देहरादूनः लगातार दूषित हो रहा पर्यावरण एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है. जिसे देखते हुए केंद्र सरकार सड़कों पर ई-व्हीकल को बढ़ावा दे रही है. इतना ही नहीं सरकार, ई-व्हीकल पर तमाम तरह की स्कीमें भी चला रही है. जिससे ज्यादा से ज्यादा ई-व्हीकल सड़कों पर उतरे और पर्यावरण को कम नुकसान हो, लेकिन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में राज्य सरकार के अजीबो-गरीबो फरमान के बाद ई-रिक्शा मुख्य सड़कों से गायब हो चुके हैं. इस फरमान के बाद ई- रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. हालांकि, सरकार के इस फरमान का तर्क ये है कि ई-रिक्शा चालकों की वजह से शहर भर में जाम लग रहा है.
दरअसल, राज्य सरकार ने राजधानी देहरादून में ई-रिक्शा को लेकर एक फरमान जारी किया था. जिसके मुताबिक ई-रिक्शा शहर के मुख्य सड़कों पर नहीं चला सकते हैं. वो सिर्फ गलियों में ही चलेंगे. इतना ही नहीं फरमान के हिसाब से ई-रिक्शा सिर्फ रात को ही चलेंगे और दिन में मुख्य सड़कों पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे. जबकि, केंद्र सरकार पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कर रही है. साथ 2022 तक पचास फीसदी ई-वाहनों को सड़क पर लाने की बात भी कही है.
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जिसके लिए केंद्र सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए फास्टर एडोप्सन, मेन्युसेंटिंग ऑफ हाइब्रिड समेत इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) -2 योजना शुरू की है. इसके तहत इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों की खरीदारी पर 10 हजार रुपये की सब्सिडी दी जाएगी. वहीं, एक ओर राज्य सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए ई-वाहनों में बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा था. इसी कड़ी में खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिह रावत ने एक योजना के तहत लोन पर कई ई-रिक्शा चालकों को ई-रिक्शा भेंट किए थे.
वहीं, अब उत्तराखंड राज्य सरकार के अजीबो-गरीबो फरमान के बाद रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. ऐसे में राज्य सरकार पर ही कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. ई-रिक्शा चालकों को सड़कों से गायब ही करना था तो फिर पहले इन चालकों को लोन पर ई-रिक्शा क्यों दिया गया. उधर, ई-रिक्शा चालकों की मानें तो रात को सवारियां ना के बराबर ही मिलती हैं. ऐसे में उन्हें ई-रिक्शे की किश्त जमा कराने के लाले पड़ गए हैं. समय पर किश्त जमा ना होने से बैंक की ओर से भी नोटिस मिल रहे हैं.
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ई-रिक्शा संचालकों का आरोप है कि सरकार को ई-रिक्शा को बैन करना ही था तो उनका पंजीकरण ही नहीं किया जाना चाहिए था. साथ ही उन्होंने सरकार से शहर में ई-रिक्शा चलाने को लेकर परमिशन देने की मांग की. ऐसा ना करने पर सरकार को लोन माफ करने के साथ उनके द्वारा दी गई राशि भी वापस करने को कहा. जिससे वो अन्य व्यवसाय और काम कर सकें.
राज्य में लाई जाएंगी 80 इलेक्ट्रॉनिक बसें
परिवहन सचिव शैलेश बगोली ने बताया कि इलेक्ट्रिक बसों को लेकर दो योजनाएं केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही है. फेम टू स्कीम जिसमें भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक बसें चलाने के लिए सब्सिडी देती है. इस योजना को ग्रॉस कास्ट मॉडल कहते हैं. जो भी व्यक्ति इसे चलाने आएगा. उसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से भुगतान किया जाएगा.
इसी के तहत स्मार्ट सिटी लिमिटेड को 30 बसें और उत्तराखंड परिवहन निगम को 50 बसें स्वीकृत हुईं हैं. जल्द ही राज्य सरकार ग्रॉस कास्ट मॉडल के तहत टेंडर करने जा रही है. टेंडर के तहत चयनित किए गए अभ्यर्थी इसे चला सकेंगे.
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राज्य सरकार ई-व्हीकल्स खरीदने में दे रही है छूट
सचिव शैलेश बगोली की मानें तो ई-व्हीकल प्रदेश के लिए एक उपयोगी योजना है. क्योंकि, यह प्रदेश पहले से ही ग्रीन प्रदेश के रूप में जाना जाता है. प्रदूषण को नियंत्रित करने में इस योजना से काफी मदद मिलेगी. साथ ही परिवहन विभाग को भी इससे फायदा होगा. इलेक्ट्रॉनिक बसों में खर्चा कम आता है.
ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में पहले शुरुआती चरण में हल्द्वानी, नैनीताल और देहरादून-मसूरी में चलाया जाएगा. जिससे खर्चा भी कम होगा. साथ ही कहा कि प्रदेश के भीतर कई लोगों ने ई-रिक्शा ले लिया है, लेकिन राज्य सरकार ई-व्हीकल खरीदने पर टैक्स में छूट दे रही है.
वहीं, उन्होंने कहा कि कई जगह पर बड़े वाहन चलाने की आवश्यक पड़ेगी. बड़े शहरों में पब्लिक ट्रॉन्सपोर्ट अहम होता है. लिहाजा सरकार की कोशिश है कि यहां पर ज्यादा से ज्यादा बसें चलाई जाएं. इससे सड़कों पर ट्रैफिक का लोड कम हो जाएगा.