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पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा में दिखे कोरोना के लक्षण, एम्स में भर्ती

चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा
चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा
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Published : May 8, 2021, 3:29 PM IST

Updated : May 8, 2021, 5:25 PM IST

15:24 May 08

चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा को कोरोना लक्षण दिखने के बाद एम्स में भर्ती कराया गया है.

देहरादून/ऋषिकेश: प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा में कोरोना के लक्षण दिखने के बाद ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया है. जहां उनका उपचार किया जा रहा है. उत्तराखंड के टिहरी से ताल्लुक रखने वाले और विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को ऋषिकेश एम्स में भर्ती करवाया गया है. उनमें कोरोना वायरस के लक्षण दिखे, जिसके बाद इलाज के लिए उन्हें भर्ती कराया गया है. सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा के मुताबिक कल शाम से उनकी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी. दिक्कतों को देखते एम्स में भर्ती कराया गया है.

सुंदरलाल बहुगुणा का राजनीतिक और सामाजिक जीवन

टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है. 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया. दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे. सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है. 1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया.

18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए. 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ. उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला. उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला. 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया.

चिपको आंदोलन में भूमिका

पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा. चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था. गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे. 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं, जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए. यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए.

1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की. उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया. इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई.

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन

बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की. तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी. सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया. उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं. अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा.

15:24 May 08

चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा को कोरोना लक्षण दिखने के बाद एम्स में भर्ती कराया गया है.

देहरादून/ऋषिकेश: प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा में कोरोना के लक्षण दिखने के बाद ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया है. जहां उनका उपचार किया जा रहा है. उत्तराखंड के टिहरी से ताल्लुक रखने वाले और विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को ऋषिकेश एम्स में भर्ती करवाया गया है. उनमें कोरोना वायरस के लक्षण दिखे, जिसके बाद इलाज के लिए उन्हें भर्ती कराया गया है. सुंदरलाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा के मुताबिक कल शाम से उनकी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी. दिक्कतों को देखते एम्स में भर्ती कराया गया है.

सुंदरलाल बहुगुणा का राजनीतिक और सामाजिक जीवन

टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है. 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया. दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था. सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे. सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है. 1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया.

18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए. 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ. उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला. उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला. 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया.

चिपको आंदोलन में भूमिका

पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा. चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था. गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे. 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं, जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए. यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए.

1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की. उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया. उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया. इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई.

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन

बहुगुणा ने टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की. तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी. सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया. उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं. अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा.

Last Updated : May 8, 2021, 5:25 PM IST

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