ETV Bharat / state

'हिमालय के रक्षक' सुंदरलाल बहुगुणा की पहली पुण्यतिथि, पहाड़ को दिया 'जीत का मंत्र'

author img

By

Published : May 21, 2022, 12:27 PM IST

Updated : May 21, 2022, 10:55 PM IST

'हिमालय के रक्षक' सुंदरलाल बहुगुणा की आज पहली पुण्यतिथि है. पर्यावरण संरक्षण के मैदान में सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों को इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा. सुंदरलाल बहुगुणा प्रकृति की गोद में पैदा हुए थे. नदी, जंगल, खेत-खलिहान देखकर बड़े हुए थे. ऐसे में सहज ही उनको इनसे प्रेम था. यही कारण था कि वो पेड़ों को कटते नहीं देख सकते थे.

sunderlal bahuguna
सुंदरलाल बहुगुणा की पहली पुण्यतिथि

देहरादून: प्रदूषण और उससे होने वाली तबाही के बारे में हम सभी बातें करते हैं. इस विषय पर बातें करने वालों की तो भरमार है, लेकिन प्रदूषण की जड़ तक पहुंचकर उसको नाश करने की हिम्मत जुटाने की बारी आती है तो बहुत से लोग पीछे हट जाते हैं. गिनती के लोग हैं, जो पर्यावरण सुरक्षा को अपना जीवन समर्पित करते हैं. उनमें से ही एक थे हिमालय के रक्षक सुंदरलाल बहुगुणा. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन और टिहरी बांध का विरोध रहा.

21 मई 2021 का दिन उत्तराखंड के लिए अशुभ साबित हुआ था. क्योंकि इसी दिन कोरोना वायरस के चलते मशहूर पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का निधन हो गया था. सुंदरलाल बहुगुणा का जाना हमारे दौर के सबसे बड़े सामाजिक कार्यकर्ता का जाना था. अगर कोरोना महामारी का प्रकोप नहीं होता तो वे कुछ और सालों तक हम लोगों के लिए प्रेरणा का काम करते. दुनिया उन्हें और चंडी प्रसाद भट्ट को चिपको आंदोलन के लिए जानती है लेकिन यह आंदोलन उनके सामाजिक जीवन के कई आंदोलनों में एक था.

सुंदरलाल बहुगुणा की पहली पुण्यतिथि

पढ़ें: पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा ने पहाड़ को दिया 'जीत का मंत्र', हिमालय के थे रक्षक

राजनीतिक और सामाजिक जीवन: टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है. 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया. दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे. सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है. 1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया.

84 दिन किया अनशन: सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था. एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था. टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा. उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया. टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कड़ा विरोध किया, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. वह हिमालय में होटलों के बनने और लक्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे.

पुलिस हिरासत में दी 12वीं की परीक्षा: सुंदरलाल बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव में ही हुई थी. उसके बाद 6 से 10 तक की शिक्षा उत्तरकाशी में ग्रहण की. फिर 11वीं और 12वीं की पढ़ाई प्रताप इण्टर कॉलेज टिहरी में ली. राजशाही के खिलाफ सुमन का साथ देने के कारण उन्हें 12वीं की परीक्षा पुलिस हिरासत में देनी पड़ी. 12वीं की परीक्षा प्रधानाचार्य की कहने पर दिलवाई गई.

लाहौर में सनातन धर्म कॉलेज से किया बीए: 12वीं के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं सनातन धर्म कॉलेज से उन्‍होंने बीए किया. लाहौर से लौटकर काशी विद्यापीठ में एमए पढ़ने लगे. लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. पत्‍नी विमला नौटियाल के सहयोग से इन्‍होंने सिलयारा में 'पर्वतीय नवजीवन मंडल' की स्‍थापना की. आजादी के उपरांत 1949 में मीराबेन व ठक्‍कर बाप्‍पा के संपर्क में आने के बाद वे दलित विद्यार्थियों के उत्‍थान के लिए कार्य करने लगे.

'चिपको आंदोलन' को विश्व स्तर तक पहुंचाया: उत्तराखंड के वनों को बचाने के लिए सबसे पहले उत्तराखंड से 'चिपको आंदोलन' शुरू करते हुए राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर तक पहुंचाया. बहुगुणा का मानना था कि धीरे-धीरे जंगल कम हो रहे हैं. पहाड़ों में जंगलों का कट जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण है. बहुगुणा कहते थे कि पहाड़ों में वृक्षारोपण का काम स्थानीय लोगों को रोजगार के तौर किया जाए, जिससे पहाड़ में बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा और इससे हिमालय सुरक्षित रहेगा.

पढ़ें- चिपको आंदोलन के प्रणेता और पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 94 की उम्र में एम्स में निधन, कोरोना से संक्रमित थे

पहाड़ों में रेगिस्तान देखकर लगा धक्का: बहुगुणा कहते थे कि तराई क्षेत्रों से जो वन काटे गये हैं, उसकी वजह से गर्मी में ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जब उन्होंने साल 1978 में गोमुख के पास रेगिस्तान देखा, तो उन्हें धक्का लगा. उन्होंने देखा कि ग्लेशियर से लगकर पहाड़ रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहे हैं. तब उन्होंने संकल्प लिया वो चावल नहीं खाएंगे. उनका कहना था कि तराई क्षेत्रों व पहाड़ों में पेड़ लगाकर पानी की समस्या से निजात पाई जा सकती है.

पिघलते ग्लेशियर खतरनाक: टिहली बांध को लेकर सुंदरलाल बहुगुणा कहते थे कि उन्हें दुःख है कि इस झील से अन्य शहरों को पानी और बिजली तो दी जाती है लेकिन आज पहाड़ों में पानी का बड़ा संकट है. अगर पहाड़ से धीरे-धीरे वन कम होते रहे तो आने वाले समय पहाड़ में बर्फबारी नहीं होगी तो ग्लेशियर धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे, जो पूरे विश्व की सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक रूप लेगा.

सुंदरलाल बहुगुणा का लेख

'मुझे याद पड़ता है कि वृक्ष मानव रिचर्ड सेंट बार्ब बेकर को चिपको आंदोलन के बारे में 1977 में पत्र भेजा था. बेकर उसी साल विश्व सम्मेलन में भाग लेने दिल्ली आये थे और उनसे मुझे बेकर के बारे में अधिक जानकारी मिली. मेरी गोल्डस्मिथ से पहली मुलाकात जून 1982 में लंदन में हुई, जब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में स्टॉकहोम सम्मेलन के 10 वर्ष पूरे होने के उपलब्ध में पर्यावरण पर लोक सुनवाई का आयोजन किया गया. मेरी पहचान सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संदेश के पहुंचाने वाले के रूप में की गई थी. तब तक हम कश्मीर-कोहिमा चिपको पैदल यात्रा के तीन चरणों में पश्चिमी और नेपाल सहित मध्य हिमालय की पैदल यात्रा कर चुके थे.

लंदन में मेरी उपस्थिति का लाभ उठाकर मशहूर टीवी चैनल ने 'चिपको आंदोलन' पर एक फिल्म बना दी, जिसका नाम 'एक्सिंग द हिमालय' था, जिसका प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया. इसमें इग्लैंड के कई प्रमुख प्रख्यात लोगों को बुलाया गया, जिसमें गोल्डस्मिथ भी थे. जब सम्मलेन शुरू हुआ तो अन्य वक्ताओं की तरह मुझे भी तीन मिनट बोलने का समय मिला. मैंने तीन मिनट में अपनी बात समाप्त की. जिसके बाद अध्यक्ष ने कहा कि तुमने अपनी बात प्रभावकारी ढंग से रख दी है. इस पर मैंने कहा कि मेरे लिए यह सम्मलेन तीर्थ स्थान की तरह है. हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि तीर्थस्थान खाली हाथ नहीं जाना.

आपको कुछ भेंट करने के लिए लाया हूं. मैं मंच तक पहुंचा. अपने कंधे के झोले से चिपको यात्रा का नक्शा निकाला और साथ ही गंगोत्री की पवित्र जल की बोतल दी और कहा कि यह पवित्र गंगा का उद्गम जल है. गंगा सब नदियों की प्रतिनिधि है. नदियां को भोगवादी सभ्यता से मुक्त करना है. तब ही पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. इस दृश्य ने गोल्डस्मिथ को इतना प्रभावित किया कि दोपहर के भोजन के लिए सभाकक्ष से बाहर निकलते ही वह मुझसे लिपट गए. हास्य बिखेरते हुए कहा कि बहुगुणा जी सम्मलेन में छा गए. यहां आए हुए सब विद्धान-राजनेता बौने पड़ गए'.

सुंदरलाल बहुगुणा, पर्यावरणविद्

वहीं, देहरादून में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् व पद्म विभूषित सुंदरलाल बहुगुणा की प्रथम पुण्यतिथि पर सम्मान समारोह व पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों को आधार बनाकर उनकी स्मृति में आज हिमालय प्रहरी नाम से लोगों को सम्मानित भी किया गया. इस वर्ष यह सम्मान प्रसिद्ध पर्यावरणविद् धूम सिंह नेगी को दिया गया. धूम सिंह नेगी को हिमालय प्रहरी सम्मान पत्र पर्वतीय विकास शोध केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ. अरविंद दारमोड ने दिया.

इस अवसर पर पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि मेरे साथ हमेशा सुंदरलाल बहुगुणा का आशीर्वाद रहा है. वह हमेशा गांव और पर्यावरण के लिए कुछ अच्छा करने का सुझाव देते रहे. उनकी झलक कहीं ना कहीं हमारे कामों में दिखती भी है. इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में गांधी जी की पुत्री तारा गांधी भट्टाचार्य मौजूद रही. वही, कार्यक्रम में स्वर्गीय बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा और उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा ने स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन पर प्रकाश डाला.

देहरादून: प्रदूषण और उससे होने वाली तबाही के बारे में हम सभी बातें करते हैं. इस विषय पर बातें करने वालों की तो भरमार है, लेकिन प्रदूषण की जड़ तक पहुंचकर उसको नाश करने की हिम्मत जुटाने की बारी आती है तो बहुत से लोग पीछे हट जाते हैं. गिनती के लोग हैं, जो पर्यावरण सुरक्षा को अपना जीवन समर्पित करते हैं. उनमें से ही एक थे हिमालय के रक्षक सुंदरलाल बहुगुणा. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन और टिहरी बांध का विरोध रहा.

21 मई 2021 का दिन उत्तराखंड के लिए अशुभ साबित हुआ था. क्योंकि इसी दिन कोरोना वायरस के चलते मशहूर पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का निधन हो गया था. सुंदरलाल बहुगुणा का जाना हमारे दौर के सबसे बड़े सामाजिक कार्यकर्ता का जाना था. अगर कोरोना महामारी का प्रकोप नहीं होता तो वे कुछ और सालों तक हम लोगों के लिए प्रेरणा का काम करते. दुनिया उन्हें और चंडी प्रसाद भट्ट को चिपको आंदोलन के लिए जानती है लेकिन यह आंदोलन उनके सामाजिक जीवन के कई आंदोलनों में एक था.

सुंदरलाल बहुगुणा की पहली पुण्यतिथि

पढ़ें: पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा ने पहाड़ को दिया 'जीत का मंत्र', हिमालय के थे रक्षक

राजनीतिक और सामाजिक जीवन: टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है. 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया. दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे. सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है. 1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया.

84 दिन किया अनशन: सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था. एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था. टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा. उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया. टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कड़ा विरोध किया, जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. वह हिमालय में होटलों के बनने और लक्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे.

पुलिस हिरासत में दी 12वीं की परीक्षा: सुंदरलाल बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव में ही हुई थी. उसके बाद 6 से 10 तक की शिक्षा उत्तरकाशी में ग्रहण की. फिर 11वीं और 12वीं की पढ़ाई प्रताप इण्टर कॉलेज टिहरी में ली. राजशाही के खिलाफ सुमन का साथ देने के कारण उन्हें 12वीं की परीक्षा पुलिस हिरासत में देनी पड़ी. 12वीं की परीक्षा प्रधानाचार्य की कहने पर दिलवाई गई.

लाहौर में सनातन धर्म कॉलेज से किया बीए: 12वीं के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं सनातन धर्म कॉलेज से उन्‍होंने बीए किया. लाहौर से लौटकर काशी विद्यापीठ में एमए पढ़ने लगे. लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. पत्‍नी विमला नौटियाल के सहयोग से इन्‍होंने सिलयारा में 'पर्वतीय नवजीवन मंडल' की स्‍थापना की. आजादी के उपरांत 1949 में मीराबेन व ठक्‍कर बाप्‍पा के संपर्क में आने के बाद वे दलित विद्यार्थियों के उत्‍थान के लिए कार्य करने लगे.

'चिपको आंदोलन' को विश्व स्तर तक पहुंचाया: उत्तराखंड के वनों को बचाने के लिए सबसे पहले उत्तराखंड से 'चिपको आंदोलन' शुरू करते हुए राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर तक पहुंचाया. बहुगुणा का मानना था कि धीरे-धीरे जंगल कम हो रहे हैं. पहाड़ों में जंगलों का कट जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण है. बहुगुणा कहते थे कि पहाड़ों में वृक्षारोपण का काम स्थानीय लोगों को रोजगार के तौर किया जाए, जिससे पहाड़ में बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा और इससे हिमालय सुरक्षित रहेगा.

पढ़ें- चिपको आंदोलन के प्रणेता और पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 94 की उम्र में एम्स में निधन, कोरोना से संक्रमित थे

पहाड़ों में रेगिस्तान देखकर लगा धक्का: बहुगुणा कहते थे कि तराई क्षेत्रों से जो वन काटे गये हैं, उसकी वजह से गर्मी में ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जब उन्होंने साल 1978 में गोमुख के पास रेगिस्तान देखा, तो उन्हें धक्का लगा. उन्होंने देखा कि ग्लेशियर से लगकर पहाड़ रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहे हैं. तब उन्होंने संकल्प लिया वो चावल नहीं खाएंगे. उनका कहना था कि तराई क्षेत्रों व पहाड़ों में पेड़ लगाकर पानी की समस्या से निजात पाई जा सकती है.

पिघलते ग्लेशियर खतरनाक: टिहली बांध को लेकर सुंदरलाल बहुगुणा कहते थे कि उन्हें दुःख है कि इस झील से अन्य शहरों को पानी और बिजली तो दी जाती है लेकिन आज पहाड़ों में पानी का बड़ा संकट है. अगर पहाड़ से धीरे-धीरे वन कम होते रहे तो आने वाले समय पहाड़ में बर्फबारी नहीं होगी तो ग्लेशियर धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे, जो पूरे विश्व की सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक रूप लेगा.

सुंदरलाल बहुगुणा का लेख

'मुझे याद पड़ता है कि वृक्ष मानव रिचर्ड सेंट बार्ब बेकर को चिपको आंदोलन के बारे में 1977 में पत्र भेजा था. बेकर उसी साल विश्व सम्मेलन में भाग लेने दिल्ली आये थे और उनसे मुझे बेकर के बारे में अधिक जानकारी मिली. मेरी गोल्डस्मिथ से पहली मुलाकात जून 1982 में लंदन में हुई, जब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में स्टॉकहोम सम्मेलन के 10 वर्ष पूरे होने के उपलब्ध में पर्यावरण पर लोक सुनवाई का आयोजन किया गया. मेरी पहचान सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संदेश के पहुंचाने वाले के रूप में की गई थी. तब तक हम कश्मीर-कोहिमा चिपको पैदल यात्रा के तीन चरणों में पश्चिमी और नेपाल सहित मध्य हिमालय की पैदल यात्रा कर चुके थे.

लंदन में मेरी उपस्थिति का लाभ उठाकर मशहूर टीवी चैनल ने 'चिपको आंदोलन' पर एक फिल्म बना दी, जिसका नाम 'एक्सिंग द हिमालय' था, जिसका प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया. इसमें इग्लैंड के कई प्रमुख प्रख्यात लोगों को बुलाया गया, जिसमें गोल्डस्मिथ भी थे. जब सम्मलेन शुरू हुआ तो अन्य वक्ताओं की तरह मुझे भी तीन मिनट बोलने का समय मिला. मैंने तीन मिनट में अपनी बात समाप्त की. जिसके बाद अध्यक्ष ने कहा कि तुमने अपनी बात प्रभावकारी ढंग से रख दी है. इस पर मैंने कहा कि मेरे लिए यह सम्मलेन तीर्थ स्थान की तरह है. हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि तीर्थस्थान खाली हाथ नहीं जाना.

आपको कुछ भेंट करने के लिए लाया हूं. मैं मंच तक पहुंचा. अपने कंधे के झोले से चिपको यात्रा का नक्शा निकाला और साथ ही गंगोत्री की पवित्र जल की बोतल दी और कहा कि यह पवित्र गंगा का उद्गम जल है. गंगा सब नदियों की प्रतिनिधि है. नदियां को भोगवादी सभ्यता से मुक्त करना है. तब ही पर्यावरण सुरक्षित रहेगा. इस दृश्य ने गोल्डस्मिथ को इतना प्रभावित किया कि दोपहर के भोजन के लिए सभाकक्ष से बाहर निकलते ही वह मुझसे लिपट गए. हास्य बिखेरते हुए कहा कि बहुगुणा जी सम्मलेन में छा गए. यहां आए हुए सब विद्धान-राजनेता बौने पड़ गए'.

सुंदरलाल बहुगुणा, पर्यावरणविद्

वहीं, देहरादून में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् व पद्म विभूषित सुंदरलाल बहुगुणा की प्रथम पुण्यतिथि पर सम्मान समारोह व पुस्तक विमोचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों को आधार बनाकर उनकी स्मृति में आज हिमालय प्रहरी नाम से लोगों को सम्मानित भी किया गया. इस वर्ष यह सम्मान प्रसिद्ध पर्यावरणविद् धूम सिंह नेगी को दिया गया. धूम सिंह नेगी को हिमालय प्रहरी सम्मान पत्र पर्वतीय विकास शोध केंद्र के नोडल अधिकारी डॉ. अरविंद दारमोड ने दिया.

इस अवसर पर पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि मेरे साथ हमेशा सुंदरलाल बहुगुणा का आशीर्वाद रहा है. वह हमेशा गांव और पर्यावरण के लिए कुछ अच्छा करने का सुझाव देते रहे. उनकी झलक कहीं ना कहीं हमारे कामों में दिखती भी है. इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में गांधी जी की पुत्री तारा गांधी भट्टाचार्य मौजूद रही. वही, कार्यक्रम में स्वर्गीय बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा और उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा ने स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन पर प्रकाश डाला.

Last Updated : May 21, 2022, 10:55 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.