देहरादूनः आज से करीब 36 साल पहले 1984 में देश में हुए सबसे बड़े सिख दंगों का जिक्र करते हुए देहरादून के घंटाघर स्थित 'सिंह ब्रदर्स' के मुखिया मनजीत सिंह सब्बरवाल की आंखें उस दर्द भरी दास्तां को लेकर आज भी नम हो जाती हैं. 1984 के दंगो में देश की हजारों सिखों ने भयानक नरसंहार झेलकर कर अपना बहुत कुछ खोया खोया. लेकिन आज तक न उस भयावह घटनाओं के आरोपियों को सजा मिल पाई और न ही पीड़ित परिवारों को मुआवजा.
देहरादून रेसकोर्स क्षेत्र में रहने वाले 85 साल के मनजीत सिंह सब्बरवाल आज भी उस दंगे का दंश झेल रहे हैं. आज से लगभग 36 साल पहले देहरादून में सब्बरवाल परिवार शहर में अपनी एक अलग रसूख रखता था. पूरे उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर दवाइयों का व्यापार होने के कारण उनकी बड़ी पैंठ थी.
सिंह ब्रदर्स परिवार के पास उस जमाने में पैसा, गाड़ी, घोड़े और आलीशन मकान होने से वे बाकी लोगों की तुलना में बड़ी शान और शौकत के साथ जिंदगी काट रहे थे. लेकिन 36 साल पहले 1984 सिख दंगों के दौरान सब्बरवाल परिवार का सब कुछ छिन गया. आज भी मनजीत सिंह सब्बरवाल जिंदगी के इस पड़ाव में सरकार से कोई मुआवजा न मिलने के चलते कर्ज में पूरी तरह डूबे हुए हैं.
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सरदार मनजीत सिंह के अनुसार 1984 के दंगे में देहरादून में लगभग 130 सिख परिवार के साथ लूटपाट और आगजनी हुई थी. घटना के बाद से सभी पीड़ित परिवार देहरादून से लेकर दिल्ली में अलग-अलग शासन-प्रशासन से दर्जनों बार सबूत व दस्तावेजों के साथ अर्जियां पेश कर फरियाद लगा चुके हैं, लेकिन आज तक किसी को भी एक रुपए तक का मुआवजा नहीं मिला.
ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए मनजीत सिंह सब्बरवाल बताते हैं कि उस दिन शहर में कर्फ्यू लगा था वह अपने घर पर ही थे, तभी किसी ने उन्हें बताया कि उनकी घंटाघर में सबसे बड़ी दुकान को दंगाइयों ने लूट कर आग के हवाले कर दिया है. आसपास के लोगों ने सब्बरवाल जी से कहा कि वह अपनी दुकान न जाएं. उनके पूरे परिवार को जान का खतरा है.
ऐसे में अपनी और 5 बच्चों की जान बचाते हुए सब्बरवाल जी किसी तरह दो दिन तक छिपे रहे. वहीं तीसरे दिन हिम्मत जुटाकर जब किसी तरह से मनजीत अपनी दुकान के पास पहुंचे तो उनका सब कुछ लुट चुका था. उस जमाने में शहर की सबसे बड़ी दुकान आग के हवाले होने से राख हो चुकी थी.
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सिर पर हाथ रखकर रोते बिलखते मनजीत सिंह का व्यापार जो उनके पूर्वजों ने कड़ी मेहनत से जोड़कर दिया था. वह सब कुछ खत्म हो चुका था. मनजीत सिंह के मुताबिक उस जमाने घंटाघर के समीप 40 मीटर की लंबी-चौड़ी दुकान में लाखों रुपए के दवाइयों के स्टॉक और कीमती छोटी-बड़ी हर मर्ज की दवाइयों का रिटेल से लेकर सप्लाई होने वाला सारा माल आग के हवाले जलाकर लूटपाट कर लिया गया.
मनजीत सिंह के मुताबिक, उनकी दुकान को देहरादून में सबसे पहले लूटा. उस जमाने में देहरादून में वे सबसे बड़े दवा के व्यापारी होते थे, साथ ही उनके पिता उस समय की सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी से जुड़े थे. साथ ही वे उस समय सिंह सभा गुरुद्वारा के अध्यक्ष भी थे.
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मरने से पहले सरकार कुछ तो संतुष्टि दे दे
सरदार मनजीत सिंह आंखों में आंसू लिए आज भी 85 साल की उम्र में इस बात की उम्मीद लगाए हुए हैं कि उनके जैसे 130 परिवारों को न्याय व मुआवजा मिलेगा. मनजीत सिंह के मुताबिक वह उम्र के उस पड़ाव में है, जहां उनके साथ कभी भी कुछ हो सकता है. ऐसे में उनकी एक ही तमन्ना है कि 84 के दंगे में जो उनका सब कुछ नुकसान हुआ, उसकी कुछ तो भरपाई सरकार कर दें. ताकि मरते वक्त उन्हें कुछ संतुष्टि हो सके.