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उत्तराखंड में जंगलों की आग की रिपोर्ट तलब, तीन महीनों की घटनाओं का होगा विश्लेषण - उत्तराखंड वन विभाग न्यूज

देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड के जंगलों की आग का मामला पहुंचा तो प्रदेश के वन महकमे में हड़कंप मच गया. चिंता की बात यह रही की सर्दियों के मौसम में भी आग की घटनाएं लगातार सामने आ रही है. इन घटनाओं ने वन विभाग की परेशानियों को बेहद ज्यादा बढ़ा दिया.

जंगलों की आग
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Published : Jan 8, 2021, 6:43 AM IST

देहरादून: सर्दियों में उत्तराखंड के जिन जंगलों पर बर्फ की सफेद चादर बिछी रहती थी. आजकल वो जंगल धू-धू कर जल रहे हैं. सर्दियों में बढ़ती वनग्नि की घटनाओं ने वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है. यहीं कारण है कि विभाग ने अब पिछले तीन महीनों की रिपोर्ट वन अधिकारियों से तलब की है. खास बात यह है कि अब वन विभाग इन तीन महीनों में लगी आग के कारणों और उस पर अधिकारियों की तरफ से हुई कार्यवाही की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगा.

उत्तराखंड में जंगलों की आग की रिपोर्ट तलब.

सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड के जंगलों की आग का मामला पहुंचा तो प्रदेश के वन महकमे में हड़कंप मच गया. चिंता की बात यह रही कि सर्दियों के मौसम में भी आग की घटनाएं लगातार सामने आ रही है. इन घटनाओं ने वन विभाग की परेशानियों को बेहद ज्यादा बढ़ा दिया. यूं तो यह समय फायर सीजन से पहले इसकी तैयारियों के लिए जंगलों में फायर लाइन तैयार करने का होता है, ताकि फायर सीजन में आग की घटनाएं कम हो सके, लेकिन सर्दियों में भी आग की घटनाएं लगातार बढ़ने से वन विभाग इन जंगलों में आग बुझाने में ही जुटा रहा.

पढ़ें- कुमाऊं दौरे पर कांग्रेस प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, मिशन 2022 को लेकर भरी हुंकार

2020 में वनाग्नि घटनाओं में आई कमी

वैसे तो यह साल पिछले 10 सालों में सबसे कम आग लगने की घटनाओं के नाम रहा, इसके पीछे की वजह लॉकडाउन और अच्छी बारिश को माना जाता रहा है. लेकिन अब अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने में जंगलों में लगी आग ने वन विभाग की चिंता बढ़ाई है. वैसे आपको बता दें कि हर साल 15 फरवरी से 15 जून के बीच का समय फायर सीजन के रूप में घोषित जाता है, लेकिन इस दौरान वनाग्नि की सबसे ज्यादा मामले सामने आते है. विभाग भी इस समय को गंभीरता से लेता है. फायर सीजन में वन विभाग पूरी तरह अलर्ट रहता है.

सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका में सरकार और वन महकमे की तरफ से वनों और वन्यजीवों समेत जैव विविधता को बचाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने की बात कही गई है. साल 2019 के लिहाज से देखा जाए साल 2020 में आग की कुल 126 घटनाएं हुई हैं. जिसमें 156 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है.

उधर साल 2019 में वनाग्नि के कुल 235 मामले सामने आए थे. जिसमें सबसे ज्यादा पौड़ी जिला प्रभावित हुआ था. अकेले यहां ही 115.6 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ था. इसके अलावा अल्मोड़ा में 61.5 हेक्टेयर, बागेश्वर में 47.27 हेक्टेयर, उत्तरकाशी 38.8 हेक्टेयर और पिथौरागढ़ 22.6 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ. इससे प्रदेश में करीब 5000 से ज्यादा पेड़ वनाग्नि में प्रभावित हुए.

अक्टूबर से दिसंबर तक के बीच जंगलों में लग रही आग की घटनाएं आने वाले फायर सीजन की तैयारियों के लिए भी दिक्कतें पैदा कर रही थी तो वही जंगलों के साथ वाइल्डलाइफ भी इससे प्रभावित हो रहा था. हालांकि अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ दिनों में हुई बारिश और बर्फबारी कारण अब अधिकतर जगहों पर वनाग्नि की घटनाएं पूरी तरह से बंद हो गई है. माना जा रहा है कि पर्यटकों की लापरवाही और शिकारियों की तरफ से भी इन घटनाओं को अंजाम दिया जा सकता है.

उधर अब आग की घटनाएं बंद होने के बाद वन विभाग पिछले तीन महीनों में लगी आग के विश्लेषण में जुट गया है. प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि उनकी तरफ से वनाग्नि के नोडल अधिकारी को निर्देश दिए गए हैं कि वह तीन महीनों में लगी आग के कारणों हुई कुल हुई क्षति और उस पर अधिकारियों की तरफ से की गई कार्यवाही की पूरी रिपोर्ट तैयार करें. ताकि इसका विश्लेषण किया जा सके.

देहरादून: सर्दियों में उत्तराखंड के जिन जंगलों पर बर्फ की सफेद चादर बिछी रहती थी. आजकल वो जंगल धू-धू कर जल रहे हैं. सर्दियों में बढ़ती वनग्नि की घटनाओं ने वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है. यहीं कारण है कि विभाग ने अब पिछले तीन महीनों की रिपोर्ट वन अधिकारियों से तलब की है. खास बात यह है कि अब वन विभाग इन तीन महीनों में लगी आग के कारणों और उस पर अधिकारियों की तरफ से हुई कार्यवाही की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगा.

उत्तराखंड में जंगलों की आग की रिपोर्ट तलब.

सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड के जंगलों की आग का मामला पहुंचा तो प्रदेश के वन महकमे में हड़कंप मच गया. चिंता की बात यह रही कि सर्दियों के मौसम में भी आग की घटनाएं लगातार सामने आ रही है. इन घटनाओं ने वन विभाग की परेशानियों को बेहद ज्यादा बढ़ा दिया. यूं तो यह समय फायर सीजन से पहले इसकी तैयारियों के लिए जंगलों में फायर लाइन तैयार करने का होता है, ताकि फायर सीजन में आग की घटनाएं कम हो सके, लेकिन सर्दियों में भी आग की घटनाएं लगातार बढ़ने से वन विभाग इन जंगलों में आग बुझाने में ही जुटा रहा.

पढ़ें- कुमाऊं दौरे पर कांग्रेस प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, मिशन 2022 को लेकर भरी हुंकार

2020 में वनाग्नि घटनाओं में आई कमी

वैसे तो यह साल पिछले 10 सालों में सबसे कम आग लगने की घटनाओं के नाम रहा, इसके पीछे की वजह लॉकडाउन और अच्छी बारिश को माना जाता रहा है. लेकिन अब अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने में जंगलों में लगी आग ने वन विभाग की चिंता बढ़ाई है. वैसे आपको बता दें कि हर साल 15 फरवरी से 15 जून के बीच का समय फायर सीजन के रूप में घोषित जाता है, लेकिन इस दौरान वनाग्नि की सबसे ज्यादा मामले सामने आते है. विभाग भी इस समय को गंभीरता से लेता है. फायर सीजन में वन विभाग पूरी तरह अलर्ट रहता है.

सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका में सरकार और वन महकमे की तरफ से वनों और वन्यजीवों समेत जैव विविधता को बचाने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने की बात कही गई है. साल 2019 के लिहाज से देखा जाए साल 2020 में आग की कुल 126 घटनाएं हुई हैं. जिसमें 156 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है.

उधर साल 2019 में वनाग्नि के कुल 235 मामले सामने आए थे. जिसमें सबसे ज्यादा पौड़ी जिला प्रभावित हुआ था. अकेले यहां ही 115.6 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ था. इसके अलावा अल्मोड़ा में 61.5 हेक्टेयर, बागेश्वर में 47.27 हेक्टेयर, उत्तरकाशी 38.8 हेक्टेयर और पिथौरागढ़ 22.6 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ. इससे प्रदेश में करीब 5000 से ज्यादा पेड़ वनाग्नि में प्रभावित हुए.

अक्टूबर से दिसंबर तक के बीच जंगलों में लग रही आग की घटनाएं आने वाले फायर सीजन की तैयारियों के लिए भी दिक्कतें पैदा कर रही थी तो वही जंगलों के साथ वाइल्डलाइफ भी इससे प्रभावित हो रहा था. हालांकि अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ दिनों में हुई बारिश और बर्फबारी कारण अब अधिकतर जगहों पर वनाग्नि की घटनाएं पूरी तरह से बंद हो गई है. माना जा रहा है कि पर्यटकों की लापरवाही और शिकारियों की तरफ से भी इन घटनाओं को अंजाम दिया जा सकता है.

उधर अब आग की घटनाएं बंद होने के बाद वन विभाग पिछले तीन महीनों में लगी आग के विश्लेषण में जुट गया है. प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि उनकी तरफ से वनाग्नि के नोडल अधिकारी को निर्देश दिए गए हैं कि वह तीन महीनों में लगी आग के कारणों हुई कुल हुई क्षति और उस पर अधिकारियों की तरफ से की गई कार्यवाही की पूरी रिपोर्ट तैयार करें. ताकि इसका विश्लेषण किया जा सके.

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