देहरादून: पूर्व सीएम हरीश रावत ने विधानसभा सत्र को लेकर सवाल उठाए हैं. हरीश रावत ने बजट को लेकर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि राज्य के वार्षिक बजट का लगभग आधा हिस्सा यदि मैं यह कहूं जिसको हम वास्तविक बजट कह सकते हैं, उस वास्तविक बजट के आधे से भी कुछ ज्यादा हिस्सा विधानसभा में बिना बहस के पारित हो गया. हम नये वित्त मंत्री की प्रतिभा की कुछ झलक भी नहीं देख सके! अब तो जो बजट आएगा, उस बजट में आधा से कुछ ज्यादा इसी का रिपीटेशन और बाकी थोड़ी कुछ कॉस्मेटिक चीजें जो बहुधा कही जाती हैं.
कल मैंने हिंदी-अंग्रेजी के 5 पेपर खंगाले. मैं यह देखना चाहता था कि माननीय राज्यपाल महोदय के अभिभाषण जो अगले 1 साल के लिए सरकार का दिशा सूचक है, उस विषय में क्या बातें उठी हैं और माननीय मुख्यमंत्री जी ने किस तरीके से आगे के लिए लोगों के मन में विश्वास जगाया है और विकास की दिशा का बोध देने का प्रयास किया है! मुझे कहीं भी माननीय गवर्नर महोदय के अभिभाषण का कुछ भी अंश देखने को नहीं मिला, शायद यह औपचारिकता भी कोई विधिवत प्रस्ताव पेश करे, धन्यवाद दे और उसको सत्तारूढ़ दल का कोई व्यक्ति उसका समर्थन करे और विपक्ष की तरफ से रश्म अदायगी के तौर पर कोई कुछ शब्द कहे, यह औपचारिकताएं भी आवश्यक नहीं समझी गई हैं. यदि ऐसा है तो यह एक बहुत दु:खद खतरनाक परंपरा है.
राज्य के वार्षिक बजट का लगभग आधा हिस्सा यदि मैं यह कहूं जिसको हम वास्तविक बजट कह सकते हैं, उस वास्तविक बजट के आधे से भी कुछ ज्यादा हिस्सा विधानसभा में बिना बहस के पारित हो गया. हम नये वित्त मंत्री के प्रतिभा की कुछ झलक भी नहीं देख सके! अब तो जो बजट आएगा, उस बजट में आधा से कुछ ज्यादा इसी का रिपीटेशन और बाकी थोड़ी कुछ कॉस्मेटिक चीजें जो बहुधा कही जाती हैं, कितना उन चीजों का बजट की वास्तविकता में योगदान रहता है, यह एक डिबेट का प्रश्न है तो आपने सरकार की शुरुआत में दो अपॉर्चुनिटीज जिसके जरिए सरकार का दिशा बोधन किया है, उसको जानने से राज्य के लोगों को वंचित कर दिया और दूसरी तरफ सरकार के कार्यकाल के पहले वर्ष के अंदर बजट का एक बड़ा हिस्सा पास हो गया और उसकी जो विधायी स्क्रूटनी होनी थी, वह विधायी स्क्रूटनी भी नहीं हो पाई तो किस तरफ हम इन 2 दिनों में आगे बढ़े हैं, यह चिंता का विषय है.
ऐसी जल्दबाजी दो ही स्थितियों में होती है या तो सत्तारूढ़ दल अपने मुख्यमंत्री के विषय में आश्वस्त न हो और उनसे साल भर की कोई बात न कहलवाना चाहता हो, नहीं तो आखिर एक व्यक्ति जो अपने बलबूते पर दो-तिहाई बहुमत लेकर के आया है, जिनको आपने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया था, चुनाव हारना-जीतना अलग बात है लेकिन पार्टी को जिताना एक बड़ी बात है, जनरल खंडूरी भी लगभग यह कर पाए थे, तो आखिर जिसके ऊपर लोगों ने इतनी आस्था रखी उसकी कुछ झलक तो हम देखते न! पहले तो ऐसी परिस्थिति में आपने उनको मुख्यमंत्री बनाया जिनसे कहा बस पत्थर फेंके जाओ जो निशाने पर लग जाए ठीक है, उन्होंने काम कुशलता से कर लिया. मगर अब राज्य के लोगों को कुछ भी ऐसा आकलन कि हमारे मुख्यमंत्री के अंदर क्या क्षमताएं हैं और राज्य की क्या दिशा दे रहे हैं उसको मालूम करने का अवसर ही नहीं मिला!
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ऐसा लगता है कि भाजपा शायद उनके स्वयं के चुनाव जीतने की क्षमता के प्रति आश्वस्त नहीं हैं, नहीं तो दूसरा तो फिर कोई कारण समझ में नहीं आता कि प्लेटफार्म उपस्थित हो और उस प्लेटफार्म का सत्तारूढ़ दल फायदा न उठाना चाहे, सचमुच इस राज्य के एक विचारशील नागरिक के रूप में मुझे बहुत गहरा झटका लगा है, एक बड़ी सुखद शुरुआत हुई जब हमने श्रीमती रितु खंडूरी भूषण को राज्य के स्पीकर के पद पर आरूढ़ देखा. हमको उम्मीद थी कि उनके कार्यकाल के पहले चरण में कुछ बहस होंगी जिसमें वो कुछ प्रतिभाओं को संरक्षण देंगी! आप लेखानुदान पर बहस नहीं करेंगे, आप गवर्नर के अभिभाषण पर बहस नहीं करेंगे तो फिर आखिर लोगों को अपनी वाकपटुता/क्षमता दिखाने का अवसर कैसे मिलेगा! और अध्यक्षा जी का आगे के लिए उत्तराखंड की संसदीय परंपराओं के लिए क्या रोडमैप है, अब उसके लिए हमको अगले सत्रों का इंतजार करना पड़ेगा! बहरहाल मैं यह कह सकता हूं कि यह 2 दिन का सत्र विपक्ष की तरफ से लाभदाई हो सकता है क्योंकि उन्होंने महंगाई के मुद्दे पर सरकार को जमकर के घेर दिया. मगर सरकार के लिए यह मिस अपॉर्चुनिटी है या लॉस अपॉर्चुनिटी है, यह एक विवेचना का विषय है.