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हिमालय दिवस कल, सीएम त्रिवेंद्र का प्रदेशवासियों को खास संदेश - मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत समाचार

हिमालय दिवस पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेशवासियों को खास संदेश दिया है. उन्होंने कहा कि हिमालय से हमारा भविष्य और विरासत दोनों जुड़ी हैं. इसलिए इसे संरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है.

cm trivendra singh rawat
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Published : Sep 8, 2020, 9:04 PM IST

देहरादून: हिमालय को संरक्षित रखने और हिमालय के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हिमालय दिवस के अवसर पर प्रदेशवासियों को खास संदेश दिया है. उन्होंने कहा कि हिमालय न केवल भारत बल्कि विश्व की बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित करता है. यह हमारा भविष्य और विरासत दोनों है. ऐसे में हिमालय के सुरक्षित रहने पर ही इससे निकलने वाली नदियां भी सुरक्षित रह पायेंगी. यही नहीं हिमालय की इन पावन नदियों का जल एवं जलवायु पूरे देश को एक सूत्र में पिरोता है.

मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि हिमालय हमारे जीवन के सरोकारों से गहनता से जुड़ा हुआ है. लिहाजा, हिमालय के संरक्षण की पहली जिम्मेदारी भी हमारी है. हिमालय के संरक्षण के लिए इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, नदियों एवं वनों का भी संरक्षण आवश्यक है. इसीलिए जल संरक्षण, संवर्धन और व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण राज्य सरकार की प्राथमिकता है. यही नहीं, हिमालय संरक्षण के लिए हमने राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम भी चलाई है.

सीएम ने कहा कि हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने, प्रकृति प्रदत्त जैव विविधता, ग्लेशियर, नदियों और झीलों के संरक्षण की दिशा में प्रभावी पहल की आवश्यकता है. हमें हिमालय को उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार अपने स्तर पर तमाम कार्य योजनाओं के माध्यम से विचार गोष्ठियों एवं जन जागरूकता आदि कार्यक्रम आयोजित करती रही है. फिर भी इस व्यापकता वाले विषय पर सभी बुद्धिजीवियों, विषय विशेषज्ञों, प्रकृति प्रेमियों और हिमालय पर उसकी समग्रता का अध्ययन करने वाले अध्येताओं को एक मंच पर आकर संजीदगी के साथ इस दिशा में आगे आना होगा. इसके लिए राज्य सरकार हर संभव सहयोग के लिए तत्पर हैं.

पढ़ेंः सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, चारधाम प्रोजेक्ट में केंद्र कराए पौधरोपण

उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण हमारे स्वभाव में है. हरेला जैसे पर्व प्रकृति से जुड़ने की हमारे पूर्वजों की दूरगामी सोच को दर्शाती है. वनों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन भी प्रकृति की प्रेरणा से संचालित हुआ है. पर्यावरण में हो रहे बदलावों, ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही जल, जंगल और जमीन से जुड़े विषयों पर समेकित चिंतन की जरूरत है. इसके लिए सामाजिक चेतना तथा समेकित सामूहिक प्रयासों से ही इस समस्या के समाधान में सहयोगी बन सकते हैं. यही नहीं, रिस्पना- कोसी जैसी नदियों के पुनर्जीवीकरण करने के लिए प्रयास किए जाने के साथ ही गंगा, यमुना व उनकी सहायक नदियों की स्वच्छता के लिए कारगर प्रयास किए जा रहे हैं. नदियों का स्वच्छ पर्यावरण भी हिमालय के पर्यावरण को बचाने में मददगार होगा.

देहरादून: हिमालय को संरक्षित रखने और हिमालय के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हिमालय दिवस के अवसर पर प्रदेशवासियों को खास संदेश दिया है. उन्होंने कहा कि हिमालय न केवल भारत बल्कि विश्व की बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित करता है. यह हमारा भविष्य और विरासत दोनों है. ऐसे में हिमालय के सुरक्षित रहने पर ही इससे निकलने वाली नदियां भी सुरक्षित रह पायेंगी. यही नहीं हिमालय की इन पावन नदियों का जल एवं जलवायु पूरे देश को एक सूत्र में पिरोता है.

मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि हिमालय हमारे जीवन के सरोकारों से गहनता से जुड़ा हुआ है. लिहाजा, हिमालय के संरक्षण की पहली जिम्मेदारी भी हमारी है. हिमालय के संरक्षण के लिए इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, नदियों एवं वनों का भी संरक्षण आवश्यक है. इसीलिए जल संरक्षण, संवर्धन और व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण राज्य सरकार की प्राथमिकता है. यही नहीं, हिमालय संरक्षण के लिए हमने राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम भी चलाई है.

सीएम ने कहा कि हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने, प्रकृति प्रदत्त जैव विविधता, ग्लेशियर, नदियों और झीलों के संरक्षण की दिशा में प्रभावी पहल की आवश्यकता है. हमें हिमालय को उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार अपने स्तर पर तमाम कार्य योजनाओं के माध्यम से विचार गोष्ठियों एवं जन जागरूकता आदि कार्यक्रम आयोजित करती रही है. फिर भी इस व्यापकता वाले विषय पर सभी बुद्धिजीवियों, विषय विशेषज्ञों, प्रकृति प्रेमियों और हिमालय पर उसकी समग्रता का अध्ययन करने वाले अध्येताओं को एक मंच पर आकर संजीदगी के साथ इस दिशा में आगे आना होगा. इसके लिए राज्य सरकार हर संभव सहयोग के लिए तत्पर हैं.

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उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण हमारे स्वभाव में है. हरेला जैसे पर्व प्रकृति से जुड़ने की हमारे पूर्वजों की दूरगामी सोच को दर्शाती है. वनों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन भी प्रकृति की प्रेरणा से संचालित हुआ है. पर्यावरण में हो रहे बदलावों, ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही जल, जंगल और जमीन से जुड़े विषयों पर समेकित चिंतन की जरूरत है. इसके लिए सामाजिक चेतना तथा समेकित सामूहिक प्रयासों से ही इस समस्या के समाधान में सहयोगी बन सकते हैं. यही नहीं, रिस्पना- कोसी जैसी नदियों के पुनर्जीवीकरण करने के लिए प्रयास किए जाने के साथ ही गंगा, यमुना व उनकी सहायक नदियों की स्वच्छता के लिए कारगर प्रयास किए जा रहे हैं. नदियों का स्वच्छ पर्यावरण भी हिमालय के पर्यावरण को बचाने में मददगार होगा.

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