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त्रिवेंद्र सरकार के इस फरमान से पीएम मोदी के 'सपने' को लग सकता है झटका, पर्यावरण से जुड़ा है मामला

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Published : Oct 13, 2019, 9:07 PM IST

Updated : Oct 13, 2019, 10:36 PM IST

राज्य सरकार ने राजधानी देहरादून में ई-रिक्शा को लेकर एक फरमान जारी किया था. जिसके मुताबिक ई-रिक्शा शहर के मुख्य सड़कों पर नहीं चला सकते हैं. वो सिर्फ गलियों में ही चला सकेंगे. इतना ही नहीं फरमान के हिसाब से ई-रिक्शा सिर्फ रात को ही चलेंगे और दिन में मुख्य सड़कों पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे. ऐसे में रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है.

ई-रिक्शा

देहरादूनः लगातार दूषित हो रहा पर्यावरण एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है. जिसे देखते हुए केंद्र सरकार सड़कों पर ई-व्हीकल को बढ़ावा दे रही है. इतना ही नहीं सरकार, ई-व्हीकल पर तमाम तरह की स्कीमें भी चला रही है. जिससे ज्यादा से ज्यादा ई-व्हीकल सड़कों पर उतरे और पर्यावरण को कम नुकसान हो, लेकिन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में राज्य सरकार के अजीबो-गरीबो फरमान के बाद ई-रिक्शा मुख्य सड़कों से गायब हो चुके हैं. इस फरमान के बाद ई- रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. हालांकि, सरकार के इस फरमान का तर्क ये है कि ई-रिक्शा चालकों की वजह से शहर भर में जाम लग रहा है.

सड़कों से गायब हो रहे ई-रिक्शा.

दरअसल, राज्य सरकार ने राजधानी देहरादून में ई-रिक्शा को लेकर एक फरमान जारी किया था. जिसके मुताबिक ई-रिक्शा शहर के मुख्य सड़कों पर नहीं चला सकते हैं. वो सिर्फ गलियों में ही चलेंगे. इतना ही नहीं फरमान के हिसाब से ई-रिक्शा सिर्फ रात को ही चलेंगे और दिन में मुख्य सड़कों पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे. जबकि, केंद्र सरकार पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कर रही है. साथ 2022 तक पचास फीसदी ई-वाहनों को सड़क पर लाने की बात भी कही है.

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जिसके लिए केंद्र सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए फास्टर एडोप्सन, मेन्युसेंटिंग ऑफ हाइब्रिड समेत इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) -2 योजना शुरू की है. इसके तहत इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों की खरीदारी पर 10 हजार रुपये की सब्सिडी दी जाएगी. वहीं, एक ओर राज्य सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए ई-वाहनों में बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा था. इसी कड़ी में खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिह रावत ने एक योजना के तहत लोन पर कई ई-रिक्शा चालकों को ई-रिक्शा भेंट किए थे.

वहीं, अब उत्तराखंड राज्य सरकार के अजीबो-गरीबो फरमान के बाद रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. ऐसे में राज्य सरकार पर ही कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. ई-रिक्शा चालकों को सड़कों से गायब ही करना था तो फिर पहले इन चालकों को लोन पर ई-रिक्शा क्यों दिया गया. उधर, ई-रिक्शा चालकों की मानें तो रात को सवारियां ना के बराबर ही मिलती हैं. ऐसे में उन्हें ई-रिक्शे की किश्त जमा कराने के लाले पड़ गए हैं. समय पर किश्त जमा ना होने से बैंक की ओर से भी नोटिस मिल रहे हैं.

ये भी पढे़ंः World disaster mitigation day: चित्रकारों ने पेंटिंग्स में बयां किया आपदा का दर्द

ई-रिक्शा संचालकों का आरोप है कि सरकार को ई-रिक्शा को बैन करना ही था तो उनका पंजीकरण ही नहीं किया जाना चाहिए था. साथ ही उन्होंने सरकार से शहर में ई-रिक्शा चलाने को लेकर परमिशन देने की मांग की. ऐसा ना करने पर सरकार को लोन माफ करने के साथ उनके द्वारा दी गई राशि भी वापस करने को कहा. जिससे वो अन्य व्यवसाय और काम कर सकें.

राज्य में लाई जाएंगी 80 इलेक्ट्रॉनिक बसें

परिवहन सचिव शैलेश बगोली ने बताया कि इलेक्ट्रिक बसों को लेकर दो योजनाएं केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही है. फेम टू स्कीम जिसमें भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक बसें चलाने के लिए सब्सिडी देती है. इस योजना को ग्रॉस कास्ट मॉडल कहते हैं. जो भी व्यक्ति इसे चलाने आएगा. उसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से भुगतान किया जाएगा.

इसी के तहत स्मार्ट सिटी लिमिटेड को 30 बसें और उत्तराखंड परिवहन निगम को 50 बसें स्वीकृत हुईं हैं. जल्द ही राज्य सरकार ग्रॉस कास्ट मॉडल के तहत टेंडर करने जा रही है. टेंडर के तहत चयनित किए गए अभ्यर्थी इसे चला सकेंगे.

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राज्य सरकार ई-व्हीकल्स खरीदने में दे रही है छूट

सचिव शैलेश बगोली की मानें तो ई-व्हीकल प्रदेश के लिए एक उपयोगी योजना है. क्योंकि, यह प्रदेश पहले से ही ग्रीन प्रदेश के रूप में जाना जाता है. प्रदूषण को नियंत्रित करने में इस योजना से काफी मदद मिलेगी. साथ ही परिवहन विभाग को भी इससे फायदा होगा. इलेक्ट्रॉनिक बसों में खर्चा कम आता है.

ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में पहले शुरुआती चरण में हल्द्वानी, नैनीताल और देहरादून-मसूरी में चलाया जाएगा. जिससे खर्चा भी कम होगा. साथ ही कहा कि प्रदेश के भीतर कई लोगों ने ई-रिक्शा ले लिया है, लेकिन राज्य सरकार ई-व्हीकल खरीदने पर टैक्स में छूट दे रही है.

वहीं, उन्होंने कहा कि कई जगह पर बड़े वाहन चलाने की आवश्यक पड़ेगी. बड़े शहरों में पब्लिक ट्रॉन्सपोर्ट अहम होता है. लिहाजा सरकार की कोशिश है कि यहां पर ज्यादा से ज्यादा बसें चलाई जाएं. इससे सड़कों पर ट्रैफिक का लोड कम हो जाएगा.

देहरादूनः लगातार दूषित हो रहा पर्यावरण एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है. जिसे देखते हुए केंद्र सरकार सड़कों पर ई-व्हीकल को बढ़ावा दे रही है. इतना ही नहीं सरकार, ई-व्हीकल पर तमाम तरह की स्कीमें भी चला रही है. जिससे ज्यादा से ज्यादा ई-व्हीकल सड़कों पर उतरे और पर्यावरण को कम नुकसान हो, लेकिन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में राज्य सरकार के अजीबो-गरीबो फरमान के बाद ई-रिक्शा मुख्य सड़कों से गायब हो चुके हैं. इस फरमान के बाद ई- रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. हालांकि, सरकार के इस फरमान का तर्क ये है कि ई-रिक्शा चालकों की वजह से शहर भर में जाम लग रहा है.

सड़कों से गायब हो रहे ई-रिक्शा.

दरअसल, राज्य सरकार ने राजधानी देहरादून में ई-रिक्शा को लेकर एक फरमान जारी किया था. जिसके मुताबिक ई-रिक्शा शहर के मुख्य सड़कों पर नहीं चला सकते हैं. वो सिर्फ गलियों में ही चलेंगे. इतना ही नहीं फरमान के हिसाब से ई-रिक्शा सिर्फ रात को ही चलेंगे और दिन में मुख्य सड़कों पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे. जबकि, केंद्र सरकार पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कर रही है. साथ 2022 तक पचास फीसदी ई-वाहनों को सड़क पर लाने की बात भी कही है.

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जिसके लिए केंद्र सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए फास्टर एडोप्सन, मेन्युसेंटिंग ऑफ हाइब्रिड समेत इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) -2 योजना शुरू की है. इसके तहत इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों की खरीदारी पर 10 हजार रुपये की सब्सिडी दी जाएगी. वहीं, एक ओर राज्य सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए ई-वाहनों में बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा था. इसी कड़ी में खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिह रावत ने एक योजना के तहत लोन पर कई ई-रिक्शा चालकों को ई-रिक्शा भेंट किए थे.

वहीं, अब उत्तराखंड राज्य सरकार के अजीबो-गरीबो फरमान के बाद रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है. ऐसे में राज्य सरकार पर ही कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. ई-रिक्शा चालकों को सड़कों से गायब ही करना था तो फिर पहले इन चालकों को लोन पर ई-रिक्शा क्यों दिया गया. उधर, ई-रिक्शा चालकों की मानें तो रात को सवारियां ना के बराबर ही मिलती हैं. ऐसे में उन्हें ई-रिक्शे की किश्त जमा कराने के लाले पड़ गए हैं. समय पर किश्त जमा ना होने से बैंक की ओर से भी नोटिस मिल रहे हैं.

ये भी पढे़ंः World disaster mitigation day: चित्रकारों ने पेंटिंग्स में बयां किया आपदा का दर्द

ई-रिक्शा संचालकों का आरोप है कि सरकार को ई-रिक्शा को बैन करना ही था तो उनका पंजीकरण ही नहीं किया जाना चाहिए था. साथ ही उन्होंने सरकार से शहर में ई-रिक्शा चलाने को लेकर परमिशन देने की मांग की. ऐसा ना करने पर सरकार को लोन माफ करने के साथ उनके द्वारा दी गई राशि भी वापस करने को कहा. जिससे वो अन्य व्यवसाय और काम कर सकें.

राज्य में लाई जाएंगी 80 इलेक्ट्रॉनिक बसें

परिवहन सचिव शैलेश बगोली ने बताया कि इलेक्ट्रिक बसों को लेकर दो योजनाएं केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही है. फेम टू स्कीम जिसमें भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक बसें चलाने के लिए सब्सिडी देती है. इस योजना को ग्रॉस कास्ट मॉडल कहते हैं. जो भी व्यक्ति इसे चलाने आएगा. उसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से भुगतान किया जाएगा.

इसी के तहत स्मार्ट सिटी लिमिटेड को 30 बसें और उत्तराखंड परिवहन निगम को 50 बसें स्वीकृत हुईं हैं. जल्द ही राज्य सरकार ग्रॉस कास्ट मॉडल के तहत टेंडर करने जा रही है. टेंडर के तहत चयनित किए गए अभ्यर्थी इसे चला सकेंगे.

ये भी पढे़ंः ब्रेस्ट कैंसर को लेकर महिलाओं ने निकाली जागरूकता रैली

राज्य सरकार ई-व्हीकल्स खरीदने में दे रही है छूट

सचिव शैलेश बगोली की मानें तो ई-व्हीकल प्रदेश के लिए एक उपयोगी योजना है. क्योंकि, यह प्रदेश पहले से ही ग्रीन प्रदेश के रूप में जाना जाता है. प्रदूषण को नियंत्रित करने में इस योजना से काफी मदद मिलेगी. साथ ही परिवहन विभाग को भी इससे फायदा होगा. इलेक्ट्रॉनिक बसों में खर्चा कम आता है.

ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में पहले शुरुआती चरण में हल्द्वानी, नैनीताल और देहरादून-मसूरी में चलाया जाएगा. जिससे खर्चा भी कम होगा. साथ ही कहा कि प्रदेश के भीतर कई लोगों ने ई-रिक्शा ले लिया है, लेकिन राज्य सरकार ई-व्हीकल खरीदने पर टैक्स में छूट दे रही है.

वहीं, उन्होंने कहा कि कई जगह पर बड़े वाहन चलाने की आवश्यक पड़ेगी. बड़े शहरों में पब्लिक ट्रॉन्सपोर्ट अहम होता है. लिहाजा सरकार की कोशिश है कि यहां पर ज्यादा से ज्यादा बसें चलाई जाएं. इससे सड़कों पर ट्रैफिक का लोड कम हो जाएगा.

Intro:नोट - फीड ftp से भेजी गयी है..........
uk_deh_02_e-vehicle_pkg_7205803


एक ओर जहां राज्य सरकार पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कर रही है। और 2022 तक पचास प्रतिशत ई-वाहनों को सड़क पर लाने की बात कर रही है तो वही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के ई-रिक्शा मुख्य सड़कों से गायब हो चुके हैं। जिसका मुख्य कारण राज्य सरकार का वो फरमान है। जिसके अनुसार ई-रिक्शा चालक शहर के मुख्य सड़को पर नही चल सकते, वो सिर्फ गलियों में ही चल सकते हैं। साथ ही राज्य सरकार का एक अजीब फरमान यह भी है कि ई-रिक्शा सिर्फ रात को ही चलेंगे और दिन में मुख्य सड़को पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। आखिर क्या है प्रदेश में ई रिक्शा-चालकों की स्तिथि और ई व्हीकल को लेकर क्या रुख है राज्य सरकार का, देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट......... 


Body:लगातार दूषित हो रहा पर्यावरण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। जिसको देखते हुए केंद्र सरकार सड़को पर ई-व्हीकल को बढ़ावा दे रही है। यही नहीं केंद्र सरकार, ई-व्हीकल पर तमाम तरह की स्कीमें भी चला रही जिससे ज्यादा से ज्यादा  ई-व्हीकल सड़को पर उतरे जिससे कम से कम पर्यावरण दूषित हो। यही नहीं केंद्र सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए फास्टर एडोप्सन और मेन्युसेंटिंग ऑफ हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) -2 योजना शुरू की है। इसके तहत इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों की खरीदारी पर 10 हजार रुपए की सब्सिडी दी जाएगी।

एक ओर राज्य सरकार ने पर्यावरण को बचाने के लिए ई-वाहनों में बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा था। और कुछ समय पहले खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिह रावत ने एक योजना के तहत लोन पर कई ई-रिक्शा चालको को ई-रिक्शा भेंट किये थे। तो वही अब उत्तराखंड राज्य सरकार के अजीबो-गरीबो फरमान के बाद रिक्शा चालकों पर रोजी रोटी का संकट गहरा गया है। हलाकि सरकार के इस फरमान का तर्क यह है कि ई-रिक्शा चालकों की वजह से शहर भर में जाम लगता है। ऐसे में राज्य सरकार पर ही कई तरह के सवाल खड़े हो रहे है कि अगर ई-रिक्शा चालकों को सड़को से गायब ही करना था तो फिर पहले इन चालकों को लोन पर  ई-रिक्शा क्यों दिया गया।

वही ई-रिक्शा चालकों की माने तो रात को सवारियां ना के बराबर ही मिलती है और ऐसे में उनको ई-रिक्शे की  किश्त भी जमा करने के लाले पड़ गए हैं। और समय पर किश्त जमा ना होने से बैंक के नोटिस उनको मिल रहे हैं और उनको किश्त जमा न होने की दशा में बैंक द्वारा उनके घर का सामान बेच दिया जाएगा। मतलब साफ है सरकार के इस फैसले के बाद ई रिक्शा चालको पर न केवल रोजी रोटी का संकट आ गया है, बल्कि अब उन पर घर बचाने का भी संकट पैदा हो गया है। ई-रिक्शा संचालको का आरोप है कि अगर सरकार को उनको चलने को बैन ही करना था, तो उनका पंजीकरण ही नही करना चाहिए था। साथ ही बताया कि सरकार उनको चलने की परमिशन दे, या फिर उनके लोन को माफ कर उनके द्वारा दी गयी राशि वापस की जाय जिससे वह अन्य काम कर सके।

बाइट - गोविंद सिंह, ई-रिक्शा चालक
बाइट - कपिल यादव,  ई-रिक्शा चालक
बाइट - सुंदर बहादुर,  ई-रिक्शा चालक


........राज्य में लायी जाएंगी 80 इलेक्ट्रॉनिक-बसें.......

परिवहन सचिव शैलेश बगोली ने बताया कि इलेक्ट्रिक बसों को लेकर दो योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही है। फेम टू स्कीम जिसमें भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक बस चलाने के लिए सब्सिडी देती है। और इस योजना को ग्रॉस कास्ट मॉडल कहते है। जो भी व्यक्ति इसे चलाने आयेगा। उसे प्रति किलोमीटर भुकतान किया जाएगा। इसी के तहत स्मार्ट सिटी लिमिटेड को 30 बसें और उत्तराखंड परिवहन निगम को 50 बसें स्वीकृत हुई है। जल्द ही राज्य सरकार ग्रॉस कास्ट मॉडल के तहत टेंडर करने जा रहा है। और टेंडर के तहत चयनित किये गए अभियार्थी इसे चलाएंगे। 

........राज्य सरकार ई-व्हीकल्स खरीदने में दे रही है छूट......

ई-व्हीकल प्रदेश के लिए एक उपयोगी योजना है। क्योंकि यह प्रदेश पहले से ही ग्रीन प्रदेश के रूप में जाना जाता रहा है। और प्रदूषण को नियंत्रित करने में इस योजना से काफी मदद मिलेगी। साथ ही परिवहन विभाग को भी इससे फायदा होगा। क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक बसों में खर्चा कम आता है। इसलिए पर्वतीय क्षेत्रों में पहले शुरुवात हल्द्वानी, नैनीताल और देहरादून-मसूरी चलाया जायेगा। जिससे खर्चा भी कम होगा। साथ ही सचिव शैलेश बगौली ने बताया कि प्रदेश के भीतर कई लोगो ने ई-रिक्शा ले लिया है लेकिन राज्य सरकार ने ई-व्हीकल खरीदने पर टैक्स में छूट दे रही है। 




Conclusion:वही सचिव शैलेश बगोली ने बताया कि कई जगह पर बड़े वाहन चलाने की आवश्यक पड़ेगी। क्योकि जो भी अच्छे शहर होते है वहा पब्लिक ट्रॉन्सपोर्ट अहम होता है। लिहाजा सरकार की कोशिश है कि यहाँ पर अधिक से अधिक बसें चलाई जाए। और बसों को शहर में चलने से सड़को पर ट्रैफिक का लोड कम हो जाता है। क्योंकि बस में जितने यात्री आते है। उतने यात्रियों के लिए बहुत अधिक संख्या में कार, ऑटो, विक्रम आदि की आवश्यकता पड़ती है। इसी को देखते हुए ई-बसें मंगायी जा रही है। 

बाइट - शैलेश बगोली, परिवहन सचिव 


Last Updated : Oct 13, 2019, 10:36 PM IST
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