देहरादून: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रदेश में कोरोना के बढ़ते मामलों पर गहरी चिंता जताई है. उन्होंने सरकार की तरफ से लगाए गए लॉकडाउन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार की ओर से कोरोना की रोकथाम को लेकर किए जा रहे प्रयास पर्याप्त नहीं होते. जब तक उसमें जन सहभागिता ना हो. ऐसे में यह संभव है कि हम अगले 15-20 दिन अपने घरों में ही रहकर सेल्फ इम्पोज्ड कर्फ्यू का पालन करें. ताकि इन 15-20 दिनों में सरकार, चिकित्सक और मेडिकल स्टाफ आगामी चुनौती का मुकाबला करने को तैयार हो सकें.
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पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से मैं भले ही बच गया, लेकिन इससे इतना कमजोर हो गया कि मैं उन सहस्रों युवाओं के लिए चिंतित हूं जो कोरोना से संघर्ष कर बाहर आ रहे हैं. वह देश की पूंजी हैं और पूंजी कमजोर नहीं होनी चाहिए. उन्होंने उत्तराखंड का जिक्र करते हुए कहा कि उत्तराखंड छोटे राज्यों में शुमार है. इसलिए हमारे संसाधन और कोरोना जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए ढांचागत सुविधाएं बहुत कम हैं. सरकार ने कुछ कदम उठाते हुए लॉकडाउन लगाने का निर्णय भी लिया है. लेकिन सरकार के प्रयास पर्याप्त नहीं होते हैं, जब तक उसमें जन सहभागिता ना शामिल हो. ऐसे में आने वाले 15-20 दिन लोग अपने घरों में ही रह कर self-imposed कर्फ्यू का पालन करें. ताकि सरकारी एजेंसियों का बोझ कम हो सके और डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ भी नई स्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार हो सके.
इसके साथ ही सरकार भी अपने संसाधनों को जुटाकर चुनौती का मुकाबला कर सके. उन्होंने इस संकट की घड़ी में व्यापारी संगठनों से भी आग्रह किया है कि जितने मुनाफे को उचित मानते हैं व्यापार संगठन एक स्व-नियंत्रण, स्वास्थ्य शासन लागू करें ताकि सामान्य व्यक्ति पर कोरोना और महंगाई की दोहरी मार ना पड़ सके. क्योंकि दुर्भाग्य से यदि परिवार का कोई व्यक्ति कोरोना की चपेट में आ रहा है तो उस परिवार का जीवन केवल भगवान के सहारे ही हो रहा है.
पर्वतीय जिलों के हालातों पर भी उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि वहां स्थिति गंभीर है. क्योंकि देश के दूसरे हिस्सों में जहां-जहां लॉकडाउन लगा है वहां से बहुत सारे लोग फिर गांव की ओर आ सकते हैं. जिससे बाद में चुनौतियां और बढ़ जाएंगी. लेकिन इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार अपने संसाधनों को एकत्रित करे और एक बड़ा हिस्सा अपने राज्य के नागरिकों के जीवन को बचाने में खर्च करे.
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पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि एक बड़ा तबका भूख से ना मरे ऐसे लोगों की गणना राज्यों के पास है. इन परिस्थितियों में उन परिवारों को एक निश्चित धनराशि कोरोना संक्रमण के इस फेस को देखते हुए पहुंचाई जाए. इसके साथ ही व्यवसायी भी जिंदा रह सकें उसके लिए भी कुछ ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाए. आगामी समय में कुछ विकास के काम भले ही प्रतीक्षा कर लेंगे, लेकिन अपने विकास के कार्यों को लेकर सवाल उठाने पर सेल्फ ऑडिटोरियम लगाने के लिए तैयार हूं. बशर्ते उस पैसे का उपयोग नागरिकों के जीवन को बचाने और गरीब परिवारों की मदद के लिए हो.