ऋषिकेशः उत्तराखंड जल विद्युत निगम (यूजेवीएनएल) वर्ल्ड बैंक की मदद से ऋषिकेश में तकरीबन 70 लाख रुपए से कॉफर डैम का निर्माण कर रहा है. सूत्रों का दावा है कि जो वजह बताकर इस बांध का निर्माण किया जा रहा है, अब वही इसके लिए खतरा बन गया है. इसलिए अब जल विद्युत निगम की इस पर चिंता बढ़ गई है. उन्होंने सिर्फ संभावना ही नहीं 'प्रबल' शब्द का इस्तेमाल करते हुए इसके निर्माण को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है.
उत्तराखंड जल विद्युत निगम (सिविल) के अधिकारी इन दिनों बैराज जलाशय में कॉफर डैम का निर्माण कर रहे हैं. इस डैम के निर्माण के लिए वर्ल्ड बैंक से मदद ली गई है. डैम के निर्माण में अनुबंध को लेकर तो कई तरह के सवाल उठ ही रहे हैं लेकिन अब इसके निर्माण के मूल उद्देश्यों पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं.
दावा है कि ट्रेसबैक क्लीनिंग की मशीन को इंस्टॉल कर चीला पावर हाउस में किसी भी तरह के कूड़े कचरे को जाने से रोकने के लिए कॉफर डैम का निर्माण किया जा रहा है. ट्रेसबैक क्लीनिंग की मशीन के इंस्टॉलिंग के लिए निगम ने क्लोजर के लिए संबंधित महकमों से मंजूरी भी ली है.
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इस मशीन की स्थापना को लेकर ही नहीं बल्कि, कॉफर डैम के निर्माण को लेकर भी कई तरह के सवाल लगातार उठ रहे हैं. सूत्रों का दावा है कि यांत्रिक विभाग ने इस तरह के किसी भी प्रोजेक्ट के लिए कोई इच्छा जाहिर नहीं की थी. यही नहीं, उन्होंने अब इस प्रोजेक्ट के निर्माण से बैराज के गेटों के क्षतिग्रस्त होने की प्रबल संभावना जताई है. हैरत की बात ये है कि जरूरत न होने पर भी निगम के सिविल विभाग ने न सिर्फ इस प्रोजेक्ट को तैयार किया, बल्कि मंजूरी मिलने के बाद मौके पर जोरो-शोरों से काम भी किया जा रहा है.
सूत्र इतना ही नहीं बताते, अधिकारियों का तो ये भी कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट में शामिल निर्माण की शर्तों का भी उल्लंघन किया जा रहा है. अब यह पूरा मामला निगम मुख्यालय तक पहुंच गया है. जिसपर मुख्यालय ने जांच रिपोर्ट भी मांग ली है.
डेढ़ करोड़ से 70 लाख रुपए का फेर
उत्तराखंड जल विद्युत निगम में कॉफर डैम के निर्माण के लिए पूर्व में तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपए का प्रस्ताव भेजा गया था. इसके बाद प्रस्ताव में फेरबदल करते हुए इसे 70 लाख रुपए का बनाकर भेजा गया. जिसे मुख्यालय से मंजूरी मिल गई. अधिशासी अभियंता ललित प्रसाद टम्टा का कहना है कि डेढ़ करोड़ रुपए के प्रस्ताव में चार गेट पर काम किया जाना था. फिलहाल एक ही गेट पर काम किया जाना है. लिहाजा इसकी लागत भी इसी वजह से कम हुई है.
उत्तराखंड जल विद्युत निगम के निगम के अधिशासी अभियंता (ईई) ललित प्रसाद टम्टा ने बताया कि ट्रेसबैक क्लीनिंग मशीन की स्थापना जलाशय में कूड़े कचरे को हटाने के लिए मैनुवली कामकाज में दिक्कतों की वजह से की जा रही है. इससे निगम को काफी लाभ मिलेगा. कर्मचारियों की सुरक्षा के लिहाज से भी यह बेहद अहम प्रोजेक्ट है.