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जोशीमठ बचाने की सरकारी रणनीति पर पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट को संदेह, बोले- पहले भी सरकारों ने की गलती

पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने जोशीमठ को बचाने के लिए सरकार की रणनीति पर संदेह जताया है. उन्होंने कहा कि पहले भी जोशीमठ पर अध्ययन कर सरकार को चेताया था. लेकिन वो चेतावनी ठंडे बस्ते में जाने के कारण हमें रैणी आपदा देखने को मिली. पहाड़ों में अंधाधुंध विकास आने वाले समय के लिए खतरे के संकेत हैं.

CHANDI PRASAD BHATT
चंडी प्रसाद भट्ट
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 16, 2023, 2:12 PM IST

जोशीमठ को लेकर पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद चिंतित हैं

देहरादूनः एक दशक से हिमालयी राज्य उत्तराखंड के कई इलाके भू-धंसाव की चपेट में लगातार आ रहे हैं. इन इलाकों में अभी तक नैनीताल, मसूरी और जोशीमठ शहर शामिल हैं. उत्तरकाशी शहर ने भी इस दंश को झेला है. हाल ही के दिनों में जोशीमठ शहर का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से अपनी जगह छोड़ कर नीचे अलकनंदा की और धीरे धीरे धंस रहा है. उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन से लेकर देश भर के कई तकनीकी संस्थानों ने जोशीमठ पर शोध किया है. सरकार द्वारा शहर के भविष्य को लेकर एक रणनीति बनाई गई है. लेकिन आधुनिक मानवीय तरीकों से किए जा रहे समाधान पर पर्यावरणविदों को थोड़ा संदेह है.

उत्तराखंड से पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश करने वाले चिपको आंदोलन के प्रणेता रहे पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने जोशीमठ के हालातों पर गंभीर चिंता जाहिर की है. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा साल 1976 में जोशीमठ पर एक अध्ययन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, उत्तर प्रदेश सरकार के संज्ञान में इसे लाया गया था. उस समय की सरकारों ने इसे गंभीरता से लेते हुए गढ़वाल कमिश्नर की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया और इस मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई थी.
ये भी पढ़ेंः Joshimath sinking: जोशीमठ भू धंसाव पर आई GSI और NIH की रिपोर्ट, NTPC को दी क्लीन चिट, संघर्ष समिति ने खारिज की

उन्होंने बताया कि उस समय भी रिपोर्ट के आधार पर स्पष्ट हो गया था कि बारिश के पानी की निकासी ना होना इसकी एक बड़ी वजह है. इसका निस्तारण किया जाना था, लेकिन फिर ये ठंडे बस्ते में चला गया. इसका खामियाजा 7 फरवरी 2021 को रैणी गांव में आई भारी तबाही के रूप में हम सबने देखा.

भू-धंसाव की चपेट में जोशीमठ का बड़ा हिस्सा: पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट कहते हैं कि आज भी वर्तमान में सरकार को पानी की निकासी के लिए विशेष नीति बनाने की आवश्यकता है जो कि स्पष्ट रूप से नजर नहीं आ रही है. उनका कहना है कि जोशीमठ का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से भू-धंसाव की जद में है. यहीं से चारधाम जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए सड़क मार्ग का भी विस्तारीकरण प्रतावित है. उन्होंने आशंका जताई है कि इस हिस्से पर जब सड़क मार्ग का निर्माण होगा तो और ज्यादा दबाव धरती पर पड़ेगा, जो आने वाले समय में आने वाले एक बड़े खतरे का संकेत है.

जोशीमठ को लेकर पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद चिंतित हैं

देहरादूनः एक दशक से हिमालयी राज्य उत्तराखंड के कई इलाके भू-धंसाव की चपेट में लगातार आ रहे हैं. इन इलाकों में अभी तक नैनीताल, मसूरी और जोशीमठ शहर शामिल हैं. उत्तरकाशी शहर ने भी इस दंश को झेला है. हाल ही के दिनों में जोशीमठ शहर का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से अपनी जगह छोड़ कर नीचे अलकनंदा की और धीरे धीरे धंस रहा है. उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन से लेकर देश भर के कई तकनीकी संस्थानों ने जोशीमठ पर शोध किया है. सरकार द्वारा शहर के भविष्य को लेकर एक रणनीति बनाई गई है. लेकिन आधुनिक मानवीय तरीकों से किए जा रहे समाधान पर पर्यावरणविदों को थोड़ा संदेह है.

उत्तराखंड से पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश करने वाले चिपको आंदोलन के प्रणेता रहे पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट ने जोशीमठ के हालातों पर गंभीर चिंता जाहिर की है. उन्होंने बताया कि उनके द्वारा साल 1976 में जोशीमठ पर एक अध्ययन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, उत्तर प्रदेश सरकार के संज्ञान में इसे लाया गया था. उस समय की सरकारों ने इसे गंभीरता से लेते हुए गढ़वाल कमिश्नर की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया और इस मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई थी.
ये भी पढ़ेंः Joshimath sinking: जोशीमठ भू धंसाव पर आई GSI और NIH की रिपोर्ट, NTPC को दी क्लीन चिट, संघर्ष समिति ने खारिज की

उन्होंने बताया कि उस समय भी रिपोर्ट के आधार पर स्पष्ट हो गया था कि बारिश के पानी की निकासी ना होना इसकी एक बड़ी वजह है. इसका निस्तारण किया जाना था, लेकिन फिर ये ठंडे बस्ते में चला गया. इसका खामियाजा 7 फरवरी 2021 को रैणी गांव में आई भारी तबाही के रूप में हम सबने देखा.

भू-धंसाव की चपेट में जोशीमठ का बड़ा हिस्सा: पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट कहते हैं कि आज भी वर्तमान में सरकार को पानी की निकासी के लिए विशेष नीति बनाने की आवश्यकता है जो कि स्पष्ट रूप से नजर नहीं आ रही है. उनका कहना है कि जोशीमठ का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से भू-धंसाव की जद में है. यहीं से चारधाम जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए सड़क मार्ग का भी विस्तारीकरण प्रतावित है. उन्होंने आशंका जताई है कि इस हिस्से पर जब सड़क मार्ग का निर्माण होगा तो और ज्यादा दबाव धरती पर पड़ेगा, जो आने वाले समय में आने वाले एक बड़े खतरे का संकेत है.

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