भी नियमित नहीं है.
  9. पूर्व सीएम हरीश रावत का मोहनरी पंतगांव भिकियासैंण ब्लॉक के अंतर्गत सड़क किनारे है. गांव से चार किमी दूरी पर जीआईसी चौनलिया में अर्थशास्त्र-अंग्रेजी प्रवक्ता के पद एक साल से रिक्त हैं. राजकीय पॉलीटेक्निक में सिर्फ एक ट्रेड की वजह छात्र संख्या काफी कम है. मोहनरी में प्राथमिक स्कूल, जूनियर हाईस्कूल गुरड़खेत में छात्र संख्या चार और 11 है. भतरोजखान सीएचसी में सुविधाएं अब तक मुहैया नहीं कराई गई हैं.
  10. कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के गांव बिरनाड बास्तिल को पानी के संकट से जूझना पड़ता है. 45 साल पहले तीन किमी पेयजल की योजना बस्तार खड्ढ से बिरनाड गांव तक बनी थी. पेयजल योजना के पाइप जगह-जगह टूट चुके हैं. यही नहीं, कई स्थानों पर पाइप लाइन में लीकेज है और कई स्थानों पर प्लास्टिक की पाइप लाइन बिछाकर जलापूर्ति की जा रही है.

ये भी पढ़ें: राज्य स्थापना दिवस: विकास के रास्ते पर बढ़ा पहाड़, प्रदेश में बिछा सड़कों का जाल

प्रदेश में सरकार चाहे कांग्रेस की आए या भाजपा की, उत्तराखंड तमाम नई चुनौतियों के साथ मिलेगा. न केवल आर्थिक हालात दुरुस्त करना, बल्कि हजारों की तादाद में हुई घोषणाओं को पूरा करना हर सरकार के लिए सिरदर्द होगा, क्योंकि जिस उत्तराखंड के लिए सैकड़ों आंदोलनकारियों ने शहादत दी है, उनके सपनों का उत्तराखंड अब भी अधूरा है.

Last Updated : Nov 9, 2020, 12:13 PM IST
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